शनिवार, 16 अगस्त 2014

रोग मुक्ति का दुर्लभ देवी प्रत्यंगिरा विधान

तंत्र क्षेत्र के कई अद्भूत विधान है जिसके माध्यम से रोगों से मुक्ति पा कर एक सम्पूर्ण जीवन को जिया जा सकता है. ऐसे दुर्लभ विधानों के माध्यम से जहा एक और रोग और रोगजन्य कष्ट और पीड़ा से मुक्ति मिलती है वहीँ दूसरी और जो क्षति हुई है उसकी भी पूर्ति होती है जिससे भविष्य में वह रोग के लक्षण नहीं होते है. ऐसा ही एक दुर्लभ विधान देवी प्रत्यंगिरा से सबंधित है. यह प्रयोग श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाए तो रोग के कष्ट से निश्चित रूप से व्यक्ति को मुक्ति दिला सकती है. 
यह प्रयोग रविवार रात्री काल में ११ बजे के बाद शुरू किया जा सकता है.
साधक के वस्त्र और आसान लाल रंग के हो. साधक को उत्तर दिशा की तरफ मुख कर बैठना चाहिए.
साधक अपने सामने देवी प्रत्यंगिरा का चित्र या यन्त्र स्थापित करता है तो उत्तम है लेकिन यह संभव ना हो तो भी साधक मंत्र का जाप कर सकता है. साधक सर्व प्रथम हाथ में जल ले कर संकल्प करे की मेरे सभी रोग शोक दूर हो इस लिए में यह प्रयोग सम्प्पन कर रहा हू. देवी मुझे आशीष और सहायता प्रदान करे. अगर साधक किसी और व्यक्ति के लिए मंत्र जाप कर रहे हो तो संकल्प में उस व्यक्ति का नाम उच्चारित करे. इसके बाद साधक मानसिक रूप से पूजन सम्प्पन करे तथा मूंगा माला से निम्न मंत्र की २१ माला जाप करे.

ॐ सिंहमुखी सर्व रोग स्तंभय नाशय प्रत्यंगिरा सिद्धिं देहि नमः

मंत्र जाप के बाद साधक देवी को नमस्कार करे और कल्याण करने की प्रार्थना कर सो जाए. साधक को यह क्रम ११ दिनों तक करना चाहिए. साधना समाप्ति पर साधक यन्त्र चित्र आदि को पूजा स्थान में स्थापित कर दे और माला को किसी को देवी मंदिर में दक्षिणा के साथ अर्पित कर दे तो रोग शांत होते है तथा पीड़ा से मुक्ति मिलती है. अगर साधक कोई चिकित्सा ले रहा हो या औषधि ले रहा हो तो यह प्रयोग करते वक्त उसे बंद करने की ज़रूरत नहीं है. साधक अपनी चिकित्सा के साथ ही साथ यह प्रयोग को कर सकता है इसमें किसी भी प्रकार का कोई दोष नहीं है.

गुरुवार, 7 अगस्त 2014

सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र

सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र

सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र
ॐ गं गणपतये नमः। सर्व-विघ्न-विनाशनाय, सर्वारिष्ट निवारणाय, सर्व-सौख्य-प्रदाय, बालानां बुद्धि-प्रदाय, नाना-प्रकार-धन-वाहन-भूमि-प्रदाय, मनोवांछित-फल-प्रदाय रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ गुरवे नमः, ॐ श्रीकृष्णाय नमः, ॐ बलभद्राय नमः, ॐ श्रीरामाय नमः, ॐ हनुमते नमः, ॐ शिवाय नमः, ॐ जगन्नाथाय नमः, ॐ बदरीनारायणाय नमः, ॐ श्री दुर्गा-देव्यै नमः।।
ॐ सूर्याय नमः, ॐ चन्द्राय नमः, ॐ भौमाय नमः, ॐ बुधाय नमः, ॐ गुरवे नमः, ॐ भृगवे नमः, ॐ शनिश्चराय नमः, ॐ राहवे नमः, ॐ पुच्छानयकाय नमः, ॐ नव-ग्रह रक्षा कुरू कुरू नमः।।
ॐ मन्येवरं हरिहरादय एव दृष्ट्वा द्रष्टेषु येषु हृदयस्थं त्वयं तोषमेति विविक्षते न भवता भुवि येन नान्य कश्विन्मनो हरति नाथ भवान्तरेऽपि। ॐ नमो मणिभद्रे। जय-विजय-पराजिते ! भद्रे ! लभ्यं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्-सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।। सर्व विघ्नं शांन्तं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक-भैरवाय आपदुद्धारणाय महान्-श्याम-स्वरूपाय दिर्घारिष्ट-विनाशाय नाना प्रकार भोग प्रदाय मम (यजमानस्य वा) सर्वरिष्टं हन हन, पच पच, हर हर, कच कच, राज-द्वारे जयं कुरू कुरू, व्यवहारे लाभं वृद्धिं वृद्धिं, रणे शत्रुन् विनाशय विनाशय, पूर्णा आयुः कुरू कुरू, स्त्री-प्राप्तिं कुरू कुरू, हुम् फट् स्वाहा।।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः। ॐ नमो भगवते, विश्व-मूर्तये, नारायणाय, श्रीपुरूषोत्तमाय। रक्ष रक्ष, युग्मदधिकं प्रत्यक्षं परोक्षं वा अजीर्णं पच पच, विश्व-मूर्तिकान् हन हन, ऐकाह्निकं द्वाह्निकं त्राह्निकं चतुरह्निकं ज्वरं नाशय नाशय, चतुरग्नि वातान् अष्टादष-क्षयान् रांगान्, अष्टादश-कुष्ठान् हन हन, सर्व दोषं भंजय-भंजय, तत्-सर्वं नाशय-नाशय, शोषय-शोषय, आकर्षय-आकर्षय, मम शत्रुं मारय-मारय, उच्चाटय-उच्चाटय, विद्वेषय-विद्वेषय, स्तम्भय-स्तम्भय, निवारय-निवारय, विघ्नं हन हन, दह दह, पच पच, मथ मथ, विध्वंसय-विध्वंसय, विद्रावय-विद्रावय, चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ, चक्रेण हन हन, पा-विद्यां छेदय-छेदय, चौरासी-चेटकान् विस्फोटान् नाशय-नाशय, वात-शुष्क-दृष्टि-सर्प-सिंह-व्याघ्र-द्विपद-चतुष्पद अपरे बाह्यं ताराभिः भव्यन्तरिक्षं अन्यान्य-व्यापि-केचिद् देश-काल-स्थान सर्वान् हन हन, विद्युन्मेघ-नदी-पर्वत, अष्ट-व्याधि, सर्व-स्थानानि, रात्रि-दिनं, चौरान् वशय-वशय, सर्वोपद्रव-नाशनाय, पर-सैन्यं विदारय-विदारय, पर-चक्रं निवारय-निवारय, दह दह, रक्षां कुरू कुरू, ॐ नमो भगवते, ॐ नमो नारायणाय, हुं फट् स्वाहा।।
ठः ठः ॐ ह्रीं ह्रीं। ॐ ह्रीं क्लीं भुवनेश्वर्याः श्रीं ॐ भैरवाय नमः। हरि ॐ उच्छिष्ट-देव्यै नमः। डाकिनी-सुमुखी-देव्यै, महा-पिशाचिनी ॐ ऐं ठः ठः। ॐ चक्रिण्या अहं रक्षां कुरू कुरू, सर्व-व्याधि-हरणी-देव्यै नमो नमः। सर्व प्रकार बाधा शमनमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू फट्। श्रीं ॐ कुब्जिका देव्यै ह्रीं ठः स्वाहा।।
शीघ्रमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू शाम्बरी क्रीं ठः स्वाहा।।
शारिका भेदा महामाया पूर्णं आयुः कुरू। हेमवती मूलं रक्षा कुरू। चामुण्डायै देव्यै शीघ्रं विध्नं सर्वं वायु कफ पित्त रक्षां कुरू। मन्त्र तन्त्र यन्त्र कवच ग्रह पीडा नडतर, पूर्व जन्म दोष नडतर, यस्य जन्म दोष नडतर, मातृदोष नडतर, पितृ दोष नडतर, मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण स्तम्भन उन्मूलनं भूत प्रेत पिशाच जात जादू टोना शमनं कुरू। सन्ति सरस्वत्यै कण्ठिका देव्यै गल विस्फोटकायै विक्षिप्त शमनं महान् ज्वर क्षयं कुरू स्वाहा।।
सर्व सामग्री भोगं सप्त दिवसं देहि देहि, रक्षां कुरू क्षण क्षण अरिष्ट निवारणं, दिवस प्रति दिवस दुःख हरणं मंगल करणं कार्य सिद्धिं कुरू कुरू। हरि ॐ श्रीरामचन्द्राय नमः। हरि ॐ भूर्भुवः स्वः चन्द्र तारा नव ग्रह शेषनाग पृथ्वी देव्यै आकाशस्य सर्वारिष्ट निवारणं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीवासुदेवाय नमः, बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीविष्णु भगवान् मम अपराध क्षमा कुरू कुरू, सर्व विघ्नं विनाशय, मम कामना पूर्णं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ॐ श्रीदुर्गा देवी रूद्राणी सहिता, रूद्र देवता काल भैरव सह, बटुक भैरवाय, हनुमान सह मकर ध्वजाय, आपदुद्धारणाय मम सर्व दोषक्षमाय कुरू कुरू सकल विघ्न विनाशाय मम शुभ मांगलिक कार्य सिद्धिं कुरू कुरू स्वाहा।।

एष विद्या माहात्म्यं च, पुरा मया प्रोक्तं ध्रुवं। शम क्रतो तु हन्त्येतान्, सर्वाश्च बलि दानवाः।। य पुमान् पठते नित्यं, एतत् स्तोत्रं नित्यात्मना। तस्य सर्वान् हि सन्ति, यत्र दृष्टि गतं विषं।। अन्य दृष्टि विषं चैव, न देयं संक्रमे ध्रुवम्। संग्रामे धारयेत्यम्बे, उत्पाता च विसंशयः।। सौभाग्यं जायते तस्य, परमं नात्र संशयः। द्रुतं सद्यं जयस्तस्य, विघ्नस्तस्य न जायते।। किमत्र बहुनोक्तेन, सर्व सौभाग्य सम्पदा। लभते नात्र सन्देहो, नान्यथा वचनं भवेत्।। ग्रहीतो यदि वा यत्नं, बालानां विविधैरपि। शीतं समुष्णतां याति, उष्णः शीत मयो भवेत्।। नान्यथा श्रुतये विद्या, पठति कथितं मया। भोज पत्रे लिखेद् यन्त्रं, गोरोचन मयेन च।। इमां विद्यां शिरो बध्वा, सर्व रक्षा करोतु मे। पुरूषस्याथवा नारी, हस्ते बध्वा विचक्षणः।। विद्रवन्ति प्रणश्यन्ति, धर्मस्तिष्ठति नित्यशः। सर्वशत्रुरधो यान्ति, शीघ्रं ते च पलायनम्।।

‘श्रीभृगु संहिता’ के सर्वारिष्ट निवारण खण्ड में इस अनुभूत स्तोत्र के 40 पाठ करने की विधि बताई गई है। इस पाठ से सभी बाधाओं का निवारण होता है।
किसी भी देवता या देवी की प्रतिमा या यन्त्र के सामने बैठकर धूप दीपादि से पूजन कर इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिये। विशेष लाभ के लिये ‘स्वाहा’ और ‘नमः’ का उच्चारण करते हुए ‘घृत मिश्रित गुग्गुल’ से आहुतियाँ दे सकते हैं।

माँ स्वप्नेश्वरी मंत्र


ॐ ह्रांग क्लींग रक्तचामुंडे स्वप्ने कथ्य कथ्य शुभाशुभम ॐ फट स्वाहा !

।। विधि ।।

इस साधना को आप किसी भी दिन से शुरू कर सकते हैं ! रात्रि को सोते समय अपने बिस्तर पर बैठ कर इस मंत्र का 1100 बार जप करें ! माला कोई भी इस्तेमाल कर सकते हैं और यदि माला न हो तो हाथो पर भी कर सकते हैं ! यह क्रिया 21 दिन करनी हैं और यह साधना पूर्णत: गुप्त रहनी चाहिए ! माता से प्रार्थना करे कि स्वप्न में मुझे दर्शन दे और सिद्धि प्रदान करें ! अंतिम दिन ( 22वे दिन ) किसी कंवारी कन्या को भोजन कराएं और दक्षिणा दें ,मन्त्र सिद्ध हो जाएगा ! कन्या की उम्र 10 साल से कम होनी चाहिए !



।। प्रयोग ।।

जब भी इस मंत्र का प्रयोग करना हो तो 1100 मंत्र जप अपने बिस्तर पर बैठ कर करें और देवी से प्रार्थना करें , आपको स्वप्न में उत्तर मिल जाएगा ! माँ स्वप्नेश्वरी आप सब पर कृपा करे और आप सब को सिद्धि प्रदान करे ! इसी आशा के साथ 

हनुमान मंत्र

हनुमान मंत्र
हनुमान मंत्र में है हर मर्ज का इलाज
मनुष्य शारीरिक, मानसिक और बाहरी (भू‍त-प्रेत) नजर इत्यादि बीमारियों से परेशान रहता है। शारीरिक बीमारी के लिए डॉक्टर या वैद्य के पास जाकर मनुष्य ठ‍ीक हो जाता है। मानसिक बीमारी का सरलत‍म उपाय हो जाता है। परंतु मनुष्य जब भूत-प्रेत अथवा नजर, हाय या किसी दुष्ट आत्मा के जाल में फंस जाता है तब वह परेशान हो जाता है।
इसके ‍इलाज के लिए स्वयं एवं परिवार वाले हर जगह जाते हैं- जैसे तांत्रिक, मांत्रिक, जानकार के पास। परंतु मरीज ठीक नहीं होता है। मरीज की हालत बिगड़ने लगती है। ऐसा प्रतीत होता है कि मरीज शारीरिक एवं मानसिक दोनों ब‍ीमारी से ग्रस्त है।
ऐसे में पवन पुत्र हनुमान जी की आराधना करें। मरीज अवश्‍य ही ठीक हो जाएगा। यहां हम आपको श्री हनुमान मंत्र (जंजीरा) दे रहे हैं। जो इक्कीस दिन में सिद्ध हो जाता है। इसे सिद्ध करके दूसरों की सहायता करें और उनकी प्रेत-डाकिनी, नजर आदि सब ठीक करें।
श्री हनुमान मंत्र (जंजीरा)
ॐ हनुमान पहलवान पहलवान, बरस बारह का जबान,
हाथ में लड्‍डू मुख में पान, खेल खेल गढ़ लंका के चौगान,
अंजनी‍ का पूत, राम का दूत, छिन में कीलौ
नौ खंड का भू‍त, जाग जाग हड़मान (हनुमान)
हुंकाला, ताती लोहा लंकाला, शीश जटा
डग डेरू उमर गाजे, वज्र की कोठड़ी ब्रज का ताला
आगे अर्जुन पीछे भीम, चोर नार चंपे
ने सींण, अजरा झरे भरया भरे, ई घट
पिंड की रक्षा राजा रामचंद्र जी लक्ष्मण कुंवर हड़मान (हनुमान) करें।
इस मंत्र की प्रतिदिन एक माला जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। हनुमान मंदिर में जाकर साधक अगरबत्ती जलाएं। इक्कीसवें दिन उसी मंदिर में एक नारियल व लाल कपड़े की एक ध्वजा चढ़ाएं। जप के बीच होने वाले अलौकिक चमत्कारों का अनुभव करके घबराना नहीं चाहिए। यह मंत्र भूत-प्रेत, डाकिनी-शाकिनी, नजर, टपकार व शरीर की रक्षा के लिए अत्यंत सफल है।
चेतावनी : हनुमान जी की कोई भी साधना अत्यंत सावधानी और सतर्कता से करना चाहिए। यह साधना अगर पलट कर आ जाए तो साधक पर ही भारी पड़ सकती है। अत: शुद्धता, पवित्रता और एकाग्रता का विशेष ध्यान रखा जाए।

दैनिक साधना पूजन

दैनिक साधना पूजन 

अखंड मंडलाकारं व्यापितम येन चराचरम |
तदपदं दर्शितम येन तस्मै श्री गुरूवै नमः||
जय सदगुरुदेव,
स्नेही भाइयों बहनों,
पूजन करना और साधना विधान दोनों एक अलग विधा हैं. पूजन मात्र आत्म संतुष्टि का एक साधना मात्र है, और साधना जीवन को गति देने कि क्रिया. किन्तु ये एक दूसरे पूरक हैं एन दोनों को अलग नहीं किया जा सकता. क्योंकि साधना के पूर्व व्यक्ति को अपने आप को शुद्ध करना और उसमें भी बाह्य और आंतरिक शुद्धिकरण करना ही होता है जिससे कि हम उस मन्त्र को धारण करने या हमारा अन्तःकरण उसे वहन कर सके..... और इसी कारण प्रारम्भिक पूजन का विधान है ......
सबसे पहले पवित्रीकरण-
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वा गतोअपी वा
य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यांतर: शुचि: |
इसके बाद पंचपात्र से तीन बार जल पीना है और एक बार से हाथ धोना है.....
ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा |
ॐ अमृतापिधानीमसि स्वाहा |
ॐ सत्यं यश: श्रीर्मयि श्री:श्रयतां स्वाहा |
ॐ नारायणाय नमः
कहकर हाथ धो लें
अब शिखा पर हाथ रखकर मस्तिष्क में स्तिथ चिदरूपिणी महामाया दिव्य तेजस शक्ति का ध्यान करें जिससे साधना में प्रवृत्त होने हेतु आवश्यक उर्जा प्राप्त हों सके---
चिदरूपिणि महामाये दिव्यतेज: समन्वितः |
तिष्ठ देवि ! शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे | |
न्यास-
बांये हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ कि पाँचों अँगुलियों से जल लेकर शरीर के विभिन्न अंगों से स्पर्श करना है....
ॐ वाङगमे आस्येस्तु (मुख को )
ॐ नसोर्मे प्राणोंअस्तु (नासिका के दोनों छिद्रों को )
ॐ अक्षोर्मे चक्षुरस्तु (दोनों नेत्रों को )
ॐ बाह्वोर्मे ओजोअस्तु (दोनों बाँहों को )
ॐ ऊवोर्र्मे ओजोअस्तु ( दोनों जंघाओं को )
ॐ अरिष्टानि अङगानि सन्तु.... पूरे शरीर पर जल छिड़क लें---
अब अपने आसन का पूजन करें जल, कुंकुम, अक्षत से---
ॐ ह्रीं क्लीं आधारशक्तयै कमलासनाय नमः |
ॐ पृथ्वी ! त्वया धृतालोका देवि ! त्वं विष्णुना धृता
त्वं च धारय माँ देवि ! पवित्रं कुरु चासनम |
ॐ आधारशक्तये नमः, ॐ कूर्मासनाय नमः, ॐ अनंतासनाय नमः |
अब दिग्बन्ध करें यानि दसों दिशाओं का बंधन करना है,जिससे कि आपका मन्त्र सही देव तक पहुँच सके, अतः इसके लिए चावल या जल अपने चारों ओर छिडकना है और बांई एड़ी से भूमि पर तीन बार आघात करना है ....
अब भूमि शुद्धि करना है जिसमें अपना दायाँ हाथ भूमि पर रखकर मन्त्र बोलना है---
ॐ भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्यधर्त्रीं |
पृथ्वी यच्छ पृथ्वीं दृ (गुं) ह पृथ्वीं मा ही (गूं) सी:
अब ललाट पर चन्दन, कुंकुम या भस्म का तिलक धारण करे....
कान्तिं लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलमं मम
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्याहम ||
अब इसके पश्चात आप संकल्प ले सकते हैं----
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्रीमदभगवतो महापुरुसस्य विश्नोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्द्य: श्रीब्रह्मण: द्वतीय परार्धे श्वेतवाराह्कल्पे वैवस्वतमनवन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भारतवर्षे, अमुक क्षेत्रै, अमुक नगरे, विक्रम संवत्सरे, अमुक अयने, अमुक मासे, अमुक पक्षे अमुक पुण्य तिथि, अमुक गोत्रोत्पन्नोहं अमुक देवता प्रीत्यर्थे यथा ज्ञानं, यथां मिलितोपचारे, पूजनं करिष्ये तद्गतेन मन्त्र जप करिष्ये या हवि कर्म च करिष्ये..... और जल पृथ्वी पर छोड़ दें.....
तत्पश्चात गुरुपूजन करें---
भाइयों बहनों गुरु ध्यान अनेकों हैं अतः आप स्वयं चुन लें.......या
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा
गुरु ही साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः
अब आवाहन करें.....
ॐ स्वरुपनिरूपण हेतवे श्री गुरवे नमः, ॐ स्वच्छप्रकाश-विमर्श-हेतवे श्रीपरमगुरवे नमः | ॐ स्वात्माराम् पञ्जरविलीन तेजसे पार्मेष्ठी गुरुवे नमः |
अब गुरुदेव का पंचोपचार पूजन संपन्न करें----
इसमें स्नान वस्त्र तिलक अक्षत कुंकुम फूल धूप दीप और नैवेद्ध का प्रयोग होता है----
अब गणेश पूजन करें ---
हाथ में जल अक्षत कुंकुम फूल लेकर (गणेश विग्रह या जो भी है गनेश के प्रतीक रूप में) सामने प्रार्थना करें ---
ॐ गणानां त्वां गणपति (गूं) हवामहे प्रियाणां त्वां प्रियपति (गूं) हवामहे निधिनाम त्वां निधिपति (गूं) हवामहे वसो मम |
आहमजानि गर्भधमा त्वामजासी गर्भधम |
ॐ गं गणपतये नमः ध्यानं समर्पयामी |
आवाहन---
हे हेरम्ब! त्वमेह्येही अम्बिकात्रियम्बकत्मज |
सिद्धि बुद्धिपते त्र्यक्ष लक्ष्यलाभपितु: पितु:
ॐ गं गणपतये नमः आवाहयामि स्थापयामि नमः पूजयामि नमः |
गणपतिजी के विग्रह के अभाव में एक गोल सुपारी में कलावा लपेटकर पात्र मे रखकर उनका पूजन भी कर सकते हैं.....
अब क्षमा प्रार्थना करें---
विनायक वरं देहि महात्मन मोदकप्रिय |
निर्विघ्न कुरु मे देव सर्व कार्येशु सर्वदा ||
विशेषअर्ध्य---
एक पात्र में जल चन्दन, अक्षत कुंकुम दूर्वा आदि लेकर अर्ध्य समर्पित करें,
निर्विघ्नंमस्तु निर्विघ्नंस्तू निर्विघ्नंमस्तु | ॐ तत् सद् ब्रह्मार्पणमस्तु |
अनेन कृतेन पूजनेन सिद्धिबुद्धिसहित: श्री गणाधिपति: प्रियान्तां ||
अब माँ का पूजन करें---
माँ आदि शक्ति के भी अनेक ध्यान हैं जो प्रचलित हैं....
किन्तु आप ऐसे करें...
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके |
शरण्ये त्रयाम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ||
अब भैरव पूजन करें---
ॐ यो भूतानामधिपतिर्यास्मिन लोका अधिश्रिता: |
यऽईशे महाते महांस्तेन गृह्णामी त्वामहम ||
ॐ तीक्ष्णदंष्ट्र महाकाय कल्पांतदहनोपम् |
भैरवाय नमस्तुभ्यंनुज्ञां दातुर्महसि ||
ॐ भं भैरवाय नमः |

अब आप किसी भी साधना में प्रवृत्त होने के लिए पूर्ण रूप से तैयार हैं....... प्रिय स्नेही भाइयो बहनों मेरा कहना सिर्फ इतना है कि किसी भी कारण आपकी साधना का कोई भी पक्ष छूटना नहीं चाहिए . चाहे फिर वह पूजा विधान ही क्यों ना हों .....

ग्रह बाधा निवारण का एक अनूठा उपाय

ग्रह बाधा निवारण का एक अनूठा उपाय

आप और हम में से शायद कोई ही ऐसा व्यक्ति होगा जो किसी न किसी ग्रह बाधा से पीड़ित नहीं होगा.

ग्रहों के खेल में ही इंसान की पूरी जिंदगी उलझी रह जाती है..

ग्रह बाधा दूर करने के लिए विभिन्न प्रकार के उपाय उपलब्ध हैं, कुछ तांत्रिक, कुछ मांत्रिक, और कुछ रत्नों से जुड़े हुए..

लेकिन इन सब से हटकर एक विचित्र ग्रह बाधा निवारण प्रयोग आज दिया जा रहा है जिसका आप सभी लाभ उठा सकते हैं..

ग्रह बाधा को हटाने के लिए एक स्नान विधि बताई जा रही है, जिसके बहुत ही धनातम्क परिणाम प्राप्त हुए हैं.

इस स्नान के लिए निम्नांकित पदार्थों को एक मिटटी की हांडी में रखकर उस हांडी को जल से भर दिया जाता है.

जल भरकर हांडी के मुख को एक ढक्कन से ढँक दिया जाता है. नियमित स्नान के समय इस हांडी में से एक कटोरी जल भर कर के आप अपने स्नान के जल में मिला लें.

हांडी में से जल निकालने के पश्चात उसमे उतना ही बाहरी शुद्ध जल डाल दें.

इस प्रकार ४० दिन तक यह प्रयोग करें.

प्रयोग के दौरान ही अच्छे परिणाम दिखाई देने लगेंगे.

स्नान में प्रयुक्त पदार्थ निम्न हैं.

१- चावल - एक मुट्ठी भर
२- सरसों - एक मुट्ठी भर
३- नागर मोथा - एक मुट्ठी भर
४- सुखा आँवला - एक मुट्ठी भर
५- दूर्वा(दूब घाँस) - २१ नग
६- तुलसी पत्र - २१ नग
७- बेल पत्र - २१ नग (३-३ पर्ण वाले)
८- हल्दी - २ गाँठ

नोट: इन पदार्थों के सड़ने से कभी कभी अत्यधिक दुर्गन्ध आती है. यदि वह असहनीय प्रतीत हो तो संपूर्ण पदार्थ किसी वृक्ष की जद में डालकर पुनः उक्त पदार्थों को उसी हांडी में नए सिरे से ले लें..

ज्यादा ताम झाम न होते हुए यह एक सरल प्रयोग है..

प्रयोग करें और परिणाम बताएँ

अक्षय-धन-प्राप्ति मन्त्र

अक्षय-धन-प्राप्ति मन्त्र
प्रार्थना
हे मां लक्ष्मी, शरण हम तुम्हारी।
पूरण करो अब माता कामना हमारी।।
धन की अधिष्ठात्री, जीवन-सुख-दात्री।
सुनो-सुनो अम्बे सत्-गुरु की पुकार।
शम्भु की पुकार, मां कामाक्षा की पुकार।।
तुम्हें विष्णु की आन, अब मत करो मान।
आशा लगाकर अम देते हैं दीप-दान।।
मन्त्र- “ॐ नमः विष्णु-प्रियायै, ॐ नमः कामाक्षायै। ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं श्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”
विधि- ‘दीपावली’ की सन्ध्या को पाँच मिट्टी के दीपकों में गाय का घी डालकर रुई की बत्ती जलाए। ‘लक्ष्मी जी’ को दीप-दान करें और ‘मां कामाक्षा’ का ध्यान कर उक्त प्रार्थना करे। मन्त्र का १०८ बार जप करे। ‘दीपक’ सारी रात जलाए रखे और स्वयं भी जागता रहे। नींद आने लगे, तो मन्त्र का जप करे। प्रातःकाल दीपों के बुझ जाने के बाद उन्हें नए वस्त्र में बाँधकर ‘तिजोरी’ या ‘बक्से’ में रखे। इससे श्रीलक्ष्मीजी का उसमें वास हो जाएगा और धन-प्राप्ति होगी। प्रतिदिन सन्ध्या समय दीप जलाए और पाँच बार उक्त मन्त्र का जप करे।

बैरि-नाशक हनुमान ग्यारहवाँ

बैरि-नाशक हनुमान ग्यारहवाँ
विधिः- दूसरे से माँगे हुए मकान में, रक्षा-विधान, कलश-स्थापन, गणपत्यादि लोकपालों का पूजन कर हनुमान जी की प्रतिमा-प्रतिष्ठा करे। नित्य ११ या १२१ पाठ, ११ दिन तक करे। ‘प्रयोग’ भौमवार से प्रारम्भ करे। ‘प्रयोग’-कर्त्ता रक्त-वस्त्र धारण करे और किसी के साथ अन्न-जल न ग्रगण करे।

अञ्जनी-तनय बल-वीर रन-बाँकुरे, करत हुँ अर्ज दोऊ हाथ जोरी,
शत्रु-दल सजि के चढ़े चहूँ ओर ते, तका इन पातकी न इज्जत मेरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, लेहु तेहि झपट मत करहु देरी,
मातु की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, अञ्जनी-सुवन मैं सरन तोरी।।१

पवन के पूत अवधूत रघु-नाथ प्रिय, सुनौ यह अर्ज महाराज मेरी,
अहै जो मुद्दई मोर संसार में, करहु अङ्ग-हीन तेहि डारौ पेरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, करहु तेहि चूर लंगूर फेरी,
पिता की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, पवन के सुवन मैं सरन तोरी।।२

राम के दूत अकूत बल की शपथ, कहत हूँ टेरि नहि करत चोरी,
और कोई सुभट नहीं प्रगट तिहूँ लोक में, सकै जो नाथ सौं बैन जोरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, लेहु तेहि पकरि धरि शीश तोरी,
इष्ट की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, राम का दूत मैं सरन तोरी।।३

केसरी-नन्द सब अङ्ग वज्र सों, जेहि लाल मुख रंग तन तेज-कारी,
कपीस वर केस हैं विकट अति भेष हैं, दण्ड दौ चण्ड-मन ब्रह्मचारी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, करहू तेहि गर्द दल मर्द डारी,
केसरी की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।४

लीयो है आनि जब जन्म लियो यहि जग में, हर्यो है त्रास सुर-संत केरी,
मारि कै दनुज-कुल दहन कियो हेरि कै, दल्यो ज्यों सह गज-मस्त घेरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, हनौ तेहि हुमकि मति करहु देरी,
तेरी ही आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।५

नाम हनुमान जेहि जानैं जहान सब, कूदि कै सिन्धु गढ़ लङ्क घेरी,
गहन उजारी सब रिपुन-मद मथन करी, जार्यो है नगर नहिं कियो देरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, लेहु तेही खाय फल सरिस हेरी,
तेरे ही जोर की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।६

गयो है पैठ पाताल महि, फारि कै मारि कै असुर-दल कियो ढेरी,
पकरि अहि-रावनहि अङ्ग सब तोरि कै, राम अरु लखन की काटि बेरी,
करत जो चगुलई मोर दरबार में, करहु तेहि निरधन धन लेहु फेरी,
इष्ट की आनि तोहि, सुनहु प्रभु कान से, वीर हनुमान मैं सरन तेरी।।७

लगी है शक्ति अन्त उर घोर अति, परेऊ महि मुर्छित भई पीर ढेरी,
चल्यो है गरजि कै धर्यो है द्रोण-गिरि, लीयो उखारि नहीं लगी देरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, पटकौं तेहि अवनि लांगुर फेरी,
लखन की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।८

हन्यो है हुमकि हनुमान काल-नेमि को, हर्यो है अप्सरा आप तेरी,
लियो है अविधि छिनही में पवन-सुत, कर्यो कपि रीछ जै जैत टैरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, हनो तेहि गदा हठी बज्र फेरी,
सहस्त्र फन की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।९

केसरी-किशोर स-रोर बरजोर अति, सौहै कर गदा अति प्रबल तेरी,
जाके सुने हाँक डर खात सब लोक-पति, छूटी समाधि त्रिपुरारी केरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, देहु तेहि कचरि धरि के दरेरी,
केसरी की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।१०

लीयो हर सिया-दुख दियो है प्रभुहिं सुख, आई करवास मम हृदै बसेहितु,
ज्ञान की वृद्धि करु, वाक्य यह सिद्ध करु, पैज करु पूरा कपीन्द्र मोरी,
करत जो चुगलई मोर देरबार में, हनहु तेहि दौरि मत करौ देरी,
सिया-राम की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।११

ई ग्यारहो कवित्त के पुर के होत ही प्रकट भए,
आए कल्याणकारी दियो है राम की भक्ति-वरदान मोहीं।
भयो मन मोद-आनन्द भारी और जो चाहै तेहि सो माँग ले,
देऊँ अब तुरन्त नहि करौं देरी,
जवन तू चहेगा, तवन ही होएगा, यह बात सत्य तुम मान मेरी।।१२

ई ग्यारहाँ जो कहेगा तुरत फल लहैगा, होगा ज्ञान-विज्ञान जारी,
जगत जस कहेगा सकल सुख को लहैगा, बढ़ैगी वंश की वृद्धि भारी,
शत्रु जो बढ़ैगा आपु ही लड़ि मरैगा, होयगी अंग से पीर न्यारी,
पाप नहिं रहैगा, रोग सब ढहैगा, दास भगवान अस कहत टेरी।।१३

यह मन्त्र उच्चारैगा, तेज तब बढ़ैगा, धरै जो ध्यान कपि-रुप आनि,
एकादश रोज नर पढ़ै मन पोढ़ करि, करै नहिं पर-हस्त अन्न-पानी।
भौम के वार को लाल-पट धारि कै, करै भुईं सेज मन व्रत ठानी,
शत्रु का नाश तब हो, तत्कालहि, दास भगवान की यह सत्य-बानी।।१४

इच्छित कार्य में सफलता-दायक शाबर मन्त्र

इच्छित कार्य में सफलता-दायक शाबर मन्त्र

“ॐ कामरू, कामाक्षा देवी, जहाँ बसे लक्ष्मी महारानी। आवे, घर में जमकर बैठे। सिद्ध होय, मेरा काज सुधारे। जो चाहूँ, सो 

होय। ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं फट्।”


विधि- उक्त मन्त्र का जप रात्रि-काल में करें। ग्यारह दिनों के जप के पश्चात् ११ नारियलों का हवन करे। इच्छित कार्य में 

सफलता मिलती है।