सोमवार, 21 दिसंबर 2009

भरतीय जनता पार्टी का पुनः अभ्युदय संभव

  • नितिन गडकरी के १९ दिसम्बर २००९ को भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष बनने और उनके द्वारा यह बयां देने से की वह ३ वर्ष तक कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे और केवल संगठन को मजबूत करने में ही अपनी उर्जा लगायेंगे , यह सन्देश मिल रहा है की भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस बार वास्तव में परिवर्तन चाहता है /
  • अडवानी की जुन्दली जिसने की भाजपा की ये दुर्दशा की है शायद ये बात अभी न समझ रही हो पर आने वाले समय में उसे यह समझना होगा की राजनाथ और गडकरी के अध्यक्ष बनने में बहुत बड़ा फर्क है और गडकरी ये आने वाले समय में साबित करेंगे /
  • भाजपा जब कुछ भी नहीं थी तब १९९०-१९९२ में इसने कारसेवा करवाई और हिन्दू समाज को संगठित कर दिया/ परिणामस्वरुप( बाबरी मस्जिद ) विवादस्पद ढांचा हिन्दुओ की हुंकार मात्र से गिर गया और उसका मलबा भी नहीं मिला/ इसके पारितोषिक के रूप में हिन्दू समाज ने भाजपा को तीन बार केंद्र में सत्तासीन किया /
  • परन्तु भाजपा केंद्र में सत्तासीन होते ही अपने हिंदुत्व के मूल स्वरुप से विचलित हो गयी और अडवानी जी ने कहा की राम मंदिर , धारा ३७० आदि भाजपा के अजेंडे में नहीं है /
  • भाजपा शायद ये भूल गयी थी की हिन्दू समाज के संगठित होने से उसने सत्ता हासिल की थी और उसने उसी हिन्दू समाज को दुत्कारा, जिसने उसे सर-आँखों बिठाया था /उसने हिन्दू समाज के ही एक अंग को ये भय दिया की अब आरक्षण की मलाई नहीं खाने दी जाएगी (जबकि कांग्रेस उसी अंग को ये आरक्षण रुपी मलाई तो दे ही रही है नरेगा और बी पीएल कार्ड रूपी राबड़ी और दे दी है साथ -साथ सरकारी कर्मियों को भी राबड़ी बाँट रही है )
  • ये बात संघ समझ चूका है की चूक कहा हुई थी और उसी चूक को दूर करने के लिये खंती संघ से सम्बन्ध रखने वाले श्री नितिन गडकरी को भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया है और भाजपा पुनः हिंदुत्व की और मुद रही है श्री गडकरी के व्यक्तित्व से परिचित इस बात को अच्छी तरह से जानते है की अब भाजपा में आमूलचूल परिवर्तन होगा / और उनकी राह में कोई भी रोड़ा नहीं अटकाया जा सकेगा क्योकि गडकरी और राजनाथ में दिन और रात का फर्क है /
  • भाजपा के नए अध्याय का अभ्युदय होने जा रहा है /

मंगलवार, 3 नवंबर 2009

मंत्र का स्वरुप

मन्त्र का स्वरुप

संस्कृत और देवनागरी वर्णमाला की लिपि अक्षर से शुरू होती है / अक्षर वह होता है जिसका की कभी क्षरण याने की नाश नही होता / तो मंत्र कुछ अक्षरो का इस प्रकार किया गया संयोजन है की उसमे विशेष शक्ति उत्पन्न करने की सामर्थ्य आ जाती है / और वह शक्ति ही साधक का सर्वतोमुखी कल्याण करती है /
मंत्र विभिन्न प्रकार के होते है जैसे की वैदिक मंत्र , तांत्रिक मंत्र , शाबरमंत्र , जैन मंत्र , तिब्बती लामाओ के मंत्र , बोद्ध मंत्र और कुछ महापुरुषों की वाणिया भी मंत्र की तरह प्रयुक्त होती है /
वेदों और उपनिषदों की ऋचाओ को वैदिक मंत्र कहते है / कुछ मंत्र जो की विशेष विधि-विधान पूर्वक संपन्न किए जाते है वो तांत्रिक मंत्र कहलाते है / गोरखनाथ जैसे सिद्ध पुरुषों द्वारा प्रतिपादित मंत्रो को शाबर मंत्र कहते है / जैन सिद्ध पुरुषों ने विभिन्न मंत्रो की रचना की है जो की जैन समाज में प्रचलित है / तिब्बती लामाओ के मंत्र और विधि विधान सबसे भिन्न और जटिल तथा महाशक्ति संपन्न है / बोध धर्म में कुछ मंत्रो की उपासना की जाती है /

सभी मंत्र सभी लोगो के लिए उपायुक्त नही होते / इसमे भी मित्र ,शत्रु ,सिद्ध, सुसिध का विचार किया जाता है / एक मंत्र किसी के लिए मित्र है तो दुसरे के लिए अरि हो जाता है व अन्य के सिद्ध या सुसिध हो जाता है /

दस महाविद्याओ और शिव , विष्णु के सभी अवतार , देवी के मंत्रो के लिए मित्र ,अरि ,सिद्ध ,सुसिध का विचार नही किया जाता क्योंकि ये स्वयं सिद्ध मंत्र कहलाते है अन्य मंत्रो में इसका विचार करना आवश्यक हो जाता है नही तो मंत्र लाभ के स्थान पर हानी देने लगता है /
कुछ मंत्रो के साथ विशेष विधि-विधानों की आवश्यकता होती है नही तो मंत्र फल प्रदान करने की स्थिति में नही आता जैसे की श्री वशिस्ठ ऋषि ने माँ तारा की कई वर्षो तक आराधना की पर माँ प्रसन्न नही हुई तो वे बड़े निराश हुए तो माँ ने ही उन्हें ज्ञान कराया की माँ तारा की उपसना चिनासार पद्धति से फलप्रद होती है /

अस्तु शुभमस्तु

सोमवार, 2 नवंबर 2009

समस्याए है तो समाधान भी है

हम सभी के जीवन में कुछ न कुछ समस्याए आती ही रहती है और हम सब उनसे परेशान ही रहते है ऐसा क्यों है ? क्योंकि जब हमारे व्यक्तिगत उद्देश्य की पूर्ति में अड़चन आती है तो परेशान होना स्वाभाविक ही है ? परन्तु हमारे ऋषियों ने कुछ ऐसी विद्याओ को हमें दिया है जिसका उपयोग करके हम अपनी परेशानियो को कमतर कर सकते है और अपने सांसारिक, भौतिक एवं परलौकिक उद्देश्यों की पूर्ति सुगमता पूर्वक कर सकते है /
क्या आप उन विद्यायो को जानते है ? क्या आप उनका प्रयोग करना जानते है ? क्या आप उनका प्रयोग इस प्रकार करना चाहेंगे जिससे की बिना किसी का अहित किए आपका अपना उद्देश्य आसानी से पुरा हो सके ?

उनको मन्त्र विद्या ,तंत्र विद्या ,यन्त्र विद्या ,ज्योतिष, वास्तु आदि कहते है /

आम जन धारणा है की मंत्र -तंत्र -यन्त्र का प्रयोग करने से दूसरो का अहित ही होता है और इनका प्रयोग करने वाले लोग तांत्रिक होते है जो की अच्छे व्यक्ति नही होते और ये दूसरो का अहित ही करते है इनसे बचकर रहना चाहिए / जन -साधारण में इस प्रकार की धारणा को बढाने में भारतीय मिडिया का बहुत बड़ा योगदान है / जबकि यह धारणा सत्य के एकदम विपरीत है

मंत्र-तंत्र-यन्त्र साधना

जब साधक गुरु से मंत्र ग्रहण कर ,यन्त्र पर देव पूजन करते हुए वैखरी वाणी से जप करना प्रारम्भ करता है तो मंत्र साधना का प्रारम्भ होता है और धीरे-धीरे धैर्य पूर्वक नित्य साधना करते हुए साधक का जप मध्यमा वाणी में स्वतः गुरु कृपा से परिवर्तित हो जाता है तदुपरांत यथा समय पर जप पश्यन्ति में परिवर्तित होकर अंत में परा वाणी में विलीन होकर साधक को परम तत्त्व , परम प्रभु , परम ब्रहम , परम ज्ञान की उपलब्धि करा देता है
इस अवस्था में साधक उन्मनी दशा को प्राप्त हो जाता है और उसकी इच्छाए या तो पूर्ण हो जाती या हट जाती है वह राग-द्वेष से मुक्त सम अवस्था में रहने लगता है और उसके अन्तर में एक करुणा की धारा बह निकलती है जिससे वह सदेव संतुष्ट अवस्था में रहता है

इस प्रकार आप समझ सकते है की मंत्र लोकिक ही नही परलौकिक उद्देश्यों की प्राप्ति कराने में भी सक्षम है /
अस्तु कहने का भावः यह है की मंत्र -यन्त्र भारतीय मनीषियों की वह देन है जो की अर्थ ,धर्म ,काम , और मोक्ष की प्राप्ति कराने में आज भी उतना ही सक्षम है जितना की हजारो साल पहले था /