बुधवार, 22 सितंबर 2010

भाग्योदय हेतु श्रीमहा-लक्ष्मी-साधना

भाग्योदय हेतु श्रीमहा-लक्ष्मी की तीन मास की सरल, व्यय रहित साधना है। यह साधना कभी भी ब्राह्म मुहूर्त्त पर प्रारम्भ की जा सकती है। ‘दीपावली’ जैसे महा्पर्व पर यदि यह प्रारम्भ की जाए, तो अति उत्तम।
‘साधना’ हेतु सर्व-प्रथम स्नान आदि के बाद यथा-शक्ति (कम-से-कम १०८ बार) “ॐ ह्रीं सूर्याय नमः” मन्त्र का जप करें।
फिर ‘पूहा-स्थान’ में कुल-देवताओं का पूजन कर भगवती श्रीमहा-लक्ष्मी के चित्र या मूर्त्ति का पूजन करे। पूजन में ‘कुंकुम’ महत्त्वपूर्ण है, इसे अवश्य चढ़ाए।
पूजन के पश्चात् माँ की कृपा-प्राप्ति हेतु मन-ही-मन ‘संकल्प करे। फिर विश्व-विख्यात “श्री-सूक्त” का १५ बार पाठ करे। इस प्रकार ‘तीन मास’ उपासना करे। बाद में, नित्य एक बार पाठ करे। विशेष पर्वो पर भगवती का सहस्त्र-नामावली से सांय-काल ‘कुंकुमार्चन’ करे। अनुष्ठान काल में ही अद्भुत परिणाम दिखाई देते हैं। अनुष्ठान पूरा होने पर “भाग्योदय” होता है।

।।श्री सूक्त।।

ॐ हिरण्य-वर्णां हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्त्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह।।
तां म आवह जात-वेदो, लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्।।
अश्वपूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।।
कांसोऽस्मि तां हिरण्य-प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं।
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।।
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्।
तां पद्म-नेमिं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणोमि।।
आदित्य-वर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।
उपैतु मां दैव-सखः, कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिं वृद्धिं ददातु मे।।
क्षुत्-पिपासाऽमला ज्येष्ठा, अलक्ष्मीर्नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वान् निर्णुद मे गृहात्।।
गन्ध-द्वारां दुराधर्षां, नित्य-पुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्व-भूतानां, तामिहोपह्वये श्रियम्।।
मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः।।
कर्दमेन प्रजा-भूता, मयि सम्भ्रम-कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले, मातरं पद्म-मालिनीम्।।
आपः सृजन्तु स्निग्धानि, चिक्लीत वस मे गृहे।
निच-देवी मातरं श्रियं वासय मे कुले।।
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं, सुवर्णां हेम-मालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह।।

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं, पिंगलां पद्म-मालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह।।

तां म आवह जात-वेदो लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरूषानहम्।।

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा, जुहुयादाज्यमन्वहम्।
श्रियः पंच-दशर्चं च, श्री-कामः सततं जपेत्।।

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

बुद्धि और ज्ञान बढ़ाने के टोटके




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बुद्धि और ज्ञान बढ़ाने के टोटके
1॰ माघ मास की कृष्णपक्ष अष्टमी के दिन को पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में अर्द्धरात्रि के समय रक्त चन्दन से अनार की कलम से “ॐ ह्वीं´´ को भोजपत्र पर लिख कर नित्य पूजा करने से अपार विद्या, बुद्धि की प्राप्ति होती है।

2॰ उदसौ सूर्यो अगादुदिदं मामकं वच:।
यथाहं शत्रुहोऽसान्यसपत्न: सपत्नहा।।
सपत्नक्षयणो वृषाभिराष्ट्रो विष सहि:।
यथाहभेषां वीराणां विराजानि जनस्य च।।
(का॰1, अनु॰5, सू॰29)
यह सूर्य ऊपर चला गया है, मेरा यह मन्त्र भी ऊपर गया है, ताकि मैं शत्रु को मारने वाला होऊँ। प्रतिद्वन्द्वी को नष्ट करने वाला, प्रजाओं की इच्छा को पूरा करने वाला, राष्ट्र को सामर्थ्य से प्राप्त करने वाला तथा जीतने वाला होऊँ, ताकि मैं शत्रु पक्ष के वीरों का तथा अपने एवं पराये लोगों का शासक बन सकूं।
21 रविवार तक सूर्य को नित्य रक्त पुष्प डाल कर अर्ध्य दिया जाता है। अर्ध्य द्वारा विसर्जित जल को दक्षिण नासिका, नेत्र, कर्ण व भुजा को स्पर्शित करें। प्रस्तुत मन्त्र `राष्ट्रवर्द्धन´ सूक्त से उद्धृत है।

३॰ बच्चों का पढ़ाई में मन न लगता हो, बार-बार फेल हो जाते हों, तो यह सरल सा टोटका करें-
शुक्ल पक्ष के पहले बृहस्पतिवार को सूर्यास्त से ठीक आधा घंटा पहले बड़ के पत्ते पर पांच अलग-अलग प्रकार की मिठाईयां तथा दो छोटी इलायची पीपल के वृक्ष के नीचे श्रद्धा भाव से रखें और अपनी शिक्षा के प्रति कामना करें। पीछे मुड़कर न देखें, सीधे अपने घर आ जाएं। इस प्रकार बिना क्रम टूटे तीन बृहस्पतिवार करें। यह उपाय माता-पिता भी अपने बच्चे के लिये कर सकते हैं।

४॰ श्री गोस्वामी तुलसीदास विरचित “अत्रिमुनि द्वारा श्रीराम स्तुति´´ का नित्य पाठ करें। निम्न छन्द अरण्यकाण्ड में वर्णित है।
`मानस पीयूष´ के अनुसार यह `राम चरित मानस की नवीं स्तुति है और नक्षत्रों में नवाँ नक्षत्र आश्लेषा (नक्षत्र स्वामी-बुध) है। अत: जीवन में जिनको सर्वोच्च आसन पर जाने की कामना हो, वे इस स्तोत्र को भगवान् श्रीराम / रामायणी हनुमान के चित्र या मूर्ति के समक्ष बैठकर नित्य पढ़ें।
।।श्रीअत्रि-मुनिरूवाच।।
नमामि भक्त-वत्सलं, कृपालु-शील-कोमलम्।
भजामि ते पदाम्बुजं, अकामिनां स्व-धामदम्।।1
निकाम-श्याम-सुन्दरं, भवाम्बु-नाथ मन्दरम्।
प्रफुल्ल-कंज-लोचनं, मदादि-दोष-मोचनम्।।2
प्रलम्ब-बाहु-विक्रमं, प्रभो·प्रमेय-वैभवम्।
निषंग-चाप-सायकं, धरं त्रिलोक-नायकम्।।3
दिनेश-वंश-मण्डनम्, महेश-चाप-खण्डनम्।
मुनीन्द्र-सन्त-रंजनम्, सुरारि-वृन्द-भंजनम्।।4
मनोज-वैरि-वन्दितं, अजादि-देव-सेवितम्।
विशुद्ध-बोध-विग्रहं, समस्त-दूषणापहम्।।5
नमामि इन्दिरा-पतिं, सुखाकरं सतां गतिम्।
भजे स-शक्ति सानुजं, शची-पति-प्रियानुजम्।।6
त्वदंघ्रि-मूलं ये नरा:, भजन्ति हीन-मत्सरा:।
पतन्ति नो भवार्णवे, वितर्क-वीचि-संकुले।।7
विविक्त-वासिन: सदा, भजन्ति मुक्तये मुदा।
निरस्य इन्द्रियादिकं, प्रयान्ति ते गतिं स्वकम्।।8
तमेकमद्भुतं प्रभुं, निरीहमीश्वरं विभुम्।
जगद्-गुरूं च शाश्वतं, तुरीयमेव केवलम्।।9
भजामि भाव-वल्लभं, कु-योगिनां सु-दुलर्भम्।
स्वभक्त-कल्प-पादपं, समं सु-सेव्यमन्हवम्।।10
अनूप-रूप-भूपतिं, नतोऽहमुर्विजा-पतिम्।
प्रसीद मे नमामि ते, पदाब्ज-भक्तिं देहि मे।।11
पठन्ति से स्तवं इदं, नराऽऽदरेण ते पदम्।
व्रजन्ति नात्र संशयं, त्वदीय-भक्ति-संयुता:।।12

हे भक्तवत्सल ! हे कृपालु ! हे कोमल स्वभाववाले ! मैं आपको नमस्कार करता हू¡। निष्काम पुरूषों को अपना परमधाम देनेवाले आपके चरणकमलोंको मैं भजता हू¡।
आप नितान्त सुन्दर श्याम, संसार (आवागमन) रूपी समुद्र को मथने के लिये मन्दराचल रूप, फूले हुए कमल के समान नेत्रों वाले और मद आदि दोषों से छुड़ाने वाले हैं।
हे प्रभो ! आपकी लम्बी भुजाओं का पराक्रम और आपका ऐश्वर्य अप्रमेय (बुद्धि के परे) है। आप तरकस और धनुष-बाण धारण करने वाले तीनों लोकों के स्वामी हैं।
सूर्यवंश के भूषण, महादेव जी के धनुष को तोड़ने वाले, मुनिराजों और सन्तों को आनन्द देने वाले तथा देवताओं के शत्रु असुरों के समूह का नाश करने वाले हैं।
आप कामदेव के शत्रु महादेव जी के द्वारा वन्दित, ब्रह्मा आदि देवताओं से सेवित, विशुद्ध ज्ञानमय विग्रह और समस्त दोषों को नष्ट करने वाले हैं।
हे लक्ष्मीपते ! हे सुखों की खान और सत्पुरूषों की एकमात्र गति ! मैं आपको नमस्कार करता हू । हे शचीपति (इन्द्र) के प्रिय छोटे भाई (वामनजी) ! शक्ति-स्वरूपा श्रीसीताजी और छोटे भाई लक्ष्मणजी सहित आपको मैं भजता हू¡।
जो मनुष्य मत्सर (डाह) रहित होकर आपके चरणकमलों का सेवन करते हैं, वे तर्क-वितर्क (अनेक प्रकार के सन्देह) रूपी तरंगों से पूर्ण संसार रूपी समुद्र में नहीं गिरते।
जो एकान्तवासी पुरूष मुक्ति के लिये, इन्द्रियादि का निग्रह करके (उन्हें विषयों से हटाकर) प्रसन्नतापूर्वक आपको भजते हैं, वे स्वकीय गति को (अपने स्वरूप को) प्राप्त होते हैं।
उन (आप) को जो एक (अद्वितीय), अद्भूत (मायिक जगत् में विलक्षण), प्रभु (सर्वसमर्थ), इच्छारहित, ईश्वर (सबके स्वामी), व्यापक, जगद्गुरू, सनातन (नित्य), तुरीय (तीनों गुणों से सर्वथा परे) और केवल (अपने स्वरूप में स्थित) हैं।
(तथा) जो भावप्रिय, कुयोगियों (विषयी पुरूषों) के लिये अत्यन्त दुर्लभ, अपने भक्तों के लिये कल्पवृक्ष, सम और सदा सुखपूर्वक सेवन करने योग्य हैं, मैं निरन्तर भजता हू¡।
हे अनुपम सुन्दर ! हे पृथ्वीपति ! हे जानकीनाथ ! मैं आपको प्रणाम करता हू¡। मुझपर प्रसन्न होइये, मैं आपको नमस्कार करता हू¡। मुझे अपने चरणकमलों की भक्ति दीजिये।
जो मनुष्य इस स्तुति को आदरपूर्वक पढ़ते हैं, वे आपकी भक्ति से युक्त होकर आपके परमपद को प्राप्त होते हैं, इसमें सन्देह नहीं है।

सोमवार, 6 सितंबर 2010

श्रीऋण-हरण-कर्तृ-गणपति-स्तोत्र

श्रीऋण-हरण-कर्तृ-गणपति-स्तोत्र
ध्यान

ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्।

ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्।।

।।मूल-पाठ।।

सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजितः फल-सिद्धये।

सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।१

त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चितः।

सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।२

हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चितः।

सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।३

महिषस्य वधे देव्या गण-नाथः प्रपुजितः।

सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।४

तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजितः।

सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।५

भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धये।

सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।६

शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायकः।

सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।७

पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजितः।

सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।८

इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं,

एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहितः।

दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत्।।

नोट :--- भक्ति-भाव से शुक्ल पक्ष के बुधवार से नित्य २१ पाठ गणेश जी के सम्मुख करे |