रविवार, 28 जुलाई 2013

जीवन समस्याओं से भरा हो, तो...........यह उपाय करे

 
1. जन्मकुंडली में यदि ग्यारहवें घर में शनि हो, तो मुख्य द्वार की चौखट बनाने से पहले उसके नीचे चंदन दबा दें, सुख-समृद्धि से घर सुशोभित रहेगा।

2. भवन-निर्माण से पहले भूखंड पर पांच ब्राह्मणों को भोजन करना बहुत शुभ होता है। इससे घर में धन, ऐश्वर्य व सुखों का वास होता है। बच्चे भी संस्कारी व आज्ञाकारी होते हैं।

3. यदि जीवन समस्याओं व दुखों से भरा हो, तो सौ ग्राम साबुत चावल किसी तालाब में डाल दें।
[ जारी है ]

4. यदि घर में मां को लगातार कोई कष्ट सता रहा हो, तो 121 पेड़े लेकर बच्चों को बांट दें कष्ट दूर हो जाएगा।

5. यदि जमीन जायदाद लाख कोशिशों के बावजूद अधिक दामों न बिक पा रहा हो, तो कभी-कभी चाय की पत्ती जमादार को दें। चांदी का चैकोर टुकड़ा सदैव अपने पास रखें और चांदी के गिलास में ही पानी पीएं। हमेशा सफेद टोपी पहनें। संपत्ति अधिक दामों में बिक जाएगी।

6. राहु ग्रह की अशुभता दूर करनी हो, तो भगवती काली की उपासना करें । राहु अशुभ हो तो अचानक शारीरिक कष्ट होता है। चांदी की चेन गले में पहनें, राहत मिलेगी। कुत्तों को रोटी अवश्य खिलाएं, गरीबों को सूज़ी का हलवा अपने हाथ से बांटें, कष्ट दूर होगा।

7. यदि व्यवसाय या रोजगार में विघ्न बहुत आ रहे हों तो दस अंधों को भोजन कराएं और गुलाब जामुन खिलाएं। अपने माता-पिता की सेवा करें, विघ्न अपने आप दूर हो जाएंगे ।

8. पढाई करते वक्त विशेष कर नींद आए और पढ़ाई में मन न लगे, रुकावटें आएं तो इसके लिए पूर्व की तरफ सिरहाना करके सोएं। रोज रामायण के सुन्दरकांड के कुछ अंशों का पाठ करना चाहिए। इसके साथ-साथ सवा 5 रत्ती का एक खूबसूरत मोती और सवा 6 रत्ती का मूंगा चांदी की अंगूठी में जड़वा कर क्रमशः छोटी अंगुली और अनामिका में धारण करें । पढ़ते वक्त नींद नहीं आएगी तथा इस उपाय से विद्यार्थी परीक्षा में अव्वल आते हैं और समस्त रुकावटें दूर हो जाती हैं।

9. मानसिक अशांति की समस्या किसी पूर्व पाप का परिणाम होता है। इसे दूर करने के लिए यह उपाय बहुत लाभकारी है। प्रतिदिन हनुमान जी की पूजा और उनका स्मरण करें। हनुमान चालीसा का अवश्य पाठ करें। शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से उपाय शुरू करें। सोते वक्त एक छोटा सा चाकू सिरहाने के नीचे रखें। जिस कमरे में सोते हों, कपूर का लैंप जलाएं। समस्या का सामधान हो जाता है। पूर्व जन्म के पाप नष्ट होने लगते हैं और स्थितियां अनुकूल होने लगती हैं तथा मानसिक अशांति दूर होती है।

10. कर्ज से मुक्ति के लिए: कर्ज से पीड़ित व्यक्ति को चाहिए कि दोनों मुटठी में काली राई लें। चैराहे पर पूर्व दिशा की ओर मुंह रखें तथा दाहिने हाथ की राई को बाईं ओर और बाएं हाथ की राई को दाहिनी दिशा में फेंक दें। एक साथ राई को फेंकना चाहिए। राई फेंकने के पश्चात चौराहे पर सरसों का तेल डाल कर दोमुखी दीपक जला देना चाहिए। दिया मिट्टी का रखना चाहिए। यह प्रयोग शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार को संध्या के समय करें। श्रद्धा द्वारा किया गया यह उपाय अवश्य कर्ज से मुक्ति दिलवाता है। एक बार सफलता न प्राप्त हो, तो दोबारा फिर कर लेना चाहिए। जिस चौराहे पर टोटका किया जा चुका हो उस दिन उस चौराहे पर टोटका नहीं करना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। यदि अमावस्या हो और शनिवार हो तो यह विशेष फलदायी होता है। तब यह टोटका करना जादुई चमत्कार से कम नहीं है।

सुख प्राप्ति के लिए त्याग जरूरी

एक बार की बात है, भक्त श्रेष्ठ प्रह्लाद जी अपने कुछ मंत्रियों के साथ प्रजा की सही स्थिति जानने के लिए, उनके दुख-दर्दों को समझने के लिए राज्य में भ्रमण कर रहे थे। घूमते-घूमते वह कावेरी नदी के तट पर पहुंचे। एकाएक उनकी दृष्टि एक ऐसे व्यक्ति पर पड़ी, जिसका सारा शरीर धूल-धूसरित तथा भोगी मनुष्यों की तरह हृष्ट-पुष्ट था।

उसे देखकर कोई सोच भी नहीं सकता था कि यह कोई ऋषि मुनि या अवधूत है। किंतु भक्तराज प्रह्लाद की दृष्टि से यह बात छिपी न रही। उन्होंने पहचान लिया कि वे मुनि दत्तोत्रय हैं। मुनि के निकट जाकर प्रह्लाद जी ने उनके बारे में जानने की इच्छा से प्रश्न किया कि भगवान! आपका शरीर विद्वान, चतुर तथा समर्थ है।

ऐसी अवस्था में आप सारे संसार को कर्म करते हुए देखकर भी समभाव से पड़े हुए हैं, इसका क्या कारण है? यदि हमारे सुनने योग्य हो तो अपने बारे में हमें अवश्य बतलाइये। मुनि दत्तात्रेय जी ने कहा- दैत्यराज! मैंने अपने अनुभव से जैसा भी, जो कुछ जाना है, उसके अनुसार मैं आपके प्रश्नों का उत्तर देता हूं। तृष्णा एक ऐसी वस्तु है, जो इच्छानुसार भोगों के प्राप्त होने पर भी पूरी नहीं होती।

उसी के कारण मनुष्य को जन्म मृत्यु के चक्कर में भटकना पड़ता है। तृष्णा ने मुझसे न जाने कितने कर्म करवाये और उनके कारण न जाने कितनी योनियों में मुझे डाला। कर्मों के कारण अनेक योनियों में भटकते हुए मुझे प्रभु कृपा से मनुष्य योनि मिली है। यह मनुष्य योनि स्वर्ग, मोक्ष, तिर्यग्योनि तथा इस मानव देह की प्राप्ति का भी द्वार है।

इस शरीर को पाकर मनुष्य पुण्य करे तो स्वर्ग, पाप करे तो पशु-पक्षी आदि की योनियों तथा पाप और पुण्य दोनों से अलग होकर निष्काम कर्म करे तो मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।परंतु मैं इस संसार में देखता हूं कि सारे लोग कर्म तो करते हैं सुख की प्राप्ति के लिए, दु:खों से छुटकारा पाने के लिए, परंतु उसका फल उल्टा ही होता है और वे दु:खों में पड़ जाते हैं। इसीलिए मैं कर्मों से उपरत हो गया हूं।

मनुष्य की आत्मा ही सुखस्वरूप है। मनुष्य का शरीर ही उसके प्रकाशित होने का स्थान है, और उसके सारे कर्मों से निवृत्त हो जाता है। छुटकारा पा जाता है और यही मोक्ष है। इसलिए संसार के सभी भोगों को मन का विलास समझ कर वह अपने प्रारब्ध को भोगता हुआ पड़ा रहता है।

मनुष्य अपने सच्चे परमार्थ, यानी वास्तविक स्वरूप को, जो कि अपना ही स्वरूप है, भूलकर इस संसार को सत्य मानता हुआ अत्यंत भयंकर और विचित्र जन्म-मरण के चक्र में भटकता रहता है। जैसे अज्ञानी मनुष्य जल में उत्पन्न तिनके और सेवार से ढके हुए जल को जल न समझकर, जल के लिए मृगतृष्णा की भांति दौड़ता है, वैसे ही अपनी आत्मा से भिन्न वस्तु में सुख समझने वाला पुरुष आत्मा को छोडक़र विषयों की ओर दौड़ता है।

यह शरीर तो प्रारब्ध के अधीन है। कर्मों के द्वारा जो अपने लिए सुख पाना और दुःखों को मिटाना चाहता है। वह कभी अपने कार्य में सफल नहीं हो सकता। उसके बार-बार किये हुए सारे कर्म व्यर्थ हो जाते हैं। मनुष्य सदा शारीरिक, मानसिक आदि दुःखों से परेशान ही रहता है। यह मरणशील मनुष्य यदि बड़े श्रम और कष्टों से कुछ धन और भोग प्राप्त भी कर लिया तो उससे क्या होने वाला है।

लोभी और इंद्रियों के वश में रहने वाले धनियों का दुख तो मैं देखता ही रहता हूं। भय के मारे उन्हें नींद नहीं आती। सब पर उनका संदेह बना रहता है। इसलिए बुद्घिमान पुरुष को चाहिए कि जिसके कारण शोक, मोह, भय, क्रोध, राग आदि का शिकार होना पड़ता है, उन सबको त्याग दे, क्योंकि त्याग से ही सुख प्राप्त होता है।

मधुमक्खी जैसे मधु इकट्ठा करती है, वैसे ही लोग बड़े कष्टों से धन का संचय करते हैं, परंतु कोई उस धनराशि के स्वामी को मारकर उससे धन छीन लेता है। इससे मैंने यह शिक्षा ग्रहण की कि विषय भोगों से विरक्त ही रहना चाहिए।

सत्य की खोज करने वाले मनुष्य को चाहिए कि मन के नाना प्रकार के संकल्प-विकल्पों को आत्मानुभूति में स्वाह कर दे, आत्मा में स्वाहा कर दें और इस प्रकार आत्म-स्वरूप में स्थित होकर सांसारिक भोगों से निष्क्रिय एवं उपरत हो जाय। तब वह स्वत: ही सुख स्वरूप हो जायेगा।

प्रह्लाद जी मुनि दत्तात्रेय से धर्म के इन गूढ़ रहस्यों को समझ कर बड़े प्रेम से मुनि की पूजा की और उनसे विदा लेकर बड़ी प्रसन्नता से अपनी राजधानी के लिए प्रस्थान किया।

क्या उर्दू नामक कोई भाषा संसार में है?

इस लेख को पढ़ ने से पहले कृपया ये प्रश्न स्वय से करे की क्या आपने कभी किसीको उर्दू बोलते हुए देखा है? यदी हा तो ये निश्चित है की उर्दू सुनने में हिंदी जैसी ही लगती है केवल कुछ उटपटांग शब्द उर्दू में आते है!

जैसे की:
हिंदी उर्दू
नेताजी का ‘देहांत’ हो गया नेताजी का ‘इंतकाल’ हो गया
मै आपकी ‘प्रतीक्षा’ कर रहा था मै आपका ‘इंतजार’ कर रहा था
‘परीक्षा’ कैसी थी? ‘इम्तिहान’ कैसा था?
आपके रहने का ‘प्रबंध’ हो चूका है आप के रहने का ‘इंतजाम’ हो चूका है
ये मेरी ‘पत्नी’ है ये मेरी ‘बीबी’ है
मै ‘प्रतिशोध’ की आग में जल रहा हु मै ‘इंतकाम’ की आग में जल रहा हु



ये उदाहरण देख कर आप समझ गए की उर्दू की रचना का कंकाल (Skeleton) हिंदी से आया है, केवल हिंदी के स्थान पर अरबी शब्दों का उपयोग किया गया है!जब आप अधिक अध्ययन करेंगे तो ये पता चलेगा की उर्दू नामक कोई भाषा ही नही है! वो तो एक बोली है,, हिंगलिश जैसी!भाषा वो होती है जिसे व्याकरण होता है अपना एक शब्दकोष होता है! भाषा लिखने का एक माध्यम हो सकती है, किन्तु कोई बोली, भाषा का स्थान नही ले सकती क्यों की उसे ना तो व्याकरण होता है ना तो शब्द कोष!ठीक वही बात उर्दू और हिंग्लिश के लिए लागु होती है! ये दोनों एक भेल पूरी जैसी बोलिय है जिन्हें अपना कोई शब्द कोष अथवा व्याकरण नही है! उर्दू में ५०% शब्द हिंदी-संस्कृत के है, २५% अरबी, १०% फारसी, ५% चीनी-मंगोल और तुर्की तथा १०% अंग्रेजी है! अब आप ही बताइए एसी खिचडी बोली कभी कोई भाषा का स्थान ले सकती है?उर्दू के विषय में आश्चर्य जनक जानकारी!

चेंगिज खान और उसका पोता हलागु खान ये इस्लाम के भारी शत्रु थे! जिन्होंने इस्लामी खिलाफत में घुसकर ५ करोड मुल्ला मुसलमानों की क़त्ल की थी! ये प्रतिशोध था क्यों की ६०० वर्षों से लगातार (९५० से १२५८) अरब मुस्लिमो द्वारा इन तुर्को और मुघलो को मुस्लिम बनाने के लिए उन पर अति भीषण आक्रमण किये जा रहे थे! इस से पीड़ित होकर प्रतिशोध भावना से ये तुर्क-मुघल टोलिया चेंगिज खान उर्फ तिमू जीनी के नेतृत्व में मुस्लिम प्रदेशो पर टूट पड़ी! आज भी इस्लामी जगत में चेंगिज खान को पाजी, लुटेरा, लफंगा इत्यादि नामो से मुस्लिम इतिहासकार विभूषित करते है!

इन तुर्क मंगोलों की भाषा में सैनिक छावनी को “ओरडू” कहा जाता था! आगे चल कर ये सारे तुर्क और मुघल अरब मुस्लिमो द्वारा छल बल से मृत्य की यातनाए देकर मुस्लिम बनाए गए! उन्हें तलवार की धार पर इस्लाम के अरब कारागार में तो लाया गया पर उनके मंगोल नाम बदल कर सब को अरबी नाम देना संभव नही था! क्योकि १ दिन में जब २ लाख या ५ लाख मुघलो को मुस्लिम बनया गया! उसका नियंत्रण रखना उन अरब मुस्लिमो को संभव नही था! इस लिए उन तुर्क-मुघलो में इस्लाम पूर्व कुछ संस्कार वैसे के वैसे रह गए! जैसे की खान उपनाम जो अमुस्लिम है!
जब कोई मुस्लिम बनता है तो उसे अरब आचार अपनाने पड़ते है! जैसे की महमद, अब्दुल, इब्राहीम, अहमद इत्यादि अरब नाम (जिन्हें लोग मुस्लिम नाम समझते है वो वास्तव में अरब नाम है) अपनाने पड़ते है! दिन में ५ बार अरब मातृभूमि की ओर माथा टेकना पड़ता है (फिर चाहे आप अरब नही हो तो भी)! इस प्रकार सारे तुर्क मुघल उनके इस्लामीकरण के उपरांत अरब देशो के उपग्रह से बन गए जिन्हें अपने आप में कोई अस्तित्व नही था!

अगले २०० वर्षों में ये इन मुगलों ने जो (जो २०० वर्ष पहले तलवार की नोक पर मुस्लिम बनाए गए थे) भारत पर आक्रमण किया! आश्चर्य इस बात का है की जिस इस्लामी जिहाद का रक्त रंजित संदेश जीन मुघल और तुर्को ने भारत के हिंदुओ पर थोपा वे स्वय भी उसी रक्त रंजित जिहाद के भक्ष बन चुके थे! किन्तु इस्लाम के मायावी जेल में जाने पर वो अपना सारा अतीत भूलकर अरब देशो के एक निष्ट गुलाम बन चुके थे!

इस तुर्क-मुघल आक्रमण काल में अनेक हिंदुओ को छल-बल से गुलाम बनाकर सैनिक छावनी (जिसे मंगोल भाषा में ओरडू अर्थात उर्दू) में लाया जाता था! उनपर बलात्कार किये जाते थे! उनकी भाषा जो की बृज भाषा, अवधी हिंदी थी पर प्रतिबंध लगाया जाता था! उन्हें अरबी भाषा (जो की इस्लाम की अधिकृत भाषा है) बोलने पर विवश किया जाता था! आप सोचिए यदी आप को कोई मृत्यु का भय दिखा कर चीनी भाषा में बोलने को कल से कहेंगे, तो क्या आप कल से चीनी भाषा बोल सकोगे?
नही!

ठीक यही बात उन हिंदी भाषी हिंदुओ पर लागु होती है! वो अरबी तो बोल न सके किन्तु भय के कारण उनकी अपनी मतृभाषा में अरबी शब्द फिट करने लगे ताकि अपने प्राण बचा सके! इस से एक ऐसे बोली का जन्म हुआ जो ना तो हिंदी थी ना तो अरबी! असकी वाक्य रचना तो हिंदी से थी किन्तु शब्द सारे अरबी, फारसी, तुर्की और चीनी थे! ज्यो की वो बोली उस सैनिक छावनी में भय के कारण उत्पन्न हुई इस लिए उसे ‘ओरडू” का नाम मिला! “ओरडू” का भ्रष्ट रूप है “उर्दू”!

आगे चल कर इस उर्दू नामक बोली में बहुत से अंग्रेजी शब्द भी आ गए जैसे की

अफसर = Officer
बिरादर = Brother
बोरियत = Boring
इत्यादि ……..

मुघल और तुर्क इस भेल पूरी उर्दू नामक बोली को गुलामो की भाषा मानते थे, क्योकि वो अशुद्ध थी! मुघल दरबार की भाषा फारसी थी उर्दू नही! आप जानते है उस ओरडू में जो इन मुघलो के गुलाम थे वो कौन है?

वही जो आज अपनी भाषा उर्दू बताते है! वो हिंदु गुलाम ही आज के भारत के मुस्लिम है! गाँधी-नेहरु हमारे इतहास को गाली देते है की हिंदु इतहास १००० वर्ष गुलामी का इतिहास है! परंतु ये गुलामी का इतहास उन हिंदुओ का है जो आज १००० वर्ष इस्लाम के अरब कारागृह में सड रहे है! ये गुलाम हिंदु ही आज के भारत और पाकिस्तान के मुस्लिम है! जिन्हें अपने आप में कोई अस्तित्व नही है!

तुर्क, मुघलो को अरब मुस्लिमो ने इस्लाम में लाकर अपना गुलाम बनया! जब इन अरब के मुस्लिम गुलामो ने भारत पर आक्रमण किया तब उन्होंने हिंदुओ को अपना गुलाम बनाया, और अपने खान इत्यादि नाम उन पर थोपे, उनपर उर्दू (अर्थात सैनिक छावनी) में बलात्कार किये!

अर्थात स्पष्ट रूप से देखे तो भारत के मुस्लिम “गुलामो के गुलाम” है! वे ना तो अरब है ना तो मंगोल!

उर्दू एक भाषा है ऐसा प्रचार गाँधी ने किया! क्यों की वे “मुस्लिम एक राष्ट्र है” ऐसा मानते थे! इस लिए भारत के मुस्लिमो की एक भाषा हो यह देखकर उन्होंने उर्दू को “हिन्दुस्तानी” के नाम से प्रसिद्ध किया! महात्माजी गांधीजी अपने व्याख्यान में कहते थे, बादशाह राम, बेगम सीता तथा उस्ताद वसिष्ट (१)! इस प्रकार उन्होंने उर्दू को “हिन्दुस्तानी” के नाम से प्रसिद्ध किया! १९३५ तक तो उर्दू नामक कोई भाषा है इस तर्क से कोई परिचित भी नही था!

गाँधी-नेहरु को मानने वाली अल खान्ग्रेस भी उनके जैसी ही कट्टर है! किन्तु उनका ये सिद्धांत सम्पूर्णतहा असत्य सिद्ध हुआ की मुस्लिम एक राष्ट्र है! यदी वे एक राष्ट्र होते तो बंगलादेश पाकिस्तान से अलग नही होता!

कुछ लोग फेस बुक और अन्य स्थानों पर अपने भाषा ज्ञान में उर्दू को भी जोड़ते है! अर्थात Languages Known में आपने उर्दू को जोड़ा है, तो कृपया तुरंत हटाए, क्यों की यदी आप उसे अपने भाषा बताएँगे तो क्या आप उस ओरडू नामक गुलामो के जेल में थे?