गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

बच्चों की नजर उतारने का मंत्र

बच्चों की नजर उतारने का मंत्र
बच्चों को नजर लगने पर निम्न लिखित मंत्र पढ़कर मोरपंख या लोहे की सलाई से झाड़ दें.
यह सिद्ध मंत्र है इसे सिद्ध किये बिना भी प्रयोग कर सकते हैं.

||ॐ नमो आदेश गुरु का गिरहबाज नटनी का जाया , चलती बेर कबूतर खाया , पीवे दारू खाय जो मांस रोग दोष को लावे फांस , कहाँ कहाँ से लावेगा , गुद गुद में सु लावेगा , बोटी बोटी में से लावेगा ,चामचाम में से लावेगा, मार मार बंदी करकर लावेगा , न लावेगा तो अपनी माता की सेज पर पग रखेगा, मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र इश्वरो वाचा ||

रविवार, 8 दिसंबर 2013

विद्या-प्राप्ति-प्रयोग




विद्या-प्राप्ति-प्रयोग

 १॰ "ॐ ह्रीं क्लीं वद-वद वाग्वादिनी-भगवती-सरस्वति, मम जिह्वाग्रे वासं कुरु कुरु स्वाहा।"

२॰ "ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वाग्वादिनी-देवी सरस्वति, मम जिह्वाग्रे वासं कुरु कुरु स्वाहा।"

विधिः- प्रति-दिन प्रातःकाल उक्त मन्त्र का १०८ बार जप करे। बालकों को छोटी उम्र से इस मन्त्र का जप कराए। परिक्षा, नौकरी में तो इस मन्त्र के जप के द्वारा सफलता प्राप्त होती ही है, साथ ही नेतृत्व के गुण भी उत्पन्न होते हैं और समाज में प्रतिष्ठा एवं यश की प्राप्ति होती है। मन्त्र जप के समय श्वेत-वस्त्र, माला व आसन का प्रयोग करना चाहिए। मन्त्र के जप के साथ-साथ 'सरस्वती-चूर्ण' का भी प्रयोग करे।

 'सरस्वती-चुर्ण' के लिए आठ जड़ी-बूटियाँ- १॰ गुडची, २॰ अपामार्ग, ३॰ वायविडंग, ४॰ शंख-पुष्पी, ५॰ बच, ६॰ सोंठ, ७॰ शतावरी और ८॰ ब्राह्मी को पंसारी के यहाँ से समान भाग में लेकर चूर्ण बनाएँ। चूर्ण बनाते समय उक्त मन्त्र का स्मरण करता रहे। फिर इस अभिमन्त्रित चूर्ण का नित्य सेवन करे। चूर्ण के साथ समान मात्रा में गो-घृत एवं मिश्री भी लेवे। 'चूर्ण-सेवन' के बाद यथा-शक्ति गो-दुग्ध का पान करे। छः मास तक ऐसा करने से बालकों की बुद्धि निश्चित रुप में तीव्र होती है।

ब्रह्म ज्ञान

++++::: ब्रह्म ज्ञान :::++++

दूर निकट कुछ है नहीं, ऊँचा नीचा नाहिं ।

अन्तर बाहर एक है, 'अमृत' सबके माहिं ॥

जाग्रत स्वप्न न सुषुप्ति, तुरिया साक्षी रुप ।

'अमृत' उनमनी भाव है, अट पट भेद अनूप ॥

स्वप्न जगत् व्यवहार है, आत्म सुषुप्ति जान ।

तुरिया ब्रह्म का रुप है, 'अमृत' कर पहचान ॥

शब्द, स्पर्श अरु रुप रस, गन्ध तत्व के रुप ।

सुक्ष्म जान तन मात्रा, 'अमृत' भेद अनूप ॥

नेत्र नाक जिह्वा करण, चर्म इन्द्रि है ज्ञान ।

हस्त पाद वाणी गुदा, लिंग कर्म लो जान ॥

स्थूल सूक्ष्म कारण, महा कारण आतम गेह।

केवल ब्रह्म स्वरुप है, 'अमृत' खोजो देह ॥