शनिवार, 21 जून 2014

योग दर्शन

परमात्मा ने संसार के संचालन का ज़िम्मा काल को देते हुए आत्माओं 

को उसके हवाले कर दिया। अब काल नहीं चाह्ता कि कोई भी जीव


 उसके चंगुल से निकल कर परमात्मा से वापिस मिलाप कर सके। 


इसीलिए उसने मन को सभी जीवों के पीछे लगा रखा है। जीव को काबू में  

रखने के   लिए मन के पाँच हथियार हैं – काम, क्रोध, लोभ, मोह और 


अहंकार।  अध्यात्म विज्ञान के अनुसार अंतश्चतुष्ट्य में क्रमशः मन,  


बुद्धि, चित्त   और अहंकार आते हैं। ‘अहं’ मन, बुद्धि और चित्त से ऊपर 


है। फिर उसे  हल्के में नहीं लिया जा सकता। जैनदर्शन मन को नियंत्रित 


कर इंद्रियों  को जीतने की बात करता है। यानी मन रूपी अरि का हनन 


की आध्यात्मिक दृष्टि में अरिहंत कहा गया। बौद्धदर्शन बुद्धि के 


अस्तित्व को श्रेष्ठता प्रदान कर नित्यानित्य का भेद करने वाले विवेक 


से काम लेता  है, बुद्धि से ही बुढ़ापे और मृत्यु से मुक्क्त हो सकते हैं। ये 


दोनों दर्शन कर्मसिद्धांत के आधार पर क्रमशः मन-बुद्धि पर नियंत्रण को 


तत्वज्ञान मानते हैं, जबकि योग दर्शन चित्त पर अंकुश लगाता है। 


‘‘योगश्चित्तवृत्तिः निरोधः’’ चित्तवृत्तियों पर नियंत्रण की योग है। यहां 


भी कर्म सिद्धांत ही है- ‘‘योगः कर्मसु कौशलम्।’’ चौथा निर्गुण तत्व 


अहंकार है। जिस पर सभी दर्शन मन, बुद्धि और चित्त से अलग सोच न

 
रखकर सिर्फ अहंकार से आच्छादित मन को जीतने में विश्वास रखते हैं,

 
यदि मन से अहं निकल जाये तो समझो हम जीत गये। इसी तरह बुद्धि

 
और चित्त से अहं को मिटाकर निरहंकार कर्म की कुशलता का पाठ 


पढ़ाया जाता है। क्या अहंकार मिट सकता है? मन बुद्धि चित्त जितने 


महत्वपूर्ण हैं। उतना ही महत्वपूर्ण अहं है। अहं यानी मैं जब तक ‘नाम-


रूप’ यानी देह है, तब तक अहं के तत्व को नहीं समझा जा सकता। मैं देह

 
नहीं, देही हूं। आत्मतत्व में अहं का एकात्म ही अहंकार का मूलतत्व है।

 
वास्तव में ‘मैं’ यानी देह में देही यानी आत्मा की सत्ता है। अहं को 


आत्मतत्व में विलीन करना ही साधना है   जब मन वश में आ जायेगा 


तो यह पाँच शत्रु या विकार भी वश में आ जाते हैं और इनकी जगह शील,

 
क्षमा, संतोष, विवेक और नम्रता आदि गुण ले लेते हैं, जो आत्मा के 


स्वभाविक गुण हैं।

मंगलवार, 6 मई 2014

श्रीललिता चिन्तामणिमाला स्तोत्र

श्रीललिता चिन्तामणिमाला स्तोत्र

ॐ अस्य श्रीललिता चिन्तामणिमाला स्तोत्र महामन्त्रस्य दक्षिणामूर्तिर्भगवान् ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः श्रीचिन्तामणि महाविद्येश्वरी ललिता महाभट्टारिका देवता ऐं बीजं क्लीं शक्तिः सौः कीलकं श्रीललिताम्बिका प्रसादसिद्धर्थे जपे विनियोगः || 
ध्यानम् 
बालार्कमण्डलाभासां चतुर्बाहुं त्रिलोचनाम् |
पाशाङ्कुशधनुर्बाणान् धारयन्तीं शिवां भजे ||

ऐं ह्रीं श्रीं
ॐ श्रीमाता श्रीमहाराज्ञी श्रीमत्सिंहासनेश्वरी |
चिदग्निकुण्डसम्भूता देवकार्यसमुद्यता ||
उद्यद्भानुसहस्राभा चतुर्बाहुसमन्विता |
रागस्वरूपपाशाढ्या क्रोधाकाराङ्कुशोज्ज्वला ||
मनोरूपेक्षुकोदण्डा पञ्चतन्मात्रसायका |
निजारुणप्रभापूरमज्जद्ब्रह्माण्डमण्डला ||
चम्पकाशोकपुन्नागसौगन्धिकलसत्कचा |
कुरुविन्दमणिश्रेणीकनत्कोटीरमण्डिता ||
अष्टमीचन्द्रविभ्राजदलिकस्थलशोभिता |
मुखचन्द्रकलङ्काभमृगनाभिविशेषका ||
वदनस्मरमाङ्गल्यगृहतोरणचिल्लिका |
वक्त्रलक्ष्मीपरीवाहचलन्मीनाभलोचना ||
नवचम्पकपुष्पाभनासादण्डविराजिता |
ताराकान्तितिरस्कारिनासाभरणभासुरा ||
कदम्बमञ्जरीकॢप्तकर्णपूरमनोहरा |
ताटङ्कयुगलीभूततपनोडुपमण्डला ||
पद्मरागशिलादर्शपरिभाविकपोलभूः |
नवविद्रुमबिम्बश्रीन्यक्कारिरदनच्छदा ||
शुद्धविद्याङ्कुराकारद्विजपङ्क्तिद्वयोज्ज्वला |
कर्पूरवीटिकामोदसमाकर्षद्दिगन्तरा || १०||
निजसल्लापमाधुर्यविनिर्भर्त्सितकच्छपी |
मन्दस्मितप्रभापूरमज्जत्कामेशमानसा ||
अनाकलितसादृश्यचिबुकश्रीविराजिता |
कामेशबद्धमाङ्गल्यसूत्रशोभितकन्धरा ||
कनकाङ्गदकेयूरकमनीयभुजान्विता |
रत्नग्रैवेयचिन्ताकलोलमुक्ताफलान्विता ||
कामेश्वरप्रेमरत्नमणिप्रतिपणस्तनी |
नाभ्यालवालरोमालिलताफलकुचद्वयी ||
लक्ष्यरोमलताधारतासमुन्नेयमध्यमा |
स्तनभारदलन्मध्यपट्टबन्धवलित्रया ||
अरुणारुणकौसुम्भवस्त्रभास्वत्कटीतटी |
रत्नकिङ्किणिकारम्यरशनादामभूषिता ||
कामेशज्ञातसौभाग्यमार्दवोरुद्वयान्विता |
माणिक्यमुकुटाकारजानुद्वयविराजिता ||
इन्द्रगोपपरिक्षिप्तस्मरतूणाभजङ्घिका |
गूढगुल्फा कूर्मपृष्ठजयिष्णुप्रपदान्विता ||
नखदीधितिसंछन्ननमज्जनतमोगुणा |
पदद्वयप्रभाजालपराकृतसरोरुहा ||
शिञ्जानमणिमञ्जीरमण्डितश्रीपदाम्बुजा |
मरालीमन्दगमना महालावण्यशेवधिः ||
सर्वारुणाऽनवद्याङ्गी सर्वाभरणभूषिता |
शिवकामेश्वराङ्कस्था शिवा स्वाधीनवल्लभा ||
सुमेरुमध्यशृङ्गस्था श्रीमन्नगरनायिका |
चिन्तामणिगृहान्तस्था पञ्चब्रह्मासनस्थिता ||
महापद्माटवीसंस्था कदम्बवनवासिनी |
सुधासागरमध्यस्था कामाक्षी कामदायिनी ||
देवर्षिगणसंघातस्तूयमानात्मवैभवा |
भण्डासुरवधोद्युक्तशक्तिसेनासमन्विता ||
सम्पत्करीसमारूढसिन्धुरव्रजसेविता |
अश्वारूढाधिष्ठिताश्वकोटिकोटिभिरावृता ||
चक्रराजरथारूढसर्वायुधपरिष्कृता |
गेयचक्ररथारूढमन्त्रिणीपरिसेविता ||
किरिचक्ररथारूढदण्डनाथापुरस्कृता |
ज्वालामालिनिकाक्षिप्तवह्निप्राकारमध्यगा ||
भण्डसैन्यवधोद्युक्तशक्तिविक्रमहर्षिता |
नित्यापराक्रमाटोपनिरीक्षणसमुत्सुका ||
भण्डपुत्रवधोद्युक्तबालाविक्रमनन्दिता |
मन्त्रिण्यम्बाविरचितविषङ्गवधतोषिता ||
विशुक्रप्राणहरणवाराहीवीर्यनन्दिता |
कामेश्वरमुखालोककल्पितश्रीगणेश्वरा ||
महागणेशनिर्भिन्नविघ्नयन्त्रप्रहर्षिता |
भण्डासुरेन्द्रनिर्मुक्तशस्त्रप्रत्यस्त्रवर्षिणी ||
कराङ्गुलिनखोत्पन्ननारायणदशाकृतिः |
महापाशुपतास्त्राग्निनिर्दग्धासुरसैनिका ||
कामेश्वरास्त्रनिर्दग्धसभण्डासुरशून्यका |
ब्रह्मोपेन्द्रमहेन्द्रादिदेवसंस्तुतवैभवा ||
हरनेत्राग्निसंदग्धकामसञ्जीवनौषधिः |
श्रीमद्वाग्भवकूटैकस्वरूपमुखपङ्कजा ||
कण्ठाधःकटिपर्यन्तमध्यकूटस्वरूपिणी |
शक्तिकूटैकतापन्नकट्यधोभागधारिणी ||
मूलमन्त्रात्मिका मूलकूटत्रयकलेबरा |
कुलामृतैकरसिका कुलसंकेतपालिनी ||
कुलाङ्गना कुलान्तस्था कौलिनी कुलयोगिनी |
अकुला समयान्तस्था समयाचारतत्परा ||
मूलाधारैकनिलया ब्रह्मग्रन्थिविभेदिनी |
मणिपूरान्तरुदिता विष्णुग्रन्थिविभेदिनी ||
आज्ञाचक्रान्तरालस्था रुद्रग्रन्थिविभेदिनी |
सहस्राराम्बुजारूढा सुधासाराभिवर्षिणी ||
तटिल्लतासमरुचिः षट्चक्रोपरिसंस्थिता |
महासक्तिः कुण्डलिनी बिसतन्तुतनीयसी |
श्रीशिवा शिवशक्त्यैक्यरूपिणी ललिताम्बिका ||

रविवार, 4 मई 2014

अष्ट लक्ष्मी स्त्रोत्रम

अष्ट लक्ष्मी स्त्रोत्रम 

आदिलक्ष्मि
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि, चन्द्र सहोदरि हेममये
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायनि, मञ्जुल भाषिणि वेदनुते ।
पङ्कजवासिनि देव सुपूजित, सद्गुण वर्षिणि शान्तियुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, आदिलक्ष्मि परिपालय माम् ॥ 1 ॥

धान्यलक्ष्मि
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनि, वैदिक रूपिणि वेदमये
क्षीर समुद्भव मङ्गल रूपिणि, मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते ।
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि, देवगणाश्रित पादयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, धान्यलक्ष्मि परिपालय माम् ॥ 2 ॥

धैर्यलक्ष्मि
जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि, मन्त्र स्वरूपिणि मन्त्रमये
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद, ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते ।
भवभयहारिणि पापविमोचनि, साधु जनाश्रित पादयुते
जय जयहे मधु सूधन कामिनि, धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम् ॥ 3 ॥

गजलक्ष्मि
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि, सर्वफलप्रद शास्त्रमये
रधगज तुरगपदाति समावृत, परिजन मण्डित लोकनुते ।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित, ताप निवारिणि पादयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, गजलक्ष्मी रूपेण पालय माम् ॥ 4 ॥

सन्तानलक्ष्मि
अयिखग वाहिनि मोहिनि चक्रिणि, रागविवर्धिनि ज्ञानमये
गुणगणवारधि लोकहितैषिणि, सप्तस्वर भूषित गाननुते ।
सकल सुरासुर देव मुनीश्वर, मानव वन्दित पादयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, सन्तानलक्ष्मी परिपालय माम् ॥ 5 ॥

विजयलक्ष्मि
जय कमलासिनि सद्गति दायिनि, ज्ञानविकासिनि गानमये
अनुदिन मर्चित कुङ्कुम धूसर, भूषित वासित वाद्यनुते ।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित, शङ्करदेशिक मान्यपदे
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, विजयलक्ष्मी परिपालय माम् ॥ 6 ॥

विद्यालक्ष्मि
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि, शोकविनाशिनि रत्नमये
मणिमय भूषित कर्णविभूषण, शान्ति समावृत हास्यमुखे ।
नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणि, कामित फलप्रद हस्तयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम् ॥ 7 ॥

धनलक्ष्मि
धिमिधिमि धिन्धिमि धिन्धिमि-दिन्धिमि, दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये
घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम, शङ्ख निनाद सुवाद्यनुते ।
वेद पूराणेतिहास सुपूजित, वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, धनलक्ष्मि रूपेणा पालय माम् ॥ 8 ॥

फलशृति
श्लो॥ अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि ।
विष्णुवक्षः स्थला रूढे भक्त मोक्ष प्रदायिनि ॥

श्लो॥ शङ्ख चक्रगदाहस्ते विश्वरूपिणिते जयः ।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मङ्गलं शुभ मङ्गलम् ॥