गुरुवार, 7 अगस्त 2014

अक्षय-धन-प्राप्ति मन्त्र

अक्षय-धन-प्राप्ति मन्त्र
प्रार्थना
हे मां लक्ष्मी, शरण हम तुम्हारी।
पूरण करो अब माता कामना हमारी।।
धन की अधिष्ठात्री, जीवन-सुख-दात्री।
सुनो-सुनो अम्बे सत्-गुरु की पुकार।
शम्भु की पुकार, मां कामाक्षा की पुकार।।
तुम्हें विष्णु की आन, अब मत करो मान।
आशा लगाकर अम देते हैं दीप-दान।।
मन्त्र- “ॐ नमः विष्णु-प्रियायै, ॐ नमः कामाक्षायै। ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं श्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”
विधि- ‘दीपावली’ की सन्ध्या को पाँच मिट्टी के दीपकों में गाय का घी डालकर रुई की बत्ती जलाए। ‘लक्ष्मी जी’ को दीप-दान करें और ‘मां कामाक्षा’ का ध्यान कर उक्त प्रार्थना करे। मन्त्र का १०८ बार जप करे। ‘दीपक’ सारी रात जलाए रखे और स्वयं भी जागता रहे। नींद आने लगे, तो मन्त्र का जप करे। प्रातःकाल दीपों के बुझ जाने के बाद उन्हें नए वस्त्र में बाँधकर ‘तिजोरी’ या ‘बक्से’ में रखे। इससे श्रीलक्ष्मीजी का उसमें वास हो जाएगा और धन-प्राप्ति होगी। प्रतिदिन सन्ध्या समय दीप जलाए और पाँच बार उक्त मन्त्र का जप करे।

बैरि-नाशक हनुमान ग्यारहवाँ

बैरि-नाशक हनुमान ग्यारहवाँ
विधिः- दूसरे से माँगे हुए मकान में, रक्षा-विधान, कलश-स्थापन, गणपत्यादि लोकपालों का पूजन कर हनुमान जी की प्रतिमा-प्रतिष्ठा करे। नित्य ११ या १२१ पाठ, ११ दिन तक करे। ‘प्रयोग’ भौमवार से प्रारम्भ करे। ‘प्रयोग’-कर्त्ता रक्त-वस्त्र धारण करे और किसी के साथ अन्न-जल न ग्रगण करे।

अञ्जनी-तनय बल-वीर रन-बाँकुरे, करत हुँ अर्ज दोऊ हाथ जोरी,
शत्रु-दल सजि के चढ़े चहूँ ओर ते, तका इन पातकी न इज्जत मेरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, लेहु तेहि झपट मत करहु देरी,
मातु की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, अञ्जनी-सुवन मैं सरन तोरी।।१

पवन के पूत अवधूत रघु-नाथ प्रिय, सुनौ यह अर्ज महाराज मेरी,
अहै जो मुद्दई मोर संसार में, करहु अङ्ग-हीन तेहि डारौ पेरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, करहु तेहि चूर लंगूर फेरी,
पिता की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, पवन के सुवन मैं सरन तोरी।।२

राम के दूत अकूत बल की शपथ, कहत हूँ टेरि नहि करत चोरी,
और कोई सुभट नहीं प्रगट तिहूँ लोक में, सकै जो नाथ सौं बैन जोरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, लेहु तेहि पकरि धरि शीश तोरी,
इष्ट की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, राम का दूत मैं सरन तोरी।।३

केसरी-नन्द सब अङ्ग वज्र सों, जेहि लाल मुख रंग तन तेज-कारी,
कपीस वर केस हैं विकट अति भेष हैं, दण्ड दौ चण्ड-मन ब्रह्मचारी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, करहू तेहि गर्द दल मर्द डारी,
केसरी की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।४

लीयो है आनि जब जन्म लियो यहि जग में, हर्यो है त्रास सुर-संत केरी,
मारि कै दनुज-कुल दहन कियो हेरि कै, दल्यो ज्यों सह गज-मस्त घेरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, हनौ तेहि हुमकि मति करहु देरी,
तेरी ही आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।५

नाम हनुमान जेहि जानैं जहान सब, कूदि कै सिन्धु गढ़ लङ्क घेरी,
गहन उजारी सब रिपुन-मद मथन करी, जार्यो है नगर नहिं कियो देरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, लेहु तेही खाय फल सरिस हेरी,
तेरे ही जोर की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।६

गयो है पैठ पाताल महि, फारि कै मारि कै असुर-दल कियो ढेरी,
पकरि अहि-रावनहि अङ्ग सब तोरि कै, राम अरु लखन की काटि बेरी,
करत जो चगुलई मोर दरबार में, करहु तेहि निरधन धन लेहु फेरी,
इष्ट की आनि तोहि, सुनहु प्रभु कान से, वीर हनुमान मैं सरन तेरी।।७

लगी है शक्ति अन्त उर घोर अति, परेऊ महि मुर्छित भई पीर ढेरी,
चल्यो है गरजि कै धर्यो है द्रोण-गिरि, लीयो उखारि नहीं लगी देरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, पटकौं तेहि अवनि लांगुर फेरी,
लखन की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।८

हन्यो है हुमकि हनुमान काल-नेमि को, हर्यो है अप्सरा आप तेरी,
लियो है अविधि छिनही में पवन-सुत, कर्यो कपि रीछ जै जैत टैरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, हनो तेहि गदा हठी बज्र फेरी,
सहस्त्र फन की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।९

केसरी-किशोर स-रोर बरजोर अति, सौहै कर गदा अति प्रबल तेरी,
जाके सुने हाँक डर खात सब लोक-पति, छूटी समाधि त्रिपुरारी केरी,
करत जो चुगलई मोर दरबार में, देहु तेहि कचरि धरि के दरेरी,
केसरी की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।१०

लीयो हर सिया-दुख दियो है प्रभुहिं सुख, आई करवास मम हृदै बसेहितु,
ज्ञान की वृद्धि करु, वाक्य यह सिद्ध करु, पैज करु पूरा कपीन्द्र मोरी,
करत जो चुगलई मोर देरबार में, हनहु तेहि दौरि मत करौ देरी,
सिया-राम की आनि तोहि, सुनौ प्रभु कान दे, वीर हनुमान मैं सरन तोरी।।११

ई ग्यारहो कवित्त के पुर के होत ही प्रकट भए,
आए कल्याणकारी दियो है राम की भक्ति-वरदान मोहीं।
भयो मन मोद-आनन्द भारी और जो चाहै तेहि सो माँग ले,
देऊँ अब तुरन्त नहि करौं देरी,
जवन तू चहेगा, तवन ही होएगा, यह बात सत्य तुम मान मेरी।।१२

ई ग्यारहाँ जो कहेगा तुरत फल लहैगा, होगा ज्ञान-विज्ञान जारी,
जगत जस कहेगा सकल सुख को लहैगा, बढ़ैगी वंश की वृद्धि भारी,
शत्रु जो बढ़ैगा आपु ही लड़ि मरैगा, होयगी अंग से पीर न्यारी,
पाप नहिं रहैगा, रोग सब ढहैगा, दास भगवान अस कहत टेरी।।१३

यह मन्त्र उच्चारैगा, तेज तब बढ़ैगा, धरै जो ध्यान कपि-रुप आनि,
एकादश रोज नर पढ़ै मन पोढ़ करि, करै नहिं पर-हस्त अन्न-पानी।
भौम के वार को लाल-पट धारि कै, करै भुईं सेज मन व्रत ठानी,
शत्रु का नाश तब हो, तत्कालहि, दास भगवान की यह सत्य-बानी।।१४

इच्छित कार्य में सफलता-दायक शाबर मन्त्र

इच्छित कार्य में सफलता-दायक शाबर मन्त्र

“ॐ कामरू, कामाक्षा देवी, जहाँ बसे लक्ष्मी महारानी। आवे, घर में जमकर बैठे। सिद्ध होय, मेरा काज सुधारे। जो चाहूँ, सो 

होय। ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं फट्।”


विधि- उक्त मन्त्र का जप रात्रि-काल में करें। ग्यारह दिनों के जप के पश्चात् ११ नारियलों का हवन करे। इच्छित कार्य में 

सफलता मिलती है।