रविवार, 21 जून 2015

विपरीत प्रत्यंगिया प्रयोग

विपरीत प्रत्यंगिया का एक प्रयोग

स्त्रोत मंत्र :

ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं कुं कुं कुं मां सां खां चां लां क्षां रक्षांम करु ।।

ऊं ह्रीं ह्रीं ऊं स: हूं ऊं क्षौं वां लां मां धां सां रक्षांम कुरू ।।

ऊं ऊं ह्रीं वां धां मां सां रक्षांम करू

ऊं ऊं प्लूं रक्षांम कुरू ।।

ऊं नमो विपरीत प्रत्यंगिरे विद्यारागिनी त्रैलोकवश्यंकरि तुष्टि पुष्टि 

करि सर्व पीडा पहारिणी सर्व पापनाशिनी सर्व मंगलमांग्लये शिवे सर्वार्थ 

साधनी मोदिनी सर्व शास्त्राणं भेदीनि क्षोभिणी च । पर मंत्र तंत्र यंत्र विष 

चूर्ण सर्व प्रयोगादीन अन्येषां निर्वर्तयित्वा यत्कृतम तन्मेंअस्तु 

कलिपातिनी सर्वहिंसा मा कार्यति अनुमोदयति मनसा वाचा कर्मणा हे 

देवासुर राक्षसास्तिर्यग्योनि सर्वहिंसका विरूपकं कुर्वन्ति मम मंत्र तंत्र 

यंत्र विष चूर्ण सर्व प्रयोगादीनात्म हस्तेन य: करोति करिष्यति 

कारयिष्यति तान् सर्वानन्येषां निर्वर्तयित्वा पात: कारय मस्तके स्वाहा ।

किसी अन्जान बिमारी में , किसी अन्जान क्रिया करतब में , किसी 

अन्जान शत्रु से बचाव करने की स्थिति में इस स्त्रोत पाठ का कर्मठ 

करने से मैने लोगों को लाभ दिलाया है ।

वस्तु : लोहवान 50 ग्राम , कर्पूर 100ग्राम , गाय का दुध 50 ग्राम , एक 

मिट्टी का पात्र हवन करने लायक

विधी : मिट्टी के पात्र में लोहवान को कर्पुर डाल के जला दे । जब लौ तीव्र 

हो जाय । तब रोगी व्यक्ति के सर की तरफ से पांच बार परिक्रमा करके 

उतारे हुए गाय के दुध का छींटा लौ के उपर उपरोक्त स्त्रोत को पढ के मारें

दिन : मंगलवार

समय: रात्रि 9 बजे के बाद

स्थान : खुला आसमान कहीं भी

संख्या: 51 बार

सफलता : तीन मंगलवार में

मकान कीलन विधि

ऊं हूँ स्फारय स्फारय मारय मारय शत्रुवर्गान नाशय नाशय स्वाहा ।
उपरोक्त मंत्र को दस हजार जप करके ।
घर के अंदर के चारों कोने की मिट्टी अपने अभिभावक के एक बलिस्त नीचे की मिट्टी की वेदी बना कर उस पर 
बैर की लकडी में काला नमक,पीली सरसों , काली मिर्च , ताल मखाना , सरसो का तेल मिश्रित हवन करके । 
पुनः हवन की हुई भस्म के साथ एक बलिस्त ( बित्ता ) पलाश की लकडी चारो किनारो के गड्ढे में पुनः रख दें ।
इससे मकान का कीलन होता है मकान में मौजूद आत्माये भाग खडी होती हैं । तथा कीलन करने के पश्चात 
कोई भी आत्मा घर में प्रवेश नहीं कर सकती
दक्षिण पश्चिम के कोने को 24 घंटे के बाद कीलें जिससे की घर में मौजूद आत्मायें बाहर निकल जायें

ये प्रत्यंगिरा का मकान कीलन विधि है

जोग अर्थात योग

                                          प्रस्तुत है ।  जोग

                                श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी से ये वाणी ।

                          सुहि महला 1 घरु 7 । 1 ओन्कार सतगुर प्रसादी ।

जोग न खिंथा जोग न डंडे जोग न भस्म चढ़ाइए । जोग न मुंदी मूंड मुंडाइऐ जोग न सिंगी वाइए ।
अंजन माहि निरंजन रहिए जोग जुगत इव पाइए । गलीं जोग न होई ।
एक दृष्टी कर समसरि जाणे जोगी कहिये सोई । जोग न बाहर मणि मसानि जोग न ताड़ी लाइये ।
जोग न देस दिसंतरी भविये जोग न तीरथ नाइये । अंजन माहि निरंजन रहिए जोग जुगत इव पाइए ।
सतगुरु भेटे ता सहसा तूटे धावतु वरज़ि रहाइये । निझरू झरेई सहज धुनी लागे घर ही परचा पाइये ।
अंजन माहि निरंजन रहिए जोग जुगत इव पाइए । नानक जीवतिआ मरि रहिये ऐसा जोग कमाइये ।
वाजे बाझहु सिंगी वाजे तौ निरभौऊ पद पाइये । अंजन माहि निरंजन रहिए जोग जुगत इव पाइए ।
नानक जीवतिया मरि रहिये ऐसा जोगु कमाइये ।।