मंगलवार, 30 जनवरी 2018

ज्ञान की बात जो सत्य किन्तु कठोर है पर ग्रंथो में नहीं संतो के पास से ही मिलेगी

ज्ञान की बात जो सत्य किन्तु कठोर है पर ग्रंथो में नहीं संतो के पास से ही मिलेगी  


1.  किस्मत या भाग्य जिसको की कर्म भी कहा जाता है  प्रारब्ध भी कहते है को बनाने  वाला हमारा निज कृत कर्म  नहीं है  किस्मत या प्रारब्ध का निर्माण हमारी चाहना , तीव्र इच्छा, चाह , वासना  से ही होता है न की कर्म से |  हमारे जन्म लेने का कारन भी हमारी  विषयो के प्रति वासना,   हमारी चाहना , तीव्र इच्छा या चाह  ही है न कि कोई किया गया कर्म | उदहारण देखिये 
भगवन राम जब जनकपुर सीता स्वम्बर में गए थे और वहाँ जब वो गलियों में से जा रहे थे तो वहां की स्त्रियाँ उन्हें देख कर उनके सूंदर रूप पर मोहित होकर उन्हें पति रूप में पाने की चाह करने लगी और उनकी तीव्र चाह के कारन ही अगले जन्म में भगवन कृष्ण जी की 16108 स्त्रियाँ बनी | उनके दूसरे जन्म का कारन केवल उनकी तीव्र इच्छा ही थी  

2. दूसरा हमें जो  भी फल मिल रहा है जो कुछ भी मिल रहा है  उसका दाता कोई पूर्व का किया गया (पूर्व जन्म का ) कर्म नहीं है केवल हमारी मान्यता ही फल का दाता है | हमारी अपनी धारणा ही फल की देने वाली है  जैसे किसी ने किसी चौराहे पर गाय को खाने के लिए गुड़ रख दिया और धुप में वह गुड़ पिघल गया और चींटिया उस गुड़ को खाने के लिए गयी और उस पर चींटिया चिपक गयी |  वैसे तो जो भी वो सभी दृश्य देखेगा वो कहेगा की गुड़ रखने वाले को पाप लगेगा पर उसे पुण्य ही लगेगा | क्यों?

क्योंकि उसने गाय को खाने के लिए  गुड़ का दान किया उसके मन में दान की भावना है और उसने ये सोचा की मैंने एक अच्छा काम किया |  उसका ये सोचना " मैंने अच्छा काम किया है " ने ही उसे पुण्य का अधिकारी बना दिया |  नहीं तो उसके रखे गुड़ से चीटिंया चिपक कर मर गयी थी  देखने पर कर्म पापमय लग रहा था 

अतः उपरोक्त से ये समझे की स्थूल कर्म का कोई ज्यादा महत्त्व नहीं महत्त्व इच्छा और मान्यता का है सूक्ष्म विचारो का है 

रविवार, 31 दिसंबर 2017

विवाहिता स्त्री को गुरू करना चाहिये या नहीं ?

चिन्तन -  विवाहिता स्त्री को गुरू करना चाहिये या नहीं ?
आइए इसके बारे में हमारे शास्त्र क्या कहते हैं
जरा वह देखें ।
1-गुरूग्निद्विर्जातिनां वर्णाणां ब्रह्मणो गुरूः।
*पतिरेकोगुरू स्त्रीणां सर्वस्याम्यगतो गुरूः।।
(पदम पुं . स्वर्ग खं 40-75)
अर्थ : अग्नि ब्राह्मणो का गुरू है।
अन्य वर्णो का ब्राह्मण गुरू है।
एक मात्र उनका पति ही स्त्रीयों का गुरू है
तथा अतिथि सब का गुरू है।
2-पतिर्बन्धु गतिर्भर्ता दैवतं गुरूरेव च।
सर्वस्याच्च परः स्वामी न गुरू स्वामीनः परः।।
(ब्रह्मवैवतं पु. कृष्ण जन्म खं 57-11)
अर्थ _ स्त्रीयों का सच्चा बन्धु पति है, पति ही उसकी गति है। पति ही उसका एक मात्र देवता है। पति ही उसका स्वामी है और स्वामी से ऊपर उसका कोई गुरू नहीं।।
3- भर्ता देवो गुरूर्भता धर्मतीर्थव्रतानी च।
तस्मात सर्वं परित्यज्य पतिमेकं समर्चयेत्।।
(स्कन्द पु. काशी खण्ड पूर्व 30-48)
अर्थ - स्त्रीयों के लिए पति ही इष्ट देवता है। पति ही गुरू है। पति ही धर्म है, तीर्थ और व्रत आदि है। स्त्री को पृथक कुछ करना अपेक्षित नहीं है।
4- _दुःशीलो दुर्भगो वृध्दो जड़ो रोग्यधनोSपि वा।
पतिः स्त्रीभिर्न हातव्यो लोकेप्सुभिरपातकी।।
(श्रीमद् भा. 10-29-25)
अर्थ -पतिव्रता स्त्री को पति के अलावा और किसी को पूजना नहीं चाहिए, चाहे पति बुरे स्वभाव वाला हो, भाग्यहीन, वृध्द, मुर्ख, रोगी या निर्धन हो। पर वह पातकी न होना चाहिए।
वेदों, पुराणों, भागवत आदि शास्त्रो ने स्त्री को बाहर का गुरू न करने के लिए कहा यह शास्त्रों के उपरोक्त श्लोकों से ज्ञात होता है।
आज हर स्त्री बाहर के गुरूओं के पीछे पागलों की तरह पड जाती हैं तथा उनके पीछे अपने पति की कड़े परिश्रम की कमाई लुटाती फिरती हैं।
आज सत्संग-आध्यात्मिक ज्ञान की जगह न होकर व्यापारिक स्थल बन गया है।
इसलिए सावधान हो जाइये.
गुरू करने से पहले देख लो कि वह गुरू जिन शास्त्रों का सहारा लेकर हमें ज्ञान दे रहा है, वह स्वयं उस पर कितना चल रहा है?
हिन्दू धर्म में पति के रहते किसी को गुरु बनाने की इजाजत नहीं है।
आप कोई भी समागम देख लो,
औरतो ने ही भीड़ लगाई हुई है।
परिवार जाए भाड़ में।
बाबा की सेवा करके मोक्ष प्राप्त करना है बस..!!
सुभाष चंद मिश्रा 9971485458, 7838157738 

|| श्री बगलामुखी साधना -सम्पूर्ण ||

श्रीबगलाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्
।। श्रीनारद उवाच ।।
भगवन्, देव-देवेश ! सृष्टि-स्थिति-लयात्मकम् ।
शतमष्टोत्तरं नाम्नां, बगलाया वदाधुना ।।
।। श्रीभगवानुवाच ।।
श्रृणु वत्स ! प्रवक्ष्यामि, नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ।
पीताम्बर्या महा-देव्याः, स्तोत्रं पाप-प्रणाशनम् ।।
यस्य प्रपठनात् सद्यो, वादी मूको भवेत् क्षणात् ।
रिपूणां स्तम्भनं गाति, सत्यं सत्यं चदाम्यहम् ।।
विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीपीताम्बरायाः शतमष्टोत्तरं नाम्नां स्तोत्रस्य, श्रीसदा-शिव ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीपीताम्बरा देवता, श्रीपीताम्बरा प्रीतये जपे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यासः-
श्रीसदा-शिव ऋषये नमः शिरसि,
अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे,
श्रीपीताम्बरा देवतायै नमः हृदि,
श्रीपीताम्बरा प्रीतये जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
।।अष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्र ।।
ॐ बगला विष्णु-वनिता, विष्णु-शंकर-भामिनी ।
बहुला वेद-माता च, महा-विष्णु-प्रसूरपि ।।1।।
महा-मत्स्या महा-कूर्मा, महा-वाराह-रूपिणी ।
नरसिंह-प्रिया रम्या, वामना वटु-रूपिणी ।।2।।
जामदग्न्य-स्वरूपा च, रामा राम-प्रपूजिता ।
कृष्णा कपर्दिनी कृत्या, कलहा कल-कारिणी ।।3।।
बुद्धि-रूपा बुद्ध-भार्या, बौद्ध-पाखण्ड-खण्डिनी ।
कल्कि-रूपा कलि-हरा, कलि-दुर्गति-नाशिनी ।।4।।
कोटि-सूर्य-प्रतिकाशा, कोटि-कन्दर्प-मोहिनी ।
केवला कठिना काली, कला कैवल्य-दायिनी ।।5।।
केशवी केशवाराध्या, किशोरी केशव-स्तुता ।
रूद्र-रूपा रूद्र-मूर्ति, रूद्राणी रूद्र-देवता ।।6।।
नक्षत्र-रूपा नक्षत्रा, नक्षत्रेश-प्रपूजिता ।
नक्षत्रेश-प्रिया नित्या, नक्षत्र-पति-वन्दिता ।।7।।
नागिनी नाग-जननि, नाग-राज-प्रवन्दिता ।
नागेश्वरी नाग-कन्या, नागरी च नगात्मजा ।।8।।
नगाधिराज-तनया, नग-राज-प्रपूजिता ।
नवीन नीरदा पीता, श्यामा सौन्दर्य-कारिणी ।।9।।
रक्ता नीला घना शुभ्रा, श्वेता सौभाग्य-दायिनी ।
सुन्दरी सौभगा सौम्या, स्वर्णभा स्वर्गति-प्रदा ।।10।।
रिपु-त्रास-करी रेखा, शत्रु-संहार-कारिणी ।
भामिनी च तथा माया, स्तम्भिनी मोहिनी शुभा।।11।।
राग-द्वेष-करी रात्रि, रौरव-ध्वसं-कारिणी ।
यक्षिणी सिद्ध-निवहा सिद्धेशा सिद्धि-रूपिणी ।।12।।
लंका-पति-ध्वसं-करी, लंकेश-रिपु-वन्दिता ।
लंका-नाथ – कुल-हरा, महा-रावण-हारिणी ।।13।।
देव-दानव-सिद्धौघ-पूजिता परमेश्वरी ।
पराणु-रूपा परमा, पर-तन्त्र-विनाशिनी ।।14।।
वरदा वरदाऽऽराध्या, वर-दान-परायणा ।
वर-देश-प्रिया वीरा, वीर-भूषण-भूषिता ।।15।।
वसुदा बहुदा वाणी, ब्रह्म-रूपा वरानना ।
बलदा पीत-वसना, पीत-भूषण-भूषिता ।।16।।
पीत-पुष्प-प्रिया पीत-हारा पीत-स्वरूपिणी ।
शुभं ते कथितं विप्र ! नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ।।17।।
।।फल-श्रुति।।
यः पठेद् पाठयेद् वापि, श्रृणुयाद् ना समाहितः ।
तस्य शत्रुः क्षयं सद्यो, याति वै नात्र संशयः ।।
प्रभात-काले प्रयतो मनुष्यः, पठेत् सु-भक्त्या परिचिन्त्य पीताम् ।
द्रुतं भवेत् तस्य समस्त-वृद्धिर्विनाशमायाति च तस्य शत्रुः ।।
।। श्रीविष्णु-यामले श्रीनारद-विष्णु-सम्वादे। श्रीबगलाऽष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्रं ।।
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ब्रह्मास्त्र उपसंहार विद्या
यदि शत्रु भी बगला ब्रह्मास्त्र का ज्ञाता है, परप्रयोग भारी है तो यह कालरात्रि का मंत्र शीघ्र काम करता है, कृत्या व शत्रु शक्ति को सम्मोहित कर निष्प्राण कर शिथिल कर देता है ।
मंत्रः- ग्लौं हूं ऐं ह्रीं ह्रीं श्रीं कालि कालि महाकालि एहि एहि कालरात्रि आवेशय आवेशय महामोहे महामोहे स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर स्तंभनास्त्र शमनि हुं फट् स्वाहा ।
बगलामुखी मंत्र प्रयोग
बगलामुखी एकाक्षरी मंत्र –
|| ह्लीं ||
इसे स्थिर माया कहते हैं । यह मंत्र दक्षिण आम्नाय का है । दक्षिणाम्नाय में बगलामुखी के दो भुजायें हैं ।
अन्य बीज “ह्रीं” का उल्लेख भी बगलामुखी के मंत्रों में आता है, इसे “भुवन-माया” भी कहते हैं । चतुर्भुज रुप में यह विद्या विपरीत गायत्री (ब्रह्मास्त्र विद्या) बन जाती है ।
ह्रीं बीज-युक्त अथवा चतुर्भुज ध्यान में बगलामुखी उत्तराम्नाय या उर्ध्वाम्नायात्मिका होती है । ह्ल्रीं बीज का उल्लेख ३६ अक्षर मंत्र में होता है ।
(सांख्यायन तन्त्र)
विनियोगः-
ॐ अस्य एकाक्षरी बगला मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, बगलामुखी देवता, लं बीजं, ह्रीं शक्तिः ईं कीलकं, सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः-
ब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि,
गायत्री छन्दसे नमः मुखे,
बगलामुखी देवतायै नमः हृदि,
लं बीजाय नमः गुह्ये,
ह्रीं शक्तये नमः पादयो,
ईं कीलकाय नमः नाभौ,
सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास कर-न्यासअंग-न्यास ।।
ह्लांअंगुष्ठाभ्यां नमःहृदयाय नमः
ह्लींतर्जनीभ्यां नमःशिरसे स्वाहा
ह्लूंमध्यमाभ्यां नमःशिखायै वषट्
ह्लैंअनामिकाभ्यां नमःकवचाय हुं
ह्लौंकनिष्ठिकाभ्यां नमःनेत्र-त्रयाय वौषट्
ह्लःकरतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमःअस्त्राय फट्
ध्यानः- हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -
वादीभूकति रंकति क्षिति-पतिः वैश्वानरः शीतति,
क्रोधी शान्तति दुर्जनः सुजनति क्षिप्रानुगः खञ्जति ।
गर्वी खर्वति सर्व-विच्च जड़ति त्वद्यन्त्रणा यन्त्रितः,
श्रीनित्ये ! बगलामुखि ! प्रतिदिनं कल्याणि ! तुभ्यं नमः ।।
एक लाख जप कर, पीत-पुष्पों से हवन करे, गुड़ोदक से दशांश तर्पण करे ।
विशेषः- “श्रीबगलामुखी-रहस्यं” में शक्ति ‘हूं’ बतलाई गई है तथा ध्यान में पाठन्तर है – ‘शान्तति’ के स्थान पर ‘शाम्यति’ ।
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बगलामुखी त्र्यक्षर मंत्र -
|| ॐ ह्लीं ॐ ||
बगलामुखी चतुरक्षर मन्त्र -
|| ॐ आं ह्लीं क्रों ||
(सांख्यायन तन्त्र)
विनियोगः- ॐ अस्य चतुरक्षर बगला मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, बगलामुखी देवता, ह्लीं बीजं, आं शक्तिः क्रों कीलकं, सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः- ब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि,
गायत्री छन्दसे नमः मुखे,
बगलामुखी देवतायै नमः हृदि,
ह्लीं    बीजाय नमः गुह्ये,
आं   शक्तये नमः पादयो,
क्रों   कीलकाय नमः नाभौ,
सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास कर-न्यासअंग-न्यास
ॐ ह्लां  अंगुष्ठाभ्यां नमः ।।         हृदयाय नमः
ॐ ह्लीं   तर्जनीभ्यां नमःशिरसे स्वाहा
ॐ ह्लूं    मध्यमाभ्यां नमःशिखायै वषट्
ॐ ह्लैं   अनामिकाभ्यां नमःकवचाय हुं
ॐ ह्लौं     कनिष्ठिकाभ्यां नमःनेत्र-त्रयाय वौषट्
ॐ ह्लः   करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमःअस्त्राय फट्
ध्यानः- हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -
कुटिलालक-संयुक्तां मदाघूर्णित-लोचनां, ।।
मदिरामोद-वदनां प्रवाल-सदृशाधराम् ।
सुवर्ण-कलश-प्रख्य-कठिन-स्तन-मण्डलां,
आवर्त्त-विलसन्नाभिं सूक्ष्म-मध्यम-संयुताम् ।
रम्भोरु-पाद-पद्मां तां पीत-वस्त्र-समावृताम् ।।
पुरश्चरण में चार लाख जप कर, मधूक-पुष्प-मिश्रित जल से दशांश तर्पण कर घृत-शर्करा-युक्त पायस से दशांश हवन ।
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बगलामुखी पञ्चाक्षर मंत्र -
|| ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट् ||
विनियोगः- ॐ अस्य पञ्चाक्षर बगला मंत्रस्य अक्षोभ्य ऋषिः, वृहती छन्दः, श्रीबगलामुखी चिन्मयी देवता, हूं बीजं, फट् शक्तिः, ह्रीं स्त्रीं कीलकं, सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः- अक्षोभ्य ऋषये नमः शिरसि,
वृहती छन्दसे नमः मुखे,
श्रीबगलामुखी चिन्मयी देवतायै नमः हृदि,
हूं   बीजाय नमः गुह्ये,
फट्  शक्तये नमः पादयो,
ह्रीं स्त्रीं  कीलकाय नमः नाभौ,
सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास कर-न्यासअंग-न्यास
ह्रां  अंगुष्ठाभ्यां नमःहृदयाय नमः
ह्रीं  तर्जनीभ्यां नमःशिरसे स्वाहा
ह्रूं  मध्यमाभ्यां नमःशिखायै वषट्
ह्रैं  अनामिकाभ्यां नमःकवचाय हुं
ह्रौं  कनिष्ठिकाभ्यां नमःनेत्र-त्रयाय वौषट्
ह्रः  करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमःअस्त्राय फट्
ध्यानः- हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -
प्रत्यालीढ-परां घोरां मुण्ड-माला-विभूषितां,
खर्वां लम्बोदरीं भीमां पीताम्बर-परिच्छदाम् ।।
नव-यौवन संपन्नां पञ्च-मुद्रा-विभूषितां,
चतुर्भुजां ललज्जिह्वां महा-भीमां वर-प्रदाम ।।
खड्ग-कर्त्री-समायुक्तां सव्येतर-भुज-द्वयां,
कपालोत्पल-संयुक्तां सव्यपाणि युगान्विताम् ।।
पिंगोग्रैक सुखासीनं मौलावक्षोभ्य-भूषितां,
प्रज्वलत्-पितृ-भू-मध्य-गतां दंष्ट्रा-करालिनीम् ।।
तां खेचरां स्मेर-वदनां भस्मालंकार-भूषितां,
विश्व-व्यापक-तोयान्ते पीत-पद्मोपरि-स्थिताम् ।।
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त्रि-चत्वारिंशदक्षर मंत्र
बगलामुखी त्रि-चत्वारिंशदक्षर मंत्र -
|| ह्लीं हूं ग्लौं बगलामुखि वाचं मुखं पदं ग्रस ग्रस खाहि खाहि भक्ष भक्ष शोणितं पिब पिब बगलामुखि ह्लीं ग्लौं हुं फट् || (सांख्यायन-तंत्र)
इस मंत्र में अमुक का उल्लेख नहीं है, अतः ‘श्रीबगला-कल्प-तरु’ का नीचे दिया गया मंत्र जपना श्रेयष्कर है ।
बगलामुखी पञ्च-चत्वारिंशदक्षर मंत्र -
|| ह्लीं हूं ग्लौं बगलामुखि मम शत्रून् वाचं मुखं ग्रस ग्रस खाहि खाहि भक्ष भक्ष शोणितं पिब पिब बगलामुखि ह्लीं ग्लौं हुं फट् || (श्रीबगला-कल्प-तरु)
बगलामुखी सप्त-चत्वारिंशदक्षर मंत्र -
|| ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीबगलामुखि मम रिपून् नाशय नाशय ममैश्वर्याणि देहि देहि शीघ्रं मनोवाञ्छितं कार्यं साधय साधय ह्रीं स्वाहा ||
इसके प्रयोग अमोघ हैं । इससे प्रेतादिक उपद्रव दूर होते हैं, बंद होने वाले व्यापार पुनः चालू व स्थिर वृद्धि प्राप्त करते हैं । शत्रु-नाश व अर्थ-प्राप्ति दोनों ही फल हैं ।
दुर्गा-सप्तशती के सम्पुट पाठ से अधिक फल प्राप्ति होती है । विशेष बाधा में शत-चण्डी प्रयोग करना चाहिये ।
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीबगलामुखी मंत्रस्य भैरव ऋषिः, विराट् छन्दः, श्रीबगलामुखी देवता, क्लीं बीजं, सौः शक्तिः, ऐं कीलकं अमुक रोग शांति, अभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः- भैरव ऋषये नमः शिरसि, विराट् छन्दसे नमः मुखे, श्रीबगलामुखी देवतायै नमः हृदि, क्लीं बीजाय नमः गुह्ये, सौः शक्तये नमः पादयो, ऐं कीलकाय नमः नाभौ अमुक रोग शांति, अभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास कर-न्यासअंग-न्यास।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लींअंगुष्ठाभ्यां नमःहृदयाय नमः
श्रीबगलामुखितर्जनीभ्यां नमःशिरसे स्वाहा
मम रिपून् नाशय नाशयमध्यमाभ्यां नमःशिखायै वषट्
ममैश्वर्याणि देहि देहिअनामिकाभ्यां नमःकवचाय हुं
शीघ्रं मनोवाञ्छितंकनिष्ठिकाभ्यां नमःनेत्र-त्रयाय वौषट्
कार्यं साधय साधय ह्रीं स्वाहाकरतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमःअस्त्राय फट् ।।
ध्यानः- हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -
सौवर्णासन संस्थिता त्रिनयनां पीतांशुकोल्लासिनीम्,
हेमाभांगरुचिं शशांक मुकुटां सच्चम्पक स्रग्युताम् ।
हस्तैर्मुद्गर पाश वज्र रसनाः संबिभ्रतीं भूषणै र्व्याप्तांगीं,
बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिंतयेत् ।।
गंभीरा च मदोन्मत्तां तप्त-काञ्चन-सन्निभां,
चतुर्भुजां त्रिनयनां कमलासन संस्थिताम् ।
मुद्गरं दक्षिणे पाशं वामे जिह्वां च वज्रकं,
पीताम्बरधरां सान्द्र-वृत्त पीन-पयोधराम् ।।
हेमकुण्डलभूषां च पीत चन्द्रार्द्ध शेखरां,
पीतभूषणभूषां च स्वर्ण-सिंहासने स्थिताम् ।।
बगलामुखी एकोन-पञ्चाशदक्षर मंत्र -
|| ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं श्रीबगलानने मम रिपून् नाशय नाशय ममैश्वर्याणि देहि देहि शीघ्रं मनोवाञ्छितं कार्यं साधय साधय ह्रीं श्रीं स्वाहा ||
उक्त तीनों मंत्र उभय एवं उर्ध्वाम्नाय के हैं ।
अतः ध्यान -
ध्यानः- हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -
सौवर्णासन संस्थिता त्रिनयनां पीतांशुकोल्लासिनीम्,
हेमाभांगरुचिं शशांक मुकुटां सच्चम्पक स्रग्युताम् ।
हस्तैर्मुद्गर पाश वज्र रसनाः संबिभ्रतीं भूषणै र्व्याप्तांगीं,
बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिंतयेत् ।।
अथवा
गंभीरा च मदोन्मत्तां तप्त-काञ्चन-सन्निभां,
चतुर्भुजां त्रिनयनां कमलासन संस्थिताम् ।
मुद्गरं दक्षिणे पाशं वामे जिह्वां च वज्रकं,
पीताम्बरधरां सान्द्र-वृत्त पीन-पयोधराम् ।।
हेमकुण्डलभूषां च पीत चन्द्रार्द्ध शेखरां,
पीतभूषणभूषां च स्वर्ण-सिंहासने स्थिताम् ।।
अथवा
वन्दे स्वर्णाभवर्णा मणिगण विलसद्धेम सिंहासनस्थां,
पीतं वासो वसानां वसुपद मुकुटोत्तंस हारांगदाढ्याम् ।
पाणिभ्यां वैरिजिह्वामध उपरिगदां विभ्रतीं तत्पराभ्यां,
हस्ताभ्यां पाशमुच्चैरध उदितवरां वेदबाहुं भवानीम् ।।
बगलामुखी पञ्च-पञ्चाशदक्षर मंत्र -
|| ॐ ह्लीं हूं ग्लौं वगलामुखि ह्लां ह्लीं ह्लूं सर्व-दुष्टानां ह्लैं ह्लौं ह्लः वाचं मुखं पदं स्तम्भय ह्लः ह्लौं ह्लैं जिह्वां कीलय ह्लूं ह्लीं ह्लां बुद्धिं विनाशय ग्लौं हूं ह्लीं हुं फट् ||
‘सांख्यायन तंत्र’ । ‘श्रीबगला-कल्प-तरु’ में श्रीवगला के प्रथमास्त्र (वडवा-मुखी) रुप में यह मंत्र प्रकाशित है ।
बगलामुखी अष्ट-पञ्चाशदक्षर मंत्र – (उल्कामुख्यास्त्र)
|| ॐ ह्लीं ग्लौं वगलामुखि ॐ ह्लीं ग्लौं सर्व-दुष्टानां ॐ ह्लीं ग्लौं वाचं मुखं पदं ॐ ह्लीं ग्लौं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं ग्लौं जिह्वां कीलय ॐ ह्लीं ग्लौं बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ ग्लौं ह्लीं ॐ स्वाहा ||
‘सांख्यायन तंत्र’ । ‘श्रीबगला-कल्प-तरु’ में श्रीवगला के द्वितीयास्त्र (उल्का-मुखी) रुप में यह मंत्र प्रकाशित है ।
बगलामुखि एकोन-षष्ट्यक्षर उपसंहार विद्या -
|| ग्लौं हूम ऐं ह्रीं ह्रीं श्रीं कालि कालि महा-कालि एहि एहि काल-रात्रि आवेशय आवेशय महा-मोहे महा-मोहे स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर स्तम्भनास्त्र-शमनि हुं फट् स्वाहा ||
बगलामुखी षष्ट्यक्षर जात-वेद मुख्यस्त्र -
|| ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ वगलामुखि सर्व-दुष्टानां ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ वाचं मुखं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ जिह्वां कीलय ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ बुद्धिं नाशय नाशय ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ स्वाहा ||
बगलामुखी अशीत्यक्षर हृदय मंत्र -
|| आं ह्लीं क्रों ग्लौं हूं ऐं क्लीं श्रीं ह्रीं वगलामुखि आवेशय आवेशय आं ह्लीं क्रों ब्रह्मास्त्ररुपिणि एहि एहि आं ह्लीं क्रों मम हृदये आवाहय आवाहय सान्निध्यं कुरु कुरु आं ह्लीं क्रों ममैव हृदये चिरं तिष्ठ तिष्ठ आं ह्लीं क्रों हुं फट् स्वाहा ||
बगलामुखी शताक्षर मंत्र -
|| ह्लीं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ग्लौं ह्लीं वगलामुखि स्फुर स्फुर सर्व-दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय प्रस्फुर प्रस्फुर विकटांगि घोररुपि जिह्वां कीलय महाभ्मरि बुद्धिं नाशय विराण्मयि सर्व-प्रज्ञा-मयी प्रज्ञां नाशय, उन्मादं कुरु कुरु, मनो-पहारिणि ह्लीं ग्लौं श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं ह्लीं स्वाहा ||
बगलामुखी षडुत्तर-शताक्षर वृहद्भानु-मुख्यस्त्र -
|| ॐ ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ॐ वगलामुखि १४ सर्व-दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय १४ जिह्वां कीलय १४ बुद्धिं नाशय १४ ॐ स्वाहा ||
बगलामुखी विंशोत्तर-शताक्षर ज्वालामुख्यस्त्र -
|| ॐ ह्लीं रां रीं रुं रैं रौं प्रस्फुर प्रस्फुर ज्वाला-मुखि १३ सर्व-दुष्टानां १३ वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय १३ जिह्वां कीलय कीलय १३ बुद्धिं नाशय नाशय १३ स्वाहा ||
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सप्तमाक्षर मंत्र
बगलामुखी सप्तमाक्षर मंत्र -
|| ह्रीं बगलायै स्वाहा ||
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बगलामुखी अष्टाक्षर मंत्र -
१॰ || ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट् || 
विनियोगः- ॐ अस्य एकाक्षरी बगला मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, बगलामुखी देवता, ॐ बीजं, ह्रीं शक्तिः क्रों कीलकं, सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः- ब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि,
गायत्री छन्दसे नमः मुखे,
बगलामुखी देवतायै नमः हृदि,
ॐ बीजाय नमः गुह्ये,
ह्रीं शक्तये नमः पादयो,
क्रों कीलकाय नमः नाभौ,
सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास कर-न्यासअंग-न्यास ।।
ॐ ह्लांअंगुष्ठाभ्यां नमःहृदयाय नमः
ॐ ह्लींतर्जनीभ्यां नमःशिरसे स्वाहा
ॐ ह्लूंमध्यमाभ्यां नमःशिखायै वषट्
ॐ ह्लैंअनामिकाभ्यां नमःकवचाय हुं
ॐ ह्लौंकनिष्ठिकाभ्यां नमःनेत्र-त्रयाय वौषट्
ॐ ह्लःकरतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमःअस्त्राय फट्
ध्यानः- हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -
युवतीं च मदोन्मक्तां पीताम्बर-धरां शिवां,
पीत-भूषण-भूषांगीं सम-पीन-पयोधराम् ।
मदिरामोद-वदनां प्रवाल-सदृशाधरां,
पान-पात्रं च शुद्धिं च विभ्रतीं बगलां स्मरेत् ।।
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बगलामुखी नवाक्षर मंत्र -
२॰ || ॐ ह्रीं श्रीं आं क्रों वगला ||
|| ह्रीं क्लीं ह्रीं बगलामुखि ठः ||
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एकादशाक्षर मंत्र
बगलामुखी एकादशाक्षर मंत्र -
१॰ || ॐ ह्लीं क्लीं ह्रीं बगलामुखि ठः ठः ||
२॰ || ॐ ह्लीं क्लीं ह्रीं बगलामुखि स्वाहा ||
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बगलामुखी पञ्चादशाक्षर मंत्र -
|| ह्रीं क्लीं ऐं बगलामुख्यै गदाधारिण्यै स्वाहा ||
बगलामुखी एकोनविंशाक्षर मंत्र - (भक्त-मंदार मंत्र)
यह मंत्र वाञ्छा-कल्प-लता मंत्र है, अर्थ-प्राप्ति हेतु उत्तम मंत्र है ।
|| श्रीं ह्रीं ऐं भगवति बगले मे श्रियं देहि देहि स्वाहा ||
विशेषः- इस मंत्र के पद-विभाग करके श्रीमद-भागवत के आठवें स्कंध के आठवें अध्याय के आठवें मंत्र से संयोग कर लक्ष्मी-प्राप्ति हेतु सफल प्रयोग किये जा सकते हैं । यथा -
|| श्रीं ह्रीं ऐं भगवति बगले ततश्चाविरभुत साक्षाच्छ्री रमा भगवत्परा ।
रञ्जयन्ती दिशः कान्त्या विद्युत् सौदामिनी यथा मे श्रियं देहि देहि स्वाहा ||
इस मंत्र से पुटित शत-चण्डी प्रयोग आर्थिक रुप से आश्चर्य-जनक रुप से सफल होते हैं ।
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बगलामुखी त्रयविंशाक्षर मंत्र -
|| ॐ ह्लीं क्लीं ऐं बगलामुख्यै गदाधारिण्यै प्रेतासनाध्यासिन्यै स्वाहा ||
ॐ पीत शंख दगाहस्ते पीतचन्दन चर्चिते ।
बगले मे वरं देहि शत्रुसंघ-विदारिणि ।।
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बगलामुखी चतुस्त्रिंशदक्षर मंत्र -
|| ॐ ह्लीं क्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं स्तंभय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा ||
‘हिन्दी तंत्र-शास्त्र’ व ‘मूल-मंत्र-कोष’ में नारद ऋषिः । त्रिष्टुप् छन्दः । बगलामुखी देवता । ह्लीं बीजं । शक्तिः । कहा गया है । ‘पुरश्चर्यार्णव’ में ऋषि नारायण, छन्द पंक्ति कहा गया है ।
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विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीबगलामुखी-मन्त्रस्य नारद ऋषिः ।
त्रिष्टुप् छन्दः ।
बगलामुखी देवता ।
ह्लीं बीजं ।
स्वाहा शक्तिः ।
सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यासः-
नारद ऋषये नमः शिरसि ।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे ।
बगलामुखी देवतायै नमः हृदि ।
ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये ।
स्वाहा शक्तये नमः पादयोः ।
सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास कर-न्यासअंग-न्यास ।।
ॐ ह्लीं क्लींअंगुष्ठाभ्यां नमःहृदयाय नमः
बगलामुखितर्जनीभ्यां नमःशिरसे स्वाहा
सर्वदुष्टानांमध्यमाभ्यां नमःशिखायै वषट्
वाचं मुखं स्तंभयअनामिकाभ्यां नमःकवचाय हुं
जिह्वां कीलयकनिष्ठिकाभ्यां नमःनेत्र-त्रयाय वौषट्
बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहाकरतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमःअस्त्राय फट्
ध्यानः-
गंभीरा च मदोन्मत्तां स्वर्णकान्ती समप्रभां,
चतुर्भुजां त्रिनयनां कमलासन संस्थिताम् ।
मुद्गरं दक्षिणे पाशं वामे जिह्वां च वज्रकं,
पीताम्बरधरां देवीं दृढपीन पयोधराम् ।।
हेमकुण्डलभूषां च पीत चन्द्रार्द्ध शेखरां,
पीतभूषणभूषां च रत्नसिंहासने स्थिताम् ।।
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बगलामुखी षट् त्रिशदक्षर मंत्र -
१॰ || ॐ ह्लीं क्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं स्तंभय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धिं नाशय ह्लीं ॐ स्वाहा ||
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीबगलामुखी-मन्त्रस्य नारद ऋषिः ।
त्रिष्टुप् छन्दः ।
बगलामुखी देवता ।
ह्लीं बीजं । स्वाहा शक्तिः ।
सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यासः- नारद ऋषये नमः शिरसि ।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे ।
बगलामुखी देवतायै नमः हृदि ।
ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये ।
स्वाहा शक्तये नमः पादयोः ।
सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास कर-न्यासअंग-न्यास
ॐ ह्लीं क्लींअंगुष्ठाभ्यां नमःहृदयाय नमः
बगलामुखितर्जनीभ्यां नमःशिरसे स्वाहा
सर्वदुष्टानांमध्यमाभ्यां नमःशिखायै वषट्
वाचं मुखं स्तंभयअनामिकाभ्यां नमःकवचाय हुं ।।
।।  ॐ जिह्वां कीलय  कीलयकनिष्ठिकाभ्यां नमःनेत्र-त्रयाय वौषट्
बुद्धिं नाशय ह्लीं ॐ स्वाहाकरतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमःअस्त्राय फट् ।।
ध्यानः- हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -
मध्ये सुधाब्धि-मणि-मण्डप-रत्न-वेद्यां, सिंहासनोपरि-गतां परिपीत-वर्णाम् ।
पीताम्बराभरण-माल्य-विभूषितांगीं, देवीं स्मरामि धृत-मुद्-गर-वैरि-जिह्वाम् ।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं, वामेन शत्रून् परि-पीडयन्तीम् ।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि ।।
२॰ || ॐ ह्ल्रीं (ह्लीं) बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्ल्रीं (ह्लीं) ॐ स्वाहा ||
विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीबगलामुखी-मन्त्रस्य नारद ऋषिः ।
त्रिष्टुप् छन्दः ।
श्रीबगलामुखी देवता ।
ह्लीं बीजं । स्वाहा शक्तिः ।
ॐ कीलकं ।
ममाभीष्ट सिद्धयर्थे च शत्रूणां स्तंभनार्थे जपे विनियोगः ।
‘मंत्र-महोदधि’ में छन्द वृहती लिखा है तथा विनियोग ‘शत्रूणां स्तम्भनार्थे या ममाभीष्ट-सिद्धये’ है । ‘सांख्यायन तंत्र’ में छंद अनुष्टुप्, लं बीज, हं शक्ति तथा ईं कीलक बतलाया गया है ।
ऋष्यादिन्यासः- नारद ऋषये नमः शिरसि ।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे ।
श्रीबगलामुखी देवतायै नमः हृदि ।
ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये ।
स्वाहा शक्तये नमः पादयोः ।
ॐ कीलकाय नमः नाभौ ।
ममाभीष्ट सिद्धयर्थे च शत्रूणां स्तंभनार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास कर-न्यासअंग-न्यास
ॐ ह्ल्रीं  अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः
बगलामुखितर्जनीभ्यां नमः  शिरसे स्वाहा
सर्वदुष्टानांमध्यमाभ्यां नमः  शिखायै वषट्
वाचं मुखं पदं स्तंभयअनामिकाभ्यां नमः कवचाय हुं
जिह्वां कीलयकनिष्ठिकाभ्यां नमः  नेत्र-त्रयाय वौषट्
बुद्धिं विनाशय ह्ल्रीं ॐ   स्वाहाकरतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमःअस्त्राय फट्
ध्यानः-
हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -
मध्ये सुधाब्धि-मणि-मण्डप-रत्न-वेद्यां,
सिंहासनोपरि-गतां परिपीत-वर्णाम् ।
पीताम्बराभरण-माल्य-विभूषितांगीं, देवीं स्मरामि धृत-मुद्-गर-वैरि-जिह्वाम् ।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं, वामेन शत्रून् परि-पीडयन्तीम् ।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि ।।
उत्तराम्नाय व ऊर्ध्वाम्नाय मंत्रों के लिये ध्यान -
सौवर्णासन संस्थिता त्रिनयनां पीतांशुकोल्लासिनीम्,
हेमाभांगरुचिं शशांक मुकुटां सच्चम्पक स्रग्युताम् ।
हस्तैर्मुद्गर पाश वज्र रसनाः संबिभ्रतीं भूषणै र्व्याप्तांगीं,
बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिंतयेत् ।।
‘सांख्यायन तंत्र’ में अन्य ध्यान दिया हैं । न्यास हेतु मंत्र के जो विभाग हैं, उनमें प्रत्येक के आगे “ॐ ह्लीं” जोड़ने की विधि दी है ।
चतुर्भुजां त्रिनयनां कमलासन-संस्थिता,
त्रिशूलं पान-पात्रं च गदां जिह्वां च विभ्रतीम् ।
बिम्बोष्ठीं कम्बुकण्ठीं च सम पीन-पयोधराम्,
पीताम्बरां मदाघूर्णां ध्यायेद् ब्रह्मास्त्र-देवताम् ।।
एक लाख जप करके चम्पा के फूल से व बिल्व-कुसुमों से दशांश हवन करें ।
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३॰ || ॐ ह्रीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा || (पुरश्चर्यार्णव)
यह मंत्र उभयाम्नाय उत्तर व ऊर्ध्वाम्नाय है । अतः उक्त दोनों ध्यान करें । ‘मेरु तंत्र’ के अनुसार इसके नारायण ऋषि, त्रिष्टुप् छन्द, बगलामुखी देवता, ह्रीं बीज तथा स्वाहा शक्ति है ।
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीबगलामुखी-मन्त्रस्य नारायण ऋषिः ।
त्रिष्टुप् छन्दः ।
श्रीबगलामुखी देवता ।
ह्रीं बीजं । स्वाहा शक्तिः ।
पुरुषार्थ-चतुष्टये सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यासः- नारायण ऋषये नमः शिरसि ।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे ।
श्रीबगलामुखी देवतायै नमः हृदि ।
ह्रीं  बीजाय नमः गुह्ये ।
स्वाहा शक्तये नमः पादयो ।
पुरुषार्थ-चतुष्टये सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास कर-न्यासअंग-न्यास ।।
ॐ ह्रीं  अंगुष्ठाभ्यां नमःहृदयाय नमः
बगलामुखितर्जनीभ्यां नमःशिरसे स्वाहा
सर्वदुष्टानांमध्यमाभ्यां नमःशिखायै वषट्
वाचं मुखं पदं स्तंभयअनामिकाभ्यां नमःकवचाय हुं
जिह्वां कीलयकनिष्ठिकाभ्यां नमःनेत्र-त्रयाय वौषट्
बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ ।।
स्वाहाकरतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमःअस्त्राय फट्
ध्यानः-
गंभीरा च मदोन्मत्तां तप्त-काञ्चन-सन्निभां,
चतुर्भुजां त्रिनयनां कमलासन संस्थिताम् ।
मुद्गरं दक्षिणे पाशं वामे जिह्वां च वज्रकं,
पीताम्बरधरां सान्द्र-वृत्त पीन-पयोधराम् ।।
हेमकुण्डलभूषां च पीत चन्द्रार्द्ध शेखरां,
पीतभूषणभूषां च स्वर्ण-सिंहासने स्थिताम् ।।
पुरश्चरण में दस-सहस्र जप कर पीत-द्रव्यों से दशांश होम । अथवा एक लाख जप कर प्रियंगु, पायस व पीत पुष्पों से दशांश होम ।
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४॰ || ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं बगलामुखि रिपून् नाशय ऐश्वर्यं देहि देहि अभीष्टं साधय साधय ह्रीं स्वाहा ||
विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीबगलामुखी-मन्त्रस्य भैरव ऋषिः, विराट् छन्दः, श्रीबगलामुखी देवता, क्लीं बीजं, अपरा शक्तिः, ऐं कीलकं, अभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः-
भैरव ऋषये नमः शिरसि,
विराट् छन्दसे नमः
मुखे, श्रीबगलामुखी देवतायै नमः
हृदि, क्लीं बीजाय नमः गुह्ये,
अपरा शक्तये नमः पादयो,
ऐं कीलकाय नमः नाभौ, अभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास कर-न्यासअंग-न्यास ।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लींअंगुष्ठाभ्यां नमःहृदयाय नमः
बगलामुखितर्जनीभ्यां नमःशिरसे स्वाहा
रिपून् नाशयमध्यमाभ्यां नमःशिखायै वषट्
ऐश्वर्यं देहि देहिअनामिकाभ्यां नमःकवचाय हुं
अभीष्टं साधय साधयकनिष्ठिकाभ्यां नमःनेत्र-त्रयाय वौषट्
ह्रीं स्वाहाकरतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमःअस्त्राय फट् ।।
ध्यानः- हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -
सौवर्णासन संस्थिता त्रिनयनां पीतांशुकोल्लासिनीम्,
हेमाभांगरुचिं शशांक मुकुटां सच्चम्पक स्रग्युताम् ।
हस्तैर्मुद्गर पाश वज्र रसनाः संबिभ्रतीं भूषणै र्व्याप्तांगीं,
बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिंतयेत् ।।
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बगलामुखी अष्ट त्रिंशदक्षर मंत्र -
|| ॐ ह्ल्रीं (ह्लीं) बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं गतिं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्ल्रीं (ह्लीं) ॐ स्वाहा ||
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बगलामुखी गायत्री मन्त्र -
१॰ || ह्लीं वगलामुखी विद्महे दुष्ट-स्तम्भनी धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ||
२॰ || ॐ ह्लीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भन-वाणाय धीमहि तन्नो वगला प्रचोदयात् ||
३॰ || ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भनं तन्नः वगला प्रचोदयात् ||
४॰ || ॐ वगलामुख्यै विद्महे स्तम्भिन्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ||
५॰ || बगलाम्बायै विद्महे ब्रह्मास्त्र विद्यायै धीमहि तन्न स्तम्भिनी प्रचोदयात् ||
६॰ || ॐ ऐं बगलामुखि विद्महे ॐ क्लीं कान्तेश्वरि धीमहि ॐ सौः तन्नः प्रह्लीं प्रचोदयात् ||
अन्य मन्त्र -
१॰ || ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स ४ ह ४ क ४ परा-षोडशी हंसः सौहं ह्लौं ह्लौं ||
२॰ || ॐ क्षीं ॐ नमो भगवते क्षीं पक्षि-राजाय क्षीं सर्व-अभिचार-ध्वंसकाय क्षीं ॐ हुं फट् स्वाहा ||
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बगलामुखी शाबर मंत्र -
|| ॐ मलयाचल बगला भगवती महाक्रूरी महा-कराली राज-मुख-बंधंन ग्राम मुख-बंधंन ग्राम पुरुबंधंन कालमुखबंधंन चौरमुखबंधंन सर्व-दुष्ट-ग्रहबंधंन सर्व-जन-बंधंन वशीकुरु हुं फट् स्वाहा ||
पाण्डवी चेटिका विद्या -
|| ॐ पाण्डवी बगले बगलामुखि शत्रोः पदं स्तंभय स्तंभय क्लीं ह्रीं श्रीं ऐं ह्लीं स्फ्रीं स्वाहा ||
ध्यानम् -
पीताम्बरां पीतवर्णां पीतगन्धानुलेपनाम् ।
प्रेतासनां पीतवर्णां विचित्रां पाण्डवीं भजे ।।
प्रतिपदा शुक्रवार को जपे । ३० हजार कुसुंभ-कुसुमों से होम करे । प्रसन्न होकर पाण्डवी साधक को वस्त्र प्रदान करती है तथा शत्रु का स्तम्भन करती है ।
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पीताम्बरा बगलामुखी खड्ग मालामन्त्र
यह स्तोत्र शत्रुनाश एवं कृत्यानाश, परविद्या छेदन करने वाला एवं रक्षा कार्य हेतु प्रभावी है । साधारण साधकों को कुछ समय आवेश व आर्थिक दबाव रहता है, अतः पूजा उपरान्त नमस्तस्यादि शांति स्तोत्र पढ़ने चाहिये ।
विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीपीताम्बरा बगलामुखी खड्गमाला मन्त्रस्य नारायण ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, बगलामुखी देवता, ह्लीं बीजं, स्वाहा शक्तिः, ॐ कीलकं, ममाभीष्टसिद्धयर्थे सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगः ।
हृदयादि-न्यासः-
नारायण ऋषये नमः शिरसि,
त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे,
बगलामुखी देवतायै नमः हृदि,
ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये,
स्वाहा शक्तये नमः पादयो,
ॐ कीलकाय नमः नाभौ, ममाभीष्टसिद्धयर्थे सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास -कर-न्यास – अंग-न्यास -।।
ॐ ह्लींअंगुष्ठाभ्यां नमःहृदयाय नमः
बगलामुखीतर्जनीभ्यां नमःशिरसे स्वाहा
सर्वदुष्टानांमध्यमाभ्यां नमःशिखायै वषट्
वाचं मुखं पद स्तम्भयअनामिकाभ्यां नमःकवचाय हुम्
जिह्वां कीलयकनिष्ठिकाभ्यां नमःनेत्र-त्रयाय वौषट्
बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहाकरतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमःअस्त्राय फट् ।।
ध्यानः-
हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -।।
मध्ये सुधाब्धि-मणि-मण्डप-रत्न-वेद्यां, सिंहासनोपरि-गतां परि-पीत-वर्णाम् ।
पीताम्बराभरण-माल्य-विभूषितांगीं, देवीं स्मरामि धृत-मुद्-गर-वैरि-जिह्वाम् ।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं, वामेन शत्रून् परि-पीडयन्तीम् ।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि ।।
मानस-पूजनः-
इस प्रकार ध्यान करके भगवती पीताम्बरा बगलामुखी का मानस पूजन करें -
ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (अधोमुख-कनिष्ठांगुष्ठ-मुद्रा) ।
ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (अधोमुख-तर्जनी-अंगुष्ठ-मुद्रा) ।
ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-तर्जनी-अंगुष्ठ-मुद्रा) ।
ॐ रं वह्नयात्मकं दीपं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि । (ऊर्ध्व-मुख-मध्यमा-अंगुष्ठ-मुद्रा) ।
ॐ वं जल-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-अनामिका-अंगुष्ठ-मुद्रा) ।
ॐ शं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-सर्वांगुलि-मुद्रा) ।
खड्ग-माला-मन्त्रः-
ॐ ह्लीं सर्वनिन्दकानां सर्वदुष्टानां वाचं मुखं स्तम्भय-स्तम्भय बुद्धिं विनाशय-विनाशय अपरबुद्धिं कुरु-कुरु अपस्मारं कुरु-कुरु आत्मविरोधिनां शिरो -
ललाट मुख नेत्र कर्ण नासिका दन्तोष्ठ जिह्वा तालु-कण्ठ बाहूदर कुक्षि नाभि पार्श्वद्वय गुह्य गुदाण्ड त्रिक जानुपाद सर्वांगेषु पादादिकेश-पर्यन्तं केशादिपाद-पर्यन्तं स्तम्भय-स्तम्भय मारय-मारय परमन्त्र-परयन्त्र-परतन्त्राणि छेदय-छेदय -
आत्म-मन्त्र-यन्त्र-तन्त्राणि रक्ष-रक्ष,
सर्व-ग्रहान् निवारय-निवारय सर्वम् अविधिं विनाशय-विनाशय दुःखं हन-हन दारिद्रयं निवारय निवारय, सर्व-मन्त्र-स्वरुपिणि सर्व-शल्य-योग-स्वरुपिणि दुष्ट-ग्रह-चण्ड-ग्रह भूतग्रहाऽऽकाशग्रह चौर-ग्रह पाषाण-ग्रह चाण्डाल-ग्रह यक्ष-गन्धर्व-किंनर-ग्रह ब्रह्म-राक्षस-ग्रह भूत-प्रेतपिशाचादीनां शाकिनी डाकिनी ग्रहाणां पूर्वदिशं बन्धय-बन्धय, वाराहि बगलामुखी मां-
- रक्ष-रक्ष दक्षिणदिशं बन्धय-बन्धय, किरातवाराहि मां रक्ष-रक्ष पश्चिमदिशं बन्धय-बन्धय, स्वप्नवाराहि मां रक्ष-रक्ष उत्तरदिशं बन्धय-बन्धय, धूम्रवाराहि मां रक्ष-रक्ष सर्वदिशो बन्धय-बन्धय, कुक्कुटवाराहि मां रक्ष-रक्ष अधरदिशं बन्धय-बन्धय, परमेश्वरि मां रक्ष-रक्ष सर्वरोगान् विनाशय-विनाशय, -
सर्व-शत्रु-पलायनाय सर्व-शत्रु-कुलं मूलतो नाशय-नाशय, शत्रूणां राज्यवश्यं स्त्रीवश्यं जनवश्यं दह-दह पच-पच सकल-लोक-स्तम्भिनि शत्रून् स्तम्भय-स्तम्भय स्तम्भनमोहनाऽऽकर्षणाय सर्व-रिपूणाम् उच्चाटनं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं क्लीं ऐं वाक्-प्रदानाय क्लीं जगत्त्रयवशीकरणाय सौः सर्वमनः क्षोभणाय श्रीं महा-सम्पत्-प्रदानाय ग्लौं सकल-भूमण्डलाधिपत्य-प्रदानाय दां चिरंजीवने ।
ह्रां ह्रीं ह्रूं क्लां क्लीं क्लूं सौः ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय राजस्तम्भिनि क्रों क्रों छ्रीं छ्रीं सर्वजन संमोहिनि सभास्तंभिनि स्त्रां स्त्रीं सर्व-मुख-रञ्जिनि मुखं बन्धय-बन्धय ज्वल-ज्वल हंस-हंस राजहंस प्रतिलोम इहलोक परलोक परद्वार राजद्वार क्लीं क्लूं घ्रीं रुं क्रों क्लीं खाणि खाणि , जिह्वां बन्धयामि सकलजन सर्वेन्द्रियाणि बन्धयामि नागाश्व मृग सर्प विहंगम वृश्चिकादि विषं निर्विषं कुरु-कुरु शैलकानन महीं मर्दय मर्दय शत्रूनोत्पाटयोत्पाटय पात्रं पूरय-पूरय महोग्रभूतजातं बन्धयामि बन्धयामि अतीतानागतं सत्यं कथय-कथय लक्ष्मीं प्रददामि-प्रददामि त्वम् इह आगच्छ आगच्छ अत्रैव निवासं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं बगले परमेश्वरि हुं फट् स्वाहा ।
विशेषः-
मूलमन्त्रवता कुर्याद् विद्यां न दर्शयेत् क्वचित् ।
विपत्तौ स्वप्नकाले च विद्यां स्तम्भिनीं दर्शयेत् ।
गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं प्रयत्नतः ।
प्रकाशनात् सिद्धहानिः स्याद् वश्यं मरणं भवेत् ।
दद्यात् शानताय सत्याय कौलाचारपरायणः ।
दुर्गाभक्ताय शैवाय मृत्युञ्जयरताय च ।
तस्मै दद्याद् इमं खड्गं स शिवो नात्र संशयः ।
अशाक्ताय च नो दद्याद् दीक्षाहीनाय वै तथा ।
न दर्शयेद् इमं खड्गम् इत्याज्ञा शंकरस्य च ।।
।। श्रीविष्णुयामले बगलाखड्गमालामन्त्रः ।।
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बगलामुखी साधना
प्रत्येक व्यक्ति चाहे वे अच्छा हो या बुरा उसके शत्रु अवश्य होते है ! किसी का यह कहना की मेरा कोई शत्रु है ही नहीं यह व्यर्थ है क्योंकि उन्हें अपने शत्रु नज़र नहीं आते ! उनके गुप्त शत्रु तो अवश्य होंगे ! जो लोग बार बार शत्रुओं से परेशान है जिनके घर में बार बार तंत्र प्रयोग होते है उनके लिए तो यह प्रयोग कल्पतरु हैं
||  मन्त्र  ||
ॐ ह्लीँ  श्रीँ  बगलामुखी वाचस्पतये नमः !
||  साधना विधि  ||
इस मन्त्र को बगलामुखी जयंती को पूरी रात लिंग मुद्रा का प्रदर्शन करते हुए सारी रात जप करते रहे यदि थक जाये तो थोडा आराम कर ले पर आसन से न उठे ! इस प्रकार यह मन्त्र एक रात में सिद्ध हो जाता है ! दुसरे दिन  किसी कन्या(माँ भगवती) को पीला प्रसाद जरूर खिलाये और मंदिर में देवी दुर्गा को भी पीले प्रसाद का भोग लगाये !
||  प्रयोग विधि  ||
जब प्रयोग करना हो तो इस मन्त्र को 21 दिन 21 माला रात्रि में हल्दी की माला से जपे आपकी शत्रु बाध जाएगी !
यह अनुभूत साधना है आप एक बार इस साधना  से सम्बंधित सभी समस्याए शांत हो।।
-------------बिना गुरू दीक्षा का साधना मे सफलता मे देर होती है ।।किसी एक मँत्र की साधना करे ।।सवा  लाख जप करे । 
पँण्डित सुभाष चंद मिश्रा - 9971485458, 7838157738  .