शनिवार, 8 सितंबर 2018

दुर्गा-सप्तशती साधना-सूत्र

दुर्गा-सप्तशती साधना-सूत्र 
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जो व्यक्ति दुःखी, दरिद्र और अनेक प्रकार की पीड़ाओ से ग्रस्त है और साधना मार्ग में उत्तम मार्गदर्शन के अभाव में प्रवेश नहीं कर सकता हो, वह प्रातः काल या रात्रिकाल किसी विद्वान से आज्ञा प्राप्त कर श्रद्धा-पूर्वक ' श्रीदुर्गा-सप्तशती ' के पाठ का नियम बना ले और इस नियम को तब तक न तोड़े, जब तक कि इच्छित कामना की सिद्धि न हो जाय।

अगर कोई साधक निष्कामषभाव से पाठ करता है तो उसके जीवन में आकस्मिक विघ्न-बाधाएँ नहीं आएगी।

यदि संस्कृत का ज्ञान न हो, तो हिन्दी में पाठ करें। किन्तु नियम पूर्वक, निश्चित समय व स्थान पर और स्थान की पवित्रता का विशेष ध्यान रखें। इस प्रकार साधक को अभीष्ट की सिद्धि अवश्य प्राप्त होगी।


दुर्गति से बचने का सरल सरस मार्ग है भगवती दुर्गा की उपासना। दुर्गति नाशिनी होने के कारण ही इन्हें दुर्गा कहा गया है। इनकी प्रसन्नता ' दुर्गा-सप्तशती ' के परायण से प्राप्त होती है - इसमें सन्देह नहीं।
दुर्गा-सप्तशती का अनुष्ठान इस युग में सर्व-कामना पूर्ण करने वाला है। जो साधक पूर्ण पाठ करने में असमर्थ है उनके लिए कुछ सूत्र प्रस्तुत है-

1) आत्मोन्नति के लिए दुर्गा-सप्तशती के ' तन्त्रोक्त देवी -सूक्त ' का पाठ तीन वर्ष तक नियमित करना चाहिये।

2) ' आत्म-कल्याण के निमित्त दुर्गा-सप्तशती का पूरा पाठ न करके मात्र माँ का स्तवन - रात्रि-सूक्त, शक्रादय स्तुति, नारायणी स्तुति और अन्त में देवी-सूक्त का पाठ किया जाए, तो भी भगवती की प्रसन्नता प्राप्त होती है।

3) कामना सिद्धि के लिये दुर्गा-सप्तशती का शाप-मोचन, उत्कीलन व कुञ्जिका मन्त्र स्तोत्र का जप सहित पूरा पाठ करना चाहिये।

4) कामना-पूर्ति के लिए ' तन्त्रोक्त देवी-सूक्त का पाठ ' त्रुटि ' और ' पूर्ति ' श्लोक जोड़ कर करना चाहिये।

5) दुर्गा-सप्तशती में वर्णित कवच, अर्गला और कीलक का पाठ करने से साधक ज्ञात-अज्ञात परेशानियों से मुक्त रहता है। आदि।

देवी भागवत अनुसार दुर्गा सनातनी एवं भगवान् विष्णु की माया है। इन्हें नारायणी, ईशानी और सर्व-शक्ति-स्वरूपिणि कहा जाता है। ये परमात्मा श्रीकृष्ण की बुद्धिकी अधिष्ठात्री देवी है। सम्पूर्ण देवियाँ इन्हीं से प्रकट होती है। इन्हीं की कृपा से श्रीकृष्ण में भक्ति उत्पन्न होती है। वैष्णवों के लिए ये भगवती " वैष्णवी " है।

नवरात्र वर्ष में चार बार आते है-1)चैत्र, 2)आषाढ़, 3) आश्विन और 4) माघ।

देवि-भागवत में लिखा गया है -
चैत्रे आश्विने तथाषाढे, माघे कार्यो महोत्सवः।
नव-रात्रे महाराज ! पूजा कार्या विशेषतः।।

इस प्रकार चार नवरात्र में चैत्र एवं आश्विन प्रकट और आषाढ़ एवं माघ अप्रकट यानि 'गुप्त नवरात्र ' के नाम से जानी जाती है। गुप्त इसलिए की इन नवरात्र मे गुप्त गुरु-गम्य सिद्धिया प्राप्त करने के लिये साधना-उपासना की जाती हैं।

वैसे देखा जाय तो चारो नवरात्र चार ॠतुओं की सन्धि-वेला में आती है। इस काल में कितने ही लोग बीमार पड़ते हैं और अनेक प्रकार की संक्रामक बीमारियाँ भी फैल जाती है। इसलिए शक्ति अर्जित करने व व्रत-उपवास करके शारीरिक -मानसिक बल प्राप्त करने के लिए सर्व-दुःख-नाशिनी और ऐश्वर्य प्रदायिनी माँ दुर्गा या अपनी गुरु-परम्परानुसार पूजा आराधना की जाती है।

दुर्गा-सप्तशती के तन्त्रों में अनेक पाठ भेद पाएँ जाते है उनमें से नौ प्रकार के परायण मुख्य रूप से किये जाते है-

1) चण्डीपाठ- प्रथम, मध्यम और उत्तम चरित्र।
2) महातन्त्र - प्रथम, उत्तम, मध्यम चरित्र।
3) महाविद्या - मध्यम, उत्तम, प्रथम चरित्र।
4) सप्तशती- मध्यम, प्रथम, उत्तम चरित्र।
5) मृत सञ्जीवनी - उत्तम, मध्यम, प्रथम।
6) महाचण्डी - उत्तम, मध्यम, प्रथम।
7) रूपचण्डी ( कुमुदिनी )- प्रत्येक श्लोक के साथ " रूपं देहि.. .. के साथ नवार्ण मन्त्र का प्रतिश्लोक जप।
8 ) योगिनी - चौसठ योगिनी के नामोच्चारण के साथ नवार्ण मन्त्र का सम्पुट।
9) पराचण्डी - " सौः " बीज मन्त्र का सम्पुट लगाकर पाठ किया जाता है।

चण्डी, महातन्त्र, महाविद्या, सप्तशती, मृत सञ्जीवनी और महाचण्डी पाठ विधि में कामनानुसार सम्पुट लगाने की परम्परा है।


प्रयोजनानुसार दुर्गा-सप्तशती के तीन चरित्रों का क्रम परिवर्तन करने से सृष्टि, स्थिति एवं संहार क्रम बनता है।

सृष्टि क्रम
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' ऊँ ऐं मार्कण्डेय उवाच, सावर्णिः सूर्य-तनयो यो से प्रारम्भ करके " सूर्यात् जन्म समासाद्य सावर्णिर्भविता मनुः"। नव-चण्डी में इस क्रम को चण्डी-पाठ नाम से जाना जाता है।
गीताप्रेस,गोरखपुर से प्रकाशित दुर्गा-सप्तशती इसी क्रम से प्रकाशित कि गई है।
विवाहार्थी, सन्तानार्थी तथा शान्ति-पुष्टि के लिए इस क्रम से पाठ किया जाता है।
स्थिति क्रम
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'ऊँ क्लीं ' ॠषिरुवाच - पुरा शुम्भ- निशुम्भाभ्यां ( उत्तम चरित्र ) से प्रारम्भ करके प्रथम, मध्यम चरित्र पर्यन्त। नव-चण्डी पाठ में यह मृत- सञ्जीवनी नामक पाठ बताया गया है।
इस प्रकार पाठ करने से सभी सत् कामना पूर्ण होती है।
संहार क्रम
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तेरहवें अध्याय के अन्तिम श्लोक --' सूर्याज्जन्म समासाद्य ' से श्लोक वार उल्टे क्रम से पाठ करना होता है। जैसे तेरहवें अध्याय का अन्तिम श्लोक अट्ठाईसवाँ, सत्ताईसवाँ, छब्बीसवाँ। अध्याय भी उल्टे तेरहवॉं, बारहवॉं, ग्यारहवॉं आदि।
मुक्तिकामी इसी क्रम से पाठ करते है।
विलोम क्रम
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विलोम क्रम पाठ में श्लोकों भी उल्टा पढ़ा जाता है। जैसे --'नुःम ताविभर्णिः वसा ' शेष क्रम संहार क्रम की तरह ही है।
उग्र प्रयोजन के लिये यह विधि प्राप्त होती है।
क्रमशः...
कृपया कोई भी पाठ-क्रम अपनाने से पहले किसी विद्वान से परामर्श अवश्य ले। कोई साधक पाठ करें और अज्ञानवश दुष्परिणामों की प्रतीति हो तो इसके लिए हम उत्तरदायी नहीं होगें।

बुधवार, 5 सितंबर 2018

पति एवं पत्नी प्राप्ति हेतु टोटके

पति एवं पत्नी प्राप्ति हेतु टोटके 
श्रेष्ठ वर की प्राप्ति हेतु उपाय : लड़की के माता-पिता आदि कन्या के विवाह के लिये सुयोग्य वर की प्राप्ति के निमित्त प्रयासरत रहते हैं और कभी-कभी अनेक प्रयास करने पर भी वर की तलाश नहीं कर पाते। यदि किसी कन्या के विवाह में किसी भी कारण से अनावश्यक विलंब हो रहा हो, बाधायें आ रही हों तो कन्या को स्वयम् 21 दिनों तक निम्न मंत्र का प्रतिदिन 108 बार पाठ करना चाहिये और पाठ के उपरांत मंत्र के अंत में ''स्वाहा'' शब्द लगाकर 11 आहुतियां (शुद्ध घी, शक्कर मिश्रित धूप से) देना चाहिये। यह दशांश हवन कहलाता है। 108 बार पाठ का दसवां हिस्सा यानि 10.8 = 11 (ग्यारह) आहुतियां भी प्रतिदिन देना है, इक्कीस दिनों तक। सिर्फ स्थान, समय और आसन निश्चित होना चाहिये। इसका अर्थ यह है कि यदि कोई कन्या प्रथम दिन प्रातः काल 9.00 बजे पाठ करती है तो 21 दिनों तक उसे प्रतिदिन 9.00 बजे ही पाठ आरंभ करना चाहिये। यदि प्रथम दिन घर की पूजा-स्थली में बैठकर पाठ शुरू किया है तो प्रतिदिन वहीं बैठकर पाठ करना चाहिये। वैसे ही प्रथम दिन जिस आसन पर बैठकर पाठ आरंभ किया गया हो, उसी आसन पर बैठकर 21 दिनों तक पाठ करना है। सार यह है कि मंत्र पाठ का समय, स्थान और आसन बदलना नहीं है और न ही लकड़ी के पटरे पर बैठकर पाठ करना है न ही पत्थर की शिला पर बैठकर। विधि : अपने समक्ष दुर्गा जी की मूर्ति या उनकी तस्बीर रखें। कात्यायनी देवी का यंत्र मूर्ति के समक्ष लाल रेशमी कपड़े पर स्थापित करें। यंत्र और मूर्ति का सामान्य पूजन रोली, पुष्प, गंध, नैवेद्य इत्यादि से करें। 5 अगरबत्ती और धूप दीप जलायें और मंत्र का 108 बार पाठ करें। पाठ के पूर्व कुलदेवी का स्मरण करना चाहिये।
मंत्र : कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। 
नंदगोप सुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नमः॥ 
पाठ समाप्त होने पर 
कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। 
नंदगोप सुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नमः स्वाहा'
इस मंत्र का उच्चारण करते हुये ग्यारह आहुतियां दें। पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ इस विधि का पालन करने वाली कन्या को दुर्गा देवी सुयोग्य वर प्रदान करती हैं। सुयोग्य पत्नी की प्राप्ति हेतु उपाय उपाय -
दुर्गा सप्तशती की पुस्तक मे से नित्य ''अर्गला- स्तोत्र'' का एक पाठ (पूर्ण रूप में) करने से सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति संभव हो जाती है। यदि अर्गला-स्तोत्र का पूर्ण रूप में पाठ न कर सकें तो विवाहेच्छुक युवक को -
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानु सारिणीम्। 
तारिणींदुर्गसं सारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥ 
इस मंत्र का 108 बार पाठ या जप करने से पत्नी रूपी गृहलक्ष्मी की प्राप्ति संभव होती है। कोई भी उपाय का प्रयोग कृष्ण पक्ष की अष्टमी या चतुर्दशी तिथि से आरंभ कर विवाह संबंध सुनिश्चित हो जाने तक सतत करते रहना चाहिये। पाठ के समय शुद्धता रखनी चाहिए। दुर्गाजी की नित्य सामान्य पूजा जल, पुष्प, फल, मेवा, मिष्ठान्न, रोली व कुंकुम या लाल चंदन, गंध आदि से करते रहना चाहिये। सप्ताह में कम से कम एक ब्राह्मण व दो कन्याओं को भोजन करना चाहिये। प्रतिदिन पाठ के उपरांत कम से कम ग्यारह आहुतियां दुर्गाजी के नाम से देनी चाहिये। पूर्ण श्रद्धा, विश्वास और भक्ति भावना के साथ इस तरह के विधान का पालन करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं। नवदुर्गा यंत्र या दुर्गा बीसा यंत्र की स्थापना पाठ के प्रथम दिन करनी चाहिये। 
उपाय क्रमांक 2 : यदि किसी अविवाहित युवक को विवाह होने में बारंबार बाधाओं का सामना करना पड़ रहा हो तो ऐसे युवक को चाहिये कि वह नित्य प्रातः स्नान कर सात अंजली जलं ''विश्वावसु'' गंधर्व को अर्पित करे और निम्न मंत्र का 108 बार मन ही मन जप करे। इसे गुप्त रखें। अर्थात् किसी को इस बात का आभास न होने पाये कि विवाह के उद्देश्य से जपानुष्ठान किया जा रहा है। सायंकाल में भी एक माला जप मानसिक रूप में किया जाय। ऐसा करने से एक माह में सुंदर, सुशील और सुसम्पन्न कन्या से विवाह निश्चित हो सकता है। जपनीय मंत्र : 
' ' ऊँ विश्वा वसुर्नामगंधर्वो कन्यानामधिपतिः। 
सुरूपां सालंकृतां कन्या देहि में नमस्तस्मै॥ 
विश्वावसवे स्वाहा॥''
इस प्रकार से विश्वावसु नामक गंधर्व को सात अंजली जल अर्पित करके उपरोक्त मंत्र का जप करने से एक माह के अंदर अलंकारों से सुसज्जित श्रेष्ठ पत्नी की प्राप्ति होती है। कहा भी गया है। सालंङ्कारा वरां पानीयस्या अंजलीन सप्त दत्वा, विद्यामिमां जपेत्। सालंकारां वरां कन्यां, लभते मास मात्रतः॥ यदि किसी अविवाहित युवक का किसी कारणवश विवाह न हो पा रहा हो तो श्री दुर्गा जी का ध्यान करते हुये वह घी का दीपक जलाकर किसी एकांत स्थान में स्नान शुद्धि के उपरांत नित्य प्रातःकाल पंचपदी का उच्च स्वर में 108 बार पाठ करें तो, जगत्जननी माता दुर्गा जी की कृपा से सुयोग्य पत्नी की प्राप्ति शीघ्र हो जाती है।

शनिवार, 1 सितंबर 2018

दशमहाविद्या मंत्र जाप

दशमहाविद्या मंत्र जाप
सत नमो आदेश | गुरूजी को आदेश | ॐ गुरूजी | ॐ सोह सिद्ध की काया, तीसरा नेत्र त्रिकुट ठहराया | गगण मण्डल में अनहद बाजा | वहा देखा शिवजी बैठा, गुरु हुकम से भीतरी बैठा, शून्य में ध्यान गोरख दीठा | यही ध्यान तपे महेशा, यही ध्यान ब्रह्माजी लाग्या | यही ध्यान विष्णु की माया ! ॐ कैलाश गिरी से, आयी पार्वती देवी, जाकै सम्मुख बैठ गोरक्ष योगी, देवी ने जब किया आदेश | नहीं लिया आदेश, नहीं दिया उपदेश | सती मनमे क्रोध समाई, देखु गोरख अपने माही, नौ दरवाजे खुले कपाट, दशवे द्वारे अग्नि प्रजाले, जलने लगी तो पार पछताई | राखी राखी गोरख राखी, मैं हूँ तेरी चेली, संसार सृष्टि की हूँ मैं माई | कहो शिवशंकर स्वामीजी, गोरख योगी कौन है दीठा | यह तो योगी सबमें विरला, तिसका कौन विचार | हम नहीं जानत, अपनी करनी आप ही जानी | गोरख देखे सत्य की दृष्टि | दृष्टि देख कर मन भया उनमन, तब गोरख कली बिच कहाया | हम तो योगी गुरुमुख बोली, सिद्धों का मर्म न जाने कोई | कहो पार्वती देवीजी अपनी शक्ति कौन - कौन समाई | तब सती ने शक्ति
की खेल दिखाई, दस महाविद्या की प्रगटली ज्योति |
प्रथम ज्योति महाकाली प्रगटली |
(महाकाली)
ॐ निरन्जन निराकार अवगत पुरुष तत सार, तत सार मध्ये ज्योत ज्योत मध्ये परम ज्योत, परम ज्योत मध्ये उत्पन्न भई, माता शम्भु शिवानी काली, ओ काली काली महाकाली, कृष्ण वर्णी, शव वाहनी, रुद्र की पोषणी, हाथ खप्पर खडंग धारी, गले मुण्डमाल हंस मुखी | जिह्वा ज्वाला दन्त काली | मद्य मांस कारी श्मशान की रानी | मांस खाये रक्त - पी - पावे | भस्मन्ति माई जहां पर पाई तहां लगाई | सत की नाती धर्म की बेटी इन्द्र की साली काल की काली जोग की  जोगिन, नागों की नागिन मन माने तो संग रमाई नहीं तो श्मशान फिरे अकेली ४ वीर अष्ट भैरी, घोर काली अघोर काली अजर बजर अमर काली भख जून निर्भय काली बला भख, दुष्ट को भख, काल भख पापी पाखण्डी को भख जती सती को रख, ओं काली तुम बाला ना वृद्धा, देव न दानव, नर या नारी देवीजी तुम तो हो परब्रह्मा काली |
क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा,
द्वितीय ज्योति तारा त्रिकुटा तोतला प्रगटी |
(तारा)
ॐ आदि योग अनादि माया जहां पर ब्रह्माण्ड उत्पन्न भया | ब्रह्माण्ड समाया आकाश मण्डल तारा त्रिकुटा तोतला माता तीनों बसै ब्रह्म कपालि, जहां पर ब्रह्मा विष्णु महेश उत्पत्ति, सूरज मुख तपे चंद्र मुख अमिरस पीवे, अग्नि मुख जले, आद कुंवारी हाथ खङग गल मुण्ड माल, मुर्दा मार ऊपर खड़ी देवी तारा | नीली काया पीली जटा, काली दन्त जिह्वा दबाया | घोर तारा अघोर तारा, दूध पूत का भण्डार भरा | पंच मुख करे हा हा ऽ:ऽ:कारा, डांकनी शाकिनी भूत पलिता सौ सौ कोस दूर भगाया | चंडी तारा फिरे ब्रह्मांडी तुम तो हों तीन लोक की जननी |
ॐ ह्रीं श्रीं फट्, ओं ऐं ह्रीं श्रीं हूं फट् |
तृतीय ज्योति त्रिपुर सुन्दरी प्रगटी |
(षोडशी - त्रिपुर सुन्दरी)
ॐ निरन्जन निराकार अवधू मूल द्वार में बन्ध लगाई पवन पलटे गगन समाई, ज्योति मध्ये ज्योत ले स्थिर हो भई ॐ मध्या: उत्पन्न भई उग्र त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति आवो शिवघर बैठो, मन उनमन, बुध सिद्ध चित्त में भया नाद | तीनों एक त्रिपुर सुन्दरी भया प्रकाश | हाथ चाप शर धर एक हाथ अंकुश | त्रिनेत्रा अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी | इडा पिंगला सुषुम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर सुन्दरी | उग्र बाला, रुद्र बाला तीनों
ब्रह्मपुरी में भया उजियाला | योगी के घर जोगन बाला, ब्रह्मा विष्णु शिव
की माता |
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ह्रीं श्रीं कं एईल
ह्रीं हंस कहल ह्रीं सकल ह्रीं सो:
ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं
चतुर्थ ज्योति भुवनेश्वरी प्रगटी |
(भुवनेश्वरी)
ॐ आदि ज्योत आनादि ज्योत, ज्योत मध्ये परम ज्योत - परम ज्योत मध्ये शिव गायत्री भई उत्पन्न, ॐ प्रात: समय उत्पन्न भई देवी भुवनेश्वरी | बाला सुन्दरी कर धर वर पाशांकुश अन्न्पुर्णी दुधपूत बल दे बालका ऋद्धि सिद्धि भण्डार भरे, बालकाना बल दे जोगी को अमर काया | १४ भुवन का राजपाट संभाला कटे रोग योगी का, दुष्ट को मुष्ट, काल कन्टक मार | योगी बनखण्ड वासा, सदा संग रहे भुवनेश्वरी माता |
ह्रीं
पंचम ज्योति छिन्नमस्ता प्रगटी |
(छिन्नमस्ता)
सत का धर्म सत की काया, ब्रह्म अग्नि में योग जमाया | काया तपाये जोगी (शिव गोरख) बैठा, नाभ कमल पर छिन्नमस्ता, चन्द्र सूर में उपजी सुषुम्नी देवी, त्रिकुटी महल में फिरे बाला सुन्दरी, तन का मुन्डा हाथ में लीन्हा, दाहिने हाथ में खप्पर धार्या | पी पी पीवे रक्त, बरसे त्रिकुट मस्तक पर अग्नि प्रजाली, श्वेत वर्णी मुक्त केशा कैची धारी | देवी उमा की शक्ति छाया, प्रलयी खाये सृष्टि सारी | चण्डी, चण्डी फिरे ब्रह्माण्डी भख भख बाला भख दुष्ट को मुष्ठ जाती, सती को रख, योगी घर जोगन बैठी, श्री शम्भुजती गोरखनाथ जी ने भाखी | छिन्नमस्ता जपो जाप, पाप कन्ट्न्ते आपो आप जो जोगी करे सुमिरण पाप पुण्य से न्यारा रहे | काल ना खाये | 
श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्र वैरो चनीये हूँ हूँ फट् स्वाह: |
षष्टम् ज्योति भैरवी प्रगटी |
(भैरवी)
ॐ सती भैरवी भैरो काल यम जाने यम भूपाल तीन नेत्र तारा त्रिकुटी, गले में माला मुण्डन की | अभय मुद्रा पीये रुधिर नाशवन्ती ! काला खप्पर हाथ खन्जर, कालापीर धर्म धूप खेवन्ते वासना गई सातवे पाताल, सातवे पाताल मध्ये परमतत्व परमतत्व में जोत, जोत में परम जोत, परम जोत में भई उत्पन्न काल भैरवी, त्रिपुर भैरवी, समपत प्रदा भैरवी, कैलेश भैरवी, सिद्धा भैरवी, विध्वंसिनि भैरवी, चैतन्य भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, षटकुटा भैरवी, नित्या भैरवी | जपा अजपा गोरक्ष जपन्ती यही मंत्र मत्स्येन्द्रनाथ जी को सदा शिव ने कहायी | ऋद्ध फूरो सिद्ध फूरो सत श्री शम्भुजती गुरु गोरक्षनाथ जी अनन्त कोटि सिद्धा ले उतरेगी काल के पार, भैरवी भैरवी खड़ी जिन शीश पर, दूर हाटे काल जन्जाल भैरवी अमंत्र बैकुण्ठ वासा | अमर लोक में हुवा निवासा |
"ॐ हस्त्रो हस्कलरो हस्त्रो:" |
सप्तम ज्योति धूमावती प्रगटी |
(धूमावती)
ॐ पाताल निरन्जन निराकार, आकाश मण्डल धुन्धुकार, आकाश दिशा से कौन आई, कौन रथ कौन असवार, आकाश दिशा से धूमावंती आई, काक ध्वजा का रथ अस्वार थरै धरत्री थरै आकाश, विधवा रुप लम्बे हाथ, लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव, डमरु बाजे भद्रकाली, क्लेश कलह कालरात्रि | डंका डंकनी काल किट किटा हास्य करी | जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते जाया जीया आकाश तेरा होये | धूमावन्तीपुरी में वास, न होती देवी न देव तहाँ न होती पूजा न पाती तहाँ न होती जात न जाती तब आये श्री शम्भुजती गुरु गोरक्षनाथ आप भयी अतीत |
ॐ धूं: धूं: धूमावती फट् स्वाह: |
अष्ठम ज्योति बगलामुखी प्रगटी |
(बगलामुखी)
ॐ सौ सौ सुता समुन्दर टापू, टापू में थापा सिंहासन पीला | सिंहासन पीले
ऊपर कौन बैसे सिंहासन पीला ऊपर बगलामुखी बैसे, बगलामुखी के कौन संगी कौन साथी | कच्ची बच्ची काक - कुतीया - स्वान चिड़िया, ॐ बगला बाला हाथ मुग्दर मार, शत्रु ह्रदय पर स्वार तिसकी जिव्हा खिच्चै बाला | बगलामुखी मरणी करणी उच्चाटन धरणी, अनन्त कोटि सिद्धों ने मानी ॐ बगलामुखी रमे ब्रह्माण्डी मण्डे चन्द्र्सूर फिरे खण्डे खण्डे | बाला बगलामुखी नमो नमस्कार |
ॐ हृलीं ब्रह्मास्त्रायैं विदमहे स्तम्भनबाणायै
धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात्
नवमी ज्योति मातंगी प्रगटी |
(मातंगी)
ॐ गुरूजी शून्य शून्य महाशून्य, महाशून्य में ओंकार ॐकार में शिवम् शिवम् में शक्ति - शक्ति अपन्ते उहज आपो आपना, सुभय में धाम कमल में विश्राम, आसन बैठी, सिंहासन बैठी पूजा पूजो मातंगी बाला, शीश पर शशी अमिरस प्याला हाथ खड्ग नीली काया | बल्ला पर अस्वारी उग्र उन्मत मुद्राधारी, उद गुग्गुल पाण सुपारी, खीरे खाण्डे मद्य मांसे घृत कुण्डे सर्वांगधारी | बुन्द मात्रेन कडवा प्याला, मातंगी माता तृप्यन्ते तृप्यन्ते | ॐ मातंगी सुन्दरी, रुपवंती, कामदेवी, धनवंती, धनदाती, अन्नपूर्णी अन्न्दाती, मातंगी जाप मंत्र जपे काल का तुम काल को खाये | तिसकी रक्षा शम्भुजती गुरु गोरक्षनाथ जी करे |
ॐ ह्री क्लीं हूँ मातंग्यै फट् स्वाहा |
दसवीं ज्योति कमला प्रगटी |
(कमला)
ॐ अयोनी शंकर ॐकार रुप, कमला देवी सती पार्वती का स्वरुप | हाथ में सोने का कलश मुख से अभय मुद्रा | श्वेत वर्ण सेवा पूजा करे, नारद इन्द्रा | देवी देवत्या ने किया जय ओंकार | कमला देवी पूजो केशर पान सुपारी, चकमक चीनी फतरी तिल गुग्गल सहस्त्र कमलों का किया हवन | कहे गोरख, मंत्र जपो जाप जपो ऋद्धि सिद्धि की पहचान गंगा गौरजा पार्वती जान | जिसकी तीन लोक में भया मान | कमला देवी के चरण कमल को आदेश |
ॐ ह्रीं क्लीं कमला देवी फट् स्वाह:
सुनो पार्वती हम मत्स्येन्द्र पूता, आदिनाथ नाती, हम शिव स्वरुप उलटी
थापना थापी योगी का योग, दस विद्या शक्ति जानो, जिसका भेद शिव शंकर ही पायो | सिद्ध योग मरम जो जाने विरला तिसको प्रसन्न भयी महाकालिका | योगी योग नित्य करे प्रात: उसे वरद भुवनेश्वरी माता | सिद्धासन सिद्ध, भया श्मशानी तिसके संग बैठी बगलामुखी | जोगी खड दर्शन को कर जानी, खुल गया ताला ब्रह्माण्ड भैरवी | नाभी स्थाने उडीय्यान बांधी मनीपुर चक्र में बैठी, छिन्नमस्ता रानी | ॐकार ध्यान लाग्या त्रिकुटी, प्रगटी तारा बाला सुन्दरी | पाताल जोगन (कुण्डलिनी) गगन को चढ़ी, जहाँ पर बैठी त्रिपुर सुन्दरी | आलस मोड़े, निन्द्रा तोड़े तिसकी रक्षा देवी धूमावंती करें | हंसा जाये दसवें द्वारे देवी मातंगी का आवागमन खोजे | जो कमला देवी की धूनी चेताये तिसकी ऋद्धि सिद्धि से भण्डार भरे | जो दशविद्या का सुमिरण करे | पाप पुन्य से न्यारा रहे | योग अभ्यास से भये सिद्धा आवागमन निवराते | मन्त्र पढ़े सो नर अमर लोक में जायें | इतना दस महाविद्या मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया | अनन्त कोट सिद्धों में, गोदावरी त्र्यम्बक क्षेत्र अनुपान शिला, अवलगढ़ पर्वत पर बैठ श्री शम्भुजती गुरु गोरक्षनाथ जी ने पढ़ कथ कर सुनाया श्री नाथजी गुरूजी को आदेश | आदेश |
ॐ शिव गोरक्ष योगी