मंगलवार, 11 जून 2019

सम्भोग शक्ति खोई हुई ताकत जोश जवानी सेक्स को को दोबारा वापिस लाने का एक मंत्र


बुजुर्गो ने कहा है की यदि पानी की भरी बोतल को उल्टा किया जाए तो पानी बड़ी जल्दी निकल जाता है,लेकिन शहद की भरी बोतल को उल्टा किया जाए तो वह बहुत देर में निकलेगा।ठीक यही हालात शीघ्रपतन की है।जिस व्यक्ति का वीर्य पतला होता है,वह स्त्री की तनिक सी हरकत से भी जल्दी रखलित हो जाता है।ठीक उसी प्रकार जिस व्यक्ति का वीर्य शहद के बराबर गाड़ा हो वह अत्यधिक देर तक स्त्री के साथ प्रसंग करता हैैआज में आप लोगो को एक ऐसा फॉर्मूला बताने जा रहा हूँ जो मेरे दिल के सबसे करीब है।औषधि का वर्णन ,सफ़ेद मूसली ,काली मूसली, स्काकुल मूसली सेमल मूसली ,रुमी मस्तगी, सालम पंजा, पीला शतावर काले कौंच की शुद्ध गिरी ,श्यामा तुलसी बीज, असगन्ध गूलर फल ,मकरध्वज रजत भस्म, मुक्ता भस्म, स्वर्ण भस्म, वज्र भस्म ,शुद्ध अफ़ीमेे ,प्रवाल पिष्टी, चंद्रपुटी ,असली शुद्ध शिलाजीत ,असली केसर इन सभी औषधि को चूर्ण बनाकर कपड़छान करने के बाद छोटी-छोटी 60 पुड़िया बनाई जाती है जो सुबह शाम को गर्म दूध से इसका सेवन करना , व्यक्ति कितना भी सम्भोग रचा ले थकता नहीं है।इसका लगातार सेवन करने वाला पूरी रात इश्क की पींघ के हुलारे लेता है।इस दवा का जो भी सेवन कर्ता जिस भी स्त्री से सम्भोग करता है वो सारी उम्र भर उसकी बनके रहेगी।यह दवा सम्भोग शक्ति खोई हुई ताकत जोश जवानी दुबारा लोटा देती है।इसमें पड़ने वाली हर चीज गुणकारी है।इस दवा का सेवन करने से नामर्द भी मर्द बन जाता है।इस दवा के सेवन से व्यक्ति एक समय में कई स्त्रियों को संतुष्ट कर सकता है।।यह हमारा व् हमारे बुजुर्गो का 101% दावा है। जिन लोगो की बीवी एक से ज्यादा हो उनके लिए यह एक सेक्स का माहशक्ति व् महाकुम्भ में गुम हुए सेक्स को को दोबारा वापिस लाने का एक मंत्र ह। जिस पर हमारे बुजुर्गो की पूरी जिंदगी भर की मेहनत लगी है अतः कहना चाहूँगा की सम्भोग के शौकीन के लोगो को इसका सेवन जरूर करना चाहिए।यह दवा थोडा costly है मगर आपने इसका असर देख लिया तो लगाये हुए पैसे भुल जाओगे 101% दावा है।यह दवा हमारे बुजुर्गो व् हमारे द्वारा न जाने कितने ही लोगो पर आजमाई हुई है। इस दवा की जितनी भी तारीफ़ करू कम रहेगी। इस दवा को 70 साल का बुजुर्ग भी सेवन कर सकता है।प्रणाम तीसरे ही दिन आपके सामने होगा।हमे कुछ कहने की जर्रूरत नहीं पड़ेगी।इस दवा की कीमत हैं सिर्फ 10000/- जो भी इस दवा को मंगाना चाहता हैं ।

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मंगलवार, 30 अप्रैल 2019

APJ Abdul Kalam के साथी और Tejas पर काम कर चुके Scientist Padma Shri Man...

रविवार, 17 मार्च 2019

राजलोग_वशीकरण_व_चिरस्थाई_लक्ष्मी_प्राप्ति_साधना

श्रीआदि शङ्कराचार्य-विरचित कल्याण-वृष्टि-स्तोत्र या षोडशी-कल्याण-स्तोत्र ( षोडशी श्रीविद्या के मूल-मन्त्र के प्रत्येक अक्षर पर आधृत इसमें सोलह श्लोक है )का प्रतिदिन रात्रि-काल, पश्चिम-दिशा कि ओर मुख कर, लाल आसन ( ऊन या कम्बल) पर बैठकर, श्रीमहालक्ष्मी का व अन्य देवी-देवताओं का प्रारम्भिक पूजन कर, ह्रीं ह्रीं ह्रीं से सम्पुटित इस पावन " कल्याण-वृष्टि ' स्तोत्र का नियमानुसार 30 पाठ एक वर्ष करने से राजलोगों का वशीकरण होता है साथ ही चञ्चला लक्ष्मी चिरकाल के लिये स्थाई हो जाती है व साधक का परम कल्याण निश्चित है। ऐसा फलश्रुति से स्पष्ट है।
यह स्तोत्र " गीताप्रेस,गोरखपुर " से प्रकाशित पुस्तक " देवी-स्तोत्र- रत्नाकर " की पृष्ठ-संख्या 131 से 136 पर शुद्ध-रूप से दिया गया है। यह पुस्तक प्रत्येक देवी-उपासना के पास अवश्य होना चाहिए।
साधक उपरोक्त साधना करने से पहले किसी योग्य विद्वान से परामर्श अवश्य प्राप्त करले।
साधनागत किसी भी प्रकार के लाभ-हानि के लिए हम उत्तरदायी नहीं है। क्योंकि पाठकगण की योग्यता व आपके द्वारा चयनित विद्वान का कोई माप-दण्ड हमारे पास नहीं है।
योग्य विद्वान व सद् गुरु भी भगवती की कृपा से प्राप्त होते हैं।
पाठकों के लाभार्थ स्तोत्र निम्नलिखित हैं -
कल्याणवृष्टिभिरिवामृतपूरिताभि-
र्लक्ष्मीस्वयंवरणमङ्गलदीपिकाभिः ।
सेवाभिरम्ब तव पादसरोजमूले
नाकारि किं मनसि भाग्यवतां जनानाम् ॥ १॥
एतावदेव जननि स्पृहणीयमास्ते
त्वद्वन्दनेषु सलिलस्थगिते च नेत्रे ।
सान्निध्यमुद्यदरुणायुतसोदरस्य
त्वद्विग्रहस्य परया सुधयाप्लुतस्य ॥ २॥
ईशात्वनामकलुषाः कति वा न सन्ति
ब्रह्मादयः प्रतिभवं प्रलयाभिभूताः ।
एकः स एव जननि स्थिरसिद्धिरास्ते
यः पादयोस्तव सकृत्प्रणतिं करोति ॥ ३॥
लब्ध्वा सकृत्त्रिपुरसुन्दरि तावकीनं
कारुण्यकन्दलितकान्तिभरं कटाक्षम् ।
कन्दर्पकोटिसुभगास्त्वयि भक्तिभाजः
संमोहयन्ति तरुणीर्भुवनत्रयेऽपि ॥ ४॥
ह्रींकारमेव तव नाम गृणन्ति वेदा
मातस्त्रिकोणनिलये त्रिपुरे त्रिनेत्रे ।
त्वत्संस्मृतौ यमभटाभिभवं विहाय
दीव्यन्ति नन्दनवने सह लोकपालैः ॥ ५॥
हन्तुः पुरामधिगलं परिपीयमानः
क्रूरः कथं न भविता गरलस्यवेगः ।
नाश्वासनाय यदि मातरिदं तवार्धं
देवस्य शश्वदमृताप्लुतशीतलस्य ॥ ६॥
सर्वज्ञतां सदसि वाक्पटुतां प्रसूते
देवि त्वदङ्घ्रिसरसीरुहयोः प्रणामः ।
किं च स्फुरन्मुकुटमुज्ज्वलमातपत्रं
द्वे चामरे च महतीं वसुधां ददाति ॥ ७॥
कल्पद्रुमैरभिमतप्रतिपादनेषु
कारुण्यवारिधिभिरम्ब भवत्कटाक्षैः ।
आलोकय त्रिपुरसुन्दरि मामनाथं
त्वय्येव भक्तिभरितं त्वयि बद्धतृष्णम् ॥ ८॥
हन्तेतरेष्वपि मनांसि निधाय चान्ये
भक्तिं वहन्ति किल पामरदैवतेषु ।
त्वामेव देवि मनसा समनुस्मरामि
त्वामेव नौमि शरणं जननि त्वमेव ॥ ९॥
लक्ष्येषु सत्स्वपि कटाक्षनिरीक्षणाना-
मालोकय त्रिपुरसुन्दरि मां कदाचित् ।
नूनं मया तु सदृशः करुणैकपात्रं
जातो जनिष्यति जनो न च जायते वा ॥ १०॥
ह्रींह्रीमिति प्रतिदिनं जपतां तवाख्यां
किं नाम दुर्लभमिहत्रिपुराधिवासे ।
मालाकिरीटमदवारणमाननीया
तान्सेवते वसुमती स्वयमेव लक्ष्मीः ॥ ११॥
सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदाननिरतानि सरोरुहाक्षि ।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु नान्यम् ॥ १२॥
कल्पोपसंहृतिषु कल्पितताण्डवस्य
देवस्य खण्डपरशोः परभैरवस्य ।
पाशाङ्कुशैक्षवशरासनपुष्पबाणा
सा साक्षिणी विजयते तव मूर्तिरेका ॥ १३॥
लग्नं सदा भवतु मातरिदं तवार्धं
तेजः परं बहुलकुङ्कुम पङ्कशोणम् ।
भास्वत्किरीटममृतांशुकलावतंसं
मध्ये त्रिकोणनिलयं परमामृतार्द्रम् ॥ १४॥
ह्रींकारमेव तव नाम तदेव रूपं
त्वन्नाम दुर्लभमिह त्रिपुरे गृणन्ति ।
त्वत्तेजसा परिणतं वियदादिभूतं
सौख्यं तनोति सरसीरुहसम्भवादेः ॥ १५॥
ह्रींकारत्रयसम्पुटेन महता मन्त्रेण सन्दीपितं
स्तोत्रं यः प्रतिवासरं तव पुरो मातर्जपेन्मन्त्रवित् ।
तस्य क्षोणिभुजो भवन्ति वशगा लक्ष्मीश्चिरस्थायिनी
वाणी निर्मलसूक्तिभारभरिता जागर्ति दीर्घं वयः ॥ १६॥
इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य
श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य
श्रीमच्छङ्करभगवतः कृतौ
कल्याणवृष्टिस्तवः सम्पूर्णः ॥