गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

माता बगलामुखी भगवती


महाविद्या बगलामुखी


दस महाविद्या में "माता बगलामुखी" भगवती का
आठवा स्वरूप है।
जिन्हें पीताम्बरा, श्री वगला, शत्रु दमना
जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता हैं ।

देवी, पीताम्बरा नाम से त्रि-भुवन में प्रसिद्ध है,
पीताम्बरा शब्द भी दो शब्दों के मेल से बना है,
पहला 'पीत' तथा दूसरा 'अम्बरा',
जिसका अभिप्राय हैं पीले रंग का अम्बर धारण करने वाली।
देवी को पीला रंग अत्यंत प्रिया है,
देवी पीले रंग के वस्त्र इत्यादि धारण करती है,
पीले फूलों की माला धारण करती है,
पीले रंग से देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध हैं।
पञ्च तत्वों द्वारा संपूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ हैं,
जिनमें से पृथ्वी तत्व का सम्बन्ध पीले रंग से होने के कारण देवी को पिला रंग अत्यंत प्रिय हैं।
व्यष्टि रूप में शत्रुओं को नष्ट करने वाली तथा
समष्टि रूप में परमात्मा की संहार करने वाली देवी बगलामुखी हैं,
इनके भैरव महा मृत्युंजय हैं।
देवी की साधना दक्षिणाम्नायात्मक तथा
ऊर्ध्वाम्नाय दो पद्धतियों से कि जाती है,
उर्ध्वमना स्वरूप में देवी दो भुजाओं से युक्त तथा
दक्षिणाम्नायात्मक में चार भुजाये हैं।

देवी शक्ति साक्षात ब्रह्म-अस्त्र हैं,
जिसका संधान त्रिभुवन में किसी के द्वारा संभव नहीं हैं।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश देवी बगलामुखी में हैं।

स्वतंत्र तंत्र के अनुसार, सत्य युग में इस चराचर जगत को नष्ट करने वाला भयानक वातक्षोम (तूफान, घोर अंधी) आया। जिसके कारण समस्त प्राणी तथा स्थूल तत्वों के अस्तित्व पर संकट गहरा रहा था, सभी काल का ग्रास बनने जा रहे थे। संपूर्ण जगत पर संकट आया हुआ देखकर, जगत के पालन कर्ता श्री हरि भगवान विष्णु अत्यंत चिंतित हो गए तथा भगवान शिव के पास गए तथा उपस्थित समस्या के निवारण हेतु कोई उपाय पूछा।
भगवान शिव ने उन्हें बताया की शक्ति के अतिरिक्त कोई भी इस समस्या का समाधान करने में सक्षम नहीं हैं।
तदनंतर, भगवान विष्णु सौराष्ट्र प्रान्त में गए तथा हरिद्रा सरोवर के समीप जाकर, अपनी सहायतार्थ देवी श्री विद्या महा त्रिपुरसुंदरी को प्रसन्न करने हेतु तप करने लगे।
उस समय देवी श्री विद्या, सौराष्ट्र के एक हरिद्रा सरोवर में वास करती थी। भगवान विष्णु के तप से संतुष्ट हो श्री विद्या महा त्रिपुरसुंदरी,
बगलामुखी स्वरूप में उनके सनमुख अवतरित हुई,
जो पीत वर्ण से युक्त थीं तथा उनसे तप साधना करने का कारण ज्ञात किया। भगवान विष्णु द्वारा निवेदन करने पर देवी बगलामुखी तुरंत ही अपनी शक्तिओं का प्रयोग कर,
विनाशकारी तूफान या महाप्रलय को शांत किया या कहे तो स्तंभित किया, इस प्रकार उन्होंने सम्पूर्ण जगत की रक्षा की।
वैशाख शुक्ल अष्टमी के दिन देवी बगलामुखी का प्रादुर्भाव हुआ था।

देवी बगलामुखी स्तम्भन की पूर्ण शक्ति हैं, तीनों लोकों के प्रत्येक घोर विपत्ति से लेकर, सामान्य मनुष्य के किसी भी प्रकार विपत्ति स्तम्भन करने की पूर्ण शक्ति हैं। जैसे किसी स्थाई अस्वस्थता, निर्धनता समस्या देवी कृपा से ही स्तंभित होती हैं जिसके परिणामस्वरूप जातक स्वस्थ,
धन सम्पन्नता इत्यादि प्राप्त करता हैं।
देवी अपने भक्तों के शत्रुओं के पथ तथा बुद्धि भ्रष्ट कर,
उन्हें हर प्रकार से स्तंभित कर रक्षा करती हैं,
शत्रु अपने कार्य में कभी सफल नहीं हो पाता,
शत्रु का पूर्ण रूप से विनाश होता हैं।

देवी बगलामुखी, समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय द्वीप में अमूल्य रत्नो से सुसज्जित सिंहासन पर विराजमान हैं।
देवी त्रिनेत्रा हैं, मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती है, पीले शारीरिक वर्ण युक्त है, देवी ने पिला वस्त्र तथा पीले फूलो की माला धारण की हुई है, देवी के अन्य आभूषण भी पीले रंग के ही हैं तथा अमूल्य रत्नों से जड़ित हैं। देवी, विशेषकर चंपा फूल, हल्दी की गाठ इत्यादि पीले रंग से सम्बंधित तत्वों की माला धारण करती हैं।
देवी, एक युवती के जैसी शारीरिक गठन वाली हैं, देखने में मनोहर तथा मंद मुस्कान वाली हैं। देवी ने अपने बायें हाथ से शत्रु या दैत्य के जिह्वा को पकड़ कर खींच रखा है तथा दाएं हाथ से गदा उठाये हुए हैं,
जिससे शत्रु अत्यंत भय-भीत हो रहा हैं।
कई स्थानों में देवी ने मृत शरीर या शव को अपना आसन बना रखा हैं तथा शव पर ही आरूढ़ हैं तथा दैत्य या शत्रु के जिह्वा को पकड़ रखा हैं।
देवी वचन या बोल-चाल से गलतियों तथा अशुद्धियों को निकल कर सही करती हैं।

बगलामुखी स्तोत्र के अनुसार देवी समस्त प्रकार के स्तंभन कार्यों हेतु प्रयोग में लायी जाती हैं जैसे, अगर शत्रु वादी हो तो गूंगा, छत्रपति हो तो रंक, दावानल या भीषण अग्नि कांड शांत करने हेतु, क्रोधी का क्रोध शांत करवाने हेतु, धावक को लंगड़ा बनाने हेतु, सर्व ज्ञाता को जड़ बनाने हेतु, गर्व युक्त के गर्व भंजन करने हेतु। तीव्र वर्षा या भीषण अग्नि कांड हो, देवी का साधक बड़ी ही सरलता से समस्त प्रकार के विपत्तियों का स्तंभन कर सकता हैं। बामा खेपा ने अपने माता के श्राद्ध कर्म में तीव्र वृष्टि का स्तंभन किया था। साथ ही, उग्र विघ्नों को शांत करने वाली, दरिद्रता का नाश करने वाली, भूपतियों के गर्व का दमन, मृग जैसे चंचल चित्त वालों के चित्त का भी आकर्षण करने वाली, मृत्यु का भी मरण करने में समर्थ हैं देवी बगलामुखी

हवन के गूढ़ रहस्य, नियम, विधी, लाभ और वैज्ञानिक पक्ष

हवन के गूढ़ रहस्य, नियम, विधी, लाभ और वैज्ञानिक पक्ष:-
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हवन करना सिर्फ धार्मिक मान्यता भर नहीं है अपितू एक पूर्ण वैज्ञानिक 


प्रमाणिकता के आधार पर शारीरिक, मानसिक एवं पर्यावरण को अदभुत लाभप्रद 

अतिशूक्ष्म चिकित्सा विज्ञान भी है.... आज हम हवन पद्वती के विभिन्न रहस्यों 

का गहन मंथन और सरल संकलन प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिसमे कई विद्वानों के 

अनुभव और आलेखों का भी सारांश लिया गया है।।

पूजन-कर्म के साथ कुछ विशेष हवन सामग्रियों से हवन स्वयं या किसी योग्य 

ब्राह्मण से कराएं और निरोगी जीवन का आनन्द लें।

........नवग्रह(शान्ति) के लिये समिधा ........

सूर्य की समिधा मदार/आक की,

चन्द्रमा की पलाश की,

मङ्गल की खैर की,

बुध की चिरचिडा/ओंधाझाड़ा की,

बृहस्पति की पीपल की,

शुक्र की गूलर की,

शनि की शमी/खेजड़ी की,

राहु दूर्वा की

और केतु की कुशा की समिधा कही गई है।

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मदार की समिधा रोग को नाश करती है,

पलाश की सब कार्य सिद्ध करने वाली,

पीपल की प्रजा (सन्तति) काम कराने वाली, गूलर की स्वर्ग देने वाली,

शमी की पाप नाश करने वाली,

दूर्वा की दीर्घायु देने वाली

और कुशा की समिधा सभी मनोरथ को सिद्ध करने वाली होती है।

इनके अतिरिक्त देवताओं के लिए पलाश वृक्ष की समिधा प्रयोग करनी चाहिए।

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ऋतुओं के अनुसार समिधा
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ऋतुओं के अनुसार समिधा के लिए इन वृक्षों की लकड़ी विशेष उपयोगी सिद्ध 

होती है। वसन्त-शमी

ग्रीष्म-पीपल

वर्षा-ढाक, बिल्व

शरद-पाकड़ या आम

हेमन्त-खैर

शिशिर-गूलर, बड़

यह लकड़ियाँ सड़ी घुनी, गन्दे स्थानों पर पड़ी हुई, कीडे़-मकोड़ों से भरी हुई न हों, 

इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए।

.......सूक्ष्महवन सामग्री तैयार करने हेतु.......

काले बिना धुले तिल,

तिलों के आधे चावल,

चौथाई जौ

और आठवां भाग बुरा अथवा चीनी मिलाएं |

इस मिश्रण में इच्छानुसार अगर, तगर, चन्दन का बुरादा, जटामांसी, इंद्रजौ तथा 

अन्य जड़ी बूटियाँ आदि मिला लीजिये | थोडा सा देसी घी भी इस सामग्री में 

मिलाया जाएगा और प्रत्येक आहुति के साथ चम्मच से थोडा -थोडा घी हवन में 

डाला जाएगा |

किस ऋतु में किन वस्तुओं का हवन करना लाभदायक है,

और उनकी मात्रा किस परिणाम से होनी चाहिए, इसका विवरण नीचे दिया जाता है 

। पूरी सामग्री की तोल १०० मान कर प्रत्येक ओषधि का अंश उसके सामने रखा जा 

रहा है । जैसे किसी को १०० ग्राम सामग्री तैयार करनी है, तो छरीलावा के सामने 

लिखा हुआ २ भाग (ग्राम) मानना चाहिए, इसी प्रकार अपनी देख-भाल में कर लेना 

चाहिए । सामग्री को भली प्रकार धूप में सुखाकर उसे जौकुट कर लेना चाहिए ।


बसन्त-ऋतु .....
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छरीलावा २ भाग,

पत्रज २ भाग,

मुनक्का ५ भाग,

लज्जावती एक भाग,

शीतल चीनी २ भाग,

कचूर २.५ भाग,

देवदारू ५ भाग,

गिलोय ५ भाग,

अगर २ भाग,

तगर २ भाग,

केसर १ का ६ वां भाग,

इन्द्रजौ २ भाग,

गुग्गुल ५ भाग,

चन्दन (श्वेत, लाल, पीला) ६ भाग,

जावित्री १ का ३ वां भाग,

जायफल २ भाग,

धूप ५ भाग,

पुष्कर मूल ५ भाग,

कमल-गट्टा २ भाग,

मजीठ ३ भाग,

बनकचूर २ भाग,

दालचीनी २ भाग,

गूलर की छाल सूखी ५ भाग,

तेज बल (छाल और जड़) २ भाग,

शंख पुष्पी १ भाग,

चिरायता २ भाग,

खस २ भाग,

गोखरू २ भाग,

खांस या बूरा १५ भाग,

गो घृत १० भाग ।


ग्रीष्म-ऋतु......
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तालपर्णी १ भाग,

वायबिडंग २ भाग,

कचूर २.५ भाग,

चिरोंजी ५ भाग,

नागरमोथा २ भाग,

पीला चन्दन २ भाग,

छरीला २ भाग,

निर्मली फल २ भाग,

शतावर २ भाग,

खस २ भाग,

गिलोय २ भाग,

धूप २ भाग,

दालचीनी २ भाग,

लवङ्ग २ भाग,

गुलाब के फूल ५॥ भाग,

चन्दन ४ भाग,

तगर २ भाग,

तम्बकू ५ भाग,

सुपारी ५ भाग,लेकिन

तालीसपत्र २ भाग,

लाल चन्दन २ भाग,

मजीठ २ भाग,

शिलारस २.५० भाग,

केसर १ का ६ वां भाग,

जटामांसी २ भाग,

नेत्रवाला २ भाग,

इलायची बड़ी २ भाग,

उन्नाव २ भाग,

आँवले २ भाग,

बूरा या खांड १५ भाग,

घी १० भाग ।


वर्षा ऋतू......
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काला अगर २ भाग,

इन्द्र-जौ २ भाग,

धूप २ भाग,

तगर २ भाग देवदारु ५ भाग,

गुग्गुल ५ भाग,

राल ५ भाग,

जायफल २ भाग,

गोला ५ भाग,

तेजपत्र २ भाग,

कचूर २ भाग,

बेल २ भाग,

जटामांसी ५ भाग,

छोटी इलायची १ भाग,

बच ५ भाग,

गिलोय २ भाग,

श्वेत चन्दन के चीज ३ भाग,

बायबिडंग २ भाग,

चिरायता २ भाग,

छुहारे ५भाग,

नाग केसर २ भाग,

चिरायता २ भाग,

छुहारे ५ भाग,

संखाहुली १ भाग,

मोचरस २ भाग,

नीम के पत्ते ५ भाग,

गो-घृत १० भाग, खांड या बूरा १५ भाग,।


शरद् ऋतू......
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सफेद चन्दन ५ भाग,

चन्दन सुर्ख २ भाग,

चन्दन पीला २ भाग,

गुग्गुल ५ भाग,

नाग केशर २ भाग,

इलायची बड़ी २ भाग,

गिलोय २ भाग,

चिरोंजी ५ भाग,

गूलर की छाल ५ भाग,

दाल चीनी २ भाग,

मोचरस २ भाग,

कपूर कचरी ५ भाग

पित्त पापड़ा २ भाग,

अगर २ भाग,

भारङ्गी २ भाग,

इन्द्र जौ २ भाग,

असगन्ध २ भाग,

शीतल चीनी २ भाग,

केसर १ का ६ वां भाग,

किशमिस ६ भाग,

वालछड़ ५ भाग,

तालमखाना २ भाग,

सहदेवी १ भाग,धान।

"पूर्णाहुति"
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पूर्णाहुति के लिए साबूत गिरी के गोले की टोपी उतारकर उसमे पान का पत्ता 

लगाकर घी शकर भरकर पूर्णाहुति करे ।

हवन कुण्ड निर्माण विधि:-
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विविध प्रकार के अनुष्ठानों में भिन्न-2 प्रकार के हवन कुण्डों का निर्माण जरूरत के 

हिसाब से किया जाता है जैसे-देवी-देवताओं की प्रतिष्ठा, शांति, एवं पुष्टि कर्म, वर्षा 

हेतु, ग्रहों की शांति, वैदिक कर्म और अनुष्ठान के अनुसार एक पांच, सात और 

अधिक हवन कुण्डों का निर्माण होता है।

जैसे-
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वृत्तकार, चौकोर, पद्माकार, अर्धचंद्राकार, योनिकार, चंद्राकार, पंचकोण, सप्त, 


अष्ट और नौ कोणों वाला आदि।।
सामान्यतः चैकोर कुण्ड का ही प्रयोग होता है, जो त्रि मेंखला से युक्त होता हैं तथा 

जिनके ऊपरी मध्य भाग में योनि होती है जो पीपल के पत्ते के समान होती है। 

उसकी ऊँचाई एक अंगुल और चैड़ाई आठ अंगुल तक विस्तारित करने के नियम हैं। 

ऐसे कुण्ड जो ज़मीन मे खोदकर बनायें जाते हैं या पहले से निर्मित हैं उन्हें हवन के 

दो तीन दिन पूर्व सुन्दर और स्वच्छ कर लेना चाहिए। ऐसे कुण्ड जिनमें दरारें हों, 

कीड़े या चींटी आदि से युक्त हो जल्दबाजी में ऐसे कुण्ड में हवन कदापि न करें, 

इससे पुण्य की जगह पाप होगा और बिना वैदिक उपचारों के जो हवन किया जाता है 
उसे दैत्य प्राप्त करते हैं।

हवन करते समय किन-किन उँगलियों का प्रयोग किया जाय:-
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इसके सम्बन्ध में मृगी और हंसी मुद्रा को शुभ माना गया है। मृगी मुद्रा वह है 


जिसमें अँगूठा, मध्यमा और अनामिका उँगलियों से सामग्री होमी जाती है। हंसी 

मुद्रा वह है, जिसमें सबसे छोटी उँगली कनिष्का का उपयोग न करके शेष तीन 

उँगलियों तथा अँगूठे की सहायता से आहुति छोड़ी जाती है।

शान्तिकर्मों में मृगी मुद्रा।

पौष्टिक कर्मों में हंसी ।

और अभिचार कर्मों में सूकरी मुद्रा प्रयुक्त होती है।

किसी भी ऋतु में सामान्य हवन सामग्री यज्ञ करते समय इनका विशेष ध्यान रखें 


प्रायश्चित होम- जप आदि करते हुए, आपन वायु निकल पड़ने, हँस पड़ने, मिथ्या 

भाषण करने बिल्ली, मूषक आदि के छू जाने, गाली देने और क्रोध के आ जाने पर, 

हृदय तथा जल का स्पर्श करना ही प्रायश्चित होता है।।

हवन कुण्ड पूजा विधि:-
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1-हवन कुंड में तीन छोटी लकड़ी से अपनी ओर नोंक वाला त्रिकोण बनाएं।

उसे---अस्त्राय फट-- कहते हुए तर्जनी व मध्यमा से घेरें।

2-फिर मुठी बंद कर तर्जनी उंगली निकाल कर -- हूं फट—मंत्र पढ़ें।

3-इसके बाद लकड़ी डालकर कर्पूर व धूप देकर--- ह्रीं सांग सांग सायुध सवाहन 

सपरिवार --जिस मंत्र से हवन करना हो उसे पढ़कर-- नम:-- कहें।

4-आग जलाकर--- ह्रीं क्रव्यादेभ्यो: हूं फट- कहते हुए तीली या उससे लकड़ी का 

टुकड़ा जलाकर हवन कुंड से किनारे नैऋत्य कोण में फेंकें।

5-तदन्तर --- रं अग्नि अग्नेयै वह्नि चैतन्याय स्वाहा --- मंत्र से आग में थोड़ा घी 

डालें।

6-फिर हवन कुंड को स्पर्श करते हुए --- ह्रीं अग्नेयै स्वेष्ट देवता नामापि --- मंत्र 

पढ़ें।

7-इसके बाद पढ़ें---- ह्रीं सपरिवार स्वेष्ट रूपाग्नेयै नम:।

8-तदन्तर घी से चार आहुतियां दें, और जल में बचे घी को देते हुए निम्न चार मंत्र 

पढ़ें------- अग्नि में--- ह्रीं भू स्वाहा ----------- इदं भू (पानी में)

अग्नि में--- ह्रीं भुव: स्वाहा --------- इदं भुव: (पानी में)

अग्नि में--- ह्रीं स्व: स्वाहा ---------- इदं स्व: (पानी में)

अग्नि में--- ह्रीं भूर्भुव:स्व: स्वाहा------ इदं भूर्भुव: स्व: (पानी में)

9-तदन्तर मूल मंत्र से हवन शुरू करने हुए जितनी आहुतियां देनी है दें।

10-मूल मंत्र से हवन के बाद पुन: निम्न मंत्रों से आहुतियां दें!

अग्नि में--- ह्रीं भू स्वाहा ----------- इदं भू (पानी में)

अग्नि में--- ह्रीं भुव: स्वाहा --------- इदं भुव: (पानी में)

अग्नि में--- ह्रीं स्व: स्वाहा ---------- इदं स्व: (पानी में)

अग्नि में--- ह्रीं भूर्भुव:स्व: स्वाहा------ इदं भूर्भुव: स्व: (पानी में)

11-अंत में सुपारी या गोला से पूर्णाहुति के लिए मंत्र पढ़ें------ ह्रीं यज्ञपतये पूर्णो 

भवतु यज्ञो मे ह्रीस्यन्तु यज्ञ देवता फलानि सम्यग्यच्छन्तु सिद्धिं दत्वा प्रसीद मे 

स्वाहा क्रौं वौषट।

यज्ञ करने वाले सरवा में यज्ञ की राख लगाकर रख दें।

12-ह्रीं क्रीं सर्व स्वस्ति करो भव----- मंत्र से तिलक करें।

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अग्नि की जिह्नाएँ- अग्नि की 7 जिह्नएँ मानी गयी हैं।

उनके नाम हैं:-
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1. हिरण्या,

2. गगना,

3. रक्ता,

4. कृष्णा,

5. सुप्रभा,

6. बहुरूपा एवं

7. अतिरिक्ता।

कतिपय आचार्याें ने अग्नि की सप्त जिह्नाओं के नाम इस प्रकार बताये हैं-

1. काली,

2. कराली,

3. मनोभवा,

4. सुलोहिता,

5. धूम्रवर्णा,

6. स्फुलिंगिनी तथा

7. विष्वरूचि।

जानिए, अलग-अलग रोग और पीड़ाओं से मुक्ति के लिए।।

कौन-सी हवन सामग्रियां किस प्रयोजन में बहुत प्रभावी होती हैं-
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1. दूध में डूबे आम के पत्ते - बुखार

2. शहद और घी - मधुमेह

3. ढाक के पत्ते - आंखों की बीमारी

4. खड़ी मसूर, घी, शहद, शक्कर - मुख रोग

5. कन्दमूल या कोई भी फल - गर्भाशय या गर्भ शिशु दोष

6. भाँग,धतुरा - मनोरोग

7. गूलर, आँवला - शरीर में दर्द

8. घी लगी दूब या दूर्वा - कोई भयंकर रोग या असाध्य बीमारी

9. बेल या कोई फल - उदर यानी पेट की बीमारियां

10. बेलगिरि, आँवला, सरसों, तिल - किसी भी तरह का रोग शांति

11. घी - लंबी आयु के लिए

अगर शादी में अनावश्यक विलम्ब हो रहा है तो इस मंत्र का प्रयोग करते हुए पाठ 

करे:-

पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्। तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्।।


रोग से छुटकारा पाने के लिए:

रोगानषेषानपहंसि तुष्टा रूष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।

त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।


सौभाग्य प्राप्ति हेतु:

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।

रूपं देहि जयं देहि यषो देहि द्विषो जहि।।


सम्पूर्ण बाधा निवारण हेतु:

ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो, धन धान्य सुतान्वितः | मनुष्यो तप्रसादेन, भविष्यति न 


संशयः ॐ ||

12. घी लगी आक की लकडी और पत्ते - शरीर की रक्षा और स्वास्थ्य के लिए।

लक्ष्मी प्राप्ति हेतु शुभ मुहूत्र्त में श्री सूक्त के 21 हजार पाठ अथवा सवा लाख पाठ 

करके ,पाठ किये हुये संख्या का दशांश हवन विल्व पत्र व खीर से करना चाहिये 

जिससे लक्ष्मी माता प्रसन्न होती है।

प्रतियोगिता परीक्षाओं या अन्य परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करने के लिये :-

गणेश स्त्रोत के नित्य पाॅच पाठ करने चाहिये और 451 पाठ करने के बाद मालती 


के पुष्पों से दशांश हवन करना चाहिये।

यह प्रक्रिया , एक वर्ष में चार बार करनी चाहिये जिससे सरस्वती माता प्रसन्नचित 

होती है जिसके फल स्वरुप परीक्षाओं में सफलता प्रदान करती है।

पुत्र या सन्तान प्राप्ति हेतु :-
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शुभ महूत्र्त में सन्तान गोपाल मन्त्र के 21 हजार मन्त्रों का जाप करना चाहिये 


अथवा गोपाल सहस्त्रानाम का प्रतिदिन पूर्ण पाठ करके बालस्वरुप कृष्ण भगवान 

का माखन . मिश्री का भोग लगाना चाहिये पाठ शुरु करते समय घी का दीपक 

प्रज्ज्वलित करके पाठ के पूर्ण करने तक रखना चाहिये। माखन खाते हुये कृष्ण 

भगवान की तश्वीर जिस कमरे शयन करते हैए उसमें अपने सम्मुख स्थायी रुप से 

रख लेनी चाहिये। पाठ का दशांश हवन नारियल किशमिश व कमल पुष्पों से करना 

चाहिये। और हरिवंश पुराण का श्रवण करने से भी सन्तान की प्राप्ति होती है। 

हरिवंश पुराण का श्रवण असाध्य रोगियों के लिये विशेष लाभप्रद है।

अंत में----- ह्रीं यज्ञ यज्ञपतिम् गच्छ यज्ञं गच्छ हुताशन स्वांग योनिं गच्छ यज्ञेत 


पूरयास्मान मनोरथान अग्नेयै क्षमस्व। इसके बाद जल वाले पात्र को उलट कर रख 

दें।

नोट- हवन कुंड की अग्नि के पूरी तरह शांत होने के बाद बची सामग्री को समेट कर 

किसी नदीं, जलाशय या आज के परिप्रेक्ष्य में भूमि में गड्ढा खोदकर डालकर ढंक 

दें। यदि इसकी राख को खेतों में डाला जाए तो निश्चय ही उसकी उर्वरा शक्ति में 

भारी बढ़ोतरी होगी।

क्यों करना चाहिए.. हवन... वैज्ञानिक पहलु
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वैदिक हवन की सामग्रियां:-

तिल, जौं, सफेद चन्दन का चूरा , अगर , तगर , गुग्गुल, जायफल, दालचीनी, 


तालीसपत्र , पानड़ी , लौंग , बड़ी इलायची , गोला , छुहारे नागर मौथा , इन्द्र जौ , 

कपूर कचरी , आँवला ,गिलोय, जायफल, ब्राह्मी तुलसी किशमिशग, बालछड़ , घी 

विभिन्न हवन सामग्रियाँ विभिन्न प्रकार के लाभ देती हैं विभिन्न रोगों से लड़ने की 

क्षमता देती हैं. प्राचीन काल में रोगी को स्वस्थ करने हेतु भी विभिन्न हवन होते थे। 
जिसे वैद्य या चिकित्सक रोगी और रोग की प्रकृति के अनुसार करते थे पर 

कालांतर में ये यज्ञ या हवन मात्र धर्म से जुड़ कर ही रह गए और इनके अन्य 
उद्देश्य लोगों द्वारा भुला दिए गये ।।

सिर भारी या दर्द होने पर किस प्रकार हवन से इलाज होता था इस श्लोक से देखिये :-

श्वेता ज्योतिष्मती चैव हरितलं मनःशिला।। गन्धाश्चा गुरुपत्राद्या धूमं 


मुर्धविरेचनम्।। (चरक सू- ५/२६-२७)

अर्थात अपराजिता , मालकांगनी , हरताल, मैनसिल, अगर तथा तेज़पात्र औषधियों 


को हवन करने से शिरो व्विरेचन होता है। परन्तु अब ये चिकित्सा पद्धति विलुप्त 

प्राय हो गयी है।

एक नज़र कुछ रोगों और उनके नाश के लिए प्रयुक्त होने वाली हवन सामग्री :-

१. सर के रोग:- सर दर्द, अवसाद, उत्तेजना, उन्माद मिर्गी आदि के लिए ब्राह्मी, 


शंखपुष्पी , जटामांसी, अगर , शहद , कपूर , पीली सरसो ।

२ स्त्री रोगों, वात पित्त, लम्बे समय से आ रहे बुखार हेतु बेल, श्योनक, अदरख, 

जायफल, निर्गुण्डी, कटेरी, गिलोय इलायची, शर्करा, घी, शहद, सेमल, शीशम ।

३ पुरुषों को पुष्ट बलिष्ठ करने और पुरुष रोगों हेतु सफेद चन्दन का चूरा , अगर , 

तगर , अश्वगंधा , पलाश , कपूर , मखाने, गुग्गुल, जायफल, दालचीनी, तालीसपत्र 

, लौंग , बड़ी इलायची , गोला ।

४. पेट एवं लिवर रोग हेतु भृंगराज , आमला , बेल , हरड़, अपामार्ग, गूलर, दूर्वा , 

गुग्गुल घी , इलायची ।

५ श्वास रोगों हेतु वन तुलसी, गिलोय, हरड , खैर अपामार्ग, काली मिर्च, अगर 

तगर, कपूर, दालचीनी, शहद, घी, अश्वगंधा, आक, यूकेलिप्टिस।

मित्रों हवन यज्ञ का विज्ञान इतना वृहद है की एक लेख में समेट पाना मुश्किल है 

परन्तु एक छोटा सा प्रयास किया है की इसके महत्त्व पर कुछ सूचनाएँ आप तक 

पहुंच सकें। विभिन्न खोजें और हमारे ग्रन्थ यही निष्कर्ष देते हैं की स्वास्थ, 

पर्यावरण, समाज और शरीर के लिए हवन का आज भी बहुत महत्त्व है। जरूरत 

बस इस बात की है की हम पहले इसके मूल कारण को समझे और फिर इसे 

अपनाएं।

अगर हम हवन पद्वती की शूक्ष्मता से परखें तो निश्चित एक सफल वैज्ञानिक 

प्रमाणिकता नजर आऐगी।।

हवन (यज्ञ) के वैज्ञानिक पहलू:-
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(१) मुख्यतः आम की लकड़ी पर किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो 

फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नमक गैस उत्पन्न होती है जो की खतरनाक बैक्टीरिया और 

जीवाणुओ को मरती है तथा वातावरण को शुद्द करती है। इस रिसर्च के बाद ही 

वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला। गुड़ को जलने पर भी 

ये गैस उत्पन्न होती है।

(२) टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्च में ये पाया की यदि 

आधे घंटे हवन में बैठा जाये अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो तो 

टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध 

हो जाता है।

(३) हवन की मत्ता देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के 

वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च करी की क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्द 

होता है और जीवाणु नाश होता है अथवा नही. उन्होंने ग्रंथो. में वर्णित हवन सामग्री जुटाई और जलने पर पाया की ये विषाणु नाश करती है। फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा की सिर्फ आम की लकड़ी १ किलो जलने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए पर जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डाल कर जलायी गयी एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बॅक्टेरिया का स्तर ९४ % कम हो गया। यही नही. उन्होंने आगे भी कक्ष की हवा में मौजुद जीवाणुओ का परीक्षण किया और पाया की कक्ष के दरवाज़े खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के २४ घंटे बाद भी जीवाणुओ का स्तर सामान्य से ९६ प्रतिशत कम था। बार बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ की इस एक बार के धुएं का असर एक माह तक रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्य से बहुत कम था। हवन के द्वारा वनस्पतियों फसलों को नुकसान पहुचाने वाले बैक्टीरिया का नाश होता है। जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है।

क्या हो हवन की समिधा (जलने वाली लकड़ी):- समिधा के रूप में आम की लकड़ी 

सर्वमान्य है परन्तु अन्य समिधाएँ भी विभिन्न कार्यों हेतु प्रयुक्त होती हैं। सूर्य की 

समिधा मदार की, चन्द्रमा की पलाश की, मङ्गल की खैर की, बुध की चिड़चिडा 

की, बृहस्पति की पीपल की, शुक्र की गूलर की, शनि की शमी की, राहु दूर्वा की और केतु की कुशा की समिधा कही गई है। मदार की समिधा रोग को नाश करती है, पलाश की सब कार्य सिद्ध करने वाली, पीपल की प्रजा (सन्तति) काम कराने वाली, गूलर की स्वर्ग देने वाली, शमी की पाप नाश करने वाली, दूर्वा की दीर्घायु देने वाली और कुशा की समिधा सभी मनोरथ को सिद्ध करने वाली होती है। हव्य (आहुति देने योग्य द्रव्यों) के प्रकार प्रत्येक ऋतु में आकाश में भिन्न-भिन्न प्रकार के वायुमण्डल रहते हैं। सर्दी, गर्मी, नमी, वायु का भारीपन, हलकापन, धूल, धुँआ, बर्फ आदि का भरा होना। विभिन्न प्रकार के कीटणुओं की उत्पत्ति, वृद्धि एवं समाप्ति का क्रम चलता रहता है। इसलिए कई बार वायुमण्डल स्वास्थ्यकर होता है। कई बार अस्वास्थ्यकर हो जाता है। इस प्रकार की विकृतियों को दूर करने और अनुकूल वातावरण उत्पन्न करने के लिए हवन में ऐसी औषधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं, जो इस उद्देश्य को भली प्रकार पूरा कर सकती हैं।

होम द्रव्य:-
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होम-द्रव्य अथवा हवन सामग्री वह जल सकने वाला पदार्थ है जिसे यज्ञ (हवन/होम) 


की अग्नि में मन्त्रों के साथ डाला जाता है। (१) सुगन्धित : केशर, अगर, तगर, 

चन्दन, इलायची, जायफल, जावित्री छड़ीला कपूर कचरी बालछड़ पानड़ीआदि !

(२) पुष्टिकारक : घृत, गुग्गुल ,सूखे फल, जौ, तिल, चावल शहद नारियल आदि

(३) मिष्ट – शक्कर, छूहारा, दाख आदि (४) रोग नाशक -गिलोय, जायफल, 

सोमवल्ली ब्राह्मी तुलसी अगर तगर तिल इंद्रा जव आमला मालकांगनी हरताल 

तेजपत्र प्रियंगु केसर सफ़ेद चन्दन जटामांसी आदि उपरोक्त चारों प्रकार की वस्तुएँ 

हवन में प्रयोग होनी चाहिए।

अन्नों के हवन से मेघ-मालाएँ अधिक अन्न उपजाने वाली वर्षा करती हैं। 

सुगन्धित द्रव्यों से विचारों शुद्ध होते हैं, मिष्ट पदार्थ स्वास्थ्य को पुष्ट एवं शरीर को आरोग्य प्रदान करते हैं, इसलिए चारों प्रकार के पदार्थों को समान महत्व दिया जाना चाहिए।

यदि अन्य वस्तुएँ उपलब्ध न हों, तो जो मिले उसी से अथवा केवल घी, तिल, जौ, 

चावल से भी नियमित हवन करने से भी वातावरण को सुद्ध रख सकते हैं।

-यदि किसी भी जप- तप के बाद दशमांश आहुतियां उचित संविधा और सामग्री केे 

द्वारा ...हवन किया जाय तो निश्चित ही मनोवांछित लाभ प्राप्त होता है...|