शनिवार, 10 अक्तूबर 2020

माँ बगलामुखी पञ्चास्त्र मंत्र प्रयोग से शत्रु समूह नष्ट हो जाता है

 बगलामुखी एकोन-पञ्चाशदक्षर मंत्र – 


|| ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं श्रीबगलानने मम रिपून् नाशय नाशय ममैश्वर्याणि देहि देहि शीघ्रं मनोवाञ्छितं कार्यं साधय साधय ह्रीं श्रीं स्वाहा 


|| उक्त मंत्र उभय एवं उर्ध्वाम्नाय के हैं । अतः ध्यान – ध्यानः- हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे – 

सौवर्णासन संस्थिता त्रिनयनां पीतांशुकोल्लासिनीम्, हेमाभांगरुचिं शशांक मुकुटां सच्चम्पक स्रग्युताम् । हस्तैर्मुद्गर पाश वज्र रसनाः संबिभ्रतीं भूषणै र्व्याप्तांगीं, बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिंतयेत् ।।

अथवा 

गंभीरा च मदोन्मत्तां तप्त-काञ्चन-सन्निभां, चतुर्भुजां त्रिनयनां कमलासन संस्थिताम् । मुद्गरं दक्षिणे पाशं वामे जिह्वां च वज्रकं, पीताम्बरधरां सान्द्र-वृत्त पीन-पयोधराम् ।। हेमकुण्डलभूषां च पीत चन्द्रार्द्ध शेखरां, पीतभूषणभूषां च स्वर्ण-सिंहासने स्थिताम् ।।

अथवा 

वन्दे स्वर्णाभवर्णा मणिगण विलसद्धेम सिंहासनस्थां, पीतं वासो वसानां वसुपद मुकुटोत्तंस हारांगदाढ्याम् । पाणिभ्यां वैरिजिह्वामध उपरिगदां विभ्रतीं तत्पराभ्यां, हस्ताभ्यां पाशमुच्चैरध उदितवरां वेदबाहुं भवानीम् ।। 


माँ बगलामुखी पञ्चास्त्र मंत्र 

वडवामुखी स्तम्भनकारक है | उल्कामुखी तीनो लोको का स्तम्भन करने में समर्थ है | ज्वालामुखी देवताओ और ऋषियों का स्तम्भन कर देती है | जातवेदमुखी ब्रह्मा-विष्णु-महेश का भी स्तम्भन करने में समर्थ है | सभी कमी प्रयोगो की सिद्धि के लिए बृहद्भानुमुखी मन्त्र का प्रयोग किया जाता है | 

ये माँ बगलामुखी के पञ्चास्त्र इतने तीव्र है की इनके प्रयोग से शत्रु समूह उसी प्रकार नष्ट हो जाता है जिस प्रकार जंगल की आग से सब कुछ नष्ट हो जाता है | 

केवल दीक्षित साधक को ही इनका प्रयोग करने का अधिकार है | शत्रुओं से पीड़ित व्यक्ति मुझसे संपर्क कर सकते हैं | 


बगलामुखी पञ्च-पञ्चाशदक्षर मंत्र – प्रथमास्त्र (वडवा-मुखी)


|| ॐ ह्लीं हूं ग्लौं वगलामुखि ह्लां ह्लीं ह्लूं सर्व-दुष्टानां ह्लैं ह्लौं ह्लः वाचं मुखं पदं स्तम्भय ह्लः ह्लौं ह्लैं जिह्वां कीलय ह्लूं ह्लीं ह्लां बुद्धिं विनाशय ग्लौं हूं ह्लीं हुं फट् || 


बगलामुखी अष्ट-पञ्चाशदक्षर मंत्र – (उल्कामुख्यास्त्र) 

|| ॐ ह्लीं ग्लौं वगलामुखि ॐ ह्लीं ग्लौं सर्व-दुष्टानां ॐ ह्लीं ग्लौं वाचं मुखं पदं ॐ ह्लीं ग्लौं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं ग्लौं जिह्वां कीलय ॐ ह्लीं ग्लौं बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ ग्लौं ह्लीं ॐ स्वाहा ||

बगलामुखि एकोन-षष्ट्यक्षर उपसंहार विद्या – 

|| ग्लौं हूम ऐं ह्रीं ह्रीं श्रीं कालि कालि महा-कालि एहि एहि काल-रात्रि आवेशय आवेशय महा-मोहे महा-मोहे स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर स्तम्भनास्त्र-शमनि हुं फट् स्वाहा || 


बगलामुखी षष्ट्यक्षर जात-वेद मुख्यस्त्र – 


|| ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ वगलामुखि सर्व-दुष्टानां ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ वाचं मुखं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ जिह्वां कीलय ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ बुद्धिं नाशय नाशय ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ स्वाहा ||


बगलामुखी षडुत्तर-शताक्षर वृहद्भानु-मुख्यस्त्र – 


|| ॐ ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ॐ वगलामुखि ॐ ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः सर्व-दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः जिह्वां कीलय ॐ ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः बुद्धिं नाशय ॐ ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ॐ स्वाहा ||

बगलामुखी अशीत्यक्षर हृदय मंत्र – 

|| आं ह्लीं क्रों ग्लौं हूं ऐं क्लीं श्रीं ह्रीं वगलामुखि आवेशय आवेशय आं ह्लीं क्रों ब्रह्मास्त्ररुपिणि एहि एहि आं ह्लीं क्रों मम हृदये आवाहय आवाहय सान्निध्यं कुरु कुरु आं ह्लीं क्रों ममैव हृदये चिरं तिष्ठ तिष्ठ आं ह्लीं क्रों हुं फट् स्वाहा ||

बगलामुखी शताक्षर मंत्र – 

|| ह्लीं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ग्लौं ह्लीं वगलामुखि स्फुर स्फुर सर्व-दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय प्रस्फुर प्रस्फुर विकटांगि घोररुपि जिह्वां कीलय महाभ्मरि बुद्धिं नाशय विराण्मयि सर्व-प्रज्ञा-मयी प्रज्ञां नाशय, उन्मादं कुरु कुरु, मनो-पहारिणि ह्लीं ग्लौं श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं ह्लीं स्वाहा ||





शनिवार, 26 सितंबर 2020

भगवान श्री राम स्तुति

 जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।


गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिधुंसुता प्रिय कंता।।


पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई।

जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई।।
जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा।
अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा।।
जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगतमोह मुनिबृंदा।
निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं जयति सच्चिदानंदा।।
जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा।
सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा।।
जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा।
मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुर जूथा।।
सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहि जाना।
जेहि दीन पिआरे बेद पुकारे द्रवउ सो श्रीभगवाना।।
भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा।
मुनि सिद्ध सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा।।

रविवार, 20 सितंबर 2020

बगलामुखी मन्त्र, बगला गायत्री व पाण्डवी चेटिका बगला विद्या

 बगलामुखी विंशोत्तर-शताक्षर ज्वालामुख्यस्त्र –  


ॐ ह्लीं रां रीं रुं रैं रौं प्रस्फुर प्रस्फुर ज्वाला-मुखि १३ सर्व-दुष्टानां १३ वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय १३ जिह्वां कीलय कीलय १३ बुद्धिं नाशय नाशय १३ स्वाहा || 


बगलामुखी गायत्री मन्त्र – 

१॰ || ह्लीं वगलामुखी विद्महे दुष्ट-स्तम्भनी धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् || 

२॰ || ॐ ह्लीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भन-वाणाय धीमहि तन्नो वगला प्रचोदयात् || 

३॰ || ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भनं तन्नः वगला प्रचोदयात् || 

४॰ || ॐ वगलामुख्यै विद्महे स्तम्भिन्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् || 

५॰ || बगलाम्बायै विद्महे ब्रह्मास्त्र विद्यायै धीमहि तन्न स्तम्भिनी प्रचोदयात् || 

६॰ || ॐ ऐं बगलामुखि विद्महे ॐ क्लीं कान्तेश्वरि धीमहि ॐ सौः तन्नः प्रह्लीं प्रचोदयात् || 


अन्य मन्त्र – १॰ || ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स ४ ह ४ क ४ परा-षोडशी हंसः सौहं ह्लौं ह्लौं || २॰ || ॐ क्षीं ॐ नमो भगवते क्षीं पक्षि-राजाय क्षीं सर्व-अभिचार-ध्वंसकाय क्षीं ॐ हुं फट् स्वाहा || 


बगलामुखी शाबर मंत्र – || ॐ मलयाचल बगला भगवती महाक्रूरी महा-कराली राज-मुख-बंधंन ग्राम मुख-बंधंन ग्राम पुरुबंधंन कालमुखबंधंन चौरमुखबंधंन सर्व-दुष्ट-ग्रहबंधंन सर्व-जन-बंधंन वशीकुरु हुं फट् स्वाहा || 


पाण्डवी चेटिका विद्या – 

|| ॐ पाण्डवी बगले बगलामुखि शत्रोः पदं स्तंभय स्तंभय क्लीं ह्रीं श्रीं ऐं ह्लीं स्फ्रीं स्वाहा || 

ध्यानम् – 

पीताम्बरां पीतवर्णां पीतगन्धानुलेपनाम् । 

प्रेतासनां पीतवर्णां विचित्रां पाण्डवीं भजे ।। 

प्रतिपदा शुक्रवार को जपे । ३० हजार कुसुंभ-कुसुमों से होम करे । प्रसन्न होकर पाण्डवी साधक को वस्त्र प्रदान करती है तथा शत्रु का स्तम्भन करती है ।