शनिवार, 10 अक्तूबर 2020

माँ बगलामुखी पञ्चास्त्र मंत्र प्रयोग से शत्रु समूह नष्ट हो जाता है

 बगलामुखी एकोन-पञ्चाशदक्षर मंत्र – 


|| ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं श्रीबगलानने मम रिपून् नाशय नाशय ममैश्वर्याणि देहि देहि शीघ्रं मनोवाञ्छितं कार्यं साधय साधय ह्रीं श्रीं स्वाहा 


|| उक्त मंत्र उभय एवं उर्ध्वाम्नाय के हैं । अतः ध्यान – ध्यानः- हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे – 

सौवर्णासन संस्थिता त्रिनयनां पीतांशुकोल्लासिनीम्, हेमाभांगरुचिं शशांक मुकुटां सच्चम्पक स्रग्युताम् । हस्तैर्मुद्गर पाश वज्र रसनाः संबिभ्रतीं भूषणै र्व्याप्तांगीं, बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिंतयेत् ।।

अथवा 

गंभीरा च मदोन्मत्तां तप्त-काञ्चन-सन्निभां, चतुर्भुजां त्रिनयनां कमलासन संस्थिताम् । मुद्गरं दक्षिणे पाशं वामे जिह्वां च वज्रकं, पीताम्बरधरां सान्द्र-वृत्त पीन-पयोधराम् ।। हेमकुण्डलभूषां च पीत चन्द्रार्द्ध शेखरां, पीतभूषणभूषां च स्वर्ण-सिंहासने स्थिताम् ।।

अथवा 

वन्दे स्वर्णाभवर्णा मणिगण विलसद्धेम सिंहासनस्थां, पीतं वासो वसानां वसुपद मुकुटोत्तंस हारांगदाढ्याम् । पाणिभ्यां वैरिजिह्वामध उपरिगदां विभ्रतीं तत्पराभ्यां, हस्ताभ्यां पाशमुच्चैरध उदितवरां वेदबाहुं भवानीम् ।। 


माँ बगलामुखी पञ्चास्त्र मंत्र 

वडवामुखी स्तम्भनकारक है | उल्कामुखी तीनो लोको का स्तम्भन करने में समर्थ है | ज्वालामुखी देवताओ और ऋषियों का स्तम्भन कर देती है | जातवेदमुखी ब्रह्मा-विष्णु-महेश का भी स्तम्भन करने में समर्थ है | सभी कमी प्रयोगो की सिद्धि के लिए बृहद्भानुमुखी मन्त्र का प्रयोग किया जाता है | 

ये माँ बगलामुखी के पञ्चास्त्र इतने तीव्र है की इनके प्रयोग से शत्रु समूह उसी प्रकार नष्ट हो जाता है जिस प्रकार जंगल की आग से सब कुछ नष्ट हो जाता है | 

केवल दीक्षित साधक को ही इनका प्रयोग करने का अधिकार है | शत्रुओं से पीड़ित व्यक्ति मुझसे संपर्क कर सकते हैं | 


बगलामुखी पञ्च-पञ्चाशदक्षर मंत्र – प्रथमास्त्र (वडवा-मुखी)


|| ॐ ह्लीं हूं ग्लौं वगलामुखि ह्लां ह्लीं ह्लूं सर्व-दुष्टानां ह्लैं ह्लौं ह्लः वाचं मुखं पदं स्तम्भय ह्लः ह्लौं ह्लैं जिह्वां कीलय ह्लूं ह्लीं ह्लां बुद्धिं विनाशय ग्लौं हूं ह्लीं हुं फट् || 


बगलामुखी अष्ट-पञ्चाशदक्षर मंत्र – (उल्कामुख्यास्त्र) 

|| ॐ ह्लीं ग्लौं वगलामुखि ॐ ह्लीं ग्लौं सर्व-दुष्टानां ॐ ह्लीं ग्लौं वाचं मुखं पदं ॐ ह्लीं ग्लौं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं ग्लौं जिह्वां कीलय ॐ ह्लीं ग्लौं बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ ग्लौं ह्लीं ॐ स्वाहा ||

बगलामुखि एकोन-षष्ट्यक्षर उपसंहार विद्या – 

|| ग्लौं हूम ऐं ह्रीं ह्रीं श्रीं कालि कालि महा-कालि एहि एहि काल-रात्रि आवेशय आवेशय महा-मोहे महा-मोहे स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर स्तम्भनास्त्र-शमनि हुं फट् स्वाहा || 


बगलामुखी षष्ट्यक्षर जात-वेद मुख्यस्त्र – 


|| ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ वगलामुखि सर्व-दुष्टानां ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ वाचं मुखं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ जिह्वां कीलय ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ बुद्धिं नाशय नाशय ॐ ह्लीं ह्सौं ह्लीं ॐ स्वाहा ||


बगलामुखी षडुत्तर-शताक्षर वृहद्भानु-मुख्यस्त्र – 


|| ॐ ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ॐ वगलामुखि ॐ ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः सर्व-दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः जिह्वां कीलय ॐ ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः बुद्धिं नाशय ॐ ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ह्ल्रां ह्ल्रीं ह्ल्रूं ह्ल्रैं ह्ल्रौं ह्ल्रः ॐ स्वाहा ||

बगलामुखी अशीत्यक्षर हृदय मंत्र – 

|| आं ह्लीं क्रों ग्लौं हूं ऐं क्लीं श्रीं ह्रीं वगलामुखि आवेशय आवेशय आं ह्लीं क्रों ब्रह्मास्त्ररुपिणि एहि एहि आं ह्लीं क्रों मम हृदये आवाहय आवाहय सान्निध्यं कुरु कुरु आं ह्लीं क्रों ममैव हृदये चिरं तिष्ठ तिष्ठ आं ह्लीं क्रों हुं फट् स्वाहा ||

बगलामुखी शताक्षर मंत्र – 

|| ह्लीं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ग्लौं ह्लीं वगलामुखि स्फुर स्फुर सर्व-दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय प्रस्फुर प्रस्फुर विकटांगि घोररुपि जिह्वां कीलय महाभ्मरि बुद्धिं नाशय विराण्मयि सर्व-प्रज्ञा-मयी प्रज्ञां नाशय, उन्मादं कुरु कुरु, मनो-पहारिणि ह्लीं ग्लौं श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं ह्लीं स्वाहा ||





शनिवार, 26 सितंबर 2020

भगवान श्री राम स्तुति

 जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।


गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिधुंसुता प्रिय कंता।।


पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई।

जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई।।
जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा।
अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा।।
जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगतमोह मुनिबृंदा।
निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं जयति सच्चिदानंदा।।
जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा।
सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा।।
जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा।
मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुर जूथा।।
सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहि जाना।
जेहि दीन पिआरे बेद पुकारे द्रवउ सो श्रीभगवाना।।
भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा।
मुनि सिद्ध सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा।।

रविवार, 20 सितंबर 2020

बगलामुखी मन्त्र, बगला गायत्री व पाण्डवी चेटिका बगला विद्या

 बगलामुखी विंशोत्तर-शताक्षर ज्वालामुख्यस्त्र –  


ॐ ह्लीं रां रीं रुं रैं रौं प्रस्फुर प्रस्फुर ज्वाला-मुखि १३ सर्व-दुष्टानां १३ वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय १३ जिह्वां कीलय कीलय १३ बुद्धिं नाशय नाशय १३ स्वाहा || 


बगलामुखी गायत्री मन्त्र – 

१॰ || ह्लीं वगलामुखी विद्महे दुष्ट-स्तम्भनी धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् || 

२॰ || ॐ ह्लीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भन-वाणाय धीमहि तन्नो वगला प्रचोदयात् || 

३॰ || ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भनं तन्नः वगला प्रचोदयात् || 

४॰ || ॐ वगलामुख्यै विद्महे स्तम्भिन्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् || 

५॰ || बगलाम्बायै विद्महे ब्रह्मास्त्र विद्यायै धीमहि तन्न स्तम्भिनी प्रचोदयात् || 

६॰ || ॐ ऐं बगलामुखि विद्महे ॐ क्लीं कान्तेश्वरि धीमहि ॐ सौः तन्नः प्रह्लीं प्रचोदयात् || 


अन्य मन्त्र – १॰ || ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स ४ ह ४ क ४ परा-षोडशी हंसः सौहं ह्लौं ह्लौं || २॰ || ॐ क्षीं ॐ नमो भगवते क्षीं पक्षि-राजाय क्षीं सर्व-अभिचार-ध्वंसकाय क्षीं ॐ हुं फट् स्वाहा || 


बगलामुखी शाबर मंत्र – || ॐ मलयाचल बगला भगवती महाक्रूरी महा-कराली राज-मुख-बंधंन ग्राम मुख-बंधंन ग्राम पुरुबंधंन कालमुखबंधंन चौरमुखबंधंन सर्व-दुष्ट-ग्रहबंधंन सर्व-जन-बंधंन वशीकुरु हुं फट् स्वाहा || 


पाण्डवी चेटिका विद्या – 

|| ॐ पाण्डवी बगले बगलामुखि शत्रोः पदं स्तंभय स्तंभय क्लीं ह्रीं श्रीं ऐं ह्लीं स्फ्रीं स्वाहा || 

ध्यानम् – 

पीताम्बरां पीतवर्णां पीतगन्धानुलेपनाम् । 

प्रेतासनां पीतवर्णां विचित्रां पाण्डवीं भजे ।। 

प्रतिपदा शुक्रवार को जपे । ३० हजार कुसुंभ-कुसुमों से होम करे । प्रसन्न होकर पाण्डवी साधक को वस्त्र प्रदान करती है तथा शत्रु का स्तम्भन करती है ।


शनिवार, 5 सितंबर 2020

श्री दारिद्रय दहन स्तोत्रम्

श्री दारिद्रय दहन स्तोत्रम् ।।

विश्वेशराय नरकार्णवतारणाय
कर्णामृताय शशिशेखर धारणाय।
कर्पूर कान्ति धवलाय, जटाधराय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।1।।

गौरी प्रियाय रजनीश कलाधराय,
कालांतकाय भुजगाधिप कंकणाय।
गंगाधराय गजराज विमर्दनाय
द्रारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।2।।

भक्तिप्रियाय भवरोग भयापहाय
उग्राय दुर्ग भवसागर तारणाय।
ज्योतिर्मयाय गुणनाम सुनृत्यकाय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।3।।

चर्माम्बराय शवभस्म विलेपनाय,
भालेक्षणाय मणिकुंडल-मण्डिताय।
मँजीर पादयुगलाय जटाधराय
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।4।।

पंचाननाय फणिराज विभूषणाय
हेमांशुकाय भुवनत्रय मंडिताय।
आनंद भूमि वरदाय तमोमयाय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।5।।

भानुप्रियाय भवसागर तारणाय,
कालान्तकाय कमलासन पूजिताय।
नेत्रत्रयाय शुभलक्षण लक्षिताय
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।6।।

रामप्रियाय रधुनाथ वरप्रदाय
नाग प्रियाय नरकार्णवताराणाय।
पुण्येषु पुण्य भरिताय सुरार्चिताय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।7।।

मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय
गीतप्रियाय वृषभेश्वर वाहनाय।
मातंग चर्म वसनाय महेश्वराय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।8।।

वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्व रोग निवारणम्
सर्व संपत् करं शीघ्रं पुत्र पौत्रादि वर्धनम्।।
शुभदं कामदं ह्दयं धनधान्य प्रवर्धनम्
त्रिसंध्यं यः पठेन् नित्यम् स हि स्वर्गम वाप्नुयात ।।9।।

।। इति श्रीवशिष्ठरचितं दारिद्रयुदुखदहन शिवस्तोत्रम संपूर्णम् ।।

गुरुवार, 18 जून 2020

इन्सान मंदिर क्यों जाता है

कांजी भाई और pk कोर्ट में हाजिर हुए >>

वकील : हाँ तो आप दोनों का कहना है कि इन्सान
डर के कारण मंदिर जाता है और मूर्ति पूजा गलत है।
कांजी भाई : जी बिलकुल। ईश्वर तो सभी जगह है
उसको मंदिर में ढूँढने की क्या आवश्यकता है।
वकील : आप का मतलब है कि मंदिर में नहीं है।
कांजी भाई : वहां भी है।
वकील : तो फिर आप लोगो को मंदिर जाना क्यों
पाखंड लगता है?
कांजी भाई : हमारा मतलब है मंदिर ही क्यों
जाना मूर्ति में ही क्यों?? जब सभी जगह है तो
जरूरत ही क्या है पूजा करने की बस मन में ही पूजा
कर लो।
वकील-'हा हा हा हा '
कांजी भाई- इसमें हंसने की क्या बात है??
वकील दोनो को घूरते हुए आगे बड़ा और पुछा- एक
बात बताइए आप पानी केसे पीते है?
'पानी कैसे पीते है?
ये कैसा पागलो जासा सवाल है जज साहब?कांजी
बोला'
वकील लगभग चिल्लाते हुए - मैं पूछता हूँ आप पानी
कैसे पीते है ?
कांजी भाई हडबडाते हुए - ज ज ज जी ग्लास से।
पॉइंट टू बी नोटेड मी लार्ड कांजी भाई ग्लास से
पानी पीते है
और ये pk तो इस ग्रह का आदमी नहीं है फिर भी पूछ
लेते है।
क्यों भाई तुम पानी कैसे पीते हो?
pk- जी मैं भी ग्लास से पीता हूँ।
वकील कांजी भाई की और मुड़ते हुए - कांजी भाई
एक बात बताइए जब पानी हाइड्रोजन और
आक्सीजन के रूप में इस हवा में भी मोजूद है तो आप
हवा में से सूंघकर पानी क्यों नहीं पी लेते?
और ऐसा कहकर वकील ने हवा में लगभग नाक को
तीन बार अलग अलग घुसेड़ते हुए बताया मानो हवा से
नाक से पानी पी रहा हो।
कांजी भाई झुंझलाकर बोला - जज साहब वकील
साहब कैसी बाते कर रहे है?भला इस प्रकार हवा से
सूंघकर पानी कैसे पिया जा सकता है ?पानी पीने के
लिए किसी ग्लास की जरूरत तो पड़ेगी ही।
और वकील जेसे कांजी पर टूट पड़ा हो- इसी प्रकार
कांजी भाई जैसे आप यह जानते हुए भी कि पानी
सभी जगह मोजूद है आप को पानी पीने के लिए
ग्लास की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार यह
जानते हुए भी कि ईश्वर सभी जगह मोजूद है उसके
बावजूद हमें मूर्ति ,मंदिर या तीर्थस्थल की
आवश्यकता होती है ताकि हम ईश्वर की सरलता से
ध्यान लगाकर आराधना कर सके ।

कांजी भाई चुप।
और अब pk को भी बात समझ में आ चुकि थी कि
आदमी मंदिर क्यों जाता है

रविवार, 17 मई 2020

श्री दैवी कवच व अमोध श्री शिवमाला मंत्र


किसी भी प्रकार की महामारी एवं घातक रोग की निवृति एवं बचाव के लिए दैवी कवच पूर्ण रूप से प्रभावी हैं प्रतिदिन तीन आवृति पाठ करें।

श्री दैवी कवच

चण्डीकवचम् श्रीगणेशाय नमः अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः , अनुष्टुप् छन्दः , चामुण्डा देवता , अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम् , दिग्बन्धदेवतास्तत्वम् , श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः नमश्चण्डिकायै ॐमार्कण्डेय उवाच ॐयद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम् यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह १॥ ब्रह्मोवाच अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम् देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने २॥ प्रथमं शैलपुत्रीति द्वितीयं ब्रह्मचारिणी तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ३॥ पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति सप्तमं कालरात्रिश्च महागौरीति चाष्टमम् ४॥ नवमं सिद्धिदात्री नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ५॥ अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे विषमे दुर्गे चैव भयार्ताः शरणं गताः ६॥ तेषां जायते किञ्चिदशुभं रणसङ्कटे नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं नहि ७॥ यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां सिद्धिः प्रजायते प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना ८॥ ऐन्द्री गजसमारुढा वैष्णवी गरुडासना माहेश्वरी वृषारुढा कौमारी शिखिवाहना ९॥ ब्राह्मी हंससमारुढा सर्वाभरणभूषिता नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिता १०॥ दृश्यन्ते रथमारुढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं मुसलायुधम् ११॥ खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव कुन्तायुधं त्रिशूलं शार्ङ्गमायुधमुत्तमम् १२॥ दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां हिताय वै १३॥ महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनी त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि १४॥ प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेयामग्निदेवता दक्षिणेऽवतु वाराही नैऋत्यां खड्गधारिणी १५॥ प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद्वायव्यां मृगवाहिनी उदीच्यां रक्ष कौबेरि ईशान्यां शूलधारिणी १६॥ ऊर्ध्वं ब्रह्माणी मे रक्षेदधस्ताद्वैष्णवी तथा एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना १७॥ जया मे अग्रतः स्थातु विजया स्थातु पृष्ठतः अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता १८॥ शिखां मे द्योतिनी रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता मालाधरी ललाटे भ्रुवौ रक्षेद्यशस्विनी १९॥ त्रिनेत्रा भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा नासिके शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी २०॥ कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शाङ्करी नासिकायां सुगन्धा उत्तरोष्ठे चर्चिका २१॥ अधरे चामृतकला जिह्वायां सरस्वती दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठमध्ये तु चण्डिका २२॥ घण्टिकां चित्रघण्टा महामाया तालुके कामाक्षी चिबुकं रक्षेद्वाचं मे सर्वमङ्गला २३॥ ग्रीवायां भद्रकाली पृष्ठवंशे धनुर्धरी नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी २४॥ खड्गधारिण्युभौ स्कन्धौ बाहू मे वज्रधारिणी हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीस्तथा २५॥ नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत् कुक्षौ रक्षेन्नलेश्वरी स्तनौ रक्षेन्महालक्ष्मीर्मनःशोकविनाशिनी २६॥ हृदये ललितादेवी उदरे शूलधारिणी नाभौ कामिनी रक्षेद्गुह्यं गुह्येश्वरी तथा २७॥ कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी भूतनाथा मेढ्रं मे ऊरू महिषवाहिनी २८॥ जङ्घे महाबला प्रोक्ता सर्वकामप्रदायिनी गुल्फयोर्नारसिंही पादौ चामिततेजसी २९॥ पादाङ्गुलीः श्रीर्मे रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी नखान्दंष्ट्राकराली केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी ३०॥ रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा रक्तमज्जावमांसान्यस्थिमेदांसी पार्वती ३१॥ अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं मुकुटेश्वरी पद्मावती पद्मकोशे कफे चुडामणिस्तथा ३२॥ ज्वालामुखी नखज्वाला अभेद्या सर्वसन्धिषु शुक्रं ब्रह्माणी मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा ३३॥ अहङ्कारं मनो बुद्धिं रक्ष मे धर्मचारिणि प्राणापानौ तथा व्यानं समानोदानमेव ३४॥ यशः कीर्तिं लक्ष्मीं सदा रक्षतु वैष्णवी गोत्रमिन्द्राणी मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके ३५॥ पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी मार्गं क्षेमकरी रक्षेद्विजया सर्वतः स्थिता ३६॥ रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी ३७॥ पदमेकं गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्राधिगच्छति ३८॥ तत्र तत्रार्थ लाभश्च विजयः सार्वकामिकः यं यं कामयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम् ३९॥ परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान् निर्भयो जायते मर्त्यः सङ्ग्रामेष्व पराजितः ४०॥ त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान् इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् ४१॥ यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोकेष्व पराजितः ४२॥ जीवेद्वर्षशतं साग्रमपमृत्यु विवर्जितः नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः ४३॥ स्थावरं जङ्गमं वापि कृत्रिमं चापि यद्विषम् अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले ४४॥ भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः सहजाः कुलजा मालाः शाकिनी डाकिनी तथा ४५॥ अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः ४६॥ ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते ४७॥ मानोन्नतिर्भवेद्राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम् यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले ४८॥ जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम् ४९॥ तावत्तिष्ठति मेदिन्यां सन्ततिः पुत्रपौत्रकी देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम् ५०॥ प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः ५१॥ इति श्रीवाराहपुराणे हरिहरब्रह्मविरचितं देव्याः कवचं सम्पूर्णम्

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कवच करने के बाद अमोध शिव माला मंत्र की भी तीन आवृत्ति किया जाना चाहिए।

अमोध श्री शिवमाला मंत्र

नमो भगवते सदाशिवाय ! त्र्यंबक सदाशिव ! नमस्ते नमस्ते ! ह्रीं ह्लीं लूं : एं ऐं महाघोरेशाय नम: ! ह्रीं ह्रौं शं नमो भगवते सदाशिवाय !

सकल तत्त्वात्मकाय , आनंद संदोहाय , सर्वमंत्रस्वरुपाय , सर्वयंत्राधिष्ठिताय , सर्वतंत्रप्रेरकाय , सर्वतत्त्वविदूराय , सर्वतत्त्वाधिष्ठिताय , ब्रह्मरुद्रावतारिणे , नीलकण्ठाय , पार्वतीमनोहरप्रियाय , महारुद्राय , सोमसूर्याग्निलोचनाय , भस्मोध्दूलितविग्रहाय , अष्टगंधादि गंधोपशोभिताय , शेषाधिपमुकुटभूषिताय , महामणिमुकुटधारणाय , सर्पालंकाराय , माणिक्यभूषणाय , सृष्टिस्थितिप्रलय काल रौद्रावताराय , दक्षाध्वरध्वंसकाय , महाकाल भेदनाय , महाकालोग्ररुपाय , मूलाधारैकनिलयाय !

तत्त्वातीताय , गंगाधराय , महाप्रपात विषभेदनाय ,महाप्रलयांतनृत्याधिष्ठिताय ,सर्वदेवाधिदेवाय , षडाश्रयाय , सकलवेदांत साराय ,त्रिवर्गसाधनायानंतकोटि ब्रह्माण्डनायकाया अनंत वासुकि तक्षक कर्कोटक शंख कुलिक पद्म महापद्म इति अष्ट महानागकुल भूषणाय प्रणवस्वरुपाय ! ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्र: , हां हीं हूं हैं हौं : !

चिदाकाशाय आकाशादि दिक स्वरुपाय ,ग्रहनक्षत्रादि सर्वप्रपंचमालिने ,सकलाय ,कलंकरहिताय ,सकललौकेक कर्त्रे ,सकललौकेकभर्त्रे , सकललौकेकसंहर्त्रे , सकललौकेकगुरवे , सकललौकेकसाक्षिणे , सकलनिगमगुह्याय ,सकलवेदांतपारगाय , सकललौकेक वरप्रदाय ,सकललौकेकसर्वदाय ,शर्मदाय ,सकललौकेक शंकराय !

शशांकशेखराय ,शाश्वत निजावासाय ,निराभासाय ,निराभयाय ,निर्मलाय ,निर्लोभाय ,निर्मदाय , निश्चिंताय , निरहंकाराय , निरंकुशाय ,निष्कलंकाय , निर्गुणाय , निष्कामाय , निरुप्लवाय ,निरवद्याय , निरंतराय , निष्कारणाय , निरातंकाय , निष्प्रयप्रकाय ,नि:संगाय ,निर्द्वंद्वाय , निराधाराय , नीरागाय ,निष्क्रोधाय , निर्मलाय ,निष्पापाय , निर्भयाय , निर्विकल्पाय , निस्तुलाय , नि:संशयाय , निरंजनाय ,निरुपमविभवाय , नित्यशुद्धबुद्ध परिपूर्ण सच्चिदानंदाद्वयाय हसौं हसौ: ह्रीं सौं क्ष क्लीं क्ष स्फ्रिं ऐं क्लीं सौ: क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्षौं क्ष: !
परमशांत स्वरुपाय , सोहं तेजोरुपाय , हंस तेजोमयाय , सच्चिदेकं ब्रह्ममहामंत्र स्वरुपाय , श्रीं ह्रीं क्लीं नमो भगवते विश्वगुरवे , स्मरणमात्रसंतुष्टाय , महाज्ञानप्रदाय , सच्चिदानंदात्मने , महायोगिने ,सर्वकामफलप्रदाय , भवबंधप्रमोचनाय , क्रों सकलविभूतिदाय ,क्रीं सर्वविश्व आकर्षणाय !

जय जय रुद्र , महारौद्र , वीरभद्रावतार , महाभैरव , कालभैरव , कल्पांतभैरव , कपालमालाधर , खटवांग खडग चर्म पाशांकुश डमरु शूल चाप बाण गदा शक्ति भिंदिपाल तोमर मुसल मुद्गर पाश वज्र परिघ भुशुंडी शतघ्नी ब्रह्मास्त्र पाशुपतास्त्र आदि महा अस्त्र चक्रायुधाय !

भीषणकर , सहस्त्रमुख दंष्ट्रा करालवदन , विकटाट्टहास , विस्फारित ब्रह्मांडमंडल , नागेंद्र कुंडल , नागेंद्रहार , नागेंद्र वलय , नागेंद्र चर्मधर ,मृत्युंजय, त्र्यंबक ,त्रिपुरांतक , विश्वरुप , विरुपाक्ष , विश्वंभर , विश्वेश्वर , वृषभवाहन , वृषविभूषण , विश्वतोमुख ! सर्वतो मां रक्ष रक्ष , ज्वल ज्वल ,प्रज्वल प्रज्वल , स्फुर स्फुर , आवेशय आवेशय , मम हृदये प्रवेशय प्रवेशय , प्रस्फुर प्रस्फुर !

महामृत्युं अपमृत्युंभयं नाशय नाशय , चोरभयम उत्सादय उत्सादय , विषसर्पभयं शमय शमय , चौरान मारय मारय , मम शत्रून उच्चाटय उच्चाटय , मम क्रोधादि सर्व सूक्ष्मतमात स्थूलतमात स्थूलतम पर्यंत स्थितान शत्रून उच्चाटय उच्चाटय ,त्रिशूलेन विदारय विदारय, कुठारेण भिंधि भिंधि , खडगेन छिंधि छिंधि , खटवांगेन विपोथय विपोथय , मुसलेन निष्पेषय निष्पेषय , बाणै: संताडय संताडय , रक्षांसि भीषय भीषय ,अशेष भूतानि विद्रावय विद्रावय , कूष्मांड वेताल मारीच गण ब्रह्मराक्षस गणान संत्रासय संत्रासय , सर्वरोगादि महाभयान मम अभयं कुरु कुरु , वित्रस्तं माम आश्वासय आश्वासय , नरक महाभयान माम उद्धार उद्धर , संजीवय संजीवय , क्षुत तृषा ईर्ष्यादि विकारेभ्यो माम आप्यायय आप्यायय ,दु:खातुरं माम आनंदय आनंदय , शिवकवचेन माम आच्छादय आच्छादय !
मृत्युंजय , त्र्यंबक , सदाशिव ! नमस्ते नमस्ते शं ह्रीं ह्रौं !

रुद्राय नमः
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