रविवार, 18 मार्च 2018

दुर्गा सप्तशती से कामनापूर्ति

कुछ लोग दुर्गा सप्तशती के पाठ के बाद हवन खुद की मर्जी से कर लेते है और हवन सामग्री भी खुद की मर्जी से लेते है ये उनकी गलतियों को सुधारने के लिए है।
दुर्गा सप्तशती के वैदिक आहुति की सामग्री---(एक बार ये भी करके देखे और खुद महसुस करे चमत्कारो को)
प्रथम अध्याय-एक पान देशी घी में भिगोकर 1 कमलगट्टा, 1 सुपारी, 2 लौंग, 2 छोटी इलायची, गुग्गुल, शहद यह सब चीजें सुरवा में रखकर खडे होकर आहुति देना।
द्वितीय अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, गुग्गुल विशेष
तृतीय अध्याय- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक सं. 38 शहद
चतुर्थ अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं.1से11 मिश्री व खीर विशेष,
चतुर्थ अध्याय- के मंत्र संख्या 24 से 27 तक इन 4 मंत्रों की आहुति नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से देह नाश होता है। इस कारण इन चार मंत्रों के स्थान पर ओंम नमः चण्डिकायै स्वाहा’ बोलकर आहुति देना तथा मंत्रों का केवल पाठ करना चाहिए इनका पाठ करने से सब प्रकार का भय नष्ट हो जाता है।
पंचम अध्ययाय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 9 मंत्र कपूर, पुष्प, व ऋतुफल ही है।
षष्टम अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 23 भोजपत्र।
सप्तम अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक सं. 10 दो जायफल श्लोक संख्या 19 में सफेद चन्दन श्लोक संख्या 27 में इन्द्र जौं।
अष्टम अध्याय- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 54 एवं 62 लाल चंदन।
नवम अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या श्लोक संख्या 37 में 1 बेलफल 40 में गन्ना।
दशम अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 5 में समुन्द्र झाग 31 में कत्था।
एकादश अध्याय- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 2 से 23 तक पुष्प व खीर श्लोक संख्या 29 में गिलोय 31 में भोज पत्र 39 में पीली सरसों 42 में माखन मिश्री 44 मेें अनार व अनार का फूल श्लोक संख्या 49 में पालक श्लोक संख्या 54 एवं 55 मेें फूल चावल और सामग्री।
द्वादश अध्याय- प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 10 मेें नीबू काटकर रोली लगाकर और पेठा श्लोक संख्या 13 में काली मिर्च श्लोक संख्या 16 में बाल-खाल श्लोक संख्या 18 में कुशा श्लोक संख्या 19 में जायफल और कमल गट्टा श्लोक संख्या 20 में ऋीतु फल, फूल, चावल और चन्दन श्लोक संख्या 21 पर हलवा और पुरी श्लोक संख्या 40 पर कमल गट्टा, मखाने और बादाम श्लोक संख्या 41 पर इत्र, फूल और चावल
त्रयोदश अध्याय-प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 27 से 29 तक फल व फूल।

दुर्गा सप्तशती के अध्याय से कामनापूर्ति-
1- प्रथम अध्याय- हर प्रकार की चिंता मिटाने के लिए।
2- द्वितीय अध्याय- मुकदमा झगडा आदि में विजय पाने के लिए।
3- तृतीय अध्याय- शत्रु से छुटकारा पाने के लिये।
4- चतुर्थ अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिये।
5- पंचम अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिए।
6- षष्ठम अध्याय- डर, शक, बाधा ह टाने के लिये।
7- सप्तम अध्याय- हर कामना पूर्ण करने के लिये।
8- अष्टम अध्याय- मिलाप व वशीकरण के लिये।
9- नवम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये।
10- दशम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये।
11- एकादश अध्याय- व्यापार व सुख-संपत्ति की प्राप्ति के लिये।
12- द्वादश अध्याय- मान-सम्मान तथा लाभ प्राप्ति के लिये।
13- त्रयोदश अध्याय- भक्ति प्राप्ति के लिये।

दुर्गा सप्तशती का पाठ करने और सिद्ध करने की मुख्य विधियाँ:--

सामान्य विधि : 
नवार्ण मंत्र जप और सप्तशती न्यास के बाद तेरह अध्यायों का क्रमशः पाठ, प्राचीन काल में कीलक, कवच और अर्गला का पाठ भी सप्तशती के मूल मंत्रों के साथ ही किया जाता रहा है। आज इसमें अथर्वशीर्ष, कुंजिका मंत्र, वेदोक्त रात्रि देवी सूक्त आदि का पाठ भी समाहित है जिससे साधक एक घंटे में देवी पाठ करते हैं। 

वाकार विधि :
यह विधि अत्यंत सरल मानी गयी है। इस विधि में प्रथम दिन एक पाठ प्रथम अध्याय, दूसरे दिन दो पाठ द्वितीय, तृतीय अध्याय, तीसरे दिन एक पाठ चतुर्थ अध्याय, चौथे दिन चार पाठ पंचम, षष्ठ, सप्तम व अष्टम अध्याय, पांचवें दिन दो अध्यायों का पाठ नवम, दशम अध्याय, छठे दिन ग्यारहवां अध्याय, सातवें दिन दो पाठ द्वादश एवं त्रयोदश अध्याय करके एक आवृति सप्तशती की होती है। 

संपुट पाठ विधि :
किसी विशेष प्रयोजन हेतु विशेष मंत्र से एक बार ऊपर तथा एक नीचे बांधना उदाहरण हेतु संपुट मंत्र मूलमंत्र-1, संपुट मंत्र फिर मूलमंत्र अंत में पुनः संपुट मंत्र आदि इस विधि में समय अधिक लगता है।

सार्ध नवचण्डी विधि : 
इस विधि में नौ ब्राह्मण साधारण विधि द्वारा पाठ करते हैं। एक ब्राह्मण सप्तशती का आधा पाठ करता है। (जिसका अर्थ है- एक से चार अध्याय का संपूर्ण पाठ, पांचवे अध्याय में ''देवा उचुः- नमो देव्ये महादेव्यै'' से आरंभ कर ऋषिरुवाच तक, एकादश अध्याय का नारायण स्तुति, बारहवां तथा तेरहवां अध्याय संपूर्ण) इस आधे पाठ को करने से ही संपूर्ण कार्य की पूर्णता मानी जाती है। एक अन्य ब्राह्मण द्वारा षडंग रुद्राष्टाध्यायी का पाठ किया जाता है। इस प्रकार कुल ग्यारह ब्राह्मणों द्वारा नवचण्डी विधि द्वारा सप्तशती का पाठ होता है। पाठ पश्चात् उत्तरांग करके अग्नि स्थापना कर पूर्णाहुति देते हुए हवन किया जाता है जिसमें नवग्रह समिधाओं से ग्रहयोग, सप्तशती के पूर्ण मंत्र, श्री सूक्त वाहन तथा शिवमंत्र 'सद्सूक्त का प्रयोग होता है जिसके बाद ब्राह्मण भोजन,' कुमारी का भोजन आदि किया जाता है। वाराही तंत्र में कहा गया है कि जो ''सार्धनवचण्डी'' प्रयोग को संपन्न करता है वह प्राणमुक्त होने तक भयमुक्त रहता है, राज्य, श्री व संपत्ति प्राप्त करता है। 

शतचण्डी विधि :
मां की प्रसन्नता हेतु किसी भी दुर्गा मंदिर के समीप सुंदर मण्डप व हवन कुंड स्थापित करके (पश्चिम या मध्य भाग में) दस उत्तम ब्राह्मणों (योग्य) को बुलाकर उन सभी के द्वारा पृथक-पृथक मार्कण्डेय पुराणोक्त श्री दुर्गा सप्तशती का दस बार पाठ करवाएं। इसके अलावा प्रत्येक ब्राह्मण से एक-एक हजार नवार्ण मंत्र भी करवाने चाहिए। शक्ति संप्रदाय वाले शतचण्डी (108) पाठ विधि हेतु अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी तथा पूर्णिमा का दिन शुभ मानते हैं। इस अनुष्ठान विधि में नौ कुमारियों का पूजन करना चाहिए जो दो से दस वर्ष तक की होनी चाहिए तथा इन कन्याओं को क्रमशः कुमारी, त्रिमूर्ति, कल्याणी, रोहिणी, कालिका, शाम्भवी, दुर्गा, चंडिका तथा मुद्रा नाम मंत्रों से पूजना चाहिए। इस कन्या पूजन में संपूर्ण मनोरथ सिद्धि हेतु ब्राह्मण कन्या, यश हेतु क्षत्रिय कन्या, धन के लिए वेश्य तथा पुत्र प्राप्ति हेतु शूद्र कन्या का पूजन करें। इन सभी कन्याओं का आवाहन प्रत्येक देवी का नाम लेकर यथा ''मैं मंत्राक्षरमयी लक्ष्मीरुपिणी, मातृरुपधारिणी तथा साक्षात् नव दुर्गा स्वरूपिणी कन्याओं का आवाहन करता हूं तथा प्रत्येक देवी को नमस्कार करता हूं।'' इस प्रकार से प्रार्थना करनी चाहिए। वेदी पर सर्वतोभद्र मण्डल बनाकर कलश स्थापना कर पूजन करें। शतचण्डी विधि अनुष्ठान में यंत्रस्थ कलश, श्री गणेश, नवग्रह, मातृका, वास्तु, सप्तऋषी, सप्तचिरंजीव, 64 योगिनी 50 क्षेत्रपाल तथा अन्याय देवताओं का वैदिक पूजन होता है। जिसके पश्चात् चार दिनों तक पूजा सहित पाठ करना चाहिए। पांचवें दिन हवन होता है। 

इन सब विधियों (अनुष्ठानों) के अतिरिक्त प्रतिलोम विधि, कृष्ण विधि, चतुर्दशीविधि, अष्टमी विधि, सहस्त्रचण्डी विधि (1008) पाठ, ददाति विधि, प्रतिगृहणाति विधि आदि अत्यंत गोपनीय विधियां भी हैं जिनसे साधक इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति कर सकता है।

नवरात्री घट स्थापना एवं पूजन विधि,...........

हिन्दू शास्त्रों में किसी भी पूजन से पूर्व, भगवान गणेशजी की आराधना का प्रावधान बताया गया है।
माता जी की पूजा में कलश से संबन्धित एक मान्यता है के अनुसार कलश को भगवान श्री गणेश का प्रतिरुप माना गया है। इसलिये सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है। कलश स्थापना करने से पहले पूजा स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाना चाहिए। पूजा में सभी देवताओं आमंत्रित किया जाता है। कलश में सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी,मुद्रा रखी जाती है। और पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है। इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बौये जाते है। जिन्हें दशमी की तिथि पर काटा जाता है। माता दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल के मध्य में स्थापित की जाती है।
कलश स्थापना के बाद, गणेश भगवान और माता दुर्गा जी की आरती से, नौ दिनों का व्रत प्रारंभ किया जाता है। कई व्यक्ति पूरे नौ दिन तो यह व्रत नहीं रख पाते हैं किन्तु प्रारंभ में ही यह संकल्प लिया जाता है कि व्रत सभी नौ दिन रखने हैं अथवा नौ में से कुछ ही दिन व्रत रखना है।

पूजन सामग्री............

माँ दुर्गा की सुन्दर प्रतिमा, माता की प्रतिमा स्थापना के लिए चौकी, लाल वस्त्र , कलश/ घाट , नारियल का फल, पांच पल्लव आम का, फूल,अक्षत, मौली, रोली, पूजा के लिए थाली , धुप और दशांग, गंगा का जल, कुमकुम, गुलाल पान,सुपारी, चौकी,दीप, नैवेद्य,कच्चा धागा, दुर्गा सप्तसती किताब ,चुनरी, पैसा, माता दुर्गा की विशेष कृपा हेतु संकल्प तथा षोडशोपचार पूजन करने के बाद, प्रथम प्रतिपदा तिथि को, नैवेद्य के रूप में गाय का घी माता को अर्पित करना चाहिए तथा पुनः वह घी किसी ब्राह्मण को दे देना चाहिए।

मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

श्री शिव कवच स्तोत्रम

ॐ नमः शिवाय
श्री शिव कवच स्तोत्रम
अस्य श्री शिवकवच स्तोत्रमहामन्त्रस्य ऋषभयोगीश्वर ऋषिः । 
अनुष्टुप् छन्दः ।
श्रीसाम्बसदाशिवो देवता ।
ॐ बीजम् ।
नमः शक्तिः ।
शिवायेति कीलकम् ।
मम साम्बसदाशिवप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥
करन्यासः
ॐ सदाशिवाय अङ्गुष्ठाभ्यां नमः । नं गङ्गाधराय तर्जनीभ्यां नमः । मं मृत्युञ्जयाय मध्यमाभ्यां नमः ।
शिं शूलपाणये अनामिकाभ्यां नमः । वां पिनाकपाणये कनिष्ठिकाभ्यां नमः । यम् उमापतये करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
हृदयादि अङ्गन्यासः
ॐ सदाशिवाय हृदयाय नमः । नं गङ्गाधराय शिरसे स्वाहा । मं मृत्युञ्जयाय शिखायै वषट् ।
शिं शूलपाणये कवचाय हुम् । वां पिनाकपाणये नेत्रत्रयाय वौषट् । यम् उमापतये अस्त्राय फट् । भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्बन्धः ॥
ध्यानम्
वज्रदंष्ट्रं त्रिनयनं कालकण्ठ मरिन्दमम् ।
सहस्रकरमत्युग्रं वन्दे शम्भुम् उमापतिम् ॥
रुद्राक्षकङ्कणलसत्करदण्डयुग्मः पालान्तरालसितभस्मधृतत्रिपुण्ड्रः ।
पञ्चाक्षरं परिपठन् वरमन्त्रराजं ध्यायन् सदा पशुपतिं शरणं व्रजेथाः ॥
अतः परं सर्वपुराणगुह्यं निःशेषपापौघहरं पवित्रम् ।
जयप्रदं सर्वविपत्प्रमोचनं वक्ष्यामि शैवम् कवचं हिताय ते ॥
पञ्चपूजा
लं पृथिव्यात्मने गन्धं समर्पयामि ।
हम् आकाशात्मने पुष्पैः पूजयामि ।
यं वाय्वात्मने धूपम् आघ्रापयामि ।
रम् अग्न्यात्मने दीपं दर्शयामि ।
वम् अमृतात्मने अमृतं महानैवेद्यं निवेदयामि ।
सं सर्वात्मने सर्वोपचारपूजां समर्पयामि ॥
मन्त्रः
ऋषभ उवाच
नमस्कृत्य महादेवं विश्वव्यापिनमीश्वरम् ।
वक्ष्ये शिवमयं वर्म सर्वरक्षाकरं नृणाम् ॥ 1 ॥
शुचौ देशे समासीनो यथावत्कल्पितासनः ।
जितेन्द्रियो जितप्राणश्चिन्तयेच्छिवमव्ययम् ॥ 2 ॥
हृत्पुण्डरीकान्तरसन्निविष्टं स्वतेजसा व्याप्तनभो‌உवकाशम् ।
अतीन्द्रियं सूक्ष्ममनन्तमाद्यं ध्यायेत् परानन्दमयं महेशम् ॥
ध्यानावधूताखिलकर्मबन्ध- श्चिरं चिदानन्द निमग्नचेताः ।
षडक्षरन्यास समाहितात्मा शैवेन कुर्यात्कवचेन रक्षाम् ॥
मां पातु देवो‌खिलदेवतात्मा संसारकूपे पतितं गभीरे ।
तन्नाम दिव्यं परमन्त्रमूलं धुनोतु मे सर्वमघं हृदिस्थम् ॥
सर्वत्र मां रक्षतु विश्वमूर्ति- र्ज्योतिर्मयानन्दघनश्चिदात्मा ।
अणोरणियानुरुशक्तिरेकः स ईश्वरः पातु भयादशेषात् ॥
यो भूस्वरूपेण बिभर्ति विश्वं पायात्स भूमेर्गिरिशो‌ष्टमूर्तिः ।
यो‌உपां स्वरूपेण नृणां करोति सञ्जीवनं सो‌वतु मां जलेभ्यः ॥
कल्पावसाने भुवनानि दग्ध्वा सर्वाणि यो नृत्यति भूरिलीलः ।
स कालरुद्रो‌वतु मां दवाग्नेः वात्यादिभीतेरखिलाच्च तापात् ॥
प्रदीप्तविद्युत्कनकावभासो विद्यावराभीति कुठारपाणिः ।
चतुर्मुखस्तत्पुरुषस्त्रिनेत्रः प्राच्यां स्थितो रक्षतु मामजस्रम् ॥
कुठारखेटाङ्कुश शूलढक्का- कपालपाशाक्ष गुणान्दधानः ।
चतुर्मुखो नीलरुचिस्त्रिनेत्रः पायादघोरो दिशि दक्षिणस्याम् ॥
कुन्देन्दुशङ्खस्फटिकावभासो वेदाक्षमाला वरदाभयाङ्कः ।
त्र्यक्षश्चतुर्वक्त्र उरुप्रभावः सद्यो‌धिजातो‌वतु मां प्रतीच्याम् ॥
वराक्षमालाभयटङ्कहस्तः सरोजकिञ्जल्कसमानवर्णः ।
त्रिलोचनश्चारुचतुर्मुखो मां पायादुदीच्यां दिशि वामदेवः ॥
वेदाभयेष्टाङ्कुशटङ्कपाश- कपालढक्काक्षरशूलपाणिः ।
सितद्युतिः पञ्चमुखो‌वतान्माम् ईशान ऊर्ध्वं परमप्रकाशः ॥
मूर्धानमव्यान्मम चन्द्रमौलिः भालं ममाव्यादथ भालनेत्रः ।
नेत्रे ममाव्याद्भगनेत्रहारी नासां सदा रक्षतु विश्वनाथः ॥
पायाच्छ्रुती मे श्रुतिगीतकीर्तिः कपोलमव्यात्सततं कपाली ।
वक्त्रं सदा रक्षतु पञ्चवक्त्रो जिह्वां सदा रक्षतु वेदजिह्वः ॥
कण्ठं गिरीशो‌वतु नीलकण्ठः पाणिद्वयं पातु पिनाकपाणिः ।
दोर्मूलमव्यान्मम धर्मबाहुः वक्षःस्थलं दक्षमखान्तको‌व्यात् ॥
ममोदरं पातु गिरीन्द्रधन्वा मध्यं ममाव्यान्मदनान्तकारी ।
हेरम्बतातो मम पातु नाभिं पायात्कटिं धूर्जटिरीश्वरो मे ॥
ऊरुद्वयं पातु कुबेरमित्रो जानुद्वयं मे जगदीश्वरो‌व्यात् ।
जङ्घायुगं पुङ्गवकेतुरव्यात् पादौ ममाव्यात्सुरवन्द्यपादः ॥
महेश्वरः पातु दिनादियामे मां मध्ययामे‌वतु वामदेवः ।
त्रिलोचनः पातु तृतीययामे वृषध्वजः पातु दिनान्त्ययामे ॥
पायान्निशादौ शशिशेखरो मां गङ्गाधरो रक्षतु मां निशीथे ।
गौरीपतिः पातु निशावसाने मृत्युञ्जयो रक्षतु सर्वकालम् ॥
अन्तःस्थितं रक्षतु शङ्करो मां स्थाणुः सदा पातु बहिःस्थितं माम् ।
तदन्तरे पातु पतिः पशूनां सदाशिवो रक्षतु मां समन्तात् ॥
तिष्ठन्तमव्याद् भुवनैकनाथः पायाद्व्रजन्तं प्रमथाधिनाथः ।
वेदान्तवेद्यो‌वतु मां निषण्णं मामव्ययः पातु शिवः शयानम् ॥
मार्गेषु मां रक्षतु नीलकण्ठः शैलादिदुर्गेषु पुरत्रयारिः ।
अरण्यवासादि महाप्रवासे पायान्मृगव्याध उदारशक्तिः ॥
कल्पान्तकालोग्रपटुप्रकोप- स्फुटाट्टहासोच्चलिताण्डकोशः ।
घोरारिसेनार्णव दुर्निवार- महाभयाद्रक्षतु वीरभद्रः ॥
पत्त्यश्वमातङ्गरथावरूथिनी- सहस्रलक्षायुत कोटिभीषणम् ।
अक्षौहिणीनां शतमाततायिनां छिन्द्यान्मृडो घोरकुठार धारया ॥
निहन्तु दस्यून्प्रलयानलार्चिः ज्वलत्त्रिशूलं त्रिपुरान्तकस्य । शार्दूलसिंहर्क्षवृकादिहिंस्रान् सन्त्रासयत्वीशधनुः पिनाकः ॥
दुः स्वप्न दुः शकुन दुर्गति दौर्मनस्य- दुर्भिक्ष दुर्व्यसन दुःसह दुर्यशांसि । उत्पाततापविषभीतिमसद्ग्रहार्तिं व्याधींश्च नाशयतु मे जगतामधीशः ॥
ॐ नमो भगवते सदाशिवाय
सकलतत्वात्मकाय सर्वमन्त्रस्वरूपाय सर्वयन्त्राधिष्ठिताय सर्वतन्त्रस्वरूपाय सर्वतत्वविदूराय ब्रह्मरुद्रावतारिणे नीलकण्ठाय पार्वतीमनोहरप्रियाय सोमसूर्याग्निलोचनाय भस्मोद्धूलितविग्रहाय महामणि मुकुटधारणाय माणिक्यभूषणाय सृष्टिस्थितिप्रलयकाल- रौद्रावताराय दक्षाध्वरध्वंसकाय महाकालभेदनाय मूलधारैकनिलयाय तत्वातीताय गङ्गाधराय सर्वदेवादिदेवाय षडाश्रयाय वेदान्तसाराय त्रिवर्गसाधनाय अनन्तकोटिब्रह्माण्डनायकाय अनन्त वासुकि तक्षक- कर्कोटक शङ्ख कुलिक- पद्म महापद्मेति- अष्टमहानागकुलभूषणाय प्रणवस्वरूपाय चिदाकाशाय आकाश दिक् स्वरूपाय ग्रहनक्षत्रमालिने सकलाय कलङ्करहिताय सकललोकैककर्त्रे सकललोकैकभर्त्रे सकललोकैकसंहर्त्रे सकललोकैकगुरवे सकललोकैकसाक्षिणे सकलनिगमगुह्याय सकलवेदान्तपारगाय सकललोकैकवरप्रदाय सकललोकैकशङ्कराय सकलदुरितार्तिभञ्जनाय सकलजगदभयङ्कराय शशाङ्कशेखराय शाश्वतनिजावासाय निराकाराय निराभासाय निरामयाय निर्मलाय निर्मदाय निश्चिन्ताय निरहङ्काराय निरङ्कुशाय निष्कलङ्काय निर्गुणाय निष्कामाय निरूपप्लवाय निरुपद्रवाय निरवद्याय निरन्तराय निष्कारणाय निरातङ्काय निष्प्रपञ्चाय निस्सङ्गाय निर्द्वन्द्वाय निराधाराय नीरागाय निष्क्रोधाय निर्लोपाय निष्पापाय निर्भयाय निर्विकल्पाय निर्भेदाय निष्क्रियाय निस्तुलाय निःसंशयाय निरञ्जनाय निरुपमविभवाय नित्यशुद्धबुद्धमुक्तपरिपूर्ण- सच्चिदानन्दाद्वयाय परमशान्तस्वरूपाय परमशान्तप्रकाशाय तेजोरूपाय तेजोमयाय तेजो‌धिपतये जय जय रुद्र महारुद्र महारौद्र भद्रावतार महाभैरव कालभैरव कल्पान्तभैरव कपालमालाधर खट्वाङ्ग चर्मखड्गधर पाशाङ्कुश- डमरूशूल चापबाणगदाशक्तिभिन्दिपाल- तोमर मुसल मुद्गर पाश परिघ- भुशुण्डी शतघ्नी चक्राद्यायुधभीषणाकार- सहस्रमुखदंष्ट्राकरालवदन विकटाट्टहास विस्फारित ब्रह्माण्डमण्डल नागेन्द्रकुण्डल नागेन्द्रहार नागेन्द्रवलय नागेन्द्रचर्मधर नागेन्द्रनिकेतन मृत्युञ्जय त्र्यम्बक त्रिपुरान्तक विश्वरूप विरूपाक्ष विश्वेश्वर वृषभवाहन विषविभूषण विश्वतोमुख सर्वतोमुख मां रक्ष रक्ष ज्वलज्वल प्रज्वल प्रज्वल महामृत्युभयं शमय शमय अपमृत्युभयं नाशय नाशय रोगभयम् उत्सादयोत्सादय विषसर्पभयं शमय शमय चोरान् मारय मारय मम शत्रून् उच्चाटयोच्चाटय त्रिशूलेन विदारय विदारय कुठारेण भिन्धि भिन्धि खड्गेन छिन्द्दि छिन्द्दि खट्वाङ्गेन विपोधय विपोधय मुसलेन निष्पेषय निष्पेषय बाणैः सन्ताडय सन्ताडय यक्ष रक्षांसि भीषय भीषय अशेष भूतान् विद्रावय विद्रावय कूष्माण्डभूतवेतालमारीगण- ब्रह्मराक्षसगणान् सन्त्रासय सन्त्रासय मम अभयं कुरु कुरु मम पापं शोधय शोधय वित्रस्तं माम् आश्वासय आश्वासय नरकमहाभयान् माम् उद्धर उद्धर अमृतकटाक्षवीक्षणेन मां- आलोकय आलोकय सञ्जीवय सञ्जीवय क्षुत्तृष्णार्तं माम् आप्यायय आप्यायय दुःखातुरं माम् आनन्दय आनन्दय शिवकवचेन माम् आच्छादय आच्छादय
हर हर मृत्युञ्जय त्र्यम्बक सदाशिव परमशिव नमस्ते नमस्ते नमः ॥
पूर्ववत् – हृदयादि न्यासः ।
पञ्चपूजा ॥
भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्विमोकः ॥
फलश्रुतिः
ऋषभ उवाच इत्येतत्परमं शैवं कवचं व्याहृतं मया ।
सर्व बाधा प्रशमनं रहस्यं सर्व देहिनाम् ॥
यः सदा धारयेन्मर्त्यः शैवं कवचमुत्तमम् ।
न तस्य जायते कापि भयं शम्भोरनुग्रहात् ॥
क्षीणायुः प्राप्तमृत्युर्वा महारोगहतो‌உपि वा ।
सद्यः सुखमवाप्नोति दीर्घमायुश्च विन्दति ॥
सर्वदारिद्रयशमनं सौमाङ्गल्यविवर्धनम् ।
यो धत्ते कवचं शैवं स देवैरपि पूज्यते ॥
महापातकसङ्घातैर्मुच्यते चोपपातकैः ।
देहान्ते मुक्तिमाप्नोति शिववर्मानुभावतः ॥
त्वमपि श्रद्दया वत्स शैवं कवचमुत्तमम् ।
धारयस्व मया दत्तं सद्यः श्रेयो ह्यवाप्स्यसि ॥
श्रीसूत उवाच
इत्युक्त्वा ऋषभो योगी तस्मै पार्थिव सूनवे ।
ददौ शङ्खं महारावं खड्गं च अरिनिषूदनम् ॥
पुनश्च भस्म संमन्त्र्य तदङ्गं परितो‌உस्पृशत् ।
गजानां षट्सहस्रस्य त्रिगुणस्य बलं ददौ ॥
भस्मप्रभावात् सम्प्राप्तबलैश्वर्य धृति स्मृतिः ।
स राजपुत्रः शुशुभे शरदर्क इव श्रिया ॥
तमाह प्राञ्जलिं भूयः स योगी नृपनन्दनम् ।
एष खड्गो मया दत्तस्तपोमन्त्रानुभावतः ॥
शितधारमिमं खड्गं यस्मै दर्शयसे स्फुटम् ।
स सद्यो म्रियते शत्रुः साक्षान्मृत्युरपि स्वयम् ॥
अस्य शङ्खस्य निर्ह्रादं ये शृण्वन्ति तवाहिताः ।
ते मूर्च्छिताः पतिष्यन्ति न्यस्तशस्त्रा विचेतनाः ॥
खड्गशङ्खाविमौ दिव्यौ परसैन्यविनाशकौ ।
आत्मसैन्यस्वपक्षाणां शौर्यतेजोविवर्धनौ ॥
एतयोश्च प्रभावेन शैवेन कवचेन च ।
द्विषट्सहस्र नागानां बलेन महतापि च ॥
भस्मधारण सामर्थ्याच्छत्रुसैन्यं विजेष्यसे ।
प्राप्य सिंहासनं पित्र्यं गोप्ता‌सि पृथिवीमिमाम् ॥
इति भद्रायुषं सम्यगनुशास्य समातृकम् ।
ताभ्यां सम्पूजितः सो‌थ योगी स्वैरगतिर्ययौ ॥
इति श्रीस्कान्दमहापुराणे ब्रह्मोत्तरखण्डे शिवकवच प्रभाव वर्णनं नाम द्वादशो‌ध्यायः सम्पूर्णः ॥ ॥

इस कवच का 1200 पाठ करने से भगवान शिव अत्यधिक प्रसन्न होते है इस कवच की सिद्धि के लिए मुझसे संपर्क कर लें  | 




शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

रक्तचामुंडा वशीकरण मंत्र

मंत्र   रक्तचामुंडा वशीकरण मंत्र 
ओम ह्रीं रक्तचामुण्डे  तुरु तुरु अमुकम मे वशमानय  स्वाहा 

  दुर्गा देवी का सामान्य पूजन करके इस मंत्र का दो लाख जप करे,रुद्राक्ष की माला  से । जप समय देवी रक्त चामुंडा का ध्यान करे । रक्त चामुंडा का स्वरुप दुर्गा सप्तशती में बताया गया है । जप का दशांश हवन तद्दशांश तर्पण तद्दशांश मार्जन तद्दशांश कन्या भोजन कराने पर मंत्र सिद्ध हो जाता है 

सिद्धि के पश्चात प्रयोग करते समय साध्य का नाम अमुक के स्थान पर लेने से खान-पान में प्रयोग करने से अचूक काम करता है