सोमवार, 23 सितंबर 2013

पितृ शांति साधना

यह साधना किसी भी पूर्णिमा अथवा अमावस्या को करे या शनिवार को भी की जा सकती है.

समय शाम का होगा सूर्यास्त के समय करे.

दिशा पूर्व हो.पीले वस्त्र धारण करे आसन पिला हो.सामने बजोट पर पिला कपडा बिछाये 

और उस पर गुरु चित्र स्थापित कर सामान्य पूजन करे फिर वही सामने एक शकर की ढ़ेरी बनाये,एक
 
सफ़ेद तिल की बनाये और एक कटोरी में थोडा घी भी रखे.एक नारियल का गोला भी रखे.

अब ३० 
दिन तक बिना माला के 

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

मंत्र का जाप करे.फिर ३ माला गायत्री मंत्र की करे.अब गोले को थोडा सा काटकर उसमे ये तील,शकर और 

घी भर दे और गोले को फिर से बंद कर दे.ऊपर पुनः नारियल का जो गोला काटा था उससे ही बंद करे और 

आस पास गिले आटा लगा दे ताकि गोला खुले नहीं और इस गोले को जाकर किसी पीपल वृक्ष के निचे गाड

 दे और बिना पीछे मुड़े घर आ जाये.जाप के बाद सारे जाप पितरो को समर्पित कर दे.इस साधना से पित्र 

तृप्त होते है और साधक को आशीर्वाद देते है.
ब्रह्मानंदम  परमसुखदं केवलं ज्ञानमुर्तिम ।  द्वान्दातीतम गगन सदृशम तत्वमास्यादी लक्ष्यम ।  एकं नित्यं विमलं अचलं सर्व धिः साक्षीभूतम । भावातीतम त्रिगुण रहितम सद्गुरुम  तं नमामि । 

रविवार, 22 सितंबर 2013

कैंसर की इस से अच्छी और कारगर दवा कोई नहीं है:

कैंसर की इस से अच्छी और कारगर दवा कोई नहीं है:

4 बार उबला हुआ और हर बार उबालने से पहले मलाई उतरा हुआ दूध, या फिर फिर कम वसा वाला देसी


गाय का दूध वो भी मलाई उतरा हुआ। ऐसा 300 ग्राम दूध अगले दिन सुबह सुबह उबाल कर उसमे नीम्बू

 निचोड़ कर फाड़ लें। फिर उस दूध को छलनी में छानकर पानी फेक दें। उस पनीर को अच्छी तरह धोकर

 हाथ से कुचलते हुए धोकर किसी महीन कपडे या जाली में दबाकर निचोड़कर उसका सारा पानी निकाल दें। 

फिर वो पनीर किसी कटोरी में डालें, ऊपर से अलसी का 20-30 ग्राम तेल डालकर, पनीर में मिलाकर 

सुबह खाली पेट खाएं। यही कैंसर का उपचार है. गोमूत्र का मालूम नहीं, लेकिन ये अलसी तेल वाला उपचार 

स्वानुभूत है। ध्यान देने योग्य बात: पनीर में वसा और पानी नहीं होना चाहिए, या बोहोत ही कम होना 

चाहिए। घर का बना पनीर ही इस्तेमाल करना है। इस दवा को बनाने में जो भी बर्तन अथवा जाली प्रयोग

 होंगी, वो किसी भी साबुन या केमिकल से ना धोई जाएँ। जर्सी गाय का दूध इस्तेमाल नहीं करना है, देसी 

गाय का सर्वोत्तम है, अन्यथा भैंस का दूध प्रयोग कर सकते हैं। इस दवा को खाने के बाद पानी या तरल का

 सेवन नहीं करना है, सीधे भोजन ही करना है, वो भी कम से कम 45 मिनट बाद ही। अलसी तेल बाज़ार 

का बोतल बंद नहीं लेना है, किसी भी कच्ची घानी से खुद निकलवा कर लायें, वो भी मशीन साफ़ करवाकर 

अन्यथा उसमे अन्य पुराने तेलों की गंध आएगी। अलसी तेल में उपचारात्मक गुण तेल निकाले जाने के

 25-30 दिन बाद ख़त्म होने लगते हैं, इसलिए तेल ताज़ा ही उचित रहेगा। कच्ची घानी किसी गाँधी आश्रम 

में मिलने की संभावना हैं, वरना अब तो मशीन ही प्रयोग की जा रही हैं। दवा के सेवनकाल में रिफाइंड तेल,

 रिफाइंड नमक और रिफाइंड चीनी का प्रयोग वर्जित है, मांसाहार तो बिलकुल नहीं करना है. चाय, कोफी 

और कोई भी मद्य पदार्थ का सेवन करें ही नहीं अथवा बोहोत कम ही करें। बस, इतना ही है, लाभ उठाएं।

ये विश्वविख्यात दवाई है, पता नहीं हमारे ही देश में क्यों इसकी जानकारी नहीं है लोगों को।