शनिवार, 11 जनवरी 2014

मनोकामना पूर्ति का एक सरल प्रयोग:



आपके और हमारे मन में हर समय कोई न कोई मनोकामना जरुर होती है और मनोकामना पूर्ण होने पर हमें अत्यंत प्रसन्नता होती है । हर मानव मन चाहता है की उसकी मनोकामना पूर्ण हो । कोई  चमत्कार हो जाए जिससे उसकी कामना पूर्ण हो जाये । कुछ लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण भी हो जाती हैं । लेकिन हर व्यक्ति के साथ चमत्कार नहीं हो सकता । लेकिन तंत्र में कई गुप्त क्रियाएं,  मंत्र, साधनायें और विधान हैं जिनकी सहायता से आप अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते हैं और हर व्यक्ति अपने जीवन में चमत्कार जैसे शब्दों का प्रयोग कर सकता है । तो आपके जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन लाने के लिए एक ऐसी ही साधना जिसे
आप पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ करें और लाभ उठाएं ।
आप एक नारियल लेकर (जो की जटा से युक्त हो) उसे सिंदूर मे तिल का तेल मिलकर और गीला कर उस से पूरा रंग दें और अपने मन की कामना पूरी होने की प्रार्थना माँ भगवती जगदम्बा से करें और निम्न मंत्र का 15 मिनट तक उतनी ही जोर से उच्चारण करें, जितने मे आपको ही सुनाई दे । किसी और को नहीं ।
मंत्र :- ॥ ॐ ईं ह्रीं कं ह्रीं ईं ॐ ॥
ये क्रम आपको 7 दिन तक करना है । याद रहे नारियल सिर्फ पहले दिन ही स्थापित करना है । अंतिम दिन क्रिया पूरी होने के बाद
नारियल को किसी नदी या तालाब मे विसर्जित कर दें और किसी बच्ची को जो घर से सम्बंधित ना हो उसे कुछ मिठाई और धन दे दें ।
ये क्रिया असाध्य कामना भी सहज सिद्ध कर देती है । आवशयकता है मात्र पूर्ण विश्वास की । प्रयोग करें और अपने अनुभव बताएं ॥

बुधवार, 8 जनवरी 2014

महाकाल भैरव महा मंत्र

महाकाल भैरव महा मंत्र

साधक मित्रो मैं आज आपको एक ऐसा मन्त्र दे रहा हूँ ..जिसके सिद्ध करने के बाद असफल कुछ भी नहीं रहता ..साधक मित्रो ये एक ऐसा मंत्र है इसे सिद्ध करने के बाद कुछ भी नहीं शेष रहता ....बस आवशकता है तो कठिन अभ्यास और एकाग्रता और दृढ़ इच्छाशक्ति के साधना की ....इस मंत्र को सिद्ध करने के लिए आप का दैनिक व्यवहार सात्विक न किसी को गलत बोलना न गलत सुन्ना .और विषय भोग का त्याग ..कुछ ही दिनों में आपको पता चल जायेगा क्या परिवर्तन हो रहा है ...! ये सर्व कार्य सिद्धि मंत्र है ..( ये देहात भाषा में साबर मंत्र है इसके व्याकरण को बदलने का प्रयास न करे ) ये मूल भाषा में ही मंत्र है ..!
महाकाल भैरव अमोघ मंत्र माला मंत्र:-
ॐ गुरूजी काला भैरू कपिला केश ,काना मदरा भगवा भेस मार मार काली पुत्र बरह कोस की मार भूता हाथ कलेजी खुहां गेडिया जहाँ जाऊं भेरुं साथ ,बारह कोस की सिद्धि ल्यावो , चौबीस कोस की सिद्धि ल्यावो सूती होय तो जगाय ल्यावो बैठा होय तो उंय ल्यावो अनंत
केसर की भारी ल्यावो गौरा पारवती की बिछिया ल्यावो गेल्यां किरस्तान मोह कुवे की पनिहारी मोह बैठा मनिया मोह घर की बैठी बनियानी मोह ,राजा की रजवाड मोह ,महिला बैठी रानी मोह , डाकिनी को शाकिनी को भूतनी को पलितनी को ओपरी को पराई को ,लाग कूं लापत कूं ,धूम कूं , धक्का कूं ,पलिया कूं ,चौड कूं चौगट कूं ,काचा कुण ,कालवा कूं भूत कूं पालित कूं जिन कूं , राक्षस कूं ,बैरियो से बरी करदे ,नजरा जड़ दे ताला ..इत्ता भैरव नहीं करे तो ..पिता महादेव की जाता तोड़ तागड़ी करे माता पार्वती का चीर फाड़ लंगोट करे ..चल डाकिनी शाकिनी ..चौडूं मैला बकरा देस्युं मद की धार भरी सभा में द्यूं आने में कहाँ लगाईं बार ,खप्पर में खाय मसान में लोटे ऐसे काल भेरू की कुन पूजा मेंटे राजा मेंटे राज से जाय प्रजा मेंटे दूध पूत से जाये जोगी मेंटे ध्यान से जाये ..शब्द
साँचा ब्रम्ह वाचा चलो मन्त्र इश्वरो वाचा ...!

विधि :- इस मन्त्र की साधना शुरू करने से पहले इकत्तीस दिन पहले ब्रम्ह चर्य का पालन और सात्विकता बरते फिर अनुष्टान का प्रारंभ करे ..इस साधना को घर में न करे ..ये साधना रात्रि कालीन साधना है ..इसे कृष्ण पक्ष के शनिवार से आरंभ करनी है ..एक त्रिकोनी काला पत्थर ले कर उसे स्वच्छ पानी से धोकर उस पर सिन्दूर और तील के तेल से लेपन कर ले ..पश्चात् पान का बीड़ा , लेवे , सात लॉन्ग का जोड़ा धर ..लोबान धुप और सरसों के तेल का दिया जल लेवे चमेली के फूल रख लेवे पूजा के समय ...फिर एक
श्रीफल की बलि देकर ...गुरुपूजन करके गणेश पूजन कर .बाबा महाकाल यानि ( महादेव से मंत्र सिद्धि के लिए आशीर्वाद मांगे ) और अनुष्ठान आरम्भ करे ..इकतालीस दिनों तक नित्य इकतालीस पाठ इस मंत्र की करे .....हर रॊज जप समाप्ति पर एक विशेष  सामग्री से हवंन करले ये हवंन रोज मन्त्र समाप्ति के बाद करना है . .( सामग्री है कपूर केशर लवंग ) प्रथम दिन और अंतिम दिन भोग के लिए ..उड़द के पकोड़े और बेसन के लड्डू भोग में रख लेवे ..दूध और थोडा सा गुड भी रख लेवे ..इनका प्रशाद गरीबो में
बाट देवे ....सातवे दिन से ही आपको अनुभव होने लगेगा की आप के सामने कोई खड़ा है .....भैरवजी का रूप डरावना है इसलिए सावधान ..कम्जोर दिल वाले इस साधना को न करे ..अंतिम दिन भैरवजी प्रगट हो जायेंगे ...उनसे फिर आप मनचाहा .वर मांगले ..
(कृपया कोई कबच अनिवार्य सिद्ध करके हि साधनामे बैठियगा और गुरुजि का निर्देशन आबश्यक है)

तुझमे और मुझमे क्या फर्क ?



एक राजा जंगल में शिकार खेलने जाया करता था ! उसी रास्ते में सड़क किनारे एक फकीर की कुटिया भी थी ! तो राजा जब भी उधर से निकलता तब उसकी फकीर से दुआ सलाम होने लग गई ! और धीरे २ राजा की उस फकीर में श्रद्धा हो गई ! अब राजा जब भी उधर से निकलता , वो फकीर को प्रणाम करता और थोड़ी देर वहाँ रुक कर फकीर की बातें सुनता ! राजा को इससे बड़ी शान्ति मिलती !
राजा को फकीर बड़ा दिव्य और पहुँचा हुवा मालुम पड़ने लगा ! अब राजा जब भी फकीर से मिलता वो हमेशा फकीर से आग्रह करता की आप राज महल चलिए ! फकीर मुस्करा कर टाल देता ! अब ज्यूँ २ फकीर मना करता गया त्यों २ राजा का आग्रह बढ़ता गया ! फ़िर एक दिन बहुत आग्रह पर फकीर राजमहल जाने को तैयार हो गया ! अब राजा का तो जी इतना प्रशन्न हो गया की पूछो मत ! राजा ने फकीर के राजमहल पहुँचने पर इतना स्वागत सत्कार किया की जैसे साक्षात ईश्वर ही उसके राजमहल में पधार गए हों ! राजा ने फकीर के स्वागत में पलक पांवडे बिछा दिए ! और फकीर को राजमहल के सबसे सुंदर कमरे में ठहराया गया ! और राजा अपना दैनिक कर्म करने से जो भी समय बचता वो फकीर के पास बैठ कर उससे ज्ञानोपदेश लेने में बिताता ! राजा परम संतुष्ट था ! और फकीर भी मौज में !
समय बीतता गया ! अब राजा ने नोटिस करना शुरू किया की फकीर की हरकते बड़ी उलटी सीधी हो गई हैं ! राजा ने देखा - फकीर जो कड़क जमीन पर सोया करता था कुटिया में , अब नर्म गद्दों पर शयन करता है ! वहाँ रुखा सुखा खा लिया करता था , अब हलवा पूडी से भी मना नही करता ! शुरू में तो राजा, रानियाँ और राजकुमार श्रद्धा पूर्वक फकीर के चरण दबाया करते थे अब वो मना ही नही करता , चाहे सारी रात दबाए जाओ ! और कभी २ तो दासियों को चरण दबाने को कहता है ! उसको जो भी काजू बादाम खाने को दो , मना ही नही करता ! और ऐसा आचरण तो फकीर को नही ही करना चाहिए !

और एक रोज तो हद्द ही हो गई जब वो किसी राज पुरूष द्वारा दी गई मदिरा का सेवन भी बिना किसी ना-नुकुर के करने लग गया ! अब राजा ने सोचा हद्द हो गई ! ये कैसा फकीर ? जो मैं करता हूँ वो ही ये करता है ! इसमे मुझमे क्या फर्क ? मेरे जैसे ही गद्दों पर सोता है, मदिरा सेवन करता है , दासियों से पाँव दबवाता है ! चाहे जो खाता है ! राजा को बड़ी मुश्किल हो गई ! उसकी सारी श्रद्धा जो फकीर के प्रति थी वो ख़त्म होती जा रही थी ! क्या करे ? जिस फकीर को वह परमात्मा समझ कर लाया था ठीक उससे उलटा काम हो गया ! सही है अगर हमको सही में परमात्मा भी मिल जाए तो हम ऐसा ही करेंगे ! इंसान को जब तक जो वस्तु नही मिले तब तक ही उसकी क़द्र करता है ! वो तो अच्छा है की भगवान समझदार हैं जो आदमी को मिलते नही हैं वरना आदमी तो उनकी भी मिट्टी ख़राब करदे !
वो कहते हैं ना की समझदार आदमी को राजा, साँप और साधू से दोस्ती नही करनी चाहिए पर यहाँ तो सिर्फ़ साँप की कमी थी ! राजा जब पूरी तरह उकता गया तो उसने फकीर से पूछ ही लिया की - बाबा आपमे और मुझमे क्या फर्क रह गया है ! अब आप फकीर कैसे ? फकीर चुप रह गया ! अगले दिन सुबह २ फकीर ने कहा- राजन अब हम प्रस्थान करेंगे ! 
राजा उपरी तौर पर नाटक करता हुवा बोला- बाबाजी थोड़े दिन और ठहरते ! पर मन ही मन प्रशन्न था की चलो इस आफत से पीछा छूटा ! फकीर ने अपना कमंडल जो साथ लाया था वो उठाया और चलने लगा ! राजा बोला- आपका यहाँ का सामान भी लेते जाइए ! और आपमे मुझमे क्या फर्क है इसका जवाब भी दे दीजिये ! फकीर मुस्कराया और बोला - राजन , जवाब अवश्य देंगे ! चलिए थोडी दूर हमारे साथ , हमको विदा करने थोड़ी दूर तो चलिए ! रास्ते में जवाब भी दे देंगे ! इस सारे वार्तालाप में राजा चलता रहा फकीर के साथ साथ ! और इसी तरह बातें करते २ नगर की सीमा तक आ गए !
अब राजा बोला - अब मेरी बात का जवाब मिल जाए तो मैं लौट जाऊं ? 
फकीर कहता - बस राजन थोड़ी दूर और ! फ़िर देता हूँ आपकी बात का जवाब ! 
इस तरह करते २ राजा उस फकीर के साथ काफी दूर निकल आया ! 
राजा जवाब मांगता और फकीर कहता थोड़ी दूर और ! 
अब इस तरह शाम होने को आ गई ! राजा का सब्र जवाब दे गया ! अब राजा झल्लाकर बोला - महाराज , शाम होने को आगई ! मेरे आज के सारे राज-काज बाक़ी रह गए , राजमहल है, इतनी बड़ी राज-सत्ता है , इस तरह मेरा अनुपस्थित रहना ठीक नही है ! पीछे से कहीं कोई हमला वमला करदे ! तो क्या होगा ? अब मैं और आपके साथ नही चल सकता !आपको जवाब देना हो तो दो नही तो मुझे नही चाहिए ! क्यूँकी आपके पास कोई जवाब है ही नही !
फकीर बोला - बस थोड़ी दूर और चलो ! फ़िर देता हूँ जवाब !
अब आख़िर राजा था इतनी बेअदबी थोड़ी बर्दाश्त करता ! बोला - बस अब बहुत हो गया ! 
वैसे ही फकीर बोला - बस यही तो है जवाब ! राजन तुम्हारी मजबूरी है राजमहल लौटना हमारी नही ! तुम राज-महल के यानी संसार के बंधन में हो ! उसको छोड़ना मुश्किल ! और हमारी कोई मजबूरी नही कोई बंधन नही ! जितने दिन राजमहल के सुख थे उनका मजा लिया ! आज राजमहल नही है तो छोड़ने की पीडा भी नही है ! अब आज पेड़ के निचे अपना राज-महल बनेगा ! वहाँ के सुख का आनंद उठाएंगे ! यही है तुझमे और मुझमे फर्क ! हम जहाँ जाते हैं वहीं राजमहल है और तुम्हारे लिए ये मिट्टी गारे के राजमहल में लौटना ही राजमहल है ! फर्क इसी बंधन का है ! 
तुम्हारे को इतनी आजादी नही है की अपनी मर्जी से राजमहल छोड़ दो ! तुमको लौटना मजबूरी है ! हम अपनी मर्जी से राज महल गए थे और अपनी मर्जी से आज छोड़ दिया ! हमको लौटना कोई मजबूरी नही है !