सोमवार, 23 मार्च 2020

तुलसी का दिव्य पौधा

भारतीय संस्कृति में तुलसी के पौधे का बहुत महत्व है 

और इस पौधे को बहुत पवित्र माना जाता है। ऎसा माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा नहीं होता उस घर में भगवान भी रहना पसंद नहीं करते। माना जाता है कि घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगा कलह और दरिद्रता दूर करता है। इसे घर के आंगन में स्थापित कर सारा परिवार सुबह-सवेरे इसकी पूजा-अर्चना करता है। यह मन और तन दोनों को स्वच्छ करती है। इसके गुणों के कारण इसे पूजनीय मानकर उसे देवी का दर्जा दिया जाता है। तुलसी केवल हमारी आस्था का प्रतीक भर नहीं है। इस पौधे में पाए जाने वाले औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेद में भी तुलसी को महत्वपूर्ण माना गया है। भारत में सदियों से तुलसी का इस्तेमाल होता चला आ रहा है।

1. लिवर (यकृत) संबंधी समस्या: तुलसी की 10-12 

पत्तियों को गर्म पानी से धोकर रोज सुबह खाएं। लिवर की समस्याओं में यह बहुत फायदेमंद है।

2. पेटदर्द होना: एक चम्मच तुलसी की पिसी हुई पत्तियों को पानी के साथ मिलाकर गाढा पेस्ट बना लें। पेटदर्द होने पर इस लेप को नाभि और पेट के आस-पास लगाने से आराम मिलता है।

3. पाचन संबंधी समस्या : पाचन संबंधी समस्याओं जैसे दस्त लगना, पेट में गैस बनना आदि होने पर एक ग्लास पानी में 10-15 तुलसी की पत्तियां डालकर उबालें और काढा बना लें। इसमें चुटकी भर सेंधा नमक डालकर पीएं।

4. बुखार आने पर : दो कप पानी में एक चम्मच तुलसी की पत्तियों का पाउडर और एक चम्मच इलायची पाउडर मिलाकर उबालें और काढा बना लें। दिन में दो से तीन बार यह काढा पीएं। स्वाद के लिए चाहें तो इसमें दूध और चीनी भी मिला सकते हैं।

5. खांसी-जुकाम : करीब सभी कफ सीरप को बनाने में 

तुलसी का इस्तेमाल किया जाता है। तुलसी की पत्तियां कफ साफ करने में मदद करती हैं। तुलसी की कोमल पत्तियों को थोडी- थोडी देर पर अदरक के साथ चबाने से खांसी-जुकाम से राहत मिलती है। चाय की पत्तियों को उबालकर पीने से गले की खराश दूर हो जाती है। इस पानी को आप गरारा करने के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

6. सर्दी से बचाव : बारिश या ठंड के मौसम में सर्दी से 

बचाव के लिए तुलसी की लगभग 10-12 पत्तियों को एक कप दूध में उबालकर पीएं। सर्दी की दवा के साथ-साथ यह एक न्यूट्रिटिव ड्रिंक के रूप में भी काम करता है। सर्दी जुकाम होने पर तुलसी की पत्तियों को चाय में उबालकर पीने से राहत मिलती है। तुलसी का अर्क तेज बुखार को कम करने में भी कारगर साबित होता है।

7. श्वास की समस्या : श्वास संबंधी समस्याओं का उपचार करने में तुलसी खासी उपयोगी साबित होती है। शहद, अदरक और तुलसी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा पीने से ब्रोंकाइटिस, दमा, कफ और सर्दी में राहत मिलती है। नमक, लौंग और तुलसी के पत्तों से बनाया गया काढ़ा इंफ्लुएंजा (एक तरह का बुखार) में फौरन राहत देता है।

8. गुर्दे की पथरी : तुलसी गुर्दे को मजबूत बनाती है। 

यदि किसी के गुर्दे में पथरी हो गई  तो उसे शहद में मिलाकर तुलसी के अर्क का नियमित सेवन करना चाहिए। छह महीने में फर्क दिखेगा।

9. हृदय रोग : तुलसी खून में कोलेस्ट्राल के स्तर को घटाती है। ऐसे में हृदय रोगियों के लिए यह खासी कारगर साबित होती है।
10. तनाव : तुलसी की पत्तियों में तनाव रोधीगुण भी पाए जाते हैं। तनाव को खुद से दूर रखने के लिए कोई भी व्यक्ति तुलसी के 12 पत्तों का रोज दो बार सेवन कर सकता है।

11. मुंह का संक्रमण : अल्सर और मुंह के अन्य संक्रमण में तुलसी की पत्तियां फायदेमंद साबित होती हैं। रोजाना तुलसी की कुछ पत्तियों को चबाने से मुंह का संक्रमण दूर हो जाता है।

12. त्वचा रोग : दाद, खुजली और त्वचा की अन्य 

समस्याओं में तुलसी के अर्क को प्रभावित जगह पर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर हो जाता है। नैचुरोपैथों द्वारा ल्यूकोडर्मा का इलाज करने में तुलसी के पत्तों को सफलता पूर्वक इस्तेमाल किया गया है। तुलसी की ताजा पत्तियों को संक्रमित त्वचा पर रगडे। इससे इंफेक्शन ज्यादा नहीं फैल पाता।

13 . सांसों की दुर्गध : तुलसी की सूखी पत्तियों को 

सरसों के तेल में मिलाकर दांत साफ करने से सांसों की दुर्गध चली जाती है। पायरिया जैसी समस्या में भी यह खासा कारगर साबित होती है।

14. सिर का दर्द : सिर के दर्द में तुलसी एक बढि़या 

दवा के तौर पर काम करती है। तुलसी का काढ़ा पीने से सिर के दर्द में आराम मिलता है।

15. आंखों की समस्या : आंखों की जलन में तुलसी का 

अर्क बहुत कारगर साबित होता है। रात में रोजाना श्यामा तुलसी के अर्क को दो बूंद आंखों में डालना चाहिए।

16. कान में दर्द : तुलसी के पत्तों को सरसों के तेल में 

भून लें और लहसुन का रस मिलाकर कान में डाल लें। दर्द में आराम मिलेगा।

17. ब्लड-प्रेशर को सामान्य रखने के लिए तुलसी के 


पत्तों का सेवन करना चाहिए।


18. तुलसी के पांच पत्ते और दो काली मिर्च मिलाकर 

खाने से वात रोग दूर हो जाता है।

19. कैंसर रोग में तुलसी के पत्ते चबाकर ऊपर से पानी 

पीने से काफी लाभ मिलता है।


20. तुलसी तथा पान के पत्तों का रस बराबर मात्रा में 

मिलाकर देने से बच्चों के पेट फूलने का रोग समाप्त हो जाता है।


21. तुलसी का तेल विटामिन सी, कैल्शियम और 

फास्फोरस से भरपूर होता है।


22. तुलसी का तेल मक्खी- मच्छरों को भी दूर रखता 

है।


23. बदलते मौसम में चाय बनाते हुए हमेशा तुलसी की 

कुछ पत्तियां डाल दें। वायरल से बचाव रहेगा।


24. शहद में तुलसी की पत्तियों के रस को मिलाकर 

चाटने से चक्कर आना बंद हो जाता है।


25. तुलसी के बीज का चूर्ण दही के साथ लेने से खूनी 

बवासीर में खून आना बंद हो जाता है।


26. तुलसी के बीजों का चूर्ण दूध के साथ लेने से 

नपुंसकता दूर होती है और यौन-शक्ति में वृध्दि होती है।


27. रोज सुबह तुलसी की पत्तियों के रस को एक 

चम्मच शहद के साथ मिलाकर पीने से स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है। तुलसी की केवल पत्तियां ही लाभकारी नहीं होती। तुलसी के पौधे पर लगने वाले फल जिन्हें अमतौर पर मंजर कहते हैं, पत्तियों की तुलना में कहीं अघिक फायदेमंद होता है। विभिन्न रोगों में दवा और काढे के रूप में तुलसी की पत्तियों की जगह मंजर का उपयोग भी किया जा सकता है। इससे कफ द्वारा पैदा होने वाले रोगों से बचाने वाला और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला माना गया है। किंतु जब भी तुलसी के पत्ते मुंह में रखें, उन्हें दांतों से न चबाकर सीधे ही निगल लें। इसके पीछे का विज्ञान यह है कि तुलसी के पत्तों में पारा धातु के अंश होते हैं। जो चबाने पर बाहर निकलकर दांतों की सुरक्षा परत को नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे दंत और मुख रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।


28. तुलसी का पौधा मलेरिया के कीटाणु नष्ट करता है। 
नई खोज से पता चला है इसमें कीनोल, एस्कार्बिक एसिड, केरोटिन और एल्केलाइड होते हैं। तुलसी पत्र मिला हुआ पानी पीने से कई रोग दूर हो जाते हैं। इसीलिए चरणामृत में तुलसी का पत्ता डाला जाता है। तुलसी के स्पर्श से भी रोग दूर होते हैं। तुलसी पर किए गए प्रयोगों से सिद्ध हुआ है कि रक्तचाप और पाचनतंत्र के नियमन में तथा मानसिक रोगों में यह लाभकारी है। इससे रक्तकणों की वृद्धि होती है। तुलसी ब्र्म्ह्चर्य की रक्षा करने एवं यह त्रिदोषनाशक है।

शनिवार, 9 नवंबर 2019

प्रभु के नाम जप की महिमा

नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी। बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी।।
ब्रह्मसुखहि अनुभवहिं अनूपा। अकथ अनामय नाम न रूपा।।
जाना चहहिं गूढ़ गति जेऊ। नाम जीहँ जपि जानहिं तेऊ।।
साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
राम भगत जग चारि प्रकारा। सुकृती चारिउ अनघ उदारा।।
चहू चतुर कहुँ नाम अधारा। ग्यानी प्रभुहि बिसेषि पिआरा।।
चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम  प्रभाऊ। कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ।।

मंगलवार, 22 अक्तूबर 2019

संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम्

काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत । संकट बेगि में होहु सहाई ।। 
नहिं जप जोग न ध्यान करो । तुम्हरे पद पंकज में सिर नाई ।। 
खेलत खात अचेत फिरौं । ममता-मद-लोभ रहे तन छाई ।। 
हेरत पन्थ रहो निसि वासर । कारण कौन विलम्बु लगाई ।। 
काहे विलम्ब करो अंजनी सुत । संकट बेगि में होहु सहाई ।। 
जो अब आरत होई पुकारत । राखि लेहु यम फांस बचाई ।। 
रावण गर्वहने दश मस्तक । घेरि लंगूर की कोट बनाई ।। 
िशिचर मारि विध्वंस कियो । घृत लाइ लंगूर ने लंक जराई ।। 
जाइ पाताल हने अहिरावण । देविहिं टारि पाताल पठाई ।। 
वै भुज काह भये हनुमन्त । लियो जिहि ते सब संत बचाई ।। 
औगुन मोर क्षमा करु साहेब । जानिपरी भुज की प्रभुताई ।। 
भवन आधार बिना घृत दीपक । टूटी पर यम त्रास दिखाई ।। 
काहि पुकार करो यही औसर । भूलि गई जिय की चतुराई ।। 
गाढ़ परे सुख देत तु हीं प्रभु । रोषित देखि के जात डेराई ।। 
छाड़े हैं माता पिता परिवार । पराई गही शरणागत आई ।। 
जन्म अकारथ जात चले । अनुमान बिना नहीं कोउ सहाई ।। 
मझधारहिं मम बेड़ी अड़ी । भवसागर पार लगाओ गोसाईं ।। 
पूज कोऊ कृत काशी गयो । मह कोऊ रहे सुर ध्यान लगाई ।। 
जानत शेष महेष गणेश । सुदेश सदा तुम्हरे गुण गाई ।। 
और अवलम्ब न आस छुटै । सब त्रास छुटे हरि भक्ति दृढाई ।। 
संतन के दुःख देखि सहैं नहिं । जान परि बड़ी वार लगाई ।। 
एक अचम्भी लखो हिय में । कछु कौतुक देखि रहो नहिं जाई ।। 
कहुं ताल मृदंग बजावत गावत । जात महा दुःख बेगि नसाई ।। 
मूरति एक अनूप सुहावन । का वरणों वह सुन्दरताई ।। 
कुंचित केश कपोल विराजत । कौन कली विच भऔंर लुभाई ।। 
गरजै घनघोर घमण्ड घटा । बरसै जल अमृत देखि सुहाई ।। 
केतिक क्रूर बसे नभ सूरज । सूरसती रहे ध्यान लगाई ।। 
भूपन भौन विचित्र सोहावन । गैर बिना वर बेनु बजाई ।। 
किंकिन शब्द सुनै जग मोहित । हीरा जड़े बहु झालर लाई ।। 
संतन के दुःख देखि सको नहिं । जान परि बड़ी बार लगाई ।। 
संत समाज सबै जपते सुर । लोक चले प्रभु के गुण गाई ।। 
केतिक क्रूर बसे जग में । भगवन्त बिना नहिं कोऊ सहाई ।। 
नहिं कछु वेद पढ़ो, नहीं ध्यान धरो । बनमाहिं इकन्तहि जाई ।।
 केवल कृष्ण भज्यो अभिअंतर । धन्य गुरु जिन पन्थ दिखाई ।। 
स्वारथ जन्म भये तिनके । जिन्ह को हनुमन्त लियो अपनाई ।। 
का वरणों करनी तरनी जल । मध्य पड़ी धरि पाल लगाई ।। 
जाहि जपै भव फन्द कटैं । अब पन्थ सोई तुम देहु दिखाई ।। 
हेरि हिये मन में गुनिये मन । जात चले अनुमान बड़ाई ।। 
यह जीवन जन्म है थोड़े दिना । मोहिं का करि है यम त्रास दिखाई ।। 
काहि कहै कोऊ व्यवहार करै । छल-छिद्र में जन्म गवाईं ।। 
रे मन चोर तू सत्य कहा अब । का करि हैं यम त्रास दिखाई ।। 
जीव दया करु साधु की संगत । लेहि अमर पद लोक बड़ाई ।। 
रहा न औसर जात चले । भजिले भगवन्त धनुर्धर राई ।। 
काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत । संकट बेगि में होहु सहाई ।।

इस संकट मोचन का नित्य पाठ करने से श्री हनुमान् जी की साधक पर विशेष कृपा रहती है, इस स्तोत्र के प्रभाव से साधक की सम्पूर्ण कामनाएँ पूरी होती हैं ।