मंगलवार, 3 मई 2016

गुरु कौन है

आजकल अज्ञानता की लहर सी फैली हुई है जिसको देखो ज्ञान बघारने लगता है चाहे उसे कोई अनुभव हुआ हो अथवा न हुआ हो । बहुत से लोग किताबें पढ़कर ज्ञान बाँट रहे है आजकल सभी बंधू एक बहुत ही बड़े अज्ञानता में रह रहे है की गुरु केवल मार्ग दर्शक का काम करता है अर्थात वो केवल रास्ता दिखलाता है । या तो उन लोगो की गुरु से भेट नहीं हुई है अथवा वो गुरु का अर्थ नहीं जानते । गुरु शब्द से गुरुत्व का आभास होता है. अर्थात जहां गुरुत्व है वही तो गुरु है गुरुत्व का मतलब आकर्षण है गुरु अपनी ओर आकर्षित करता है क्योंकि उसमे गुरुत्व होता है । गुरु सर्व समर्थ होता है वह कर्तुं अकर्तुम और अन्यथा कर्त्तुम में समर्थ होता है वह अपनी कृपा मात्र से शिष्य के हृदय की मलिनता दूर कर देता है । जिसमे यह समर्थ्य हो वाही गुरु है अन्य कोई भी गुरु पद का अधिकारी नहीं है । गुरु सभी कुछ कर सकता है । 
ऐसे गुरु के लिए ही कहा गया है :- 


गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर:।' गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:।।

अतः पूर्ण ज्ञानी चेतन्य रूप पुरुष के लिए गुरु शब्द प्रयुक्त होता है, 

उसकी ही स्तुति की जाती है। नानक देव, त्रेलंग स्वामी, तोतापुरी, 

रामकृष्ण परमहंस, महर्षि रमण, स्वामी समर्थ, साईं बाबा, महावातर 

बाबा, लाहडी महाशय, हैडाखान बाबा, सोमबार गिरी महाराज, स्वामी 

शिवानन्द, आनंदमई माँ, स्वामी बिमलानंदजी, मेहर बाबा आदि सच्चे 

गुरु रहे हैं।

अतः यह अज्ञान की केवल रास्ता बताने वाला गुरु होता है केवल रास्ता 

बताने पर भी यदि शिष्य न चल पाए तो, नहीं   गुरु शिष्य को उस रास्ते 

पर चलने की सामर्थ्य भी देता है । गुरु सर्व समर्थ्यवान  है । अतः ईश्वर   
से प्रार्थना  करे की वो आपको ऐसा गुरु  प्रदान करे । 

मेरे गुरु ऐसे ही सामर्थ्यवान दादा जी महाराज गोसलपुर वाले (श्री श्री 

१००८  परमहंस शिवदत्त जी महाराज ) हैं  जो अब समाधिस्थ है पर 

शिष्यों के लिए प्रकट है |

नोट :- गोसलपुर मध्यप्रदेश जबलपुर के पास है जो कटनी और 

जबलपुर के बीच में पड़ता है वहां गुरु जी की समाधी है 



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