सोमवार, 14 नवंबर 2016

गणेश साधना

मंत्र :- वक्रतुण्डाय हुम्  । 

विनियोग :- ॐ अस्य श्री ग़णेश मंत्रस्य भार्गव ऋषि : अनुष्टुप छन्दः विघ्नेशो देवता वं बीजं यं शक्तिः मम अभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । 


ऋष्यादिन्यासः 

ॐ भार्गव ऋषये नमः शिरसि । 
ॐ अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे । 
ॐ विघ्नेश देवताये नमः हृदि ।
ॐ वं बीजाय नमः गुह्ये । 
ॐ यं शक्तये नमः पादयो ।
ॐ विनियोगाय नमः सर्वांगे । 

करन्यासः 

ॐ वं नमः अंगुष्ठाभ्यां नमः । 
ॐ क्रं नमः तर्जनीभ्यां नमः । 
ॐ तुं नमः मध्यमाभ्यां नमः । 
ॐ डां नमः अनामिकाभ्यां नमः । 
ॐ यं नमः कनिष्ठकाभ्यां नमः । 
ॐ हुं नमः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । 

हृदयन्यास : 

ॐ वं नमः हृदयाय नमः । 
ॐ क्रं नमः शिरसे स्वाहा । 
ॐ तुं नमः शिखायै वषट । 
ॐ डां नमः कवचाय हुम् । 
ॐ यं नमः नेत्रत्रयाय वौषट ।  
ॐ हुं नमः अस्त्राय फ़ट । 

सर्वाङ्गन्यासः 

 ॐ वं नमः भ्रूमध्ये । 
ॐ क्रं नमः कण्ठे । 
ॐ तुं नमः हृदये । 
ॐ डां नमः नाभौ  । 
ॐ यं नमः लिंगे ।  
ॐ हुं नमः पादयो । 
ॐ वक्रतुण्डाय हुम् सर्वांगे । 

ध्यानः 

उद्यद्दिनेश्वररुचिं निजहस्तपद्मै: पाशांकुशभयवरांदधतं गजास्यम । 
रक्ताम्बरं सकलदुःखहरं गणेशं ध्यायेत्प्रसन्नमखिलाभरणाभिरामं । 

इस मंत्र का 6 लाख जप और तद दशांश हवन, तर्पण, अभिषेक और ब्राह्मण भोजन कराने से मंत्र सिद्धि होती है । ये संक्षिप्त विधान है विस्तृत विधान केवल विशेष साधको के लिए है । 
यह विधान केवल मंत्र साधको के लिए लिखा गया है  मंत्र गुरु मुख से ग्रहण करके गुरु द्वारा अन्य क्रियायो को जाने और सिद्धि लाभ प्राप्त करके लाभ उठाये । 



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