विनियोग :- ॐ अस्य श्री ग़णेश मंत्रस्य भार्गव ऋषि : अनुष्टुप छन्दः विघ्नेशो देवता वं बीजं यं शक्तिः मम अभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यासः
ॐ भार्गव ऋषये नमः शिरसि ।
ॐ अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे ।
ॐ विघ्नेश देवताये नमः हृदि ।
ॐ वं बीजाय नमः गुह्ये ।
ॐ यं शक्तये नमः पादयो ।
ॐ विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
करन्यासः
ॐ वं नमः अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ क्रं नमः तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ तुं नमः मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ डां नमः अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ यं नमः कनिष्ठकाभ्यां नमः ।
ॐ हुं नमः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
हृदयन्यास :
ॐ वं नमः हृदयाय नमः ।
ॐ क्रं नमः शिरसे स्वाहा ।
ॐ तुं नमः शिखायै वषट ।
ॐ डां नमः कवचाय हुम् ।
ॐ यं नमः नेत्रत्रयाय वौषट ।
ॐ हुं नमः अस्त्राय फ़ट ।
सर्वाङ्गन्यासः
ॐ वं नमः भ्रूमध्ये ।
ॐ क्रं नमः कण्ठे ।
ॐ तुं नमः हृदये ।
ॐ डां नमः नाभौ ।
ॐ यं नमः लिंगे ।
ॐ हुं नमः पादयो ।
ॐ वक्रतुण्डाय हुम् सर्वांगे ।
ध्यानः
उद्यद्दिनेश्वररुचिं निजहस्तपद्मै: पाशांकुशभयवरांदधतं गजास्यम ।
रक्ताम्बरं सकलदुःखहरं गणेशं ध्यायेत्प्रसन्नमखिलाभरणाभिरामं ।
इस मंत्र का 6 लाख जप और तद दशांश हवन, तर्पण, अभिषेक और ब्राह्मण भोजन कराने से मंत्र सिद्धि होती है । ये संक्षिप्त विधान है विस्तृत विधान केवल विशेष साधको के लिए है ।
यह विधान केवल मंत्र साधको के लिए लिखा गया है मंत्र गुरु मुख से ग्रहण करके गुरु द्वारा अन्य क्रियायो को जाने और सिद्धि लाभ प्राप्त करके लाभ उठाये ।
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