शनिवार, 4 अक्टूबर 2025

भरोसा केवल भगवन्नाम का


राम जपु, राम जपु, राम जपु बावरे ।


घोर भव - नीर - निधि नाम निज नाव रे ॥१॥


एक ही साधन सब रिद्धि - सिद्धि साधि रे ।


ग्रसे कलि - रोग जोग - संजम - समाधि रे ॥२॥


भलो जो है, पोच जो है, दाहिनो जो, बाम रे ।


राम - नाम ही सों अंत सब ही को काम रे ॥३॥


जग नभ - बाटिका रही है फलि फूलि रे ।


धुवाँ कैसे धौरहर देखि तू न भूलि रे ॥४॥


राम - नाम छाड़ि जो भरोसो करै और रे ।


तुलसी परोसो त्यागि माँगे कूर कौर रे ॥५॥


भावार्थः-- तुलसीदास जी कहते हैं  अरे पागल ! राम जप, राम जप, राम जप । इस भयानक संसारुपी

 समुद्रसे पार उतरनेके लिये  श्रीरामनाम ही  नाव है । अर्थात् इस रामनामरुपी नावमें बैठकर मनुष्य जब 

 चाहे तभी पार उतर सकता है , क्योंकि यह मनुष्यके  अधिकारमें हैं ॥१॥

इसी एक साधनके बलसे सब ऋद्धि - सिद्धियोंको साध लेगा, क्योंकि योग, संयम और समाधि आदि

 साधनोंको कलिकाल रुपी रोगने  ग्रस लिया है ॥२॥

भला हो, बुरा हो, उलटा हो, सीधा हो, अन्तमें सबको एक रामनामसे ही काम पड़ेगा ॥३॥

यह जगत भ्रम से आकाश में फले - फूले दीखने वाले बगीचे के समान सर्वथा मिथ्या है, धुएँ के महलों की

 भाँति क्षण - क्षणमें दीखने  और मिटनेवाले इन सांसरिक पदार्थोंको देखकर तू भूल मत ॥४॥

जो रामनाम को छोड़कर दूसरेका भरोसा करता है  वह उस मूर्खके समान है, जो सामने परोसे हुए

 भोजनको छोड़कर एक - एक कौर  के लिये कुत्ते की तरह घर - घर माँगता फिरता है ॥५॥

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