रविवार, 28 जुलाई 2013

क्या उर्दू नामक कोई भाषा संसार में है?

इस लेख को पढ़ ने से पहले कृपया ये प्रश्न स्वय से करे की क्या आपने कभी किसीको उर्दू बोलते हुए देखा है? यदी हा तो ये निश्चित है की उर्दू सुनने में हिंदी जैसी ही लगती है केवल कुछ उटपटांग शब्द उर्दू में आते है!

जैसे की:
हिंदी उर्दू
नेताजी का ‘देहांत’ हो गया नेताजी का ‘इंतकाल’ हो गया
मै आपकी ‘प्रतीक्षा’ कर रहा था मै आपका ‘इंतजार’ कर रहा था
‘परीक्षा’ कैसी थी? ‘इम्तिहान’ कैसा था?
आपके रहने का ‘प्रबंध’ हो चूका है आप के रहने का ‘इंतजाम’ हो चूका है
ये मेरी ‘पत्नी’ है ये मेरी ‘बीबी’ है
मै ‘प्रतिशोध’ की आग में जल रहा हु मै ‘इंतकाम’ की आग में जल रहा हु



ये उदाहरण देख कर आप समझ गए की उर्दू की रचना का कंकाल (Skeleton) हिंदी से आया है, केवल हिंदी के स्थान पर अरबी शब्दों का उपयोग किया गया है!जब आप अधिक अध्ययन करेंगे तो ये पता चलेगा की उर्दू नामक कोई भाषा ही नही है! वो तो एक बोली है,, हिंगलिश जैसी!भाषा वो होती है जिसे व्याकरण होता है अपना एक शब्दकोष होता है! भाषा लिखने का एक माध्यम हो सकती है, किन्तु कोई बोली, भाषा का स्थान नही ले सकती क्यों की उसे ना तो व्याकरण होता है ना तो शब्द कोष!ठीक वही बात उर्दू और हिंग्लिश के लिए लागु होती है! ये दोनों एक भेल पूरी जैसी बोलिय है जिन्हें अपना कोई शब्द कोष अथवा व्याकरण नही है! उर्दू में ५०% शब्द हिंदी-संस्कृत के है, २५% अरबी, १०% फारसी, ५% चीनी-मंगोल और तुर्की तथा १०% अंग्रेजी है! अब आप ही बताइए एसी खिचडी बोली कभी कोई भाषा का स्थान ले सकती है?उर्दू के विषय में आश्चर्य जनक जानकारी!

चेंगिज खान और उसका पोता हलागु खान ये इस्लाम के भारी शत्रु थे! जिन्होंने इस्लामी खिलाफत में घुसकर ५ करोड मुल्ला मुसलमानों की क़त्ल की थी! ये प्रतिशोध था क्यों की ६०० वर्षों से लगातार (९५० से १२५८) अरब मुस्लिमो द्वारा इन तुर्को और मुघलो को मुस्लिम बनाने के लिए उन पर अति भीषण आक्रमण किये जा रहे थे! इस से पीड़ित होकर प्रतिशोध भावना से ये तुर्क-मुघल टोलिया चेंगिज खान उर्फ तिमू जीनी के नेतृत्व में मुस्लिम प्रदेशो पर टूट पड़ी! आज भी इस्लामी जगत में चेंगिज खान को पाजी, लुटेरा, लफंगा इत्यादि नामो से मुस्लिम इतिहासकार विभूषित करते है!

इन तुर्क मंगोलों की भाषा में सैनिक छावनी को “ओरडू” कहा जाता था! आगे चल कर ये सारे तुर्क और मुघल अरब मुस्लिमो द्वारा छल बल से मृत्य की यातनाए देकर मुस्लिम बनाए गए! उन्हें तलवार की धार पर इस्लाम के अरब कारागार में तो लाया गया पर उनके मंगोल नाम बदल कर सब को अरबी नाम देना संभव नही था! क्योकि १ दिन में जब २ लाख या ५ लाख मुघलो को मुस्लिम बनया गया! उसका नियंत्रण रखना उन अरब मुस्लिमो को संभव नही था! इस लिए उन तुर्क-मुघलो में इस्लाम पूर्व कुछ संस्कार वैसे के वैसे रह गए! जैसे की खान उपनाम जो अमुस्लिम है!
जब कोई मुस्लिम बनता है तो उसे अरब आचार अपनाने पड़ते है! जैसे की महमद, अब्दुल, इब्राहीम, अहमद इत्यादि अरब नाम (जिन्हें लोग मुस्लिम नाम समझते है वो वास्तव में अरब नाम है) अपनाने पड़ते है! दिन में ५ बार अरब मातृभूमि की ओर माथा टेकना पड़ता है (फिर चाहे आप अरब नही हो तो भी)! इस प्रकार सारे तुर्क मुघल उनके इस्लामीकरण के उपरांत अरब देशो के उपग्रह से बन गए जिन्हें अपने आप में कोई अस्तित्व नही था!

अगले २०० वर्षों में ये इन मुगलों ने जो (जो २०० वर्ष पहले तलवार की नोक पर मुस्लिम बनाए गए थे) भारत पर आक्रमण किया! आश्चर्य इस बात का है की जिस इस्लामी जिहाद का रक्त रंजित संदेश जीन मुघल और तुर्को ने भारत के हिंदुओ पर थोपा वे स्वय भी उसी रक्त रंजित जिहाद के भक्ष बन चुके थे! किन्तु इस्लाम के मायावी जेल में जाने पर वो अपना सारा अतीत भूलकर अरब देशो के एक निष्ट गुलाम बन चुके थे!

इस तुर्क-मुघल आक्रमण काल में अनेक हिंदुओ को छल-बल से गुलाम बनाकर सैनिक छावनी (जिसे मंगोल भाषा में ओरडू अर्थात उर्दू) में लाया जाता था! उनपर बलात्कार किये जाते थे! उनकी भाषा जो की बृज भाषा, अवधी हिंदी थी पर प्रतिबंध लगाया जाता था! उन्हें अरबी भाषा (जो की इस्लाम की अधिकृत भाषा है) बोलने पर विवश किया जाता था! आप सोचिए यदी आप को कोई मृत्यु का भय दिखा कर चीनी भाषा में बोलने को कल से कहेंगे, तो क्या आप कल से चीनी भाषा बोल सकोगे?
नही!

ठीक यही बात उन हिंदी भाषी हिंदुओ पर लागु होती है! वो अरबी तो बोल न सके किन्तु भय के कारण उनकी अपनी मतृभाषा में अरबी शब्द फिट करने लगे ताकि अपने प्राण बचा सके! इस से एक ऐसे बोली का जन्म हुआ जो ना तो हिंदी थी ना तो अरबी! असकी वाक्य रचना तो हिंदी से थी किन्तु शब्द सारे अरबी, फारसी, तुर्की और चीनी थे! ज्यो की वो बोली उस सैनिक छावनी में भय के कारण उत्पन्न हुई इस लिए उसे ‘ओरडू” का नाम मिला! “ओरडू” का भ्रष्ट रूप है “उर्दू”!

आगे चल कर इस उर्दू नामक बोली में बहुत से अंग्रेजी शब्द भी आ गए जैसे की

अफसर = Officer
बिरादर = Brother
बोरियत = Boring
इत्यादि ……..

मुघल और तुर्क इस भेल पूरी उर्दू नामक बोली को गुलामो की भाषा मानते थे, क्योकि वो अशुद्ध थी! मुघल दरबार की भाषा फारसी थी उर्दू नही! आप जानते है उस ओरडू में जो इन मुघलो के गुलाम थे वो कौन है?

वही जो आज अपनी भाषा उर्दू बताते है! वो हिंदु गुलाम ही आज के भारत के मुस्लिम है! गाँधी-नेहरु हमारे इतहास को गाली देते है की हिंदु इतहास १००० वर्ष गुलामी का इतिहास है! परंतु ये गुलामी का इतहास उन हिंदुओ का है जो आज १००० वर्ष इस्लाम के अरब कारागृह में सड रहे है! ये गुलाम हिंदु ही आज के भारत और पाकिस्तान के मुस्लिम है! जिन्हें अपने आप में कोई अस्तित्व नही है!

तुर्क, मुघलो को अरब मुस्लिमो ने इस्लाम में लाकर अपना गुलाम बनया! जब इन अरब के मुस्लिम गुलामो ने भारत पर आक्रमण किया तब उन्होंने हिंदुओ को अपना गुलाम बनाया, और अपने खान इत्यादि नाम उन पर थोपे, उनपर उर्दू (अर्थात सैनिक छावनी) में बलात्कार किये!

अर्थात स्पष्ट रूप से देखे तो भारत के मुस्लिम “गुलामो के गुलाम” है! वे ना तो अरब है ना तो मंगोल!

उर्दू एक भाषा है ऐसा प्रचार गाँधी ने किया! क्यों की वे “मुस्लिम एक राष्ट्र है” ऐसा मानते थे! इस लिए भारत के मुस्लिमो की एक भाषा हो यह देखकर उन्होंने उर्दू को “हिन्दुस्तानी” के नाम से प्रसिद्ध किया! महात्माजी गांधीजी अपने व्याख्यान में कहते थे, बादशाह राम, बेगम सीता तथा उस्ताद वसिष्ट (१)! इस प्रकार उन्होंने उर्दू को “हिन्दुस्तानी” के नाम से प्रसिद्ध किया! १९३५ तक तो उर्दू नामक कोई भाषा है इस तर्क से कोई परिचित भी नही था!

गाँधी-नेहरु को मानने वाली अल खान्ग्रेस भी उनके जैसी ही कट्टर है! किन्तु उनका ये सिद्धांत सम्पूर्णतहा असत्य सिद्ध हुआ की मुस्लिम एक राष्ट्र है! यदी वे एक राष्ट्र होते तो बंगलादेश पाकिस्तान से अलग नही होता!

कुछ लोग फेस बुक और अन्य स्थानों पर अपने भाषा ज्ञान में उर्दू को भी जोड़ते है! अर्थात Languages Known में आपने उर्दू को जोड़ा है, तो कृपया तुरंत हटाए, क्यों की यदी आप उसे अपने भाषा बताएँगे तो क्या आप उस ओरडू नामक गुलामो के जेल में थे?

शनिवार, 27 जुलाई 2013

भारत के हिन्दुओं एक हो

 कहते हैं कि लोकतंत्र में यथा प्रजा तथा राजा का नियम काम करता है। हमारे लुटेरे छद्म धर्मनिरपेक्ष सियासतदानों ने पहले आरक्षण के नाम पर बहुसंख्यक हिन्दुओं को आपस में लड़वाया फिर पूरे भारत को अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक में बाँट दिया। आज हम हिन्दुओं की स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि हमारे देश का प्रधानमंत्री लाल-किले से खुलेआम ऐलान करता है कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है। पारसी,इसाई,बौद्ध,जैन और सिक्खों की स्थिति तो पहले से ही हिन्दुओं से अच्छी है। तो फिर इसका तो यही मतलब हुआ कि ऐसा कहके और करके केंद्र सरकार सिर्फ मुसलमानों को खुश करना चाहती है। आज हम अपनी मातृभूमि-आदिभूमि हिन्दुस्थान में मंदिरों में लाऊडस्पीकर और घंटे-घड़ियाल तक नहीं बजा सकते (उदाहरण के लिए हैदराबाद का भाग्यलक्ष्मी मंदिर)। आज ही उत्तर प्रदेश के मेरठ में मंदिर में लाऊडस्पीकर बजाने पर मुसलमानों ने मंदिर पर हमला कर दिया जिसमें दो लोग मारे भी गए। ऐसा कब तक चलेगा? हमने तो कभी नहीं रोका उनको नमाज पढ़ने या अजान देने से फिर वो क्यों हम पर गोलियाँ चलाते हैं? इतिहास गवाह है कि दंगे चाहे भागलपुर में हुए हों या गुजरात में,शुरू हमेशा मुसलमान ही करते हैं।
                                      मित्रों, लाल किले से ऐसा कहकर और मुसलमानों के लिए अलग से विशेष योजनाएँ चलाकर हमारे ही वोटों से चुनी गई हमारी केंद्र सरकार ने हमें हमारे ही देश हिन्दुस्थान में द्वितीय श्रेणी का नागरिक बना दिया है। अंग्रेजों के जमाने से ही भारत में हिन्दुओं और मुसलमानों के लिए आपराधिक कानून या संहिता तो एक है लेकिन दीवानी कानून या नागरिक संहिता अलग-अलग हैं। यह घोर दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजादी के बाद भी जो भी संशोधन और बदलाव हमारी सरकारों ने किए सिर्फ और सिर्फ हिन्दू उत्तराधिकार कानून और विवाह कानून में किए मुगलकाल से चले आ रहे तत्संबंधी इस्लामिक कानूनों को कभी छुआ तक नहीं गया। हिन्दू पुरूष एक विवाह करे और मुसलमान पुरूष चार फिर क्यों नहीं मुसलमानों की जनसंख्या ज्यादा तेजी से बढ़ेगी? बीच में स्व. संजय गांधी ने 1974-77 में जबरन नसबंदी के प्रयास भी किए लेकिन उनको भी दूसरी बार सत्ता में आने के बाद अपने कदम पीछे खींचने पड़े। मैं सर्वधर्मसमभाव पर अमल का दावा करनेवाली केंद्र सरकार से जानना चाहता हूँ कि क्यों सारे सुधार और संशोधन हिन्दुओं के विवाह और सम्पत्ति कानून में ही किए जाते हैं,मुसलमानों के कानूनों को क्यों नहीं बदला जाता है? ٍक्यों बार-बार सारे-के-सारे प्रतिबंध हिन्दुओं पर ही लादे जाते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने भी वर्तमान और पूर्व की केंद्र सरकारों की इस प्रवृत्ति पर कई बार सवाल उठाए हैं। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कई बार सरकारों  को समान नागरिक संहिता लागू करने परामर्श दिया है लेकिन सब बेकार।
                               मित्रों,इसी तरह अंग्रेजों के जमाने से ही हिन्दू मंदिरों पर तो सरकार का कब्जा और नियंत्रण है मगर मस्जिदों,दरगाहों और कब्रगाहों पर शिया या सुन्नी वक्फ बोर्ड का। जब सरकार या दूसरों के पैसों से हज करना शरियत के अनुकूल नहीं है तो फिर क्यों केंद्र सरकार मुसलमानों को हज-सब्सिडी दे रही है और क्यों भारतीय मुसलमान इसका लाभ उठा रहे हैं? अमरनाथ या कैलाश-मानसरोवर-यात्रा पर हिन्दुओं को क्यों सब्सिडी नहीं दी जा रही है? क्यों हिन्दू मंदिरों के खजाने पर कोर्ट-कानून का डंडा चलता है और क्यों मुस्लिम दरगाहों की कमाई को सरकार के अधिकार-क्षेत्र से बाहर रखा गया है?
                                    मित्रों,हम यह भी जानना चाहते हैं कि कांग्रेस की तरफ से प्रधानमंत्री पद के अघोषित उम्मीदवार राहुल गांधी किस धर्म को मानते हैं? क्या वे हिन्दू-धर्म को मानते हैं? अगर वे किसी दूसरे धर्म को मानते हैं तो फिर क्या गारंटी है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद वे हिन्दुओं का खास ख्याल रखेंगे और अल्पसंख्यक-फर्स्ट की कुत्सित नीति पर नहीं चलेंगे? हम यह भी जानना चाहेंगे कि राहुल गांधी के गोहत्या के बारे में क्या विचार हैं? वे इसका समर्थन करते हैं या विरोध? क्या उन्होंने कभी गोमांस-भक्षण किया है या वे अब भी गोमांस खाते हैं? क्या सोनिया गांधी ने कभी गोमांस खाया है या अब भी वे उतने ही चाव से इसका सेवन करती हैं?
                                              मित्रों,हमारे गाँवों में एक कहावत बड़ी ही मकबूल है कि जो खाए गाय का गोश्त,वो हो नहीं सकता हिन्दुओं का दोस्त। अब आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि कौन हम हिन्दुओं का शुभचिंतक है और कौन नहीं? चाहे वो गोहत्या पर से कर्नाटक में पाबंदी हटानेवाला सिद्धरमैया हो या उत्तर प्रदेश में नए बूचड़खानों के लिए टेंडर मंगवानेवाला अखिलेश यादव,ये लोग कभी हिन्दुओं के दोस्त या हितचिंतक हो ही नहीं सकते। इतना ही नहीं हम प्रधानमंत्री की कुर्सी की तरफ काफी तेज कदमों से बढ़ रहे श्रीमान् नरेंद्र मोदी जी से भी स्पष्ट शब्दों में यह जानना चाहते हैं,बल्कि हम उनके मुखारविन्द से यह सुनना चाहते हैं कि वे प्रचंड बहुमत से प्रधानमंत्री बनने के बाद संसद से गोहत्या पर रोक लगाने का कानून बनवाएंगे।
                        मित्रों,जबकि 85 प्रतिशत मुसलमान पहले से ही आरक्षण के दायरे में हैं फिर भी मात्र 15 प्रतिशत अगड़े मुसलमानों को आरक्षण देने की जी-तोड़ कोशिश की जा रही है। क्या अगड़े मुसलमानों के पिछड़ेपन के लिए पिछड़ी जाति के हिन्दू जिम्मेदार हैं? फिर क्यों उनका कोटा कम करके अगड़े मुसलमानों को संविधान की खुलेआम अनदेखी करते हुए धर्म के आधार पर आरक्षण देने की नापाक कोशिश की जा रही है?
                                    मित्रों,हमारे छद्म धर्मनिरपेक्ष नेता आज देश पर मरनेवालों पर आँसू नहीं बहाते,उत्तराखंड में उनकी लापरवाही के चलते मारे गए हजारों बेगुनाह हिन्दुओं की लाशों पर भी आँसू बर्बाद नहीं करते बल्कि वे आँसू बहाते हैं मुस्लिम आतंकियों की मौत और गिरफ्तारी पर। क्या इसको सर्वधर्मसमभाव का नाम दिया जा सकता है? क्या इस तरह की आत्मघाती रणनीति अपनाकर देश से आतंकवाद का खात्मा किया जाएगा?
                                         मित्रों,कुल मिलाकर इस सारी मगजमारी का लब्बोलुआब यह है कि देश की दुर्दशा इसलिए हो रही है क्योंकि इस देश के बहुसंख्यक अर्थात् हिन्दू एक नहीं हैं। कम-से-कम हिन्दुओं को तो इस संकट-काल में देशहित में एक हो ही जाना चाहिए और अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर वो दिन दूर नहीं जब इस देश का एक नाम हिन्दुस्थान या हिन्दुस्तान न होकर चीन या पाकिस्तान हो जाएगा। आज नेफा से लेकर राजस्थान तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पूरे हिन्दुस्थान को कांग्रेस की लुटेरी और देशबेचवा सरकार ने अपनी शत्रुतापूर्ण नीतियों के चलते खतरे में डाल दिया है। चूँकि हमारा धर्म इस देश और पृथ्वी पर सबसे पुराना धर्म है इसलिए इस देश की अस्तित्व-रक्षा के प्रति अगर किसी की पहली जिम्मेदारी बनती है तो वो हम हिन्दुओं की। वैसे अगर दूसरे धर्मवाले देशभक्त भी इस परमपुनीत कार्य में अपना महती योगदान देना चाहें तो हम तहेदिल से उनका स्वागत करेंगे। और हिन्दुओं को भी एक कुछ इस तरह से होना चाहिए कि हमारे देश की एकमात्र बहुसंख्यकवादी राष्ट्रीय पार्टी भाजपा को अकेले ही दो-तिहाई बहुमत प्राप्त हो जाए और अल्पसंख्यकवादी देशबेचवा नेताओं की दाल चुनावों के बाद किसी भी सूरत में गलने नहीं पाए।
                       मित्रों,हम हिन्दू एक होंगे तो न केवल अपने देश में ही हमारे धर्माम्बलंबियों की स्थिति सुधरेगी बल्कि हमारे पड़ोसी देशों में भी हिन्दुओं की स्थिति में सुधार आएगा। तब पाकिस्तान में हिन्दुओं की बहु-बेटियों का दिन-दहाड़े अपहरण नहीं होगा और उनको अपनी मातृभूमि छोड़कर प्राण-प्रतिष्ठा बचाकर भारत नहीं भागना पड़ेगा। हमें हमेशा यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि दुनिया में भारत के अलावा ऐसा कोई दूसरा देश नहीं है जहाँ कि बहुसंख्यकों को द्वितीय श्रेणी का नागरिक बनकर रहना पड़ता हो। 

शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

बगलाखड्गमालामन्त्रः

यह स्तोत्र शत्रुनाश एव परविद्या छेदन करने वाला एवं रक्षा कार्य हेतु प्रभावी है ।

साधारण साधकों को कुछ समय आवेश व आर्थिक दबाव रहता है, अतः पूजा उपरान्त नमस्तस्यादि शांति स्तोत्र पढ़ने चाहिये ।

विनियोगः- ॐ अस्य श्रीपीताम्बरा बगलामुखी खड्गमाला मन्त्रस्य नारायण ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, बगलामुखी देवता, ह्लीं बीजं, स्वाहा शक्तिः, ॐ कीलकं, ममाभीष्टसिद्धयर्थे सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगः ।
हृदयादि-न्यासः-नारायण ऋषये नमः शिरसि, त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, बगलामुखी देवतायै नमः हृदि, ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये, स्वाहा शक्तये नमः पादयो, ॐ कीलकाय नमः नाभौ, ममाभीष्टसिद्धयर्थे सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास - कर-न्यास – अंग-न्यास -
ॐ ह्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः
बगलामुखी तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा
सर्वदुष्टानां मध्यमाभ्यां नमः शिखायै वषट्
वाचं मुखं पद स्तम्भय अनामिकाभ्यां नमः कवचाय हुम्
जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्
बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फट्

ध्यानः-
हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -


मध्ये सुधाब्धि-मणि-मण्डप-रत्न-वेद्यां, सिंहासनोपरि-गतां परि-पीत-वर्णाम् ।
पीताम्बराभरण-माल्य-विभूषितांगीं, देवीं स्मरामि धृत-मुद्-गर-वैरि-जिह्वाम् ।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं, वामेन शत्रून् परि-पीडयन्तीम् ।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि ।।

मानस-पूजनः- इस प्रकार ध्यान करके भगवती पीताम्बरा बगलामुखी का मानस पूजन करें -
ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (अधोमुख-कनिष्ठांगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (अधोमुख-तर्जनी-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-तर्जनी-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ रं वह्नयात्मकं दीपं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि । (ऊर्ध्व-मुख-मध्यमा-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ वं जल-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-अनामिका-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ शं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-सर्वांगुलि-मुद्रा) ।


खड्ग-माला-मन्त्रः-
ॐ ह्लीं सर्वनिन्दकानां सर्वदुष्टानां वाचं मुखं स्तम्भय-स्तम्भय बुद्धिं विनाशय-विनाशय अपरबुद्धिं कुरु-कुरु अपस्मारं कुरु-कुरु आत्मविरोधिनां शिरो ललाट मुख नेत्र कर्ण नासिका दन्तोष्ठ जिह्वा तालु-कण्ठ बाहूदर कुक्षि नाभि पार्श्वद्वय गुह्य गुदाण्ड त्रिक जानुपाद सर्वांगेषु पादादिकेश-पर्यन्तं केशादिपाद-पर्यन्तं स्तम्भय-स्तम्भय मारय-मारय परमन्त्र-परयन्त्र-परतन्त्राणि छेदय-छेदय आत्म-मन्त्र-यन्त्र-तन्त्राणि रक्ष-रक्ष, सर्व-ग्रहान् निवारय-निवारय सर्वम् अविधिं विनाशय-विनाशय दुःखं हन-हन दारिद्रयं निवारय निवारय, सर्व-मन्त्र-स्वरुपिणि सर्व-शल्य-योग-स्वरुपिणि दुष्ट-ग्रह-चण्ड-ग्रह भूतग्रहाऽऽकाशग्रह चौर-ग्रह पाषाण-ग्रह चाण्डाल-ग्रह यक्ष-गन्धर्व-किंनर-ग्रह ब्रह्म-राक्षस-ग्रह भूत-प्रेतपिशाचादीनां शाकिनी डाकिनी ग्रहाणां पूर्वदिशं बन्धय-बन्धय, वाराहि बगलामुखी मां रक्ष-रक्ष दक्षिणदिशं बन्धय-बन्धय, किरातवाराहि मां रक्ष-रक्ष पश्चिमदिशं बन्धय-बन्धय, स्वप्नवाराहि मां रक्ष-रक्ष उत्तरदिशं बन्धय-बन्धय, धूम्रवाराहि मां रक्ष-रक्ष सर्वदिशो बन्धय-बन्धय, कुक्कुटवाराहि मां रक्ष-रक्ष अधरदिशं बन्धय-बन्धय, परमेश्वरि मां रक्ष-रक्ष सर्वरोगान् विनाशय-विनाशय, सर्व-शत्रु-पलायनाय सर्व-शत्रु-कुलं मूलतो नाशय-नाशय, शत्रूणां राज्यवश्यं स्त्रीवश्यं जनवश्यं दह-दह पच-पच सकल-लोक-स्तम्भिनि शत्रून् स्तम्भय-स्तम्भय स्तम्भनमोहनाऽऽकर्षणाय सर्व-रिपूणाम् उच्चाटनं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं क्लीं ऐं वाक्-प्रदानाय क्लीं जगत्त्रयवशीकरणाय सौः सर्वमनः क्षोभणाय श्रीं महा-सम्पत्-प्रदानाय ग्लौं सकल-भूमण्डलाधिपत्य-प्रदानाय दां चिरंजीवने । ह्रां ह्रीं ह्रूं क्लां क्लीं क्लूं सौः ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय राजस्तम्भिनि क्रों क्रों छ्रीं छ्रीं सर्वजन संमोहिनि सभास्तंभिनि स्त्रां स्त्रीं सर्व-मुख-रञ्जिनि मुखं बन्धय-बन्धय ज्वल-ज्वल हंस-हंस राजहंस प्रतिलोम इहलोक परलोक परद्वार राजद्वार क्लीं क्लूं घ्रीं रुं क्रों क्लीं खाणि खाणि , जिह्वां बन्धयामि सकलजन सर्वेन्द्रियाणि बन्धयामि नागाश्व मृग सर्प विहंगम वृश्चिकादि विषं निर्विषं कुरु-कुरु शैलकानन महीं मर्दय मर्दय शत्रूनोत्पाटयोत्पाटय पात्रं पूरय-पूरय महोग्रभूतजातं बन्धयामि बन्धयामि अतीतानागतं सत्यं कथय-कथय लक्ष्मीं प्रददामि-प्रददामि त्वम् इह आगच्छ आगच्छ अत्रैव निवासं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं बगले परमेश्वरि हुं फट् स्वाहा ।

विशेषः- मूलमन्त्रवता कुर्याद् विद्यां न दर्शयेत् क्वचित् ।
विपत्तौ स्वप्नकाले च विद्यां स्तम्भिनीं दर्शयेत् ।
गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं प्रयत्नतः ।
प्रकाशनात् सिद्धहानिः स्याद् वश्यं मरणं भवेत् ।
दद्यात् शानताय सत्याय कौलाचारपरायणः ।
दुर्गाभक्ताय शैवाय मृत्युञ्जयरताय च ।
तस्मै दद्याद् इमं खड्गं स शिवो नात्र संशयः ।
अशाक्ताय च नो दद्याद् दीक्षाहीनाय वै तथा ।
न दर्शयेद् इमं खड्गम् इत्याज्ञा शंकरस्य च ।।
।। श्रीविष्णुयामले बगलाखड्गमालामन्त्रः ।।