सोमवार, 23 सितंबर 2013

ब्रह्मानंदम  परमसुखदं केवलं ज्ञानमुर्तिम ।  द्वान्दातीतम गगन सदृशम तत्वमास्यादी लक्ष्यम ।  एकं नित्यं विमलं अचलं सर्व धिः साक्षीभूतम । भावातीतम त्रिगुण रहितम सद्गुरुम  तं नमामि । 

रविवार, 22 सितंबर 2013

कैंसर की इस से अच्छी और कारगर दवा कोई नहीं है:

कैंसर की इस से अच्छी और कारगर दवा कोई नहीं है:

4 बार उबला हुआ और हर बार उबालने से पहले मलाई उतरा हुआ दूध, या फिर फिर कम वसा वाला देसी


गाय का दूध वो भी मलाई उतरा हुआ। ऐसा 300 ग्राम दूध अगले दिन सुबह सुबह उबाल कर उसमे नीम्बू

 निचोड़ कर फाड़ लें। फिर उस दूध को छलनी में छानकर पानी फेक दें। उस पनीर को अच्छी तरह धोकर

 हाथ से कुचलते हुए धोकर किसी महीन कपडे या जाली में दबाकर निचोड़कर उसका सारा पानी निकाल दें। 

फिर वो पनीर किसी कटोरी में डालें, ऊपर से अलसी का 20-30 ग्राम तेल डालकर, पनीर में मिलाकर 

सुबह खाली पेट खाएं। यही कैंसर का उपचार है. गोमूत्र का मालूम नहीं, लेकिन ये अलसी तेल वाला उपचार 

स्वानुभूत है। ध्यान देने योग्य बात: पनीर में वसा और पानी नहीं होना चाहिए, या बोहोत ही कम होना 

चाहिए। घर का बना पनीर ही इस्तेमाल करना है। इस दवा को बनाने में जो भी बर्तन अथवा जाली प्रयोग

 होंगी, वो किसी भी साबुन या केमिकल से ना धोई जाएँ। जर्सी गाय का दूध इस्तेमाल नहीं करना है, देसी 

गाय का सर्वोत्तम है, अन्यथा भैंस का दूध प्रयोग कर सकते हैं। इस दवा को खाने के बाद पानी या तरल का

 सेवन नहीं करना है, सीधे भोजन ही करना है, वो भी कम से कम 45 मिनट बाद ही। अलसी तेल बाज़ार 

का बोतल बंद नहीं लेना है, किसी भी कच्ची घानी से खुद निकलवा कर लायें, वो भी मशीन साफ़ करवाकर 

अन्यथा उसमे अन्य पुराने तेलों की गंध आएगी। अलसी तेल में उपचारात्मक गुण तेल निकाले जाने के

 25-30 दिन बाद ख़त्म होने लगते हैं, इसलिए तेल ताज़ा ही उचित रहेगा। कच्ची घानी किसी गाँधी आश्रम 

में मिलने की संभावना हैं, वरना अब तो मशीन ही प्रयोग की जा रही हैं। दवा के सेवनकाल में रिफाइंड तेल,

 रिफाइंड नमक और रिफाइंड चीनी का प्रयोग वर्जित है, मांसाहार तो बिलकुल नहीं करना है. चाय, कोफी 

और कोई भी मद्य पदार्थ का सेवन करें ही नहीं अथवा बोहोत कम ही करें। बस, इतना ही है, लाभ उठाएं।

ये विश्वविख्यात दवाई है, पता नहीं हमारे ही देश में क्यों इसकी जानकारी नहीं है लोगों को।

शनिवार, 21 सितंबर 2013

सकारात्मक सोच

किसी गाँव में दो साधू रहते थे. वे दिन भर भीख मांगते और मंदिर में पूजा करते थे। एक दिन गाँव में आंधी आ गयी और बहुत जोरों की बारिश होने लगी| दोनों साधू गाँव की सीमा से लगी एक झोपडी में निवास करते थे, शाम को जब दोनों वापस पहुंचे
तो देखा कि आंधी-तूफ़ान के कारण उनकी आधी झोपडी टूट गई है। 

यह देखकर पहला साधू क्रोधित हो उठता है और बुदबुदाने लगता है ,”भगवान तू मेरे साथ हमेशा ही गलत करता है… में दिन भर तेरा नाम लेता हूँ , मंदिर में तेरी पूजा करता हूँ फिर भी तूने मेरी झोपडी तोड़ दी… गाँव में चोर – लुटेरे झूठे लोगो के तो मकानों को कुछ नहीं हुआ , बिचारे हम साधुओं की झोपडी ही तूने तोड़ दी ये तेरा ही काम है …हम तेरा नाम जपते हैं पर तू हमसे प्रेम नहीं करता….”

तभी दूसरा साधू आता है और झोपडी को देखकर खुश हो जाता है नाचने लगता है और कहता है भगवान् आज विश्वास हो गया तू हमसे कितना प्रेम करता है ये हमारी आधी झोपडी तूने ही बचाई होगी वर्ना इतनी तेज आंधी – तूफ़ान में तो पूरी झोपडी ही उड़ जाती ये तेरी ही कृपा है कि अभी भी हमारे पास सर ढंकने को जगह है…. निश्चित ही ये मेरी पूजा का फल है , कल से मैं तेरी और पूजा करूँगा , मेरा तुझपर विश्वास अब और भी बढ़ गया है… तेरी जय हो !

मित्रों एक ही घटना को एक ही जैसे दो लोगों ने कितने अलग-अलग ढंग से देखा … हमारी सोच हमारा भविष्य तय करती है , हमारी दुनिया तभी बदलेगी जब हमारी सोच बदलेगी। यदि हमारी सोच पहले वाले साधू की तरह होगी तो हमें हर चीज में
कमी ही नजर आएगी और अगर दूसरे साधू की तरह होगी तो हमे हर चीज में अच्छाई दिखेगी ….अतः हमें दूसरे साधू की तरह विकट से विकट परिस्थिति में भी अपनी सोच सकारात्मक बनाये रखनी चाहिए।