शनिवार, 26 अक्टूबर 2013

दीपावली पूजन विधि

दीपावली यानी धन और समृद्धि का त्यौहार. इस त्यौहार में गणेश और माता लक्ष्मी के साथ ही साथ धनाधिपति भगवान कुबेर, सरस्वती और काली माता की भी पूजा की जाती है. सरस्वती और काली भी माता लक्ष्मी के ही सात्विक और तामसिक रूप हैं. जब सरस्वती, लक्ष्मी और काली एक होती हैं तब महालक्ष्मी बन जाती हैं.
दिपावली की रात गणेश जी की पूजा से सद्बुद्धि और ज्ञान मिलता है जिससे व्यक्ति में धन कमाने की प्रेरणा आती है. व्यक्ति में इस बात की भी समझ बढ़ती है कि धन का सदुपयोग किस प्रकार करना चाहिए. माता लक्ष्मी अपनी पूजा से प्रसन्न होकर धन का वरदान देती हैं और धनधपति कुबेर धन संग्रह में सहायक होते हैं. इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही दीपावली की रात गणेश लक्ष्मी के साथ कुबेर की भी पूजा की जाती है. 

पूजन सामग्री 
- कलावा, रोली, सिंदूर, १ नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, 5 सुपारी, लौंग,  पान के पत्ते, घी, कलश, कलश हेतु आम का पल्लव, चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल), फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी , अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, रूई, आरती की थाली. कुशा, रक्त चंदनद, श्रीखंड चंदन. 

पर्वोपचार 
पूजन शुरू करने से पूर्व चौकी को धोकर उस पर रंगोली बनाएं. चौकी के चारों कोने पर चार दीपक जलाएं. जिस स्थान पर गणेश एवं लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करनी हो वहां कुछ चावल रखें. इस स्थान पर क्रमश: गणेश और लक्ष्मी की मूर्ति को रखें. अगर कुबेर, सरस्वती एवं काली माता की मूर्ति हो तो उसे भी रखें. लक्ष्मी माता की पूर्ण प्रसन्नता हेतु भगवान विष्णु की मूर्ति लक्ष्मी माता के बायीं ओर रखकर पूजा करनी चाहिए. 

आसन बिछाकर गणपति एवं लक्ष्मी की मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं. इसके बाद अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें 
 "ऊं अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥"
 इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें :-
ऊं पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता। त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ 
 फिर आचमन करें – ऊं केशवाय नम: ऊं माधवाय नम:, ऊं नारायणाय नम:, फिर हाथ धोएं,
शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए. अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें
 चन्‍दनस्‍य महत्‍पुण्‍यम् पवित्रं पापनाशनम्, आपदां हरते नित्‍यम् लक्ष्‍मी तिष्‍ठतु सर्वदा।

दीपावली पूजन हेतु संकल्प 
पंचोपचार करने बाद संकल्प करना चाहिए. संकल्प में पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें :
 ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणो ऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : २०७० , पराभव नाम संवत्सरे दक्षिणायने हेमन्त ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ  रवि वासरे स्वाति नक्षत्रे आयुष्मान योग नाग करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये.

गणपति पूजन 
किसी भी पूजा में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है. इसलिए आपको भी सबसे पहले गणेश जी की ही पूजा करनी चाहिए. हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें.
 गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
आवाहन: ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ कहकर पात्र में अक्षत छोड़ें.
 अर्घा में जल लेकर बोलें एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:.
 रक्त चंदन लगाएं: इदम रक्त चंदनम् लेपनम्  ऊं गं गणपतये नम:,
 इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं.
 इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं "इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:.
 दर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं.
 गणेश जी को वस्त्र पहनाएं. इदं रक्त वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि. 

पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें:
 इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:.
 मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र: इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:
 प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें. इदं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम:
 इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:. 
अब एक फूल लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं गं गणपतये नम: 

इसी प्रकार से अन्य सभी देवताओं की पूजा करें. जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश के स्थान पर उस देवता का नाम लें. 

कलश पूजन 
घड़े या लोटे पर मोली बांधकर कलश के ऊपर आम का पल्लव रखें. कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत, मुद्रा रखें. कलश के गले में मोली लपेटें.  नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखें. हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरूण देवता का कलश में आह्वान करें.
 ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि,
ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥) 

इसके बाद जिस प्रकार गणेश जी की पूजा की है उसी प्रकार वरूण देवता की पूजा करें. इसके बाद देवराज इन्द्र फिर कुबेर की पूजा करें. 

लक्ष्मी पूजन 
सबसे पहले माता लक्ष्मी का ध्यान करें
ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी।
गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।
लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। मणि-गज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः।
नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।

इसके बाद लक्ष्मी देवी की प्रतिष्ठा करें. हाथ में अक्षत लेकर बोलें
 “ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।” 
प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं:
 ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।।
 ॐ लक्ष्म्यै नमः।। इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं। 
इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं।
 ‘ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः। पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नमः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’इस मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं.
 अब लक्ष्मी देवी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं. 

लक्ष्मी देवी की अंग पूजा 
बायें हाथ में अक्षत लेकर दायें हाथ से थोड़ा-थोड़ा छोड़ते जायें—
 ऊं चपलायै नम: पादौ पूजयामि
 ऊं चंचलायै नम: जानूं पूजयामि,
 ऊं कमलायै नम: कटि पूजयामि,
 ऊं कात्यायिन्यै नम: नाभि पूजयामि,
 ऊं जगन्मातरे नम: जठरं पूजयामि,
 ऊं विश्ववल्लभायै नम: वक्षस्थल पूजयामि,
 ऊं कमलवासिन्यै नम: भुजौ पूजयामि,
 ऊं कमल पत्राक्ष्य नम: नेत्रत्रयं पूजयामि,
 ऊं श्रियै नम: शिरं: पूजयामि।

अष्टसिद्धि पूजा 
अंग पूजन की भांति हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें. ऊं अणिम्ने नम:, ओं महिम्ने नम:, ऊं गरिम्णे नम:, ओं लघिम्ने नम:, ऊं प्राप्त्यै नम: ऊं प्राकाम्यै नम:, ऊं ईशितायै नम: ओं वशितायै नम:। 

अष्टलक्ष्मी पूजन 
अंग पूजन एवं अष्टसिद्धि पूजा की भांति हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें. ऊं आद्ये लक्ष्म्यै नम:, ओं विद्यालक्ष्म्यै नम:, ऊं सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:, ओं अमृत लक्ष्म्यै नम:, ऊं लक्ष्म्यै नम:, ऊं सत्य लक्ष्म्यै नम:, ऊं भोगलक्ष्म्यै नम:, ऊं  योग लक्ष्म्यै नम:

नैवैद्य अर्पण
पूजन के पश्चात देवी को
 "इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि" मंत्र से नैवैद्य अर्पित करें.
 मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र: "इदं शर्करा घृत समायुक्तं नैवेद्यं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि" बालें.
 प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें. इदं आचमनयं ऊं महालक्ष्मियै नम:.
 इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि.
 अब एक फूल लेकर लक्ष्मी देवी पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं महालक्ष्मियै नम:.

लक्ष्मी देवी की पूजा के बाद भगवान विष्णु एवं शिव जी पूजा करनी चाहिए फिर गल्ले की पूजा करें. पूजन के पश्चात सपरिवार आरती और क्षमा प्रार्थना करें

क्षमा प्रार्थना 
न मंत्रं नोयंत्रं तदपिच नजाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपिच नजाने स्तुतिकथाः ।
नजाने मुद्रास्ते तदपिच नजाने विलपनं
परं जाने मातस्त्व दनुसरणं क्लेशहरणं                            

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्याच्युतिरभूत् ।
तदेतत् क्षंतव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति                          

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः संति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोहं तव सुतः ।
मदीयो7यंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति                          

जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।
तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदप कुमाता न भवति                          

परित्यक्तादेवा विविध सेवाकुलतया
मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि
इदानींचेन्मातः तव यदि कृपा
नापि भविता निरालंबो लंबोदर जननि कं यामि शरणं              

श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकैः
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ     
                    
चिताभस्म लेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कंठे भुजगपतहारी पशुपतिः
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदं                            

न मोक्षस्याकांक्षा भवविभव वांछापिचनमे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः
अतस्त्वां सुयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडाणी रुद्राणी शिवशिव भवानीति जपतः                          

नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रूक्षचिंतन परैर्नकृतं वचोभिः
श्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाधे
धत्से कृपामुचितमंब परं तवैव                                     

आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि
नैतच्छदत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरंति                                         

जगदंब विचित्रमत्र किं
परिपूर्ण करुणास्ति चिन्मयि
अपराधपरंपरावृतं नहि माता
समुपेक्षते सुतं                                                      

मत्समः पातकी नास्ति
पापघ्नी त्वत्समा नहि
एवं ज्ञात्वा महादेवि
यथायोग्यं तथा कुरु    

शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2013

गन्धर्व-राज विश्वावसु की पूजा पद्धति

गन्धर्व-राज विश्वावसु की पूजा पद्धति

गन्धर्व-राज विश्वावसु की उपासना मुख्यतः ‘वशीकरण’ और ‘विवाह’ के लिये की जाती है। स्त्री-वशीकरण और विवाह के लिये इनके प्रयोग अमोघ है।
मन्त्र-
“ॐ विश्वावसु-गन्धर्व-राज-कन्या-सहस्त्रमावृत, ममाभिलाषितां अमुकीं कन्यां प्रयच्छ स्वाहा।”
विनियोग-
ॐ अस्य श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राज-मन्त्रस्य श्रीरुद्र-ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजः देवता, ह्रीं बीजं, स्वाहा शक्तिः, विश्वावसु-गन्धर्व-राज प्रीति-पूर्वक ममाभिलाषितां अमुकीं कन्यां प्राप्तयर्थे जपे विनियोगः।
ऋष्यादि-न्यास-
श्रीरुद्र-ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे, श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजः देवतायै नमः हृदि, ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये, स्वाहा शक्तये नमः पादयोः, विश्वावसु-गन्धर्व-राज प्रीति-पूर्वक ममाभिलाषितां अमुकीं कन्यां प्राप्तयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे।
कराङ्ग-न्यास-
ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः। ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः। ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः। ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ ह्रः करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः।
षडङ्ग-न्यास-
ॐ ह्रां हृदयाय नमः। ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा। ॐ ह्रूं शिखायै वषट्। ॐ ह्रैं कवचाय हुं। ॐ ह्रौं नेत्र-त्रयाय वौषट्। ॐ ह्रः अस्त्राय फट्।
पुनः कराङ्ग-न्यास-
ॐ ह्रां ॐ विश्वावसु अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ ह्रीं गन्धर्व-राज तर्जनीभ्यां नमः। ॐ ह्रूं कन्या-सहस्त्रमावृत मध्यमाभ्यां नमः। ॐ ह्रैं ममाभिलाषितां अनामिकाभ्यां नमः। ॐ ह्रौं अमुकीं कन्यां कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ ह्रः प्रयच्छ स्वाहा करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः।
इसी क्रम से ‘षडङ्ग-न्यास’ कर ‘दिग्-बन्धन’ करे। यथा-
दिग्-बन्धन-
‘ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ’ से ‘दिग्-बन्धन करे। “ॐ रां रं रं तेजोज्ज्वलप्रकाशाय नमः” से अपने चारों ओर तीन अग्नि-प्राकारों का ध्यान करे। फिर मूल-मन्त्र से तीन, पाँच या सात बार व्यापक न्यास करे। फिर अपने शरीर में पीठ-न्यास करे-
पीठ-न्यास-
मं मण्डूकाय नमः मूलाधारे। कां कालाग्नि-रुद्राय नमः स्वाधिष्ठाने। कं कच्छपाय नमः हृदये। आं आधार-शक्तये नमः। कं कूर्माय नमः। धं धरायै नमः। क्षीं क्षीर-सागराय नमः। श्वें श्वेत-द्वीपाय नमः। कं कल्प-वृक्षाय नमः। मं मणि-प्राकाराय नमः। हें हेम-पीठाय नमः। (कच्छप से हेम-पीठ तक का न्यास हृदय में होगा।) धं धर्माय नमः दक्ष स्कन्धे। ज्ञां ज्ञानाय नमः वाम-स्कन्धे। वैं वैराग्याय नमः दक्ष-जानुनि। ऐं ऐश्वर्याय नमः वाम-जानुनि। अं अधर्माय नमः मुखे। अं अज्ञानाय नमः वाम-पार्श्वे। अं अवैराग्याय नमः नाभौ। अं अनैश्वर्याय नमः दक्ष-पार्श्वे।
निम्न सभी मन्त्रों का हृदय में न्यास करे- अं अनन्ताय नमः। चं चतुर्विंशति-तत्त्वेभ्यो नमः। पं पद्माय नमः। आं आनन्द-कन्दाय नमः। सं सम्विन्नालाय नमः। विं विकार-मय-केसरेभ्यो नमः। प्रं प्रकृत्यात्मक-पत्रेभ्यो नमः। पञ्चाशद्-वर्णाढ्य-कर्णिकायै नमः। सं सूर्य-मण्डलाय नमः। चं चन्द्र-मण्डलाय नमः। वैं वैश्वानर-मण्डलाय नमः। सं सत्त्वाय नमः। रं रजसे नमः। तं तमसे नमः। आं आत्मने नमः। अं अन्तरात्मने नमः। पं परमात्मने नमः। ज्ञां ज्ञानात्मने नमः। मां माया-तत्त्वात्मने नमः। कं कला-तत्त्वात्मने नमः। विं विद्या-तत्त्वात्मने नमः। पं पर-तत्त्वात्मने नमः।
हृदयस्थ अष्ट-दल में प्रादक्षिण्य-क्रम से और मध्य में पीठ-शक्तियों का न्यास करे-
कां कान्त्यै नमः। प्रं प्रभायै नमः। रं रमायै नमः। विं विद्यायै नमः। मं मदनायै नमः। मं मदनातुरायै नमः। रं रंभायै नमः। मं मनोज्ञायै नमः।
कर्णिका में- ह्रीं सर्व-शक्ति-कमलासनाय नमः।
अब हृदयस्थ पीठ पर ‘ध्यान’ करे-
१॰ कन्या-समूहैर्युव-चित्त-हारारुपै परितं उप-केतु-रुपम्।
अम्भोज-ताम्बूल-करं युवानं गन्धर्व-पौढां वने स्मरामि।।
२॰ ध्याये दिव्यं वर्त्ते रम्ये, तयवानमति-सुन्दरम्।
सेवितं कन्यका-वृन्दैः सुन्दरैः भूषितां सदा।।
मुक्ता-हार-लसत्-पाणिः, पङ्जैरति-शोभनैः।
लीला-गृहित-कमलैर्मधुरालाप-कारिभिः।।
उपर्युक्त दो ध्यानों में से कोई एक ध्यान करके ‘मानसिक-पूजन’ करें। यथा-
लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं श्री विश्वावसु-गन्धर्व-राजाय विलेपयामि नमः (अधो-मुख कनिष्ठा एवं अंगुष्ठ से)। हं आकाश- तत्त्वात्मकं पुष्पं श्री विश्वावसु-गन्धर्व-राजाय समर्पयामि नमः (अधो-मुख तर्जनी एवं अंगुष्ठ से)। यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्री विश्वावसु-गन्धर्व-राजाय आघ्रापयामि नमः (अधो-मुख तर्जनी एवं अंगुष्ठ मिलाकर वाम-स्तन पर १० बार भावना से धूम-पात्र रखे)। रं तेजस्तत्त्वात्मकं दीपं श्री विश्वावसु-गन्धर्व-राजाय दर्शयामि नमः (उर्ध्व-मुख मध्यमा एवं अंगुष्ठ मिलाकर, दक्ष-स्तन पर १० बार भावना से दीप-पात्र रखे)। वं अमृत-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्री विश्वावसु-गन्धर्व-राजाय निवेदयामि नमः (उर्ध्व-मुख अनामिका एवं अंगुष्ठ से)। शं शक्त्यात्मकं ताम्बूलादिकं श्री विश्वावसु-गन्धर्व-राजाय निवेदयामि नमः (उर्ध्व-मुख सभी अँगुलियों से)।
इस प्रकार पूजन करके कमल (पद्म), ताम्बूल और योनि-मुद्रा दिखाकर, यथा शक्ति जप करके ‘गुह्याति-गुह्य’ आदि मन्त्र से जप-फल का समर्पण करे।
पुरश्चरण-
१ लाख जप। अयुत (१०,०००) हवन घृत-मिश्रित लाजा से। सहस्त्र (१०००) तर्पण। शत (१००) मार्जन। दश ब्राह्मण भोजन।
प्रयोग-
१॰ कल्पतरु के नीचे मणि-मण्डप में सिंहासन पर बैठे हुए, गन्धर्व-राज-विश्वावसु का ध्यान करते हुए जलाञ्जलि देकर, नित्य १०८ जप करने से एक मास में उत्तम आभूषणों से सुसज्जित ‘कन्या’ की प्राप्ति होती है।
२॰ जल के किनारे, इक्षु-क्षेत्र (गन्ने के खेत) अथवा कदली (केला) वन में मन्त्र का यथा-शक्ति जप तथा दशांश हवन-तिल और पायस से करने पर अभीष्ट कन्या प्राप्त होती है। यह १ मास का प्रयोग है।
३॰ शाल-वृक्ष की लकड़ी की ११ अंगुल की कील १००८ बार अभिमन्त्रित कर, अभीष्ट कन्या के घर में रखने से वह कन्या प्राप्त होती है।
४॰ मन्त्र में से ‘अमुकी’ पद अलग करके ‘जप’ करने से सबका आकर्षण होता है।
विशेष ज्ञातव्य- यह साधना केवल पुरुषों के लिये है।

लक्ष्मी शाबर मन्त्र


“विष्णु-प्रिया लक्ष्मी, शिव-प्रिया सती से प्रकट हुई। कामाक्षा भगवती आदि-शक्ति, युगल मूर्ति अपार, दोनों की प्रीति अमर, जाने संसार। दुहाई कामाक्षा की। आय बढ़ा व्यय घटा। दया कर माई। ॐ नमः विष्णु-प्रियाय। ॐ नमः शिव-प्रियाय। ॐ नमः कामाक्षाय। ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”

विधिः- धूप-दीप-नैवेद्य से पूजा कर सवा लक्ष जप करें। लक्ष्मी आगमन एवं चमत्कार प्रत्यक्ष दिखाई देगा। रुके कार्य होंगे। लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी।