सभी समस्याओ के समाधान माँ बगलामुखी के मंत्र, तंत्र, अनुष्ठान, जप, हवन द्वारा किया जाता है हमारे यहाँ सभी प्रकार की समस्याओं के निवारण हेतु अनुष्ठान किये जाते है
एक गांव मे एक बाबाजी आया हुवा था ! पूरा मायावी दिखाई देता था ! पीत रंग के भगवा वस्त्र , शरीर पर भभुति , रुद्राक्ष की मोटी मोटी मालाएं गले मे , जटा जुट बांधे हुये ! कुल मिलाकर शक्ल से ही बच्चों को तो डरावना लगे ! पर जो उसके ही मार्ग के लोग थे उनके लिये भगवान से कम नही ! बाबाजी ने गांव से बाहर एक पुराने मंदिर पर डेरा लगाया हुवा था ! और जैसा कि होता है वहां चेले चपाटे भी इक्कठे हो ही गये ! चारों तरफ़ बाबा की जय जय कार हो रही थी !
पर क्युं हो रही थी बाबा की जय जयकार ? बात यह थी कि बाबा के पास आप जो भी ले जावो उसको दूना कर देते थे बिल्कुल शर्तिया ! और दूर दुर तक बाबा की प्रसिद्धी फ़ैल गई ! किसी ने नोट डबल करवाये और किसी ने कुछ छोटे मोटे गहने ! बहुत समय चला गया ! फ़िर गांव का जो सेठ था उसको भी उस पर विश्वास हो गया कि बाबा योगीराज बहुत पहुंचे हुये हैं ! सो सेठ भी एक दिन पहुंचने के लिये तैयार हो ही गया और बाबा तो वहां डटा ही इस सेठ को पहुंचाने के चक्कर मे था !
रात को जब सब चले गये तो बाबा के पास सेठ चुपके से आया और बोला- महाराज क्या बताएं ? आप तो अन्तर्यामी हैं ! अब आप तो जानते हैं मेरा काम है लोगो को ब्याज पर रुपया देना ! और आज कल रुपये की डिमान्ड इतनी बढ गयी है कि मेरे पास रुपया कम पड जाता है ! उधार लेने वाले बहुत हैं पर रुपये कम हैं ! बाबा बडे अनमने भाव से सुन रहे हैं जैसे उनको इन कामों मे कोई रुची ही नही हो ! सेठ ने आगे कहा-- महाराज आप कोई ऐसा जतन करो कि अपना भी माल डबल हो जाये ! बाबा के अन्दर ही अन्दर तो लड्डू फ़ुट रहे थे पर उपर से बनते हुये महाराज बोले -- बच्चा हम इस मोह माया से बहुत दूर हैं ! हमको इस नश्वर सन्सार की माया से क्या लेना देना ? ये माया तो आनी जानी है ! फ़िर सेठ ने बडी अनुनय विनय की तो बाबाजी उनका धन दुगुना करने को राजी हुये ! बाबा ने बताया परसो अमावस की रात शम्शान मे जाना पडेगा ! अगर थोडा बहुत का मामला होता तो यहां बैठे बैठे ही करवा देते पर ये तो लाखों का मामला है ! सेठ ने सोचा ये कहीं श्मशान का बोल रहा है , वहां से गायब हो गया तो ? इसके कुछ शन्का व्यक्त करने के पहले ही बाबाजी बोल पडे-- बच्चा हम तो गरीबों की मदद करने को ईश्वर का जो आदेश आता है ! उसके पालन के लिये ये काम करते हैं और हम रुपये पैसे को हाथ लगाते नही हैं ! सेठ की तो बांछे खिल गई और उनको लगा की महात्माजी तो परम दयालू ईश्वर के साक्षात अवतार हैं और उनके चरणों मे लौट गया ! अमावस की रात.. आ गई ! सेठ सारा सोना चांदी, रुपया गहना यानि माल असबाब पोटली मे बांध कर आ गया परम पिता महात्मा जी के पास ! और अमावस आने का समय सेठ ने कैसे काटा होगा ये आप कल्पना कर सकते हैं !
श्मशान के लिये सेठ और बाबाजी का गमन शुरु हुआ-- बाबाजी अपनी सोच मे और सेठ अपनी मे ! अब रास्ते मे बाबा ने बोलना शुरु किया -- देख बच्चा श्मशान मे भूत प्रेत मिलेंगे पर तू डरना मत ! अगर कोई चुडैल आकर दांत दिखाये तो भी मत डरना और कोई अस्थि पन्जर अचानक आकर नाचने लगे तो उसको हाथ से पकड कर फ़ेंक देना ! और जब मै वहां से थोडी देर के लिये कर्ण पिशाचिनी के साथ डांस करता हुआ गायब हो जाऊगा तब तुम हिम्मत से काम लेना और मैं वापस नही आऊं तब तक इस रुपये वाली पोटली को सम्भाले रखना और अगर कोई भूत या चुडैल गुस्से मे आकर तुमको एक दो झापड भी मार दे तो चुप चाप हिम्मत से खडे रहना ! और ये सारे भय बताते बताते वो दोनों गुरु चेले श्मशान घाट के बाहर तक आगये ! सेठ को एक बात तो पक्की हो चुकी थी कि बाबाजी नितान्त परमार्थी है तभी तो कर्ण पिशाचिनी के साथ गायब होते समय पोटली सेठ के पास ही रहेगी यानी कोई बदमाशी की गुन्जाइश ही नही ! पर जब दुसरी बात याद आयी तो सेठ की हिम्मत जबाव दे गई ! अब कौन इस उम्र मे भूत प्रेत और चुडैलों के मूंह लगे ? खाम्खाह का झन्झट क्यों लेना ? सो सेठ बोला-- बाबाजी आप को मेरे लिये ये काम तो खुद ही करना पडैगा ! मुझे तो डर लग रहा है ! मेरी हिम्मत नही पड रही श्मशान मे घुसने की फ़िर भुत प्रेतों की तो सोच के ही पसीने आ रहे हैं ! प्रभु आप ही ये पोटली लो और काम करके वापस आ जाना ! मुझे आप पर भगवान जितना ही विश्वास है ! और बाबाजी ने बडी ना नुकर करके पोटली उठाई और गायब हो गये और सेठ सुबह तो क्या अगले दिन दोपहर तक बैठा रहा पर महात्मा जी को नही आना था सो नही आये !
अब साहब सेठ जी रोता पीटता किसी तरह घर आया ! लोग इक्कठे हुये ! पुलिस मे रिपोर्ट लिखाई गई ! बाबा महात्माओं की बुराईयां की गई ! धर्म के नाम पर कैसा कैसा धोखा चल रहा है ? ऐसे चालबाज और गुन्डे धर्म की ओट मे छुपे हुये हैं ! अब यहां तक की कहानी मे तो कोई खास बात नही है ! पर इससे मेरे मन मे जो सवाल उठे वो जरा देखें आप भी !
अब ये जो सेठ है , ये क्या भला आदमी है ? मुझे ये बिचारा नही बल्की महा बेईमान आदमी लगता है ! ये खुद की चालबाजी से फ़ंसा है ! ये उस बाबा की बदमाशी से नही फ़ंसा है बल्कि खुद की बेईमानी की वजह से लुट कर बैठा है ! अगर ये इमानदार आदमी होता तो क्या इस तरह से नोट डबल करवाता ? नहीं ! बल्कि इमानदार होता तो कहता भाई मुझे नही करवाना इस तरह के डबल नोट ! ये तो गैर कानुनी हुवा ! मेरे हिसाब से वो बाबा तो जब पकडा जायेगा तब पकडा जायेगा ! पर मुझे ऐसा लगता है कि असली गल्ती इस सेठ की है इसको सबसे पहले सजा मिलनी चाहिये ! कानून जो भी कहता हो पर मुझे तो ऐसा ही लगता है ! अरब मे एक कहावत है कि सच्चे आदमी को धोखा देना मुश्किल काम है ! सच्चे आदमी को धोखा दिया ही नही जा सकता ! क्योंकि धोखा देने के सारे उपाय झुंठे और बेइमान आदमी पर ही काम कर सकते हैं ! मुश्किल काम है किसी इमानदार के साथ बेईमानी करना ! ईमानदारी की महिमा ऐसी है कि बेईमानी उसको छू भी नही सकती ! जैसे सुरज को कभी अन्धेरा नही छूता !
॥ भंवर वीर तु चेला मेरा खोल दूकान कहा कर मेरा उठे जो डंडी बीके जो माल भंवर वीर सोखे ना जाये ॥ विधी :- उपरोक्त मंत्र 64 बार बोलकर काले उडद के दानो को अभिमंत्रित कर लीजिए । उसके बाद शनिवार की रात व्यवसाय स्थल पर बिखेर दे । शनिवार रात से सोमवार सुबह तक उडद के दाने वही रहेने दे । फिर सोमवार की सुबह झाड़ू से सारे बिखरे हुए उडद के दाने इक्कठा करे । उसे चार रस्ते पर जाकर फेक दे । इस प्रकार तीन शनिवार करने से आपकी व्यापार ना चलने की समस्या का अंत हो जायेगा ।
॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ॥ अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषि: श्रीसीतारामचंद्रोदेवता अनुष्टुप् छन्द: सीता शक्ति: श्रीमद्हनुमान् कीलकम् श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥ अर्थ: — इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्र के रचयिता बुध कौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमान जी कीलक है तथा श्री रामचंद्र जी की प्रसन्नता के लिए राम रक्षा स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता हैं |
॥ अथ ध्यानम् ॥
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्मासनस्थं ।पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥ वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं ।नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥ ध्यान धरिए — जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं,बद्द पद्दासन की मुद्रा में विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दल के समान स्पर्धा करते हैं, जो बाएँ ओर स्थित सीताजी के मुख कमल से मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारों से विभूषित तथा जटाधारी श्रीराम का ध्यान करें |
॥ इति ध्यानम् ॥
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥ श्री रघुनाथजी का चरित्र सौ करोड़ विस्तार वाला हैं | उसका एक-एक अक्षर महापातकों को नष्ट करने वाला है |
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् । जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥ नीले कमल के श्याम वर्ण वाले, कमलनेत्र वाले , जटाओं के मुकुट से सुशोभित, जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान् श्री राम का स्मरण करके,
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् । स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥ जो अजन्मा एवं सर्वव्यापक, हाथों में खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए राक्षसों के संहार तथा अपनी लीलाओं से जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीराम का स्मरण करके,
रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् । शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥ मैं सर्वकामप्रद और पापों को नष्ट करने वाले राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता हूँ | राघव मेरे सिर की और दशरथ के पुत्र मेरे ललाट की रक्षा करें | कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥ कौशल्या नंदन मेरे नेत्रों की, विश्वामित्र के प्रिय मेरे कानों की, यज्ञरक्षक मेरे घ्राण की और सुमित्रा के वत्सल मेरे मुख की रक्षा करें |
जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: । स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥ मेरी जिह्वा की विधानिधि रक्षा करें, कंठ की भरत-वंदित, कंधों की दिव्यायुध और भुजाओं की महादेवजी का धनुष तोड़ने वाले भगवान् श्रीराम रक्षा करें |
करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् । मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥ मेरे हाथों की सीता पति श्रीराम रक्षा करें, हृदय की जमदग्नि ऋषि के पुत्र (परशुराम) को जीतने वाले, मध्य भाग की खर (नाम के राक्षस) के वधकर्ता और नाभि की जांबवान के आश्रयदाता रक्षा करें |
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: । ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥ मेरे कमर की सुग्रीव के स्वामी, हडियों की हनुमान के प्रभु और रानों की राक्षस कुल का विनाश करने वाले रघुश्रेष्ठ रक्षा करें |
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक: । पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥ मेरे जानुओं की सेतुकृत, जंघाओं की दशानन वधकर्ता, चरणों की विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले और सम्पूर्ण शरीर की श्रीराम रक्षा करें |
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत् । स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥ शुभ कार्य करने वाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धा के साथ रामबल से संयुक्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील हो जाता हैं |
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण: । न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥ जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते रहते हैं अथवा छद्दम वेश में घूमते रहते हैं , वे राम नामों से सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं पाते |
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् । नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥ राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने वाला रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता. इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है |
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् । य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥ जो संसार पर विजय करने वाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ कर लेता हैं, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं |
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् । अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥ जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगल की ही प्राप्ति होती हैं |
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: । तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥ भगवान् शंकर ने स्वप्न में इस रामरक्षा स्तोत्र का आदेश बुध कौशिक ऋषि को दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागने पर उसे वैसा ही लिख दिया |
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् । अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥ जो कल्प वृक्षों के बगीचे के समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियों को दूर करने वाले हैं (विराम माने थमा देना, किसको थमा देना/दूर कर देना ? सकलापदाम = सकल आपदा = सारी विपत्तियों को) और जो तीनो लोकों में सुंदर (अभिराम + स्+ त्रिलोकानाम) हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं |
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ । पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥ जो युवा,सुन्दर, सुकुमार,महाबली और कमल (पुण्डरीक) के समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियों की तरह वस्त्र एवं काले मृग का चर्म धारण करते हैं |
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ । पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥ जो फल और कंद का आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी , तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं , वे दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें |
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् । रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥ ऐसे महाबली – रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम समस्त प्राणियों के शरणदाता, सभी धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षसों के कुलों का समूल नाश करने में समर्थ हमारा त्राण करें |
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङिगनौ । रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥ संघान किए धनुष धारण किए, बाण का स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणों से युक्त तुणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मेरे आगे चलें |
संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा । गच्छन्मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥ हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ में खडग, धनुष-बाण तथा युवावस्था वाले भगवान् राम लक्ष्मण सहित आगे-आगे चलकर हमारी रक्षा करें |
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली । काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥ भगवान् का कथन है की श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम,
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: । जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥ वेदान्त्वेघ, यज्ञेश,पुराण पुरूषोतम , जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामों का
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित: । अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥ नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने वाले को निश्चित रूप से अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त होता हैं |
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् । स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥ दूर्वादल के समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं पीतांबरधारी श्रीराम की उपरोक्त दिव्य नामों से स्तुति करने वाला संसारचक्र में नहीं पड़ता |
रामं लक्शमण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् । काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् । वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥ लक्ष्मण जी के पूर्वज , सीताजी के पति, काकुत्स्थ, कुल-नंदन, करुणा के सागर , गुण-निधान , विप्र भक्त, परम धार्मिक , राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथ के पुत्र, श्याम और शांत मूर्ति, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल तिलक , राघव एवं रावण के शत्रु भगवान् राम की मैं वंदना करता हूँ |
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे । रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥ राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं सीताजी के स्वामी की मैं वंदना करता हूँ |
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम । श्रीराम राम भरताग्रज राम राम । श्रीराम राम रणकर्कश राम राम । श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥ हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरत के अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप मुझे शरण दीजिए |
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥ मैं एकाग्र मन से श्रीरामचंद्रजी के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूँ, वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान् रामचन्द्र के चरणों को प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणों की शरण लेता हूँ |
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: । स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: । सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु । नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥ श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता , मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं | इस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं. उनके सिवा में किसी दुसरे को नहीं जानता |
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा । पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥ जिनके दाईं और लक्ष्मण जी, बाईं और जानकी जी और सामने हनुमान ही विराजमान हैं, मैं उन्ही रघुनाथ जी की वंदना करता हूँ |
लोकाभिरामं रनरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् । कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥ मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीड़ा में धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणा की मूर्ति और करुणा के भण्डार की श्रीराम की शरण में हूँ |
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥ जिनकी गति मन के समान और वेग वायु के समान (अत्यंत तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, मैं उन पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूत की शरण लेता हूँ |
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् । आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥ मैं कवितामयी डाली पर बैठकर, मधुर अक्षरों वाले ‘राम-राम’ के मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयल की वंदना करता हूँ |
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् । लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥ मैं इस संसार के प्रिय एवं सुन्दर उन भगवान् राम को बार-बार नमन करता हूँ, जो सभी आपदाओं को दूर करने वाले तथा सुख-सम्पति प्रदान करने वाले हैं |
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् । तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥ ‘राम-राम’ का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं | वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं | राम-राम की गर्जना से यमदूत सदा भयभीत रहते हैं |
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे । रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: । रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम् । रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥ राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं | मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम का भजन करता हूँ | सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ | श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं | मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूँ | मैं हमेशा श्रीराम मैं ही लीन रहूँ | हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें |
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥ (शिव पार्वती से बोले –) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं | मैं सदा राम का स्तवन करता हूँ और राम-नाम में ही रमण करता हूँ |
नवरात्रो में इस रामरक्षा स्तोत्र का नित्य नौ पाठ करके एक कमल का पुष्प भगवन श्री राम जी को समर्पित करने से यह स्त्रोत्र सिद्ध हो जाता है उसके बाद नित्य एक पाठ सभी प्रकार स रक्षा करता है ।
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