मंत्र :- समुद्र समुद्र में द्धीप द्धीप में कूप कूप में कुई जहाँ ते चले हरि हर परे ओले चारो तरफ बरावत चला हनुमंत बरावत चला भीम ईश्वर भांजि मठ में जाय गौरा बैठी द्वारे नहाईं ठक्कनै उद्परै न बोला राजा इंद्र की दुहाई मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र ईश्वरोवाचा ।
मंत्र सिद्ध करने की विधि :- आषाढ़ की पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) से श्रावण की पूर्णिमा तक एक माह तक गांव के बाहर बने हनुमान मंदिर पर पूजन आदि संपन्न कर नित्य एक माला जपने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है । मंत्र जप के समय गुग्गल की धुप देते रहे ।
प्रयोग विधि :- सिद्धि के पश्चात स्वतः उगी सरसों एकत्र करके नवरात्रों में उस पर नित्य एक माला का जप करे । इस प्रकार सिद्ध की गई सरसो को ओले बरसते समय गाँव के बाहर जाकर मंत्र पढ़ते हुए कुछ कुछ दाने चारो दिशाओ में कुछ कुछ दाने ऐसी दिशा में फेंके जहां खेत न हो । बरसते हुए उसी दिशा में गिराने लगेंगे और फसल सुरक्षित हो जाएगी ।