बुधवार, 14 जनवरी 2015

सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र

सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र-
ॐ गं गणपतये नमः। सर्व-विघ्न-विनाशनाय, सर्वारिष्ट निवारणाय, सर्व-सौख्य-प्रदाय, बालानां बुद्धि-प्रदाय, नाना-प्रकार-धन-वाहन-भूमि-प्रदाय, मनोवांछित-फल-प्रदाय रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ गुरवे नमः, ॐ श्रीकृष्णाय नमः, ॐ बलभद्राय नमः, ॐ श्रीरामाय नमः, ॐ हनुमते नमः, ॐ शिवाय नमः, ॐ जगन्नाथाय नमः, ॐ बदरीनारायणाय नमः, ॐ श्री दुर्गा-देव्यै नमः।।
ॐ सूर्याय नमः, ॐ चन्द्राय नमः, ॐ भौमाय नमः, ॐ बुधाय नमः, ॐ गुरवे नमः, ॐ भृगवे नमः, ॐ शनिश्चराय नमः, ॐ राहवे नमः, ॐ पुच्छानयकाय नमः, ॐ नव-ग्रह रक्षा कुरू कुरू नमः।।
ॐ मन्येवरं हरिहरादय एव दृष्ट्वा द्रष्टेषु येषु हृदयस्थं त्वयं तोषमेति विविक्षते न भवता भुवि येन नान्य कश्विन्मनो हरति नाथ भवान्तरेऽपि। ॐ नमो मणिभद्रे। जय-विजय-पराजिते ! भद्रे ! लभ्यं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्-सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।। सर्व विघ्नं शांन्तं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक-भैरवाय आपदुद्धारणाय महान्-श्याम-स्वरूपाय दिर्घारिष्ट-विनाशाय नाना प्रकार भोग प्रदाय मम (यजमानस्य वा) सर्वरिष्टं हन हन, पच पच, हर हर, कच कच, राज-द्वारे जयं कुरू कुरू, व्यवहारे लाभं वृद्धिं वृद्धिं, रणे शत्रुन् विनाशय विनाशय, पूर्णा आयुः कुरू कुरू, स्त्री-प्राप्तिं कुरू कुरू, हुम् फट् स्वाहा।।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः। ॐ नमो भगवते, विश्व-मूर्तये, नारायणाय, श्रीपुरूषोत्तमाय। रक्ष रक्ष, युग्मदधिकं प्रत्यक्षं परोक्षं वा अजीर्णं पच पच, विश्व-मूर्तिकान् हन हन, ऐकाह्निकं द्वाह्निकं त्राह्निकं चतुरह्निकं ज्वरं नाशय नाशय, चतुरग्नि वातान् अष्टादष-क्षयान् रांगान्, अष्टादश-कुष्ठान् हन हन, सर्व दोषं भंजय-भंजय, तत्-सर्वं नाशय-नाशय, शोषय-शोषय, आकर्षय-आकर्षय, मम शत्रुं मारय-मारय, उच्चाटय-उच्चाटय, विद्वेषय-विद्वेषय, स्तम्भय-स्तम्भय, निवारय-निवारय, विघ्नं हन हन, दह दह, पच पच, मथ मथ, विध्वंसय-विध्वंसय, विद्रावय-विद्रावय, चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ, चक्रेण हन हन, पा-विद्यां छेदय-छेदय, चौरासी-चेटकान् विस्फोटान् नाशय-नाशय, वात-शुष्क-दृष्टि-सर्प-सिंह-व्याघ्र-द्विपद-चतुष्पद अपरे बाह्यं ताराभिः भव्यन्तरिक्षं अन्यान्य-व्यापि-केचिद् देश-काल-स्थान सर्वान् हन हन, विद्युन्मेघ-नदी-पर्वत, अष्ट-व्याधि, सर्व-स्थानानि, रात्रि-दिनं, चौरान् वशय-वशय, सर्वोपद्रव-नाशनाय, पर-सैन्यं विदारय-विदारय, पर-चक्रं निवारय-निवारय, दह दह, रक्षां कुरू कुरू, ॐ नमो भगवते, ॐ नमो नारायणाय, हुं फट् स्वाहा।।
ठः ठः ॐ ह्रीं ह्रीं। ॐ ह्रीं क्लीं भुवनेश्वर्याः श्रीं ॐ भैरवाय नमः। हरि ॐ उच्छिष्ट-देव्यै नमः। डाकिनी-सुमुखी-देव्यै, महा-पिशाचिनी ॐ ऐं ठः ठः। ॐ चक्रिण्या अहं रक्षां कुरू कुरू, सर्व-व्याधि-हरणी-देव्यै नमो नमः। सर्व प्रकार बाधा शमनमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू फट्। श्रीं ॐ कुब्जिका देव्यै ह्रीं ठः स्वाहा।।
शीघ्रमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू शाम्बरी क्रीं ठः स्वाहा।।
शारिका भेदा महामाया पूर्णं आयुः कुरू। हेमवती मूलं रक्षा कुरू। चामुण्डायै देव्यै शीघ्रं विध्नं सर्वं वायु कफ पित्त रक्षां कुरू। मन्त्र तन्त्र यन्त्र कवच ग्रह पीडा नडतर, पूर्व जन्म दोष नडतर, यस्य जन्म दोष नडतर, मातृदोष नडतर, पितृ दोष नडतर, मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण स्तम्भन उन्मूलनं भूत प्रेत पिशाच जात जादू टोना शमनं कुरू। सन्ति सरस्वत्यै कण्ठिका देव्यै गल विस्फोटकायै विक्षिप्त शमनं महान् ज्वर क्षयं कुरू स्वाहा।।
सर्व सामग्री भोगं सप्त दिवसं देहि देहि, रक्षां कुरू क्षण क्षण अरिष्ट निवारणं, दिवस प्रति दिवस दुःख हरणं मंगल करणं कार्य सिद्धिं कुरू कुरू। हरि ॐ श्रीरामचन्द्राय नमः। हरि ॐ भूर्भुवः स्वः चन्द्र तारा नव ग्रह शेषनाग पृथ्वी देव्यै आकाशस्य सर्वारिष्ट निवारणं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीवासुदेवाय नमः, बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीविष्णु भगवान् मम अपराध क्षमा कुरू कुरू, सर्व विघ्नं विनाशय, मम कामना पूर्णं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ॐ श्रीदुर्गा देवी रूद्राणी सहिता, रूद्र देवता काल भैरव सह, बटुक भैरवाय, हनुमान सह मकर ध्वजाय, आपदुद्धारणाय मम सर्व दोषक्षमाय कुरू कुरू सकल विघ्न विनाशाय मम शुभ मांगलिक कार्य सिद्धिं कुरू कुरू स्वाहा।।
एष विद्या माहात्म्यं च, पुरा मया प्रोक्तं ध्रुवं। शम क्रतो तु हन्त्येतान्, सर्वाश्च बलि दानवाः।। य पुमान् पठते नित्यं, एतत् स्तोत्रं नित्यात्मना। तस्य सर्वान् हि सन्ति, यत्र दृष्टि गतं विषं।। अन्य दृष्टि विषं चैव, न देयं संक्रमे ध्रुवम्। संग्रामे धारयेत्यम्बे, उत्पाता च विसंशयः।। सौभाग्यं जायते तस्य, परमं नात्र संशयः। द्रुतं सद्यं जयस्तस्य, विघ्नस्तस्य न जायते।। किमत्र बहुनोक्तेन, सर्व सौभाग्य सम्पदा। लभते नात्र सन्देहो, नान्यथा वचनं भवेत्।। ग्रहीतो यदि वा यत्नं, बालानां विविधैरपि। शीतं समुष्णतां याति, उष्णः शीत मयो भवेत्।। नान्यथा श्रुतये विद्या, पठति कथितं मया। भोज पत्रे लिखेद् यन्त्रं, गोरोचन मयेन च।। इमां विद्यां शिरो बध्वा, सर्व रक्षा करोतु मे। पुरूषस्याथवा नारी, हस्ते बध्वा विचक्षणः।। विद्रवन्ति प्रणश्यन्ति, धर्मस्तिष्ठति नित्यशः। सर्वशत्रुरधो यान्ति, शीघ्रं ते च पलायनम्।।
‘श्रीभृगु संहिता’ के सर्वारिष्ट निवारण खण्ड में इस अनुभूत स्तोत्र के 40 पाठ करने की विधि बताई गई है। इस पाठ से सभी बाधाओं का निवारण होता है।
किसी भी देवता या देवी की प्रतिमा या यन्त्र के सामने बैठकर धूप दीपादि से पूजन कर इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिये। विशेष लाभ के लिये ‘स्वाहा’ और ‘नमः’ का उच्चारण करते हुए ‘घृत मिश्रित गुग्गुल’ से आहुतियाँ दे सकते हैं

सोमवार, 12 जनवरी 2015

लक्ष्मी प्राप्ति एवं दुर्भाग्य दूर करने के कुछ चमत्तकारिक एवं दुर्लभ उपाय

लक्ष्मी प्राप्ति एवं दुर्भाग्य दूर करने के कुछ चमत्तकारिक एवं दुर्लभ उपाय .............,
धन-समृद्धि प्राप्त करने के कुछ सरल और
चमत्कारिक उपाय दिये जा रहे हैं, जिसे अपनाकर
व्यक्ति दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल सकता है। ये प्रयोग आप दीपावली पूर्णिमा किसीअश्टमी किसी अमावश्या या किसी शुभ पुजन मुहूर्त या सर्वाथ सिद्ध योग किसी अमृत सिद्ध योग या गुरू पुष्य योग या किसी चोघडिया मुहूर्त मे ये प्रयोग कर सकते हैl
अपने घर के ईशान कोण में श्री यंत्र ताम्रपत्र, रजत
यंत्र या भोजपत्र पर बनायें। प्राण प्रतिष्ठा करके
नित्य पूजा करने से विविध ऐश्वर्य के साथ
लक्ष्मी प्राप्त होती है। -
अर्क (अकोड़ा), छाक
(छिला), खैर, अपामार्ग, पीपल की जड़, गूलर
की जड़ खेजड़े की जड़, दुर्वा एवं कुशा की जड़
को एक चांदी की डिब्बी में रखकर नित्य
पूजा करें। जीवन में कभी असफलता नहीं आयेगी,
नवग्रह शांत रहेंगे सुख सम्प ति की बढ़ोरी होगी। -
सम्पूर्ण दीपावली की रात्रि ‘‘हत्था जोड़ी’’
को सामने रखकर
‘‘धनम् देहि’’
मंत्र का जाप करें
निश्चित रूप से धन की प्राप्ति होगी। -
यदि दीपावली रविवार को हो तो हत्तहा जोडि को लाल
रंग से रंग दें। यदि सोमवार को हो तो उसपर सफेद
अबीर लगा दें। मंगल को हो तो लाल, बुधवार
को हो तो हरा, बृहस्पतिवार
को हो तो पीला रंग, शुक्रवार को हो तो सफेद
अबीर, शनिवार को हो तो में काला अबीर
लगायें। धन की वृद्धि होगी। - लक्ष्मी आकर्षण
यंत्र या छत्तीसा यंत्र दीवाली या किसी पूर्णिमा की रात्रि को सफेद
कोरे कागज पर लाल स्याही से या अष्टगंध से
लिखकर 100 छोटी-छोटी गोलियां बना लें। उन
गोलियों को सवा किलो आटे में घी, शक्कर
(चीनी) का बूरा दूध मिला दें। गीले आटे में
गोली डालकर छोटी-छोटी आटे
की गोलियां बना लें। विभिन्न मंत्र बोलते हुए
मछलियों को खिलाएं। धन सम्प की वर्ष भर
कमी नहीं रहेगी।
‘‘ऊँ महाशक्ति वेगेन, आकर्षय
आकर्षय मणिभद्र स्वाहा।’
’ - दीवालीया लक्ष्मी पूजन के
समय कौड़ियों को केसर या हल्दी से रंगकर पीले
कपड़े में बांध लें और फिर इन कौड़ियों को धन रखने
के स्थान पर रखें, धन की कमी नहीं रहेगी। - पांच
गोमती चक्र दीपावली के दिन या किसी सुभ दिन मे पूजा के समय
थाली में रखें और निम्न मंत्र का उच्चारण 108
बार (एक माला) करें।
‘‘ऊँ वे आरोग्यानिकरी रोग
नशेषा नमः’’
इसको धन के स्थान पर रखने से धन
की कमी नहीं रहेगी। सब रोगों का नाश होगा।
शरीर स्वस्थ रहेगा। - गोमती चक्र उपरोक्त मंत्र से
या
ऊँ लक्ष्मी नमः’’
से अभिमंत्रित करके लाल
पोटली में बांध लें और दुकान में किसी स्थान पर
रख दें। जब तक पोटली दुकान में रहेगी तो निश्चय
ही व्यापार में उन्नति होगी या व्यापार रुक
गया तो फिर तेजी से शुरु हो जायेगा। -
दीपावली के दिन या किसी भी दिन प्रातःकाल उठकर तुलसी के
की माला बनाकर श्री महालक्ष्मी के चरणों में
अर्पित करें। धन लाभ होगा। -
दीपावली की या किसी सुभ दिन के प्रातःकाल सबसे पहले साबुत काले
उड़द और चमकीला काला वस्त्र किसी को दान
करें या शनि मंदिर में चुप-चाप रख दें, ग्रह दोष
समाप्त हो जायेगा। - दीपावली के दिन
काली मिर्च के दाने
‘ऊँ क्लीं’
बीज मंत्र का जप
करते हुए परिवार के सदस्यों के सिर पर घुमाकर
दक्षिण दिशा में घर से बाहर फेंक दें, शत्रु शांत
हो जायेंगे। - दीपावली की रात को या किसी भी सुभ रत्री मे 11
हल्दी की गांठ लें, इनको पीले कपड़े में बांध लें
फिर लक्ष्मी-गणेश की संयुक्त फोटो के सामने
घी का दीपक जलायें और 11 माला निम्न मंत्र
का उच्चारण करें।
‘‘ऊँ वक्र- तुण्डाय हं।’’ फिर
हल्दी की गांठों वाली पोटली अपने हाथ में लेकर
‘श्रीं श्रीं’ का जाप करते हुए कैश बाक्स में रखें और
प्रतिदिन धूप दें। लक्ष्मी स्थिर रहेगी। -
दीपावली के दिन या किसी सुभ दिन मे 11 ‘‘कौड़ियां,’’11
गोमती चक्र, 5 सुपारी एवं 5
काली हल्दी की गांठें लें। अब
काली हल्दी की गांठ पर पीली पिसी हुई
हल्दी की छींटे लगाते समय
श्रीं श्रीं का उच्चारण करते रहें।
दीपावली या किसी रत्री की सारी रात उस सामग्री को पड़े
रहने दें, अगले दिन इन सारी वस्तुओं को पीले कपड़े
मं बांधकर तिजोरी में रख दें, लक्ष्मी वर्ष भर
प्रसन्न रहेंगी। - घर में कमलगट्टे की माला, लघु
नारियल, दक्षिणावर्ती शंख, श्वेतार्क गणपति,
श्री यंत्र, कुबेर यंत्र आदि स्थापित कर
जो भी दीपावली की रात को नित्य
इनकी पूजा करता है ‘उनके घर में
लक्ष्मी पीढ़ियों तक वास करती हैं।’ -
दीपावली की रात्रि को लक्ष्मी जी की फोट
सामने शुद्ध देशी घी के दीपक जलाकर कमलगट्टे
की माला से इस मंत्र का उच्चारण करेl
ेऊं ऐं
ह्रीं श्रीं क्लीं दारिरय विनाशके जगत्मासूत्यै
नमः’।
इस मंत्र से लक्ष्मी देवी प्रसन्न होती हैं।
यही क्रिया यदि रोज करें तो लक्ष्मी का वास
स्थिर हो जायेगा। - दीपावली के दिन
शनि की साढ़ेसाती, ढैया या अशुभ प्रभाव
को दूर करने के लिए काले तिल और कपास की ब
से सरसों के तेल का दीपक जलाएं और शमी के पौधे
के सामने शनि मंत्र का उच्चारण करें।
शनि का बुरा प्रभाव कम हो जायेगा, शुभ फल
देगा। - शंख में, गोबर में, आंवले में और सफेद वस्तुओं में
लक्ष्मी का वास होता है। इनका प्रयोग
सदा करें। सदा आंवला घर में रखें। लक्ष्मी का वास
सदा रहेगा। - दीपावली पूजन के बाद पूरे घर में
गुग्गुल का धुआं दें। बुरी आत्माओं और
आसुरी शक्तियों से रक्षा रहेगी। -
यदि बिल्ली के जेर मिल जायें
तो दीपावली की रात्रि को या किसी शुभ
मुहूर्त में उस पर हल्दी लगाएं और बायें हाथ
की मुठ्ठी में रखकर आखें बंद करके
‘‘मर्जबान उल
किस्ता’’
यह मंत्र 54 बार पढ़ें और दूसरे दिन उसे धन
रखने के स्थान पर रखें। - दीपावली की शाम
को अशोक वृक्ष की जड़ अशोक वृक्ष से टोडकर
लायें तथा अपने पास रखें, धन स्थिर रहेगा। -
दीपावली को प्रातः काल महालक्ष्मी के चित्र
के समक्ष घी का दीपक, 2 लौंग डालकर जलाएं।
नैवेद्य में खीर या हलवा रखें। तुलसी के पौधे में जल
अर्पित करें और ‘‘ऊँ नमो महालक्ष्म्यै नमः’’ मंत्र
का जाप करें। लक्ष्मी प्रसन्न रहेगी और घर में वास
रहेगा।

गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

❄बगलामुखी कवच❄

❄बगलामुखी कवच❄
यह कवच विश्वसारोद्धार तन्त्र से लिया गया है। पार्वती जी के द्वारा भगवान शिव से पूछे जाने पर भगवती बगला के कवच के विषय में प्रभु वर्णन करते हैं कि देवी बगला शत्रुओं के कुल के लिये जंगल में लगी अग्नि के समान हैं। वे साम्रज्य देने वाली और मुक्ति प्रदान करने वाली हैं।
भगवती बगलामुखी के इस कवच के विषय में बहुत कुछ कहा गया है। इस कवच के पाठ से अपुत्र को धीर, वीर और शतायुष पुत्र की प्राप्ति होति है और निर्धन को धन प्राप्त होता है। महानिशा में इस कवच का पाठ करने से सात दिन में ही असाध्य कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं। मक्खन को इस कवच से अभिमन्त्रित करके यदि बन्धया स्त्री को खिलाया जाये, तो वह पुत्रवती हो जाती है। इसके पाठ व नित्य पूजन से मनुष्य बृहस्पति के समान हो जाता है, शत्रओं के लिये यम के समान हो जाता है। मां बगला के प्रसाद से उसकी वाणी गद्य-पद्यमयी हो जाती है । उसके गले से कविता लहरी का प्रवाह होने लगता है। 
❄इस कवच का पुरश्चरण एक सौ ग्यारह पाठ करने से होता है, बिना पुरश्चरण के इसका उतना फल प्राप्त नहीं होता।
❄इस कवच को भोजपत्र पर अष्टगंध से लिखकर पुरुष को दाहिने हाथ में व स्त्री को बायें हाथ में धारण करना चाहिये।
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❄ ध्यान ❄
सौवर्णासनसंस्थितां त्रिनयनां पीताशुकोल्लासिनीम् ।
हेमाभांगरुचिं शशांकमुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम् ।।
हस्तैर्मुदगर पाशवज्ररसनाः संबिभ्रतीं भूषणैः।
व्याप्तागीं बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तयेत्।।
❄विनियोगः❄
ॐ अस्य श्रीबगलामुखीब्रह्मास्त्रमन्त्रकवचस्य भैरव ऋषिः, विराट् छन्दः श्रीबगलामुखी देवता, क्लीं बीजम्, ऐं शक्तिः, श्रीं कीलकं, मम परस्य च मनोभिलाषितेष्टकार्यसिद्धये विनियोगः ।
❄ऋषि-न्यास❄
शिरसि भैरव ऋषये नमः ।
मुखे विराट छन्दसे नमः ।
हृदि बगलामुखीदेवतायै नमः ।
गुह्ये क्लीं बीजाय नमः ।
पादयो ऐं शक्तये नमः ।
सर्वांगे श्रीं कीलकाय नमः ।
**करन्यास**
ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
❄हृदयादि न्यास❄
ॐ ह्रां हृदयाय नमः ।
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा ।
ॐ ह्रूं शिखायै वषट् ।
ॐ ह्रैं कवचाय हुम ।
ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ ह्रः अस्त्राय फट् । 
❄मन्त्रोद्धारः❄
ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं श्रीबगलानने मम रिपून् नाशय नाशय मामैश्वर्याणि देहि देहि, शीघ्रं मनोवाञ्छितं कार्यं साधय साधय ह्रीं स्वाहा।
❄❄कवच❄❄
शिरो मे पातु ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं पातु ललाटकम् ।
सम्बोधनपदं पातु नेत्रे श्री बगलानने ।।1।।
श्रुतौ मम् रिपुं पातु नासिकां नाशयद्वयम् ।
पातु गण्डौ सदा मामैश्वर्याण्यन्तं तु मस्तकम् ।।2।।
देहि द्वन्द्वं सदा जिहवां पातु शीघ्रं वचो मम ।
कण्ठदेशं मनः पातु वाञ्छितं बाहुमूलकम् ।।3।।
कार्यं साधयद्वन्द्वं तु करौ पातु सदा मम ।
मायायुक्ता यथा स्वाहा हृदयं पातु सर्वदा ।।4।।
अष्टाधिकचत्वारिंशदण्डाढया बगलामुखी ।
रक्षां करोतु सर्वत्र गृहेऽरण्ये सदा मम ।।5।।
ब्रह्मास्त्राख्यो मनुः पातु सर्वांगे सर्वसन्धिषु ।
मन्त्रराजः सदा रक्षां करोतु मम सर्वदा ।।6।।
ॐ ह्रीं पातु नाभिदेशं कटिं मे बगलाऽवतु ।
मुखिवर्णद्वयं पातु लिगं मे मुष्कयुग्मकम् ।।7।।
जानुनी सर्वदुष्टानां पातु मे वर्णपञ्चकम् ।
वाचं मुखं तथा पादं षड्वर्णाः परमेश्वरी ।।8।।
जंघायुग्मे सदापातु बगला रिपुमोहिनी ।
स्तम्भयेति पदं पृष्ठं पातु वर्णत्रय मम ।।9।।
जिहवावर्णद्वयं पातु गुल्फौ मे कीलयेति च ।
पादोर्ध्वं सर्वदा पातु बुद्धिं पादतले मम ।।10।।
विनाशयपदं पातु पादांगुर्ल्योनखानि मे ।
ह्रीं बीजं सर्वदा पातु बुद्धिन्द्रियवचांसि मे ।।11।।
सर्वागं प्रणवः पातु स्वाहा रोमाणि मेऽवतु ।
ब्राह्मी पूर्वदले पातु चाग्नेय्यां विष्णुवल्लभा ।।12।।
माहेशी दक्षिणे पातु चामुण्डा राक्षसेऽवतु ।
कौमारी पश्चिमे पातु वायव्ये चापराजिता ।।13।।
वाराही च उत्तरे पातु नारसिंही शिवेऽवतु ।
ऊर्ध्वं पातु महालक्ष्मीः पाताले शारदाऽवतु ।।14।।
इत्यष्टौ शक्तयः पान्तु सायुधाश्च सवाहनाः ।
राजद्वारे महादुर्गे पातु मां गणनायकः ।।15।।
श्मशाने जलमध्ये च भैरवश्च सदाऽवतु ।
द्विभुजा रक्तवसनाः सर्वाभरणभूषिताः ।।16।।
योगिन्यः सर्वदा पान्तु महारण्ये सदा मम ।
फलश्रुति
इति ते कथितं देवि कवचं परमाद्भुतम् ।।17।।
श्रीविश्वविजयं नाम कीर्तिश्रीविजयप्रदाम् ।
अपुत्रो लभते पुत्रं धीरं शूरं शतायुषम् ।।18।।
निर्धनो धनमाप्नोति कवचास्यास्य पाठतः ।
जपित्वा मन्त्रराजं तु ध्यात्वा श्री बगलामुखीम् ।।19।।
पठेदिदं हि कवचं निशायां नियमात् तु यः ।
यद् यत् कामयते कामं साध्यासाध्ये महीतले ।।20।।
तत् तत् काममवाप्नोति सप्तरात्रेण शंकरि ।
गुरुं ध्यात्वा सुरां पीत्वा रात्रो शक्तिसमन्वितः ।।21।।
कवचं यः पठेद् देवि तस्यासाध्यं न किञ्चन ।
यं ध्यात्वा प्रजपेन्मन्त्रं सहस्त्रं कवचं पठेत् ।।22।।
त्रिरात्रेण वशं याति मृत्योः तन्नात्र संशयः ।
लिखित्वा प्रतिमां शत्रोः सतालेन हरिद्रया ।।23।।
लिखित्वा हृदि तन्नाम तं ध्यात्वा प्रजपेन् मनुम् ।
एकविंशददिनं यावत् प्रत्यहं च सहस्त्रकम् ।।24।।
जपत्वा पठेत् तु कवचं चतुर्विंशतिवारकम्।
संस्तम्भं जायते शत्रोर्नात्र कार्या विचारणा।।25।।
विवादे विजयं तस्य संग्रामे जयमाप्नुयात् ।
श्मशाने च भयं नास्ति कवचस्य प्रभावतः ।।26।।
नवनीतं चाभिमन्त्रय स्त्रीणां दद्यान्महेश्र्वरि ।
वन्ध्यायां जायते पुत्रो विद्याबलसमन्वितः ।।27।।
श्मशानांगारमादाय भौमे रात्रौ शनावथ ।
पादोदकेन स्पृष्ट्वा च लिखेत् लोहशलाकया ।।28।।
भूमौ शत्रोः स्वरुपं च हृदि नाम समालिखेत् ।
हस्तं तद्धृदये दत्वा कवचं तिथिवारकम् ।।29।।
ध्यात्वा जपेन् मन्त्रराजं नवरात्रं प्रयत्नतः ।
म्रियते ज्वरदाहेन दशमेंऽहनि न संशयः ।।30।।
भूर्जपत्रेष्विदं स्तोत्रमष्टगन्धेन संलिखेत् ।
धारयेद् दक्षिणे बाहौ नारी वामभुजे तथा ।।31।।
संग्रामे जयमप्नोति नारी पुत्रवती भवेत् ।
सम्पूज्य कवचं नित्यं पूजायाः फलमालभेत् ।।32।।
ब्रह्मास्त्रादीनि शस्त्राणि नैव कृन्तन्ति तं जनम् ।
वृहस्पतिसमो वापि विभवे धनदोपमः ।।33।।
कामतुल्यश्च नारीणां शत्रूणां च यमोपमः ।
कवितालहरी तस्य भवेद् गंगाप्रवाहवत् ।।34।।
गद्यपद्यमयी वाणी भवेद् देवी प्रसादतः ।
एकादशशतं यावत् पुरश्चरणमुच्यते ।।35।।
पुरश्चर्याविहीनं तु न चेदं फलदायकम् ।
न देयं परशिष्येभ्यो दुष्टेभ्यश्च विशेषतः ।।36।।
देयं शिष्याय भक्ताय पञ्चत्वं चान्यथाऽऽप्नुयात् ।
इदं कवचमज्ञात्वा भजेद् यो बगलामुखीम् ।।37।।
शतकोटिं जपित्वा तु तस्य सिद्धिर्न जायते ।
दाराढयो मनुजोऽस्य लक्षजपतः प्राप्नोति सिद्धिं परां ।।38।।
विद्यां श्रीविजयं तथा सुनियतं धीरं च वीरं वरम् ।
ब्रह्मास्त्राख्यमनुं विलिख्य नितरां भूर्जेऽष्टगन्धेन वै ।।39।।
❄धृत्वा राजपुरं व्रजन्ति खलु ते दासोऽस्ति तेषां नृपः ।
❄जय जय श्रीविश्वसारोद्धारतन्त्रे पार्वतीश्वरसंवादे
बगलामुखी कवचम सम्पूर्णं।।