। श्रीविष्णु-यामले श्रीनारद-विष्णु-सम्वादे, श्रीबगलाऽष्टोत्तर-शत-नाम-स्त्रोत्रम ।।
विनियोग: ॐ अस्य श्री पीताम्बरा अष्टोत्तर शतनाम स्त्रोत्रस्य सदाशिव ऋषिः अनुष्टुप छन्दः श्री पीताम्बरी देवता श्री पीताम्बरी प्रीतये पाठे जपे विनियोगः |
ॐ बगला विष्णु-वनिता, विष्णु-शंकर-भामिनी ।
बहुला वेद-माता च, महा-विष्णु-प्रसूरपि ।।1।।
महा-मत्स्या महा-कूर्मा, महा-वाराह-रूपिणी ।
नरसिंह-प्रिया रम्या, वामना वटु-रूपिणी ।।2।।
जामदग्न्य-स्वरूपा च, रामा राम-प्रपूजिता ।
कृष्णा कपर्दिनी कृत्या, कलहा कल-कारिणी ।।3।।
बुद्धि-रूपा बुद्ध-भार्या, बौद्ध-पाखण्ड-खण्डिनी ।
कल्कि-रूपा कलि-हरा, कलि-दुर्गति-नाशिनी ।।4।।
कोटि-सूर्य-प्रतिकाशा, कोटि-कन्दर्प-मोहिनी ।
केवला कठिना काली, कला कैवल्य-दायिनी ।।5।।
केशवी केशवाराध्या, किशोरी केशव-स्तुता ।
रूद्र-रूपा रूद्र-मूर्ति, रूद्राणी रूद्र-देवता ।।6।।
नक्षत्र-रूपा नक्षत्रा, नक्षत्रेश-प्रपूजिता ।
नक्षत्रेश-प्रिया नित्या, नक्षत्र-पति-वन्दिता ।।7।।
नागिनी नाग-जननि, नाग-राज-प्रवन्दिता ।
नागेश्वरी नाग-कन्या, नागरी च नगात्मजा ।।8।।
नगाधिराज-तनया, नग-राज-प्रपूजिता ।
नवीन नीरदा पीता, श्यामा सौन्दर्य-कारिणी ।।9।।
रक्ता नीला घना शुभ्रा, श्वेता सौभाग्य-दायिनी ।
सुन्दरी सौभगा सौम्या, स्वर्णभा स्वर्गति-प्रदा ।।10।।
रिपु-त्रास-करी रेखा, शत्रु-संहार-कारिणी ।
भामिनी च तथा माया, स्तम्भिनी मोहिनी शुभा।।12।।
राग-द्वेष-करी रात्रि, रौरव-ध्वसं-कारिणी ।
यक्षिणी सिद्ध-निवहा सिद्धेशा सिद्धि-रूपिणी ।।13।।
लंका-पति-ध्वसं-करी, लंकेश-रिपु-वन्दिता ।
लंका-नाथ – कुल-हरा, महा-रावण-हारिणी ।।14।।
देव-दानव-सिद्धौघ-पूजिता परमेश्वरी ।
पराणु-रूपा परमा, पर-तन्त्र-विनाशिनी ।।15।।
वरदा वरदाऽऽराध्या, वर-दान-परायणा ।
वर-देश-प्रिया वीरा, वीर-भूषण-भूषिता ।।16।।
वसुदा बहुदा वाणी, ब्रह्म-रूपा वरानना ।
बलदा पीत-वसना, पीत-भूषण-भूषिता ।।17।।
पीत-पुष्प-प्रिया पीत-हारा पीत-स्वरूपिणी ।
शुभं ते कथितं विप्र ! नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ।।18।।
यः पठेद् पाठयेद् वापि, श्रृणुयाद् ना समाहितः ।
तस्य शत्रुः क्षयं सद्यो, याति वै नात्र संशयः ।।19।।
प्रभात-काले प्रयतो मनुष्यः, पठेत् सु-भक्त्या परिचिन्त्य पीताम् ।
द्रुतं भवेत् तस्य समस्त-वृद्धिर्विनाशमायाति च तस्य शत्रुः ।।20।।
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सोमवार, 23 जुलाई 2018
श्री बगलामुखी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
ब्रह्मास्त्ररुपिणी देवी माता श्रीबगलामुखी ।
चिच्छिक्तिर्ज्ञान-रुपा च ब्रह्मानन्द-प्रदायिनी ।। १ ।।
चिच्छिक्तिर्ज्ञान-रुपा च ब्रह्मानन्द-प्रदायिनी ।। १ ।।
महाविद्या महालक्ष्मी श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरी ।
भुवनेशी जगन्माता पार्वती सर्वमंगला ।। २ ।।
भुवनेशी जगन्माता पार्वती सर्वमंगला ।। २ ।।
ललिता भैरवी शान्ता अन्नपूर्णा कुलेश्वरी ।
वाराही छीन्नमस्ता च तारा काली सरस्वती ।। ३ ।।
वाराही छीन्नमस्ता च तारा काली सरस्वती ।। ३ ।।
जगत्पूज्या महामाया कामेशी भगमालिनी ।
दक्षपुत्री शिवांकस्था शिवरुपा शिवप्रिया ।। ४ ।।
दक्षपुत्री शिवांकस्था शिवरुपा शिवप्रिया ।। ४ ।।
सर्व-सम्पत्करी देवी सर्वलोक वशंकरी ।
विदविद्या महापूज्या भक्ताद्वेषी भयंकरी ।। ५ ।।
विदविद्या महापूज्या भक्ताद्वेषी भयंकरी ।। ५ ।।
स्तम्भ-रुपा स्तम्भिनी च दुष्टस्तम्भनकारिणी ।
भक्तप्रिया महाभोगा श्रीविद्या ललिताम्बिका ।। ६ ।।
भक्तप्रिया महाभोगा श्रीविद्या ललिताम्बिका ।। ६ ।।
मैनापुत्री शिवानन्दा मातंगी भुवनेश्वरी ।
नारसिंही नरेन्द्रा च नृपाराध्या नरोत्तमा ।। ७ ।।
नारसिंही नरेन्द्रा च नृपाराध्या नरोत्तमा ।। ७ ।।
नागिनी नागपुत्री च नगराजसुता उमा ।
पीताम्बा पीतपुष्पा च पीतवस्त्रप्रिया शुभा ।। ८ ।।
पीताम्बा पीतपुष्पा च पीतवस्त्रप्रिया शुभा ।। ८ ।।
पीतगन्धप्रिया रामा पीतरत्नार्चिता शिवा ।
अर्द्धचन्द्रधरी देवी गदामुद्गरधारिणी ।। ९ ।।
अर्द्धचन्द्रधरी देवी गदामुद्गरधारिणी ।। ९ ।।
सावित्री त्रिपदा शुद्धा सद्योराग विवर्धिनी ।
विष्णुरुपा जगन्मोहा ब्रह्मरुपा हरिप्रिया ।। १० ।।
विष्णुरुपा जगन्मोहा ब्रह्मरुपा हरिप्रिया ।। १० ।।
रुद्ररुपा रुद्रशक्तिश्चिन्मयी भक्तवत्सला ।
लोकमाता शिवा सन्ध्या शिवपूजनतत्परा ।। ११ ।।
लोकमाता शिवा सन्ध्या शिवपूजनतत्परा ।। ११ ।।
धनाध्यक्षा धनेशी च नर्मदा धनदा धना ।
चण्डदर्पहरी देवी शुम्भासुरनिबर्हिणी ।। १२ ।।
चण्डदर्पहरी देवी शुम्भासुरनिबर्हिणी ।। १२ ।।
राजराजेश्वरी देवी महिषासुरमर्दिनी ।
मधूकैटभहन्त्री देवी रक्तबीजविनाशिनी ।। १३ ।।
मधूकैटभहन्त्री देवी रक्तबीजविनाशिनी ।। १३ ।।
धूम्राक्षदैत्यहन्त्री च भण्डासुर विनाशिनी ।
रेणुपुत्री महामाया भ्रामरी भ्रमराम्बिका ।। १४ ।।
रेणुपुत्री महामाया भ्रामरी भ्रमराम्बिका ।। १४ ।।
ज्वालामुखी भद्रकाली बगला शत्रुनाशिनी ।
इन्द्राणी इन्द्रपूज्या च गुहमाता गुणेश्वरी ।। १५ ।।
इन्द्राणी इन्द्रपूज्या च गुहमाता गुणेश्वरी ।। १५ ।।
वज्रपाशधरा देवी ज्ह्वामुद्गरधारिणी ।
भक्तानन्दकरी देवी बगला परमेश्वरी ।। १६ ।।
भक्तानन्दकरी देवी बगला परमेश्वरी ।। १६ ।।
अष्टोत्तरशतं नाम्नां बगलायास्तु यः पठेत् ।
रिपुबाधाविनिर्मुक्तः लक्ष्मीस्थैर्यमवाप्नुयात् ।। १७ ।।
रिपुबाधाविनिर्मुक्तः लक्ष्मीस्थैर्यमवाप्नुयात् ।। १७ ।।
भूतप्रेतपिशाचाश्च ग्रहपीड़ानिवारणम् ।
राजानो वशमायांति सर्वैश्वर्यं च विन्दति ।। १८ ।।
राजानो वशमायांति सर्वैश्वर्यं च विन्दति ।। १८ ।।
नानाविद्यां च लभते राज्यं प्राप्नोति निश्चितम् ।
भुक्तिमुक्तिमवाप्नोति साक्षात् शिवसमो भवेत् ।। १९ ।।
भुक्तिमुक्तिमवाप्नोति साक्षात् शिवसमो भवेत् ।। १९ ।।
।। इति श्री रुद्रयामले सर्व-सिद्धि-प्रद बगलाऽष्टोत्तर-शतनाम-स्तोत्र ।।
मंगलवार, 19 जून 2018
।। ब्राह्मणत्व का हनन ।।
।। ब्राह्मणत्व का हनन ।।
मित्रों आज कल ब्राह्मणों पर हो रहे अत्याचारों अन्याय के लिए कौन जिम्मेदार है ? यह यक्ष प्रश्न आज हम लोगों के सामने समुपस्थित है, हजारों वर्ष तक मुसलमान शासकों और अन्य भी विविध विरोधी आक्रांताओं से सनातन धर्म की रक्षा करने वाला भूदेव आज स्वयं अपने को असहाय पा रहा है इसका क्या कारण है कभी सोचा है आपने । जिनके पूर्वज मृत्यु को भी वश में रखने वाले थे बड़े से बड़े तूफ़ान को भी निमिष मात्र में रोकने की क्षमता रखने वाले थे , स्वयं अखिल कोटि ब्रह्मांड नायक भी अवतार लेकर जिनकी पूजा करते हों आज उन्हीं के वंशज हम कितने असहाय हो गए सोचिये जरा इसका भी कारण ।
एक मात्र 5 वर्ष के ऋषि कुमार बालक श्रृंगी जो नदी के तट पर खेल रहे थे अचानक उन्हें ज्ञात हुआ कि उनके पिता शमीक ऋषि को राजा परीक्षित ने सर्प से डसवा के मार दिया इतना सुनते ही उस बालक ने कौशिकी नदी के जल में उतर कर राजा को शाप दे दिया कि आज से ठीक सातवें दिन तक्षक के डसे जाने से राजा की मृत्यु होगी । आगे की कथा सब जानते ही हैं अब जरा विचार करें कहाँ तो चक्रवर्ती सम्राट महाभागवत राजा परीक्षित जिन्होंने माँ के गर्भ में ही भगवान का दर्शन प्राप्त कर लिया और तो और भगवान की कृपा से अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से भी जिनका बाल बाँका नहीं हुआ , कलि के ऊपर जिन्होंने विजय प्राप्त की और उसे सीमित स्थानों में बाँध दिया । और कहाँ छोटा सा ऋषि कुमार । लेकिन उस बालक के मुख से निकला वचन अमोघ हो गया आखिर क्या कारण रहा होगा ??
विश्वामित्र ने हजारों वर्षों तक तपस्या करके अनेकानेक अस्त्र शस्त्रों को प्राप्त कर के श्री वशिष्ठ जी के ऊपर आक्रमण किया और असफल हुए । अंतिम में बोल उठे
' धिक् बलं क्षत्रियबलं ब्रह्मतेजो बलं बलम् ।
एकेन ब्रह्मदण्डेन सर्वास्त्राणि हतानि मे ।।'
आखिर वो किस चीज का बल था कि ब्राह्मणों के आगे सब नतमस्तक हो जाते थे । और एक आज का समय है ब्राह्मण दूसरों के आगे अपने को असहाय महसूस करता है आखिर क्या है इसका कारण ? अगर ईमानदारी से सोचा जाए तो इसका जिम्मेदार स्वयं ब्राह्मण ही है क्यों कि ब्राह्मण ने अपना पतन स्वयं ही किया , सन्ध्या वंदन ,अग्निहोत्रादि को त्याग कर । भाइयों आपसे इतना ही कहना है कि आज भी आप चाहें तो दुनिया आपके चरणों में हो । नित्य त्रिकाल नहीं तो कम से कम द्विकाल संध्योपासन तो करिये कम से कम नियम पूर्वक प्रतिदिन 1000 गायत्री का जाप तो करिये , शिखा सूत्र तो धारण कीजिये , राजसी तामसी अन्न का त्याग पूर्वक सात्विक अन्न से विधि पूर्वक जीवन का निर्वहन तो करिये फिर देखिये क्या होता है । अगर जीवन में किसी वस्तु की कमी हो जाए तो कहियेगा । मात्र इतना करने से ही कुछ समय में आप स्वयं अपना तेज भगवत् कृपा का प्रत्यक्ष करने लगेगें । एक मात्र ब्राह्मण का त्यौहार श्रावणी(रक्षा बन्धन ) का अनुष्ठान सभी को यथा शक्ति करना ही चाहिए जिसके प्रभाव से स्वयं तो लाभान्वित होंगे ही और दूसरों को भी लाभान्वित कर सकेंगें ।
।। जय श्रीमन्नारायण ।।
मित्रों आज कल ब्राह्मणों पर हो रहे अत्याचारों अन्याय के लिए कौन जिम्मेदार है ? यह यक्ष प्रश्न आज हम लोगों के सामने समुपस्थित है, हजारों वर्ष तक मुसलमान शासकों और अन्य भी विविध विरोधी आक्रांताओं से सनातन धर्म की रक्षा करने वाला भूदेव आज स्वयं अपने को असहाय पा रहा है इसका क्या कारण है कभी सोचा है आपने । जिनके पूर्वज मृत्यु को भी वश में रखने वाले थे बड़े से बड़े तूफ़ान को भी निमिष मात्र में रोकने की क्षमता रखने वाले थे , स्वयं अखिल कोटि ब्रह्मांड नायक भी अवतार लेकर जिनकी पूजा करते हों आज उन्हीं के वंशज हम कितने असहाय हो गए सोचिये जरा इसका भी कारण ।
एक मात्र 5 वर्ष के ऋषि कुमार बालक श्रृंगी जो नदी के तट पर खेल रहे थे अचानक उन्हें ज्ञात हुआ कि उनके पिता शमीक ऋषि को राजा परीक्षित ने सर्प से डसवा के मार दिया इतना सुनते ही उस बालक ने कौशिकी नदी के जल में उतर कर राजा को शाप दे दिया कि आज से ठीक सातवें दिन तक्षक के डसे जाने से राजा की मृत्यु होगी । आगे की कथा सब जानते ही हैं अब जरा विचार करें कहाँ तो चक्रवर्ती सम्राट महाभागवत राजा परीक्षित जिन्होंने माँ के गर्भ में ही भगवान का दर्शन प्राप्त कर लिया और तो और भगवान की कृपा से अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से भी जिनका बाल बाँका नहीं हुआ , कलि के ऊपर जिन्होंने विजय प्राप्त की और उसे सीमित स्थानों में बाँध दिया । और कहाँ छोटा सा ऋषि कुमार । लेकिन उस बालक के मुख से निकला वचन अमोघ हो गया आखिर क्या कारण रहा होगा ??
विश्वामित्र ने हजारों वर्षों तक तपस्या करके अनेकानेक अस्त्र शस्त्रों को प्राप्त कर के श्री वशिष्ठ जी के ऊपर आक्रमण किया और असफल हुए । अंतिम में बोल उठे
' धिक् बलं क्षत्रियबलं ब्रह्मतेजो बलं बलम् ।
एकेन ब्रह्मदण्डेन सर्वास्त्राणि हतानि मे ।।'
आखिर वो किस चीज का बल था कि ब्राह्मणों के आगे सब नतमस्तक हो जाते थे । और एक आज का समय है ब्राह्मण दूसरों के आगे अपने को असहाय महसूस करता है आखिर क्या है इसका कारण ? अगर ईमानदारी से सोचा जाए तो इसका जिम्मेदार स्वयं ब्राह्मण ही है क्यों कि ब्राह्मण ने अपना पतन स्वयं ही किया , सन्ध्या वंदन ,अग्निहोत्रादि को त्याग कर । भाइयों आपसे इतना ही कहना है कि आज भी आप चाहें तो दुनिया आपके चरणों में हो । नित्य त्रिकाल नहीं तो कम से कम द्विकाल संध्योपासन तो करिये कम से कम नियम पूर्वक प्रतिदिन 1000 गायत्री का जाप तो करिये , शिखा सूत्र तो धारण कीजिये , राजसी तामसी अन्न का त्याग पूर्वक सात्विक अन्न से विधि पूर्वक जीवन का निर्वहन तो करिये फिर देखिये क्या होता है । अगर जीवन में किसी वस्तु की कमी हो जाए तो कहियेगा । मात्र इतना करने से ही कुछ समय में आप स्वयं अपना तेज भगवत् कृपा का प्रत्यक्ष करने लगेगें । एक मात्र ब्राह्मण का त्यौहार श्रावणी(रक्षा बन्धन ) का अनुष्ठान सभी को यथा शक्ति करना ही चाहिए जिसके प्रभाव से स्वयं तो लाभान्वित होंगे ही और दूसरों को भी लाभान्वित कर सकेंगें ।
।। जय श्रीमन्नारायण ।।
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