किसी भी साधन को सिद्धि तक ले जाने के लिए शरीर और मन को ऊर्जावान बनाना बहुत ही जरुरी है | अतः ब्रह्मचर्य का पालन स्त्री और पुरुष दोनों को ही करना चाहिए | ब्रह्मचर्य का पालन आध्यात्मिक उन्नति के लिए और साधना में सिद्धि के लिए बहुत ही जरुरी है | ब्रह्मचर्य का अर्थ कुछ लोग यह करते है की ब्रह्म जैसी चर्या अर्थात ब्रह्म जैसा आचरण | जो की गलत अर्थ है जब आप ब्रह्म को जानते ही नहीं तो उसके जैसा आचरण करने का प्रश्न ही नहीं पैदा होता | ब्रह्म को जानने के लिए ही ब्रह्मचर्य का पालन आवयश्यक है | ब्रह्मचर्य रहने का अर्थ केवल वीर्य रक्षा ही है अन्य कुछ भी नहीं | वीर्य के क्षरण से ऊर्जा की क्षति होती है | अतः प्रयत्न पूर्वक वीर्य रक्षा करें | वीर्यवान लभते ज्ञानम | वीर भोग्य वसुंधरा |
अब प्रश्न यह है की आज के समय में जबकि इतना ज्यादा अश्लीलता उपलब्ध है जो की सभी जगह देखने सुनने में आ रही है तो वीर्य को कैसे रोके | मन को कैसे रोके की वो अश्लीलता का चिंतन न करे | कई योगी यह समझते है की लंगोट बांधने से वीर्य रुकेगा | ब्रह्मचर्य का पालन होगा तो स्त्री क्या लगाएगी | वीर्य के क्षरण का सम्बन्ध मन से है |
हमारे दो लिंग है एक ऊर्ध्व लिंग और दूसरा अधः लिंग | ऊर्ध्व लिंग को साधने से वीर्य का क्षरण नहीं होगा चाहे पुरुष हो या स्त्री | ऊर्ध्व लिंग को योग की खेचरी मुद्रा द्वारा साधा जाता है जो की गुरु द्वारा प्रदान की जाती है | वीर्य ही ओज में में परिवर्तित होकर योगी के ध्यान में परम प्रकाश का दर्शन करने में सहायक होता है |
ब्रह्मचर्य रहने से सभी बीमारियां ठीक हो जाती है और भी बहुत से लाभ है अतः ब्रमचर्य का पालन करते हुए वीर्यवान बने | और स्वयं में ही ईश्वर को खोजे | ब्रह्मचर्य का पालन जरूर करे |