मृत्युंजय मंत्र ३२ अक्षर का "त्र्यम्बक मंत्र" भी कहलाता हैं ।
ॐ" लगा देने से यह ३३ अक्षर का हो जाता हैं,इस मंत्र में संपुट लगा देने से मंत्र का कई रूप प्रकट हो जाता है।
गायत्री मंत्र के साथ प्रयोग करने पर यह "मृतसंजीवनी मंत्र" हो जाता है ।।
यदि घर में पूजन करते है तो पहले पार्थिव शिव पूजन करके या चित्र का पूजन कर घी का दीपक अर्पण कर,पुष्प,प्रसाद के साथ कामना के लिए दायें हाथ में जल,अक्षत लेकर संकल्प कर ले।
कितनी संख्या में जप करना है यह निर्णय कर ले साथ ही जप माला रूद्राक्ष का ही हो।
एक निश्चित संख्या में ही जप होना चाहिए।।
आचमनी निम्न मंत्र से कर संकल्प कर ले।दाएँ हाथ मे जल लेकर मंत्र बोले
मंत्र..
१.ॐ केशवाय नमः।जल पी जाए।
२.ॐ नारायणाय नमः।जल पी जाए।
३.ॐ माधवाय नमः।जल पी लें।
अब हाथ इस मंत्र से धो ले।
४.ॐ हृषिकेषाय नमः।
संकल्प अपने कामना अनुसार छोटा,बड़ा कर सकते है।
दाएँ हाथ में जल,अक्षत,बेलपत्र,द्रव्य,सुपारी रख संकल्प करें।
💥संकल्प💥
"ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुःश्रीमद् भगवतो महापूरूषस्य,विष्णुराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्माणोऽहनि द्वितीये परार्धे श्री श्वेत वाराहकल्पे,वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भारतवर्षे भरतखण्डे जम्बूद्वीपे आर्यावर्तैक देशान्तर्गते अमुक संवतसरे महांमागल्यप्रद मासोतमे मासे अमुक मासे अमुकपक्षे,अमुकतिथौःअमुकवासरे,अमुक गोत्रोत्पन्नोहं अमुक शर्माहं,या वर्माहं ममात्मनःश्रुति स्मृति,पुराणतन्त्रोक्त फलप्राप्तये मम जन्मपत्रिका ग्रहदोष,दैहिक,दैविक,भौतिक ताप सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं मनसेप्सित फल प्राप्ति पूर्वक,दीर्घायु,विपुलं,बल,धन,धान्य,यश,पुष्टि,प्राप्तयर्थम सकल आधि,व्याधि,दोष परिहार्थम सकलाभीष्टसिद्धये श्री शिव मृत्युंजय प्रीत्यर्थ पूजन,न्यास,ध्यान यथा संख्याक मंत्र जप करिष्ये।"
💥गणेश प्रार्थना💥
गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्थजम्बू फलचारूभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्॥
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय,गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
ॐ श्री गणेशाय नमः।
💥गुरू प्रार्थना 💥
गुरूर्ब्रह्मा,गुरूर्विष्णु,गुरूर्देवो महेश्वरः।गुरू साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरूवे नमः॥
💥💥गौरी प्रार्थना💥💥
ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्मताम्॥
💥 विनियोग 💥
अस्य त्र्यम्बक मन्त्रस्य वसिष्ठ ऋषिःअनुष्टुप छन्दःत्र्यम्बक पार्वतीपतिर्देवता,त्र्यं बीजम्,वं शक्तिः,कं कीलकम्,सर्वेष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः।
💥💥ऋष्यादिन्यास💥💥
ॐ वसिष्ठर्षये नमःशिरसि।
अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे।
त्र्यम्बकपार्वतीपति देवतायै नमः हृदि।
त्र्यं बीजाय नमः गुह्ये।
वं शक्तये नमः पादयोः।
कं कीलकाय नमः नाभौ।
विनियोगाय नमःसर्वागें।
❄❄करन्यास❄❄
त्र्यम्बकम् अंगुष्ठाभ्यां नमः।
यजामहे तर्जनीभ्यां नमः।
सुगंधिं पुष्टिवर्द्धनं मध्यमाभ्यां नमः।
उर्वारूकमिव बन्धनात् अनामिकाभ्यां नमः।
मृत्योर्मुक्षीय कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
मामृतात् करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
❄❄हृदयादिन्यास❄❄
ॐ त्र्यम्बकं हृदयाय नमः।
यजामहे शिरसे स्वाहा।
सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनं शिखायै वषट्।
उर्वारूकमिव बन्धनात् कवचाय हुं।
मृत्योर्मुक्षीय नेत्रत्रयाय वौषट्।
मामृतात् अस्त्राय फट्।
💥💥ध्यान💥💥
हस्ताभ्यां कलशद्वयामृतरसैराप्लावयन्तं शिरो द्वाभ्यां तौ दधतं मृगाक्षवलये द्वाभ्यां बहन्तं परम्।अंकन्यस्तकरद्वयामृतघटं कैलासकान्तं शिवं स्वच्छाम्भोजगतं नवेन्दुमुकुटं देवं त्रिनेत्रं भजे।
💥💥मंत्र💥💥
"।।ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।"