नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी। बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी।।
ब्रह्मसुखहि अनुभवहिं अनूपा। अकथ अनामय नाम न रूपा।।
जाना चहहिं गूढ़ गति जेऊ। नाम जीहँ जपि जानहिं तेऊ।।
साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
राम भगत जग चारि प्रकारा। सुकृती चारिउ अनघ उदारा।।
चहू चतुर कहुँ नाम अधारा। ग्यानी प्रभुहि बिसेषि पिआरा।।
चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ। कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ।।
शनिवार, 9 नवंबर 2019
मंगलवार, 22 अक्टूबर 2019
संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम्
काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत । संकट बेगि में होहु सहाई ।।
नहिं जप जोग न ध्यान करो । तुम्हरे पद पंकज में सिर नाई ।।
खेलत खात अचेत फिरौं । ममता-मद-लोभ रहे तन छाई ।।
हेरत पन्थ रहो निसि वासर । कारण कौन विलम्बु लगाई ।।
काहे विलम्ब करो अंजनी सुत । संकट बेगि में होहु सहाई ।।
जो अब आरत होई पुकारत । राखि लेहु यम फांस बचाई ।।
रावण गर्वहने दश मस्तक । घेरि लंगूर की कोट बनाई ।।
निशिचर मारि विध्वंस कियो । घृत लाइ लंगूर ने लंक जराई ।।
जाइ पाताल हने अहिरावण । देविहिं टारि पाताल पठाई ।।
वै भुज काह भये हनुमन्त । लियो जिहि ते सब संत बचाई ।।
औगुन मोर क्षमा करु साहेब । जानिपरी भुज की प्रभुताई ।।
भवन आधार बिना घृत दीपक । टूटी पर यम त्रास दिखाई ।।
काहि पुकार करो यही औसर । भूलि गई जिय की चतुराई ।।
गाढ़ परे सुख देत तु हीं प्रभु । रोषित देखि के जात डेराई ।।
छाड़े हैं माता पिता परिवार । पराई गही शरणागत आई ।।
जन्म अकारथ जात चले । अनुमान बिना नहीं कोउ सहाई ।।
मझधारहिं मम बेड़ी अड़ी । भवसागर पार लगाओ गोसाईं ।।
पूज कोऊ कृत काशी गयो । मह कोऊ रहे सुर ध्यान लगाई ।।
जानत शेष महेष गणेश । सुदेश सदा तुम्हरे गुण गाई ।।
और अवलम्ब न आस छुटै । सब त्रास छुटे हरि भक्ति दृढाई ।।
संतन के दुःख देखि सहैं नहिं । जान परि बड़ी वार लगाई ।।
एक अचम्भी लखो हिय में । कछु कौतुक देखि रहो नहिं जाई ।।
कहुं ताल मृदंग बजावत गावत । जात महा दुःख बेगि नसाई ।।
मूरति एक अनूप सुहावन । का वरणों वह सुन्दरताई ।।
कुंचित केश कपोल विराजत । कौन कली विच भऔंर लुभाई ।।
गरजै घनघोर घमण्ड घटा । बरसै जल अमृत देखि सुहाई ।।
केतिक क्रूर बसे नभ सूरज । सूरसती रहे ध्यान लगाई ।।
भूपन भौन विचित्र सोहावन । गैर बिना वर बेनु बजाई ।।
किंकिन शब्द सुनै जग मोहित । हीरा जड़े बहु झालर लाई ।।
संतन के दुःख देखि सको नहिं । जान परि बड़ी बार लगाई ।।
संत समाज सबै जपते सुर । लोक चले प्रभु के गुण गाई ।।
केतिक क्रूर बसे जग में । भगवन्त बिना नहिं कोऊ सहाई ।।
नहिं कछु वेद पढ़ो, नहीं ध्यान धरो । बनमाहिं इकन्तहि जाई ।।
केवल कृष्ण भज्यो अभिअंतर । धन्य गुरु जिन पन्थ दिखाई ।।
स्वारथ जन्म भये तिनके । जिन्ह को हनुमन्त लियो अपनाई ।।
का वरणों करनी तरनी जल । मध्य पड़ी धरि पाल लगाई ।।
जाहि जपै भव फन्द कटैं । अब पन्थ सोई तुम देहु दिखाई ।।
हेरि हिये मन में गुनिये मन । जात चले अनुमान बड़ाई ।।
यह जीवन जन्म है थोड़े दिना । मोहिं का करि है यम त्रास दिखाई ।।
काहि कहै कोऊ व्यवहार करै । छल-छिद्र में जन्म गवाईं ।।
रे मन चोर तू सत्य कहा अब । का करि हैं यम त्रास दिखाई ।।
जीव दया करु साधु की संगत । लेहि अमर पद लोक बड़ाई ।।
रहा न औसर जात चले । भजिले भगवन्त धनुर्धर राई ।।
काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत । संकट बेगि में होहु सहाई ।।
इस संकट मोचन का नित्य पाठ करने से श्री हनुमान् जी की साधक पर विशेष कृपा रहती है, इस स्तोत्र के प्रभाव से साधक की सम्पूर्ण कामनाएँ पूरी होती हैं ।
नहिं जप जोग न ध्यान करो । तुम्हरे पद पंकज में सिर नाई ।।
खेलत खात अचेत फिरौं । ममता-मद-लोभ रहे तन छाई ।।
हेरत पन्थ रहो निसि वासर । कारण कौन विलम्बु लगाई ।।
काहे विलम्ब करो अंजनी सुत । संकट बेगि में होहु सहाई ।।
जो अब आरत होई पुकारत । राखि लेहु यम फांस बचाई ।।
रावण गर्वहने दश मस्तक । घेरि लंगूर की कोट बनाई ।।
निशिचर मारि विध्वंस कियो । घृत लाइ लंगूर ने लंक जराई ।।
जाइ पाताल हने अहिरावण । देविहिं टारि पाताल पठाई ।।
वै भुज काह भये हनुमन्त । लियो जिहि ते सब संत बचाई ।।
औगुन मोर क्षमा करु साहेब । जानिपरी भुज की प्रभुताई ।।
भवन आधार बिना घृत दीपक । टूटी पर यम त्रास दिखाई ।।
काहि पुकार करो यही औसर । भूलि गई जिय की चतुराई ।।
गाढ़ परे सुख देत तु हीं प्रभु । रोषित देखि के जात डेराई ।।
छाड़े हैं माता पिता परिवार । पराई गही शरणागत आई ।।
जन्म अकारथ जात चले । अनुमान बिना नहीं कोउ सहाई ।।
मझधारहिं मम बेड़ी अड़ी । भवसागर पार लगाओ गोसाईं ।।
पूज कोऊ कृत काशी गयो । मह कोऊ रहे सुर ध्यान लगाई ।।
जानत शेष महेष गणेश । सुदेश सदा तुम्हरे गुण गाई ।।
और अवलम्ब न आस छुटै । सब त्रास छुटे हरि भक्ति दृढाई ।।
संतन के दुःख देखि सहैं नहिं । जान परि बड़ी वार लगाई ।।
एक अचम्भी लखो हिय में । कछु कौतुक देखि रहो नहिं जाई ।।
कहुं ताल मृदंग बजावत गावत । जात महा दुःख बेगि नसाई ।।
मूरति एक अनूप सुहावन । का वरणों वह सुन्दरताई ।।
कुंचित केश कपोल विराजत । कौन कली विच भऔंर लुभाई ।।
गरजै घनघोर घमण्ड घटा । बरसै जल अमृत देखि सुहाई ।।
केतिक क्रूर बसे नभ सूरज । सूरसती रहे ध्यान लगाई ।।
भूपन भौन विचित्र सोहावन । गैर बिना वर बेनु बजाई ।।
किंकिन शब्द सुनै जग मोहित । हीरा जड़े बहु झालर लाई ।।
संतन के दुःख देखि सको नहिं । जान परि बड़ी बार लगाई ।।
संत समाज सबै जपते सुर । लोक चले प्रभु के गुण गाई ।।
केतिक क्रूर बसे जग में । भगवन्त बिना नहिं कोऊ सहाई ।।
नहिं कछु वेद पढ़ो, नहीं ध्यान धरो । बनमाहिं इकन्तहि जाई ।।
केवल कृष्ण भज्यो अभिअंतर । धन्य गुरु जिन पन्थ दिखाई ।।
स्वारथ जन्म भये तिनके । जिन्ह को हनुमन्त लियो अपनाई ।।
का वरणों करनी तरनी जल । मध्य पड़ी धरि पाल लगाई ।।
जाहि जपै भव फन्द कटैं । अब पन्थ सोई तुम देहु दिखाई ।।
हेरि हिये मन में गुनिये मन । जात चले अनुमान बड़ाई ।।
यह जीवन जन्म है थोड़े दिना । मोहिं का करि है यम त्रास दिखाई ।।
काहि कहै कोऊ व्यवहार करै । छल-छिद्र में जन्म गवाईं ।।
रे मन चोर तू सत्य कहा अब । का करि हैं यम त्रास दिखाई ।।
जीव दया करु साधु की संगत । लेहि अमर पद लोक बड़ाई ।।
रहा न औसर जात चले । भजिले भगवन्त धनुर्धर राई ।।
काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत । संकट बेगि में होहु सहाई ।।
इस संकट मोचन का नित्य पाठ करने से श्री हनुमान् जी की साधक पर विशेष कृपा रहती है, इस स्तोत्र के प्रभाव से साधक की सम्पूर्ण कामनाएँ पूरी होती हैं ।
शनिवार, 24 अगस्त 2019
ब्रह्मचर्य का पालन जरूर करे
किसी भी साधन को सिद्धि तक ले जाने के लिए शरीर और मन को ऊर्जावान बनाना बहुत ही जरुरी है | अतः ब्रह्मचर्य का पालन स्त्री और पुरुष दोनों को ही करना चाहिए | ब्रह्मचर्य का पालन आध्यात्मिक उन्नति के लिए और साधना में सिद्धि के लिए बहुत ही जरुरी है | ब्रह्मचर्य का अर्थ कुछ लोग यह करते है की ब्रह्म जैसी चर्या अर्थात ब्रह्म जैसा आचरण | जो की गलत अर्थ है जब आप ब्रह्म को जानते ही नहीं तो उसके जैसा आचरण करने का प्रश्न ही नहीं पैदा होता | ब्रह्म को जानने के लिए ही ब्रह्मचर्य का पालन आवयश्यक है | ब्रह्मचर्य रहने का अर्थ केवल वीर्य रक्षा ही है अन्य कुछ भी नहीं | वीर्य के क्षरण से ऊर्जा की क्षति होती है | अतः प्रयत्न पूर्वक वीर्य रक्षा करें | वीर्यवान लभते ज्ञानम | वीर भोग्य वसुंधरा |
अब प्रश्न यह है की आज के समय में जबकि इतना ज्यादा अश्लीलता उपलब्ध है जो की सभी जगह देखने सुनने में आ रही है तो वीर्य को कैसे रोके | मन को कैसे रोके की वो अश्लीलता का चिंतन न करे | कई योगी यह समझते है की लंगोट बांधने से वीर्य रुकेगा | ब्रह्मचर्य का पालन होगा तो स्त्री क्या लगाएगी | वीर्य के क्षरण का सम्बन्ध मन से है |
हमारे दो लिंग है एक ऊर्ध्व लिंग और दूसरा अधः लिंग | ऊर्ध्व लिंग को साधने से वीर्य का क्षरण नहीं होगा चाहे पुरुष हो या स्त्री | ऊर्ध्व लिंग को योग की खेचरी मुद्रा द्वारा साधा जाता है जो की गुरु द्वारा प्रदान की जाती है | वीर्य ही ओज में में परिवर्तित होकर योगी के ध्यान में परम प्रकाश का दर्शन करने में सहायक होता है |
ब्रह्मचर्य रहने से सभी बीमारियां ठीक हो जाती है और भी बहुत से लाभ है अतः ब्रमचर्य का पालन करते हुए वीर्यवान बने | और स्वयं में ही ईश्वर को खोजे | ब्रह्मचर्य का पालन जरूर करे |
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