रविवार, 29 सितंबर 2013

|| काली पञ्च वाण ||

आज के इस युग में प्रत्येक व्यक्ति अच्छे रोजगार
की प्राप्ति में लगा हुआ है पर बहुत प्रयत्न करने पर
भी अच्छी नौकरी नहीं मिलती है ! रोजगार
सम्बन्धी किसी भी समस्या के समाधान के लिए इस मन्त्र
का प्रतिदिन 11बार सुबह और 11बार शाम को जप करे !
प्रथम वाण
ॐ नमः काली कंकाली महाकाली
मुख सुन्दर जिए ब्याली
चार वीर भैरों चौरासी
बीततो पुजू पान ऐ मिठाई
अब बोलो काली की दुहाई !
द्वितीय वाण
ॐ काली कंकाली महाकाली
मुख सुन्दर जिए ज्वाला वीर वीर
भैरू चौरासी बता तो पुजू
पान मिठाई !
तृतीय वाण
ॐ काली कंकाली महाकाली
सकल सुंदरी जीहा बहालो
चार वीर भैरव चौरासी
तदा तो पुजू पान मिठाई
अब बोलो काली की दुहाई !
चतुर्थ वाण
ॐ काली कंकाली महाकाली
सर्व सुंदरी जिए बहाली
चार वीर भैरू चौरासी
तण तो पुजू पान मिठाई
अब राज बोलो
काली की दुहाई !
पंचम वाण
ॐ नमः काली कंकाली महाकाली
मख सुन्दर जिए काली
चार वीर भैरू चौरासी
तब राज तो पुजू पान मिठाई
अब बोलो काली की दोहाई !
|| विधि ||
इस मन्त्र को सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है !
यह मन्त्र स्वयं सिद्ध है केवल माँ काली के सामने
अगरबती जलाकर 11 बार सुबह और 11 बार शाम को जप
कर ले ! मन्त्र एक दम शुद्ध है भाषा के नाम पर हेर फेर न
करे !शाबर मन्त्र जैसे लिखे हो वैसे ही पढने पर फल देते है
शुद्ध करने पर निष्फल हो जाते है

शनिवार, 28 सितंबर 2013

.... यमदेव ने दे दिया अपना इस्तीफा ....

एक दिन यमदेव ने दे दिया अपना इस्तीफा। मच गया हाहाकार बिगड़ गया सब संतुलन, करने के लिए स्थिति का आकलन, इन्द्र देव ने देवताओं की आपात सभा बुलाई और फिर यमराज को कॉल लगाई।

'डायल किया गया नंबर कृपया जाँच लें' कि आवाज तब सुनाई। नये-नये ऑफ़र देखकर नम्बर बदलने की यमराज की इस आदत पर इन्द्रदेव को खुन्दक आई, पर मामले की नाजुकता को देखकर, मन की बात उन्होने मन में ही दबाई।

किसी तरह यमराज का नया नंबर मिला, फिर से फोन लगाया गया तो 'तुझसे है मेरा नाता पुराना कोई' का मोबाईल ने कॉलर टयून सुनाया। सुन-सुन कर ये सब बोर हो गये ऐसा लगा शायद यमराज जी सो गये।

तहकीकात करने पर पता लगा, यमदेव पृथ्वीलोक में रोमिंग पे हैं, शायद इसलिए,नहीं दे रहे हैं हमारी कॉल पे ध्यान, क्योंकि बिल भरने में निकल जाती है उनकी भी जान।

अन्त में किसी तरह यमराज हुये इन्द्र के दरबार में पेश, इन्द्रदेव ने तब पूछा-यम क्या है ये इस्तीफे का केस? यमराज जी तब मुँह खोले और बोले- हे इंद्रदेव। 'मल्टीप्लैक्स' मेंजब भी जाता हूँ,'भैंसे' की पार्किंग न होने की वजह से बिन फिल्म देखे,ही लौट के आता हूँ।

'बरिस्ता' और 'मैकडोन्लड' वाले तो देखते ही देखते इज्जत उतार देते हैं और सबके सामने ही ढ़ाबे में जाकर खाने-की सलाह दे देते हैं। मौत के अपने काम पर जब पृथ्वीलोक जाता हूँ 'भैंसे' पर मुझे देखकर पृथ्वीवासी भी हँसते हैं और कार न होने के ताने कसते हैं।

भैंसे पर बैठे-बैठे झटके बड़े रहे हैं वायुमार्ग में भी अब ट्रैफिक बढ़ रहे हैं। रफ्तार की इस दुनिया का मैं भैंसे से कैसे करूँगा पीछा। आप कुछ समझ रहे हो या कुछ और दूँ शिक्षा। और तो और, देखो रम्भा के पास है 'टोयटा' और उर्वशी को है आपने 'एसेन्ट' दिया, फिर मेरे साथ ये अन्याय क्यों किया?

हे इन्द्रदेव।मेरे इस दु:ख को समझो और चार पहिए की जगह चार पैरों वाला दिया है कह कर अब मुझे न बहलाओ, और जल्दी से 'मर्सिडीज़' मुझे दिलाओ।

वरना मेरा इस्तीफा अपने साथ ही लेकर जाओ। और मौत का ये काम अब किसी और से करवाओ.....
 

गुरुवार, 26 सितंबर 2013

प्रजातंत्र

एक सज्जन बनारस पहुँचे।
स्टेशन पर उतरे ही थे कि एक लड़का दौड़ता आया,
‘‘मामाजी! मामाजी!’’
लड़के ने लपक कर चरण छूए।
वे पहचाने नहीं।

बोले — ‘‘तुम कौन?’’
‘‘मैं मुन्ना। आप पहचाने नहीं मुझे?’’
‘‘मुन्ना?’’ वे सोचने लगे।
‘‘हाँ, मुन्ना। भूल गये आप मामाजी!
खैर, कोई बात नहीं, इतने साल भी तो हो गये।
मैं आजकल यहीं हूँ।’’

‘‘अच्छा।’’
‘‘हां।’’

मामाजी अपने भानजे के साथ बनारस घूमने
लगे।
चलो, कोई साथ तो मिला।
कभी इस मंदिर, कभी उस मंदिर।

फिर पहुँचे गंगाघाट। बोले कि "सोच रहा हूँ,
नहा लूँ!"

‘‘जरूर नहाइए मामाजी! बनारस आये हैं और
नहाएंगे नहीं, यह कैसे हो सकता है?’’

मामाजी ने गंगा में डुबकी लगाई। हर-हर
गंगे!
बाहर निकले तो सामान गायब, कपड़े
गायब!
लड़का... मुन्ना भी गायब!
‘‘मुन्ना... ए मुन्ना!’’

मगर मुन्ना वहां हो तो मिले।
वे तौलिया लपेट कर खड़े हैं।
‘‘क्यों भाई साहब, आपने मुन्ना को देखा है?’’
‘‘कौन मुन्ना?’’
‘‘वही जिसके हम मामा हैं।’’

लोग बोले, ‘‘मैं समझा नहीं।’’
‘‘अरे, हम जिसके मामा हैं वो मुन्ना।’’

वे तौलिया लपेटे यहां से वहां दौड़ते रहे।
मुन्ना नहीं मिला।

ठीक उसी प्रकार...
भारतीय नागरिक और भारतीय वोटर के
नाते हमारी यही स्थिति है!

चुनाव के मौसम में कोई आता है और हमारे
चरणों में गिर जाता है।
"मुझे नहीं पहचाना! मैं चुनाव का उम्मीदवार।
होने वाला एम.पी.।
मुझे नहीं पहचाना...?"

आप प्रजातंत्र की गंगा में डुबकी लगाते
हैं।
बाहर निकलने पर आप देखते हैं कि वह शख्स
जो कल आपके चरण छूता था, आपका वोट
लेकर गायब हो गया।
वोटों की पूरी पेटी लेकर भाग गया।

समस्याओं के घाट पर हम तौलिया लपेटे खड़े
हैं।
सबसे पूछ रहे हैं — "क्यों साहब, वह
कहीं आपको नज़र आया?
अरे वही, जिसके हम वोटर हैं। वही, जिसके हम मामा हैं।"

पांच साल इसी तरह तौलिया लपेटे, घाट
पर खड़े बीत जाते हैं।
आगामी चुनावी स्टेशन पर भांजे
आपका इंतजार मे....

अब तो मर जाता है रिश्ता ही बुरे वक्तो मे
पहले मर जाते थे रिश्तो को निभाने बाले