बुधवार, 25 दिसंबर 2013

श्रीरामचन्द्राष्टकम्


ॐ चिदाकारो धाता परमसुखदः पावनतनुर्
मुनीन्द्रैर्योगीन्द्रैर्यतिपतिसुरेन्द्रैर्हनुमता  ।
सदा सेव्यः पूर्णो जनकतनयाङ्गः सुरगुरू
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥१॥ 
मुकुन्दो गोविन्दो जनकतनयालालितपदः
पदं प्राप्ता यस्याधमकुलभवा चापि शबरी ।
गिरातीतोऽगम्यो विमलधिषणैर्वेदवचसा
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥२॥
धराधीशोऽधीशः सुरनरवराणां रघुपतिः
किरीटी केयूरी कनककपिशः शोभितवपुः ।
समासीनः पीठे रविशतनिभे शान्तमनसो
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥३॥
वरेण्यः शारण्यः कपिपतिसखश्चान्तविधुरो
ललाटे काश्मीरो रुचिरगतिभङ्गः शशिमुखः ।
नराकारो रामो यतिपतिनुतः संसृतिहरो
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥४॥
विरूपाक्षः काश्यामुपदिशति यन्नाम शिवदं
सहस्रं यन्नाम्नां पठति गिरिजा प्रत्युषसि वै ।
स्वलोके गायन्तीश्वरविधिमुखा यस्य चरितं
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥५॥
परो धीरोऽधीरोऽसुरकुलभवश्चासुरहरः
परात्मा सर्वज्ञो नरसुरगणैर्गीतसुयशाः ।
अहल्याशापघ्नः शरकरऋजुःकौशिकसखो
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥६॥
हृषीकेशः शौरिर्धरणिधरशायी मधुरिपुर्
उपेन्द्रो वैकुण्ठो गजरिपुहरस्तुष्टमनसा ।
बलिध्वंसी वीरो दशरथसुतो नीतिनिपुणो
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥७॥
कविः सौमित्रीड्यः कपटमृगघाती वनचरो
रणश्लाघी दान्तो धरणिभरहर्ता सुरनुतः ।
अमानी मानज्ञो निखिलजनपूज्यो हृदिशयो
रमानाथो रामो रमतु मम चित्ते तु सततम् ॥८॥
इदं रामस्तोत्रं वरममरदासेन रचितम्
उषःकाले भक्त्या यदि पठति यो भावसहितम् ।
मनुष्यः स क्षिप्रं जनिमृतिभयं तापजनकं
परित्यज्य श्रीष्ठं रघुपतिपदं याति शिवदम् ॥९॥
॥ इति श्रीमद् रामदासपूज्यपादशिष्यश्रीमद् हंसदासशिष्येणामरदासाख्यकविना विरचितं श्रीरामचन्द्राष्टकं समाप्तम् ॥

तेल मोहन

तेल मोहन 

ॐ नमो मन मोहिनी  मोहिनी चला गैर के मस्तक  धरा तेल का दीपक जला । जल मोहूँ  थल मोहूँ  मोहूँ सारा  

जगत । मोहिनी रानी जा शैय्या पे ला । न लाये तो गौरा पारवती कि दुहाई । लोन चमारिन कि दुहाई  नहीं तो 

वीर हनुमान कि आन । 


इस मंत्र से अभिमंत्रित चमेली  का तेल जिस स्त्री पर  छिड़क दिया जायेगा वो साधक के वश में हो जायेगी । 

मंत्र सिद्ध करने कि विधि गुप्त रहेगी जिससे इसका दुरुपयोग न हो सके । जिन पुरुषो का अपनी पत्नी से 

वैवाहिक सम्बन्ध अच्छा न चल रहा हो वो इसका प्रयोग करे । सम्बन्धो में मधुरता आ जायेगी । विधि जानने के लिए मुझसे संपर्क करे । 

श्रीहनुमत्-मन्त्र-चमत्कार-अनुष्ठान

श्रीहनुमत्-मन्त्र-चमत्कार-अनुष्ठान

(प्रस्तुत विधान के प्रत्येक मन्त्र के ११००० 'जप' एवं दशांश 'हवन' से सिद्धि होती है। हनुमान जी के मन्दिर में, 'रुद्राक्ष' की माला से, ब्रह्मचर्य-पूर्वक 'जप करें। नमक न खाए तो उत्तम है। कठिन-से-कठिन कार्य इन मन्त्रों की सिद्धि से सुचारु रुप से होते हैं।)

१॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, वायु-सुताय, अञ्जनी-गर्भ-सम्भूताय, अखण्ड-ब्रह्मचर्य-व्रत-पालन-तत्पराय, 

धवली-कृत-जगत्-त्रितयाय, ज्वलदग्नि-सूर्य-कोटि-समप्रभाय, प्रकट-पराक्रमाय, आक्रान्त-दिग्-मण्डलाय, 

यशोवितानाय, यशोऽलंकृताय, शोभिताननाय, महा-सामर्थ्याय, महा-तेज-पुञ्जः-विराजमानाय, श्रीराम-

भक्ति-तत्पराय, श्रीराम-लक्ष्मणानन्द-कारणाय, कवि-सैन्य-प्राकाराय, सुग्रीव-सख्य-कारणाय, सुग्रीव-

साहाय्य-कारणाय, ब्रह्मास्त्र-ब्रह्म-शक्ति-ग्रसनाय, लक्ष्मण-शक्ति-भेद-निवारणाय, शल्य-विशल्यौषधि-

समानयनाय, बालोदित-भानु-मण्डल-ग्रसनाय, अक्षकुमार-छेदनाय, वन-रक्षाकर-समूह-विभञ्जनाय, द्रोण-

पर्वतोत्पाटनाय, स्वामि-वचन-सम्पादितार्जुन, संयुग-संग्रामाय, गम्भीर-शब्दोदयाय, दक्षिणाशा-मार्तण्डाय, 

मेरु-पर्वत-पीठिकार्चनाय, दावानल-कालाग्नि-रुद्राय, समुद्र-लंघनाय, सीताऽऽश्वासनाय, सीता-रक्षकाय, 

राक्षसी-संघ-विदारणाय, अशोक-वन-विदारणाय, लंका-पुरी-दहनाय, दश-ग्रीव-शिरः-कृन्त्तकाय, कुम्भकर्णादि-

वध-कारणाय, बालि-निर्वहण-कारणाय, मेघनाद-होम-विध्वंसनाय, इन्द्रजित-वध-कारणाय, सर्व-शास्त्र-

पारंगताय, सर्व-ग्रह-विनाशकाय, सर्व-ज्वर-हराय, सर्व-भय-निवारणाय, सर्व-कष्ट-निवारणाय, सर्वापत्ति-

निवारणाय, सर्व-दुष्टादि-निबर्हणाय, सर्व-शत्रुच्छेदनाय, भूत-प्रेत-पिशाच-डाकिनी-शाकिनी-ध्वंसकाय, सर्व-

कार्य-साधकाय, प्राणि-मात्र-रक्षकाय, राम-दूताय-स्वाहा।।


२॰ ॐ नमो हनुमते, रुद्रावताराय, विश्व-रुपाय, अमित-विक्रमाय, प्रकट-पराक्रमाय, महा-बलाय, सूर्य-कोटि-

समप्रभाय, राम-दूताय-स्वाहा।।


३॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय राम-सेवकाय, राम-भक्ति-तत्पराय, राम-हृदयाय, लक्ष्मण-शक्ति-भेद-

निवारणाय, लक्ष्मण-रक्षकाय, दुष्ट-निबर्हणाय, राम-दूताय स्वाहा।।


४॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्व-शत्रु-संहारणाय, सर्व-रोग-हराय, सर्व-वशीकरणाय, राम-दूताय स्वाहा।।

५॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, आध्यात्मिकाधि-दैविकाधि-भौतिक-ताप-त्रय-निवारणाय, राम-दूताय स्वाहा।।


६॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, देव-दानवर्षि-मुनि-वरदाय, राम-दूताय स्वाहा।।


७॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, भक्त-जन-मनः-कल्पना-कल्पद्रुमाय, दुष्ट-मनोरथ-स्तम्भनाय, प्रभञ्जन-

प्राण-प्रियाय, महा-बल-पराक्रमाय, महा-विपत्ति-निवारणाय, पुत्र-पौत्र-धन-धान्यादि-विविध-सम्पत्-प्रदाय, 

राम-दूताय स्वाहा।।


८॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, वज्र-देहाय, वज्र-नखाय, वज्र-मुखाय, वज्र-रोम्णे, वज्र-नेत्राय, वज्र-दन्ताय, 

वज्र-कराय, वज्र-भक्ताय, राम-दूताय स्वाहा।।


९॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, पर-यन्त्र-मन्त्र-तन्त्र-त्राटक-नाशकाय, सर्व-ज्वरच्छेदकाय, सर्व-व्याधि-

निकृन्त्तकाय, सर्व-भय-प्रशमनाय, सर्व-दुष्ट-मुख-स्तम्भनाय, सर्व-कार्य-सिद्धि-प्रदाय, राम-दूताय स्वाहा।।


१०॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, देव-दानव-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत-पिशाच-डाकिनी-शाकिनी-दुष्ट-ग्रह-

बन्धनाय, राम-दूताय स्वाहा।।


११॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, पँच-वदनाय पूर्व-मुखे सकल-शत्रु-संहारकाय, राम-दूताय स्वाहा।।


१२॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, पञ्च-वदनाय दक्षिण-मुखे कराल-वदनाय, नारसिंहाय, सकल-भूत-प्रेत-

दमनाय, राम-दूताय स्वाहा।।


१३॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, पञ्च वदनाय पश्चिम-मुखे गरुडाय, सकल-विष-निवारणाय, राम-दूताय स्वाहा।।


१४॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, पञ्च वदनाय उत्तर मुखे आदि-वराहाय, सकल-सम्पत्-कराय, राम-दूताय स्वाहा।।


१५॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, उर्ध्व-मुखे, हय-ग्रीवाय, सकल-जन-वशीकरणाय, राम-दूताय स्वाहा।


१६॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, सर्व-ग्रहान, भूत-भविष्य-वर्त्तमानान्- समीप-स्थान् सर्व-काल-दुष्ट-

बुद्धीनुच्चाटयोच्चाटय पर-बलानि क्षोभय-क्षोभय, मम सर्व-कार्याणि साधय-साधय स्वाहा।।


१७॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, पर-कृत-यन्त्र-मन्त्र-पराहंकार-भूत-प्रेत-पिशाच-पर-दृष्टि-सर्व-विध्न-तर्जन-

चेटक-विद्या-सर्व-ग्रह-भयं निवारय निवारय स्वाहा।।


१८॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, डाकिनी-शाकिनी-ब्रह्म-राक्षस-कुल-पिशाचोरु-भयं निवारय निवारय स्वाहा।।


१९॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, भूत-ज्वर-प्रेत-ज्वर-चातुर्थिक-ज्वर-विष्णु-ज्वर-महेश-ज्वर निवारय 

निवारय स्वाहा।।


२०॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, अक्षि-शूल-पक्ष-शूल-शिरोऽभ्यन्तर-शूल-पित्त-शूल-ब्रह्म-राक्षस-शूल-

पिशाच-कुलच्छेदनं निवारय निवारय स्वाहा।।