शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

श्री काल भैरव बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मंत्र

ॐ श्री काल भैरव बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मंत्र

ॐ अस्य श्री बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मन्त्रस्य सप्त
ऋषिः ऋषयः, मातृका छंदः, श्री बटुक भैरव
देवता, ममेप्सित कामना सिध्यर्थे विनियोगः.

ॐ काल भैरु बटुक भैरु ! भूत भैरु ! महा भैरव
महा भी विनाशनम देवता सर्व सिद्दिर्भवेत .
शोक दुःख क्षय करं निरंजनम, निराकरम
नारायणं, भक्ति पूर्णं त्वं महेशं. सर्व
कामना सिद्दिर्भवेत. काल भैरव, भूषण वाहनं
काल हन्ता रूपम च, भैरव गुनी.
महात्मनः योगिनाम महा देव स्वरूपं. सर्व
सिद्ध्येत. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु ! महा भैरव
महा भय विनाशनम देवता. सर्व सिद्दिर्भवेत.
ॐ त्वं ज्ञानं, त्वं ध्यानं, त्वं योगं, त्वं तत्त्वं, त्वं
बीजम, महात्मानम, त्वं शक्तिः, शक्ति धारणं
त्वं महा देव स्वरूपं. सर्व सिद्धिर्भवेत. ॐ काल भैरु,
बटुक भैरु, भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता. सर्व सिद्दिर्भवेत.
ॐ कालभैरव ! त्वं नागेश्वरम नाग हारम च त्वं वन्दे
परमेश्वरम, ब्रह्म ज्ञानं, ब्रह्म ध्यानं, ब्रह्म योगं,
ब्रह्म तत्त्वं, ब्रह्म बीजम महात्मनः, ॐ काल भैरु,
बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत.
त्रिशूल चक्र, गदा पानी पिनाक धृक ! ॐ काल
भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत.
ॐ काल भैरव ! त्वं विना गन्धं, विना धूपम,
विना दीपं, सर्व शत्रु विनाशनम सर्व
सिद्दिर्भवेत विभूति भूति नाशाय, दुष्ट क्षय
कारकम, महाभैवे नमः. सर्व दुष्ट विनाशनम सेवकम
सर्व सिद्धि कुरु. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु,
महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व
सिद्दिर्भवेत.
ॐ काल भैरव ! त्वं महा-ज्ञानी , त्वं महा-
ध्यानी, महा-योगी, महा-बलि, तपेश्वर !
देही में सर्व सिद्धि . त्वं भैरवं भीम नादम च
नादनम. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव
महा भय विनाशनम देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत.
ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ! अमुकम मारय मारय,
उच्चचाटय उच्चचाटय, मोहय मोहय, वशं कुरु कुरु.
सर्वार्थ्कस्य सिद्धि रूपम, त्वं महा कालम ! काल
भक्षणं, महा देव स्वरूपं त्वं. सर्व सिद्ध्येत. ॐ काल
भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत.
ॐ काल भैरव ! त्वं गोविन्दं गोकुलानंदम !
गोपालं गो वर्धनम धारणं त्वं! वन्दे परमेश्वरम.
नारायणं नमस्कृत्य, त्वं धाम शिव रूपं च. साधकं
सर्व सिद्ध्येत. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु,
महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व
सिद्दिर्भवेत.
ॐ काल भैरव ! त्वं राम लक्ष्मणं, त्वं श्रीपतिम
सुन्दरम, त्वं गरुड़ वाहनं, त्वं शत्रु हन्ता च, त्वं यमस्य
रूपं, सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु. ॐ काल भैरु, बटुक
भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम देवता!
सर्व सिद्दिर्भवेत.
ॐ काल भैरव ! त्वं ब्रह्म विष्णु महेश्वरम, त्वं जगत
कारणं, सृस्ती स्तिथि संहार कारकम रक्त बीज
महा सेन्यम, महा विद्या, महा भय विनाशनम .
ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय
विनाशनम देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत.
ॐ काल भैरव ! त्वं आहार मध्य, मांसं च, सर्व दुष्ट
विनाशनम, साधकं सर्व सिद्धि प्रदा.
ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं अघोर अघोर, महा अघोर,
सर्व अघोर, भैरव काल ! ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत
भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व
सिद्दिर्भवेत.
ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं, ॐ आं क्लीं क्लीं क्लीं, ॐ आं
क्रीं क्रीं क्रीं, ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं, रूं रूं रूं, क्रूम क्रूम
क्रूम, मोहन ! सर्व सिद्धि कुरु कुरु. ॐ आं
ह्रीं ह्रीं ह्रीं अमुकम उच्चचाटय उच्चचाटय, मारय
मारय, प्रूम् प्रूम्, प्रें प्रें , खं खं, दुष्टें, हन हन अमुकम
फट स्वाहा, ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु,
महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व
सिद्दिर्भवेत.
ॐ बटुक बटुक योगं च बटुक नाथ महेश्वरः. बटुके वट
वृक्षे वटुकअं प्रत्यक्ष सिद्ध्येत. ॐ काल भैरु बटुक भैरु
भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व
सिद्दयेत.
ॐ कालभैरव, शमशान भैरव, काल रूप कालभैरव !
मेरो वैरी तेरो आहार रे ! काडी कलेजा चखन
करो कट कट. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव
महा भय विनाशनम देवता सर्व सिद्दयेत.
ॐ नमो हँकारी वीर ज्वाला मुखी ! तू दुष्टें बंध
करो बिना अपराध जो मोही सतावे, तेकर
करेजा चिधि परे, मुख वाट लोहू आवे. को जाने?
चन्द्र सूर्य जाने की आदि पुरुष जाने. काम रूप
कामाक्षा देवी. त्रिवाचा सत्य फुरे,
ईश्वरो वाचा . ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु !
महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व
सिद्दयेत.
ॐ कालभैरव त्वं डाकिनी शाकिनी भूत
पिसाचा सर्व दुष्ट निवारनम कुरु कुरु साधका-
नाम रक्ष रक्ष. देही में ह्रदये सर्व सिद्धिम. त्वं
भैरव भैरवीभयो, त्वं महा भय विनाशनम कुरु . ॐ
काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय
विनाशनम देवता सर्व सिद्दयेत.
ॐ आं ह्रीं. पश्चिम दिशा में सोने का मठ, सोने
का किवार, सोने का ताला, सोने की कुंजी,
सोने का घंटा, सोने की संकुली.
पहली संकुली अष्ट कुली नाग को बांधो.
दूसरी संकुली अट्ठारह कुली जाती को बांधो.
तीसरी संकुली वैरी दुष्ट्तन को बांधो,
चौथी संकुली शाकिनी डाकिनी को बांधो,
पांचवी संकुली भूत प्रेतों को बांधो,
जरती अग्नि बांधो, जरता मसान बांधो, जल
बांधो थल बांधो, बांधो अम्मरताई,
जहाँ जहाँ जाई,जेहि बाँधी मंगावू,
तेहि का बाँधी लावो. वाचा चुके, उमा सूखे,
श्री बावन वीर ले जाये, सात समुंदर तीर.
त्रिवाचा फुरो मंत्र , ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु
बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता सर्व सिद्दयेत.
ॐ आं ह्रीं. उत्तर दिशा में रूपे का मठ, रूपे
का किवार, रूपे का ताला,रूपे की कुंजी, रूपे
का घंटा, रूपे की संकुली. पहली संकुली अष्ट
कुली नाग को बांधो. दूसरी संकुली अट्ठारह
कुली जाती को बांधो.
तीसरी संकुली वैरी दुष्ट्तन को बांधो,
चौथी संकुली शाकिनी डाकिनी को बांधो,
पांचवी संकुली भूत प्रेतों को बांधो,
जरती अग्नि बांधो, जरता मसान बांधो, जल
बांधो थल बांधो, बांधो अम्मरताई,
जहाँ जहाँ जाई,जेहि बाँधी मंगावू,
तेहि का बाँधी लावो. वाचा चुके, उमा सूखे,
श्री बावन वीर ले जाये, सात समुंदर तीर.
त्रिवाचा फुरो मंत्र , ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु
बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता सर्व सिद्दयेत.
ॐ आं ह्रीं. पूरब दिशा में तामे का मठ, तामे
का किवार, तामे का ताला,तामे की कुंजी,
तामे का घंटा, तामे की संकुली.
पहली संकुली अष्ट कुली नाग को बांधो.
दूसरी संकुली अट्ठारह कुली जाती को बांधो.
तीसरी संकुली वैरी दुष्ट्तन को बांधो,
चौथी संकुली शाकिनी डाकिनी को बांधो,
पांचवी संकुली भूत प्रेतों को बांधो,
जरती अग्नि बांधो, जरता मसान बांधो, जल
बांधो थल बांधो, बांधो अम्मरताई,
जहाँ जहाँ जाई,जेहि बाँधी मंगावू,
तेहि का बाँधी लावो. वाचा चुके, उमा सूखे,
श्री बावन वीर ले जाये, सात समुंदर तीर.
त्रिवाचा फुरो मंत्र , ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु
बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता सर्व सिद्दयेत.
ॐ आं ह्रीं. दक्षिण दिशा में अस्थि का मठ,
तामे का किवार,
अस्थि का ताला,अस्थि की कुंजी,
अस्थि का घंटा, अस्थि की संकुली.
पहली संकुली अष्ट कुली नाग को बांधो.
दूसरी संकुली अट्ठारह कुली जाती को बांधो.
तीसरी संकुली वैरी दुष्ट्तन को बांधो,
चौथी संकुली शाकिनी डाकिनी को बांधो,
पांचवी संकुली भूत प्रेतों को बांधो,
जरती अग्नि बांधो, जरता मसान बांधो, जल
बांधो थल बांधो, बांधो अम्मरताई,
जहाँ जहाँ जाई,जेहि बाँधी मंगावू,
तेहि का बाँधी लावो. वाचा चुके, उमा सूखे,
श्री बावन वीर ले जाये, सात समुंदर तीर.
त्रिवाचा फुरो मंत्र , ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु
बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता सर्व सिद्दयेत.
ॐ काल भैरव ! त्वं आकाशं, त्वं पातालं, त्वं
मृत्युलोकं, चतुर भुजम, चतुर मुखं, चतुर बाहुम, शत्रु
हन्ता त्वं भैरव ! भक्ति पूर्ण कलेवरम. ॐ काल भैरु
बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता सर्व सिद्धिर भवेत् .
ॐ काल भैरव ! तुम जहाँ जहाँ जाहू, जहाँ दुश्मन
बेठो होए, तो बैठे को मारो, चालत होए
तो चलते को मारो, सोवत होए तो सोते
को मरो, पूजा करत होए तो पूजा में मारो,
जहाँ होए तहां मरो वयाग्रह ले भैरव दुष्ट
को भक्शो. सर्प ले भैरव दुष्ट को दसो. खडग ले
भैरव दुष्ट को शिर गिरेवान से मारो. दुष्तन
करेजा फटे. त्रिशूल ले भैरव शत्रु चिधि परे. मुख
वाट लोहू आवे. को जाने? चन्द्र सूरज जाने
की आदि पुरुष जाने. कामरूप कामाक्षा देवी.
त्रिवाचा सत्य फुरे मंत्र ईश्वरी वाचा. ॐ काल
भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता सर्व सिद्धिर भवेत् .
ॐ काल भैरव ! त्वं. वाचा चुके उमा सूखे, दुश्मन मरे
अपने घर में. दुहाई भैरव की. जो मूर वचन झूठा होए
तो ब्रह्म का कपाल टूटे, शिवजी के तीनो नेत्र
फूटें. मेरे भक्ति, गुरु की शक्ति फुरे मंत्र
ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु !
महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व
सिद्धिर भवेत् .
ॐ काल भैरव ! त्वं.भूतस्य भूत नाथासचा,भूतात्म
ा भूत भावनः, त्वं भैरव सर्व सिद्धि कुरु कुरु. ॐ
काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय
विनाशनम देवता सर्व सिद्धिर भवेत् .
ॐ काल भैरव ! त्वं ज्ञानी, त्वं ध्यानी, त्वं
योगी, त्वं जंगम स्थावरम त्वं सेवित सर्व काम
सिद्धिर भवेत्. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु !
महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व
सिद्धिर भवेत् .
ॐ काल भैरव ! त्वं वन्दे परमेश्वरम, ब्रह्म रूपम,
प्रसन्नो भव. गुनी महात्मानं महादेव स्वरूपं सर्व
सिद्दिर भवेत्.

प्रयोग :
१. सायंकाल दक्षिणाभिमुख होकर पीपल
की डाल वाम हस्त में लेकर, नित्य २१ बार पाठ
करने से शत्रु क्षय होता है.
२. रात्रि में पश्चिमाभिमुख होकर उपरोक्त
क्रिया सिर्फ पीपल की डाल दक्षिण हस्त में
लेकर पुष्टि कर्मों की सिद्धि प्राप्त होती है,
२१ बार जपें.
३. ब्रह्म महूर्त में पश्चिमाभिमुख तथा दक्षिण हस्त
में कुश की पवित्री लेकर ७ पाठ करने से समस्त
उपद्रवों की शांति होती है.

बुधवार, 3 दिसंबर 2014

श्री बगला प्रत्यंगिरा कवचम्

श्री बगला प्रत्यंगिरा कवचम्
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❄श्री शिव उवाच ❄
अधुनाऽहं प्रवक्ष्यामि बगलायाः सुदुर्लभम् ।
यस्य पठन मात्रेण पवनोपि स्थिरायते ।।
प्रत्यंगिरां तां देवेशि श्रृणुष्व कमलानने ।
यस्य स्मरण मात्रेण शत्रवो विलयं गताः ।।
*श्री देव्युवाच*
स्नेहोऽस्ति यदि मे नाथ संसारार्णव तारक ।
तथा कथय मां शम्भो बगलाप्रत्यंगिरा मम ।।
*श्री भैरव उवाच*
यं यं प्रार्थयते मन्त्री हठात्तंतमवाप्नुयात् ।
विद्वेषणाकर्षणे च स्तम्भनं वैरिणां विभो ।।
उच्चाटनं मारणं च येन कर्तुं क्षमो भवेत् ।
तत्सर्वं ब्रूहि मे देव यदि मां दयसे हर ।।
❄श्री सदाशिव उवाच❄
अधुना हि महादेवि परानिष्ठा मतिर्भवेत् ।
अतएव महेशानि किंचिन्न वक्तुतुमर्हसि ।।
श्री पार्वत्युवाच
जिघान्सन्तं तेन ब्रह्महा भवेत् ।
श्रृतिरेषाहि गिरिश कथं मां त्वं निनिन्दसि ।।
*श्री शिव उवाच*
साधु साधु प्रवक्ष्यामि श्रृणुष्वावहितानघे ।
प्रत्यंगिरां बगलायाः सर्वशत्रुनिवारिणीम् ।।
नाशिनीं सर्व-दुष्टानां सर्व-पापौघ-हारिणिम् ।
सर्व-प्राणि-हितां देवीं सर्व दुःख विनाशिनीम् ।।
भोगदां मोक्षदां चैव राज्य सौभाग्य दायिनीम् ।
मन्त्र-दोष-प्रमोचनीं ग्रह-दोष निवारिणीम् ।।
❄ विनियोगः ❄
ॐ अस्य श्रीबगला प्रत्यंगिरा मन्त्रस्य नारद ऋषिस्त्रिष्टुप् छन्दः, प्रत्यंगिरा देवता,ह्लीं बीजं, हुं शक्तिः,ह्रीं कीलकं, ह्लीं ह्लीं ह्लीं ह्लीं प्रत्यंगिरा मम शत्रु विनाशे विनियोगः ।
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ॐ प्रत्यंगिरायै नमः ।
प्रत्यंगिरे सकल कामान् साधय
मम रक्षां कुरु-कुरु सर्वान् शत्रून् खादय खादय मारय मारय घातय घातय ॐ ह्रीं फट् स्वाहा ।
ॐ भ्रामरी स्तम्भिनी देवी क्षोभिणी-मोहिनी तथा ।
संहारिणी द्राविणी च जृम्भिणी रौद्र-रुपिणी ।।
इत्यष्टौ शक्तयो देवि शत्रु पक्षे नियोजिताः ।
धारयेत् कणऽठदेशे च सर्वशत्रु विनाशिनी ।।
ॐ ह्रीं भ्रामरि सर्व-शत्रून् भ्रामय-भ्रामय ॐ ह्रीं स्वाहा ।
ॐ ह्रीं स्तम्भिनी मम शत्रून् स्तम्भय-स्तम्भय ॐ ह्रीं स्वाहा ।
ॐ ह्रीं क्षोभिणी मम शत्रून् क्षोभय-क्षोभय ॐ ह्रीं स्वाहा ।
ॐ ह्रीं मोहिनी मम शत्रून्मोहय मोहय ॐ ह्रीं स्वाहा ।
ॐ ह्रीं संहारिणि मम शत्रून् संहारय संहारय ॐ ह्रीं स्वाहा ।
ॐ ह्रीं द्राविणि मम शत्रून् द्रावय द्रावय ॐ ह्रीं स्वाहा ।
ॐ ह्रीं जृम्भिणि मम शत्रून् जृम्भय जृम्भय ॐ ह्रीं स्वाहा ।
ॐ ह्रीं रौद्रि मम शत्रून् सन्तापय सन्तापय ॐ ह्रीं स्वाहा ।
इयं विद्या महा-विद्या सर्व-शत्रु-निवारिणी ।
धारिता साधकेन्द्रेण सर्वान् दुष्टान् विनाशयेत् ।।
त्रि-सन्ध्यमेक-सन्धऽयं वा यः पठेत्स्थिरमानसः ।
न तस्य दुर्लभं लोके कल्पवृक्ष इव स्थितः ।।
यं य स्पृशति हस्तेन यं यं पश्यति चक्षुषा ।
स एव दासतां याति सारात्सारामिमं मनुम् ।।
❄श्री रुद्रयामले शिव-पार्वति सम्वादे बगला प्रत्यंगिरा कवचम्।।

बगला खड्गमाला मंत्र

❄अथ बगला खड्गमाला मंत्र❄
यह स्तोत्र शत्रुनाश एवं कृत्यानाश, परविद्या छेदन करने वाला एवं रक्षा कार्य हेतु प्रभावी है । 
साधारण साधकों को कुछ समय आवेश व आर्थिक दबाव रहता है, अतः पूजा उपरान्त नमस्तस्यादि शांति स्तोत्र पढ़ने चाहिये ।
❄विनियोगः- 
ॐ अस्य श्रीपीताम्बरा बगलामुखी खड्गमाला मन्त्रस्य नारायण ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, बगलामुखी देवता, ह्लीं बीजं, स्वाहा शक्तिः, ॐ कीलकं, ममाभीष्टसिद्धयर्थे सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगः ।
❄हृदयादि-न्यासः-
नारायण ऋषये नमः शिरसि, त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, बगलामुखी देवतायै नमः हृदि, ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये, स्वाहा शक्तये नमः पादयो, ॐ कीलकाय नमः नाभौ, ममाभीष्टसिद्धयर्थे सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
❄षडङ्ग-न्यास – कर-न्यास – अंग-न्यास -
ॐ ह्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः 
हृदयाय नमः
बगलामुखी तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा
सर्वदुष्टानां मध्यमाभ्यां नमः शिखायै वषट्
वाचं मुखं पद स्तम्भय अनामिकाभ्यां नमः 
कवचाय हुम्
जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्यां नमः 
नेत्र-त्रयाय वौषट्
बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः
अस्त्राय फट्
❄ध्यानः-
हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -
मध्ये सुधाब्धि-मणि-मण्डप-रत्न-वेद्यां, सिंहासनोपरि-गतां परि-पीत-वर्णाम् ।
पीताम्बराभरण-माल्य-विभूषितांगीं, देवीं स्मरामि धृत-मुद्-गर-वैरि-जिह्वाम् ।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं, वामेन शत्रून् परि-पीडयन्तीम् ।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि ।।
।।मानसोपचार पूजये जपम/ पाठ्य कुर्यात।।
❄खड्ग-माला-मन्त्रः-
ॐ ह्लीं सर्वनिन्दकानां सर्वदुष्टानां वाचं मुखं स्तम्भय-स्तम्भय बुद्धिं विनाशय-विनाशय अपरबुद्धिं कुरु-कुरु अपस्मारं कुरु-कुरु आत्मविरोधिनां शिरो ललाट मुख नेत्र कर्ण नासिका दन्तोष्ठ जिह्वा तालु-कण्ठ बाहूदर कुक्षि नाभि पार्श्वद्वय गुह्य गुदाण्ड त्रिक जानुपाद सर्वांगेषु पादादिकेश-पर्यन्तं केशादिपाद-पर्यन्तं स्तम्भय-स्तम्भय मारय-मारय परमन्त्र-परयन्त्र-परतन्त्राणि छेदय-छेदय आत्म-मन्त्र-यन्त्र-तन्त्राणि रक्ष-रक्ष, सर्व-ग्रहान् निवारय-निवारय सर्वम् अविधिं विनाशय-विनाशय दुःखं हन-हन दारिद्रयं निवारय निवारय, सर्व-मन्त्र-स्वरुपिणि सर्व-शल्य-योग-स्वरुपिणि दुष्ट-ग्रह-चण्ड-ग्रह भूतग्रहाऽऽकाशग्रह चौर-ग्रह पाषाण-ग्रह चाण्डाल-ग्रह यक्ष-गन्धर्व-किंनर-ग्रह ब्रह्म-राक्षस-ग्रह भूत-प्रेतपिशाचादीनां शाकिनी डाकिनी ग्रहाणां पूर्वदिशं बन्धय-बन्धय, वाराहि बगलामुखी मां रक्ष-रक्ष दक्षिणदिशं बन्धय-बन्धय, किरातवाराहि मां रक्ष-रक्ष पश्चिमदिशं बन्धय-बन्धय, स्वप्नवाराहि मां रक्ष-रक्ष उत्तरदिशं बन्धय-बन्धय,धूम्रवाराहि मां रक्ष-रक्ष सर्वदिशो बन्धय-बन्धय, कुक्कुटवाराहि मां रक्ष-रक्ष अधरदिशं बन्धय-बन्धय, परमेश्वरि मां रक्ष-रक्ष सर्वरोगान् विनाशय-विनाशय, सर्व-शत्रु-पलायनाय सर्व-शत्रु-कुलं मूलतो नाशय-नाशय, शत्रूणां राज्यवश्यं स्त्रीवश्यं जनवश्यं दह-दह पच-पच सकल-लोक-स्तम्भिनि शत्रून् स्तम्भय-स्तम्भय स्तम्भनमोहनाऽऽकर्षणाय सर्व-रिपूणाम् उच्चाटनं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं क्लीं ऐं वाक्-प्रदानाय क्लीं जगत्त्रयवशीकरणाय सौः सर्वमनः क्षोभणाय श्रीं महा-सम्पत्-प्रदानाय ग्लौं सकल-भूमण्डलाधिपत्य-प्रदानाय दां चिरंजीवने । ह्रां ह्रीं ह्रूं क्लां क्लीं क्लूं सौः ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय राजस्तम्भिनि क्रों क्रों छ्रीं छ्रीं सर्वजन संमोहिनि सभास्तंभिनि स्त्रां स्त्रीं सर्व-मुख-रञ्जिनि मुखं बन्धय-बन्धय ज्वल-ज्वल हंस-हंस राजहंस प्रतिलोम इहलोक परलोक परद्वार राजद्वार क्लीं क्लूं घ्रीं रुं क्रों क्लीं खाणि खाणि , जिह्वां बन्धयामि सकलजन सर्वेन्द्रियाणि बन्धयामि नागाश्व मृग सर्प विहंगम वृश्चिकादि विषं निर्विषं कुरु-कुरु शैलकानन महीं मर्दय मर्दय शत्रूनोत्पाटयोत्पाटय पात्रं पूरय-पूरय महोग्रभूतजातं बन्धयामि बन्धयामि अतीतानागतं सत्यं कथय-कथय लक्ष्मीं प्रददामि-प्रददामि त्वम् इह आगच्छ आगच्छ अत्रैव निवासं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं बगले परमेश्वरि हुं फट् स्वाहा ।
❄विशेषः- 
मूलमन्त्रवता कुर्याद् विद्यां न दर्शयेत् क्वचित् ।
विपत्तौ स्वप्नकाले च विद्यां स्तम्भिनीं दर्शयेत् ।
गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं प्रयत्नतः ।
प्रकाशनात् सिद्धहानिः स्याद् वश्यं मरणं भवेत् ।
दद्यात् शानताय सत्याय कौलाचारपरायणः ।
दुर्गाभक्ताय शैवाय मृत्युञ्जयरताय च ।
तस्मै दद्याद् इमं खड्गं स शिवो नात्र संशयः ।
अशाक्ताय च नो दद्याद् दीक्षाहीनाय वै तथा ।
न दर्शयेद् इमं खड्गम् इत्याज्ञा शंकरस्य च ।।