रविवार, 21 जून 2015

**** दारिद्रयदहन शिवस्ताेत्र ****


**** दारिद्रयदहन शिवस्ताेत्र ****
शुक्ल पक्ष के साेमवार से यह उपासना प्रारंभ करें। देनिक कार्यो से निवृत्त हाेकर स्नान कर आप इस साधना 
काे प्रारंभ करें। इस साधना काे आप किसी शिवमंदिर या आपके निवास स्थान पर कर सकते है शिवजी के 
सामने आप शुध्द घी का दीपक प्रज्वलित करें। 

संकल्प विधि:----- सर्व प्रथम आप सफेद आसन पर बैठकर दाहिने हाथ मे जल अक्षत सुपारी लेकर बाेले मै 
(आपका नाम)(पिता का नाम)(आपका गाेत्र) आज से दारिद्रयदहन शिव स्ताेत्र का पाठ प्रारंभ कर रहा हूं हे 
महादेव आप मेरे जीवन के इस दरिद्रता रूपी अभिशाप काे दूर कर मेरे समस्त मनाेरथ सिध्द करें आैर जल 
काे किसी पात्र मे छाेङ दें।
पाठ विधि:---
संकल्प विधि करने के बाद आप दारिद्रयदहन शिव स्ताेत्र कें १-५-११-२१ आपके सामर्थ अनुसार पाठ करें। 
पाठ समाप्त हाेने के बाद आप आसन के नीचे थाेङा जल छाेङ दें आैर अपने नेत्राे से लगा लें। इस बात का 
ध्यान रखे की पहले दिन आपने जितने पाठ किये है वितने ही पाठ आपकाे नियमित सवा माह तक करने है।
लाभ:- इस स्ताेत्र का पाठ नियमित सवा माह तक करने सें दरिद्रता का निवारण हाेता है सुख सम्पत्ति की 
प्राप्ति हाेती है महादेव की कृपा से ताे समस्त कार्य सिध्द हाे सकते है।
नाेट:- इस साधना काे आप नियमित सवामाह करें आैर उसके बाद हर साेमवार काे करें ताे अत्यधिक लाभ 
हाेगा। संकल्प विधि के पात्र के जल काे आप तुलसी मे ङाल दें। संकल्प विधि आपकाे केवल प्रथम साेमवार काे 
करना है इसके बाद केवल पाठ करना है। इस स्ताेत्र का पाठ जाे व्यक्ति संस्कृत मे नही कर सकते है वाे हिन्दी 
मे कर सकते है दारिद्रयदहन स्ताेत्र आसानी से धार्मिक पुस्तकाे की दुकान पर आसानी से मिल जाता है 
भगवान शिव के प्रति पूर्ण आस्था व विश्वास रखें। 

||दारिद्रयदहन स्ताेत्र||
विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय
कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय।
कर्पूरकांतिधवलाय जटाधराय
दारिद्रयदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥1॥
गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय
कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय।
गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय ॥2॥
भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय
उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय।
ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय ॥3॥
चर्माम्बराय शवभस्मविलेपनाय
भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय।
मञ्जीरपादयुगलाय जटाधराय ॥4॥
पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय
हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय।
आनंतभूमिवरदाय तमोमयाय ॥5॥
भानुप्रियाय भवसागरतारणाय
कालान्तकाय कमलासनपूजिताय।
नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय ॥6॥
रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय
नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय।
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय ॥7॥
मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय
गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय।
मातङग्‌चर्मवसनाय महेश्वराय ॥8॥
वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणम्‌।
सर्वसम्पत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम्‌।
त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात्‌ ॥9॥

योग: मन को शून्य करना

योग भारत में एक आध्यात्मिक प्रकिया को कहते हैं जिसमें शरीर, मन 

और आत्मा को एक साथ लाने (योग) का काम होता है।" "भगवान कृष्ण 


की आत्मा को परमात्मा से मिलाने के लिए "योग" होता है |.


योग का अर्थ अपने ध्यान को ईश्वर से जोड़ना है | हमारा ध्यान हमेशा 

संसार में रहता है | ध्यान को संसार से हटा कर आत्मा में ले जाना ही 

योग है | प्राण को सम करना योग है | इसे विचारों से भी किया जा सकता 

और शरीर से भी | यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, 

ध्यान और समाधि  को समझे बिना योग को समझना कठिन है | योग 

वशिष्ठ में इन्हें बहुत विस्तार से समझाया गया है | भारत में जिस योग 

का प्रचार किया जा रहा वह योग का ५ % ही है वास्तव में पूरे योग को 

समझना अधिक आवश्यक है | जब हम ईश्वर को ही नही जानते तो 

किस प्रकार से योग करने की बात करते हैं | योग केवल शरीर का 

अभ्यास नही है बल्कि बहुत बड़ा हिस्सा मन को शून्य करना है | बिना 

मन को शून्य किये योग के बारे में सोचा नही जा सकता जब की मन 

शरीर के अभ्यास से शून्य नही हो सकता | दुनिया के लोगों का ध्यान 

संसार में हैं इसलिए वह मन को शून्य करने के बारे में सोच नही सकते |

शनिवार, 20 जून 2015

सनातन धर्म में भेद भाव वर्जित है इसे समझ ले

देखिये भाइयो  जब से ये केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आई है भाजपा के कुछ छदम लोग  फेसबुक पर , ट्विटर पर, आज धर्म के नाम पर, घर वापसी के नाम पर दोनों मजहबो के लोगो के बीच में नफ़रत के बीज बो रहे है जो की अच्छी बात नहीं है । पहले ये समझ ले की हमारा धर्म सनातन है सनातन मतलब जो की अनंत काल से चला आ  रहा हो । ये बाद में कुछ मुस्लिम आक्रांताओ ने सिंधु नदी के इस पार  सिंधु और उस  पार  हिन्दू नाम दिया जो की हम ढो रहे है खैर  चाहे कोई हिन्दू हो या मुस्लिम या ईसाई या अन्य कोई सभी इसी देश में रहते है तो  हमारा कर्तव्य है की हम सबसे मिलजुल कर रहे और सबसे प्रेम करे । हमारे सनातन धर्म में भेद भाव वर्जित है इसे समझ ले । हमारे यहाँ तो "वसुधैव कुटुंबकम " अर्थात पूरी वसुधा ही एक कुटुंब है अर्थात पूरी पृथ्वी ही एक परिवार है तो क्या परिवार में एक दूसरे से नफ़रत की जाती है ? क्या कोई अपने ही भाई से घृणा करता है नहीं ! कभी नहीं ! हमारे धर्म में " वासुदेव सर्वम " या " सियाराम मय सब जग जानी । करउ प्रनाम जोरि जुग पानी ॥ " कहा गया है । 

तो मेरा कहने का तात्पर्य यही है की सबसे प्रेम करे और जाति , धर्म, रहन-सहन के आधार पर  भेद भाव ना करें, जैसा की भाजपा के कुछ लोग सोशल मिडिया पर नफ़रत भरे सन्देश एक दूसरे को भेज रहे है । हमारे धर्म ने सभी को अपनाया है चाहे वो कोई भी हो और चाहे वो कैसा भी हो क्योंकि हमारा प्रभु सबमे निवास करता है इसीलिए किसी से भी नफ़रत न करे । 

दूसरे से नफ़रत करके आप उस दूसरे का तो कुछ नहीं कर पाएंगे पर अपने जीवन में जहर जरूर घोल लेंगे इसीलिए हमेशा प्रेम में जिए और प्रेम ही बाटे  । जय श्री कृष्णा ॥