**** दारिद्रयदहन शिवस्ताेत्र ****
शुक्ल पक्ष के साेमवार से यह उपासना प्रारंभ करें। देनिक कार्यो से निवृत्त हाेकर स्नान कर आप इस साधना
शुक्ल पक्ष के साेमवार से यह उपासना प्रारंभ करें। देनिक कार्यो से निवृत्त हाेकर स्नान कर आप इस साधना
काे प्रारंभ करें। इस साधना काे आप किसी शिवमंदिर या आपके निवास स्थान पर कर सकते है शिवजी के
सामने आप शुध्द घी का दीपक प्रज्वलित करें।
संकल्प विधि:----- सर्व प्रथम आप सफेद आसन पर बैठकर दाहिने हाथ मे जल अक्षत सुपारी लेकर बाेले मै
(आपका नाम)(पिता का नाम)(आपका गाेत्र) आज से दारिद्रयदहन शिव स्ताेत्र का पाठ प्रारंभ कर रहा हूं हे
महादेव आप मेरे जीवन के इस दरिद्रता रूपी अभिशाप काे दूर कर मेरे समस्त मनाेरथ सिध्द करें आैर जल
काे किसी पात्र मे छाेङ दें।
पाठ विधि:---
संकल्प विधि करने के बाद आप दारिद्रयदहन शिव स्ताेत्र कें १-५-११-२१ आपके सामर्थ अनुसार पाठ करें।
पाठ समाप्त हाेने के बाद आप आसन के नीचे थाेङा जल छाेङ दें आैर अपने नेत्राे से लगा लें। इस बात का
ध्यान रखे की पहले दिन आपने जितने पाठ किये है वितने ही पाठ आपकाे नियमित सवा माह तक करने है।
लाभ:- इस स्ताेत्र का पाठ नियमित सवा माह तक करने सें दरिद्रता का निवारण हाेता है सुख सम्पत्ति की
प्राप्ति हाेती है महादेव की कृपा से ताे समस्त कार्य सिध्द हाे सकते है।
नाेट:- इस साधना काे आप नियमित सवामाह करें आैर उसके बाद हर साेमवार काे करें ताे अत्यधिक लाभ
हाेगा। संकल्प विधि के पात्र के जल काे आप तुलसी मे ङाल दें। संकल्प विधि आपकाे केवल प्रथम साेमवार काे
करना है इसके बाद केवल पाठ करना है। इस स्ताेत्र का पाठ जाे व्यक्ति संस्कृत मे नही कर सकते है वाे हिन्दी
मे कर सकते है दारिद्रयदहन स्ताेत्र आसानी से धार्मिक पुस्तकाे की दुकान पर आसानी से मिल जाता है
भगवान शिव के प्रति पूर्ण आस्था व विश्वास रखें।
||दारिद्रयदहन स्ताेत्र||
विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय
कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय।
कर्पूरकांतिधवलाय जटाधराय
दारिद्रयदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥1॥
कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय।
कर्पूरकांतिधवलाय जटाधराय
दारिद्रयदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥1॥
गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय
कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय।
गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय ॥2॥
कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय।
गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय ॥2॥
भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय
उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय।
ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय ॥3॥
उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय।
ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय ॥3॥
चर्माम्बराय शवभस्मविलेपनाय
भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय।
मञ्जीरपादयुगलाय जटाधराय ॥4॥
भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय।
मञ्जीरपादयुगलाय जटाधराय ॥4॥
पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय
हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय।
आनंतभूमिवरदाय तमोमयाय ॥5॥
हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय।
आनंतभूमिवरदाय तमोमयाय ॥5॥
भानुप्रियाय भवसागरतारणाय
कालान्तकाय कमलासनपूजिताय।
नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय ॥6॥
कालान्तकाय कमलासनपूजिताय।
नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय ॥6॥
रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय
नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय।
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय ॥7॥
नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय।
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय ॥7॥
मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय
गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय।
मातङग्चर्मवसनाय महेश्वराय ॥8॥
गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय।
मातङग्चर्मवसनाय महेश्वराय ॥8॥
वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणम्।
सर्वसम्पत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम्।
त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात् ॥9॥
सर्वसम्पत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम्।
त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात् ॥9॥
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