नील सरस्वती साधना
देवी तारा दस महाविद्याओं में से एक है इन्हे नील सरस्वती भी कहा जाता है ! ये सरस्वती का तांत्रिक स्वरुप है
अब आप एक एक अनार निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ गणेश जी व् अक्षोभ पुरुष को काट कर बली दे ..
ॐ गं उच्छिस्ट गणेशाय नमः भो भो देव प्रसिद प्रसिद मया दत्तं इयं बलिं गृहान हूँ फट .
.ॐ भं क्षं फ्रें नमो अक्षोभ्य काल पुरुष सकाय प्रसिद प्रसिद मया दत्तं इयं बलिं गृहान हूँ फट ..
अब आप इस मंत्र की एक माल जाप करे ..
॥क्षं अक्षोभ्य काल पुरुषाय नमः स्वाहा॥
फिर आप निम्न मंत्र की एक माला जाप करे ..
॥ह्रीं गं हस्तिपिशाची लिखे स्वाहा॥
इन मंत्रो की एक एक माला जाप शरू में व् अंत में करना अनिवार्य है क्यों नील तारा देवी के बीज मंत्र की जाप से अत्यंत भयंकर उर्जा का विस्फोट होता है शरीर के अंदर .. ऐसा लगता है जैसे की आप हवा में उड़ रहे हो .. एक हि क्षण में सातो आसमान के ऊपर विचरण की अनुभति तोह दुसरे ही क्षण अथाह समुद्र में गोता लगाने की .. इतना उर्जा का विस्फोट होगा की आप कमजोर पड़ने लग जायेंगे आप के शारीर उस उर्जा का प्रभाव व् तेज को सहन नहीं कर सकते इस के लिए ही यह दोनों मात्र शुरू व् अंत में एक एक माला आप लोग अवस्य करना .. नहीं तोह आप को विक्षिप्त होने से स्वं माँ भी नहीं बचा सकती ..
इस साधना से आप के पांच चक्र जाग्रत हो जाते है तोह आप स्वं ही समझ सकते हो इस मंत्र में कितनी उर्जा निर्माण करने की क्षमता है .. एक एक चक्र को उर्जाओ के तेज धक्के मार मार के जागते है ..अरे परमाणु बम क्या चीज़ है भगवती की इस बीज मंत्र के सामने ?
सब के सब धरे रह जायेंगे ..
मूल मंत्र-
॥स्त्रीं ॥ ॥ STREENG ॥
जप के उपरांत रोज देवी के दाहिने हात में समर्पण व् क्षमा पार्थना करना ना भूले ..
साधना समाप्त करने की उपरांत यथा साध्य हवन करना .. व् एक कुमारी कन्या को भोजन करा देना
..अगर किसी कन्या को भोजन करने में कोई असुविधा हो तोह आप एक वक्त में खाने की जितना मुल्य हो वोह आप किसी जरुरत मंद व्यक्ति को दान कर देना ...
भगवती आप सबका कल्याण करे ..
जब भगवती का बीजमंत्र का एक लाख से ऊपर जप पूर्ण हो जाये तब उनके अन्य मंत्रो का जाप लाभदायी होता है
कुछ लॊग अपने आपको वयक्त नहीं कर पाते, उनमे बोलने की छमता नहीं होती ,उनमे वाक् शक्ति का विकास नहीं होता ऐसे जातको को बुधवार के दिन तारा यन्त्र की स्थापना करनी चाहिए ! उसका पंचोपचार पूजन करने के पश्चात स्फटिक माला से इस मंत्र का २१ माला जप करना चाहिए -
मंत्र - ॐ नमः पद्मासने शब्दरुपे ऐं ह्रीं क्लीं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा
२१ वे दिन हवन सामग्री मे जौ-घी मिलाकर उपरोक्त मंत्र का १०८ आहुति दे और पूर्ण आहुति प्रदान करे !
इस साधना से वाक् शक्ति का विकास होता है , आवाज़ का कम्पन जाता रहता है ! यह मोहिनी विद्या है एवं बहुत से प्रवचनकार,कथापुराण वाचक इसी मंत्र को सिद्ध कर जन समूह को अपने शब्द जालो से मोहते है !
अपने पास कुछ भी गोपनीय नहीं रख रहा सब आप लोगो से शेयर कर रहा हु !! प्रतिदिन साधना से पूर्व माँ तारा का पूजन कर एक -एक माला (स्त्रीम ह्रीं हुं ) तारा कुल्लुका एवं ( अं मं अक्षोभ्य श्री ) की अवश्य करे I
बुधवार, 6 अप्रैल 2016
छिन्नमस्ता मंत्र
मंत्र :-
ऊं श्रीं ह्लीं ह्लीं वज्र वैरोचनीये ह्लीं ह्लीं फट् स्वाहा
इस मंत्र का पुरश्चरण चार लाख जप है। जप का दशांश होम पलाश या बिल्व फलों से करना चाहिए।
तिल व अक्षतों के होम से सर्वजन वशीकरण, स्त्री के रज से होम करने पर आकर्षण, श्वेत कनेर पुष्पों से होम करने से रोग मुक्ति, मालती पुष्पों के होम से वाचासिद्धि व चंपा के पुष्पों से होम करने पर सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
ऊं श्रीं ह्लीं ह्लीं वज्र वैरोचनीये ह्लीं ह्लीं फट् स्वाहा
इस मंत्र का पुरश्चरण चार लाख जप है। जप का दशांश होम पलाश या बिल्व फलों से करना चाहिए।
तिल व अक्षतों के होम से सर्वजन वशीकरण, स्त्री के रज से होम करने पर आकर्षण, श्वेत कनेर पुष्पों से होम करने से रोग मुक्ति, मालती पुष्पों के होम से वाचासिद्धि व चंपा के पुष्पों से होम करने पर सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
दुर्गा कला मन्त्र
जय ज्योत तेरी ओट देवी दुर्गा तेरी कला सहाई,पहली शैलपुत्री ध्याऊँ मनोवांछित फल पाऊँ दूजी ब्र्हम्चारिणी ध्याऊँ ब्रहमविद्या पाऊँ तीजी चंदरघटा ध्याऊँ रोग शोक को दूर भगाऊँ चौथी कुष्मांडा ध्याऊँ भूत प्रेत को दूर भगाऊँ पांचवी अस्कंध माता ध्याऊँ बल बुधि विद्या पाऊँ छट्टी कातायानी ध्याऊँ लम्बी आयु पाऊँ सातवी कालरात्रि ध्याऊँ वैरी से कभी हार न पाऊँ आठवी महागौरी ध्याऊँ सुंदर मोहक रूप मै पाऊँ नौवी सिद्धिधात्री ध्याऊँ परम सिद्ध मै कहलाऊँ मेरा शब्द चुके ऊमा सूखे गंगा यमुना उलटी बहे चले मन्त्र फुरे वाचा देखां नौ देवियों के ईलम का तमाशा ! दुहाई ब्रह्मा विष्णु शिव गौरा पार्वती की
रविवार, 3 अप्रैल 2016
!! श्री महाकाली !!
!! श्री महाकाली !!
दुर्गाजी का एक रुप कालीजी है। यह देवी विशेष रुप से शत्रुसंहार, विघ्ननिवारण, संकटनाश और सुरक्षा की अधीश्वरी है।
यह तथ्य प्रसिद्ध है कि इनकी कृपा मात्र से भक्त को ज्ञान, सम्पति, यश और अन्य सभी भौतिक सुखसमृद्धि के साधन प्राप्त हो सकते है, पर विशेष रुप से इनकी उपासन्न सुरक्षा, शौर्य, पराक्रम, युद्ध, विवाद और प्रभाव विस्तर के संदर्भ में की जाती है। कालीजी की रुपरेखा भयानक है। देखकर सहसा रोमांच हो आता है। पर वह उनका दुष्टदलन रुप है।
भक्तों के प्रति तो वे सदैव ही परम दयालु और ममतामयी रहती है। उनकी पूजा के द्वारा व्यक्ति हर प्रकार की सुरक्षा और समृद्धि प्राप्त कर सकता है।
विधि -
लाल आसन पर कालीजी की प्रतिमा अथवा चित्र या यन्त्र स्थापित करके, लाल चन्दन, पुष्प तथा धूपदीप से पूजा करके मन्त्र जप करना चाहिए। नियमत रुप से श्रद्धापूर्वक आराधना करने वालि जनों को कालीजी(प्रायः सभी शक्ति स्वरुप) स्वप्न मे दर्शन देती है। ऐसे दर्शन से घबङाना नहीं चाहिए और उस स्वप्न की कहीं चर्चा भी नही चाहिए। कालीजी की पुजा में बली का विधान भी है। किन्त सात्विक उपासना की दृष्टि से बलि के नाम पर नारियल अथवा किसी फल का प्रयोग किया जा सकता है।
वैसै, देवी - देवता मात्र श्रद्धा से ही प्रसन्न हो जाते है, ये भौतिक उपादान उनकी दृष्टि में बहुत महत्वपूर्ण नहीं होते । कुछ भी न हो और कोई साधक केवल श्रद्धापूर्वक उनकी स्तुति ही करता रहे, तो भी वह सफल मनोरथ हो सकता है।
धयान स्तुति-
खडगं गदेषु चाप परिघां शूलम भुशुंडी शिरः
शंखं संदधतीं करैस्तिनयनां सर्वाग भूषावृताम्।
नीलाश्मद्युतिमास्य पाद द्शकां सेवै महाकालिकाम्।
यामस्तौत्स्वपितो हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम्॥
जप मन्त्र-
ॐ क्रां क्रीं क्रूं कालिकाय नमः।
प्रार्थना-
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै ससतं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै निततां प्रणतां स्मताम्॥
महाकाली मंत्र :-
ऊं ए क्लीं ह्लीं श्रीं ह्सौ: ऐं ह्सौ: श्रीं ह्लीं क्लीं ऐं जूं क्लीं सं लं श्रीं र: अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋं लं लृं एं ऐं ओं औं अं अ: ऊं कं खं गं घं डं ऊं चं छं जं झं त्रं ऊं टं ठं डं ढं णं ऊं तं थं दं धं नं ऊं पं फं बं भं मं ऊं यं रं लं वं ऊं शं षं हं क्षं स्वाहा।
विधि :-
यह महाकाली का उग्र मंत्र है। इसकी साधना विंध्याचल के अष्टभुजा पर्वत पर त्रिकोण में स्थित काली खोह में करने से शीघ्र सिद्धि होती है अथवा श्मशान में भी साधना की जा सकती है, लेकिन घर में साधना नहीं करनी चाहिए। जप संख्या 1100 है, जिन्हें 90 दिन तक अवश्य करना चाहिए। दिन में महाकाली की पंचोपचार पूजा करके यथासंभव फलाहार करते हुए निर्मलता, सावधानी, निभीर्कतापूर्वक जप करने से महाकाली सिद्धि प्रदान करती हैं। इसमें होमादि की आवश्यकता नहीं होती।
फल :-
यह मंत्र सार्वभौम है। इससे सभी प्रकार के सुमंगलों, मोहन, मारण, उच्चाटनादि तंत्रोक्त षड्कर्म की सिद्धि होती है।
दुर्गाजी का एक रुप कालीजी है। यह देवी विशेष रुप से शत्रुसंहार, विघ्ननिवारण, संकटनाश और सुरक्षा की अधीश्वरी है।
यह तथ्य प्रसिद्ध है कि इनकी कृपा मात्र से भक्त को ज्ञान, सम्पति, यश और अन्य सभी भौतिक सुखसमृद्धि के साधन प्राप्त हो सकते है, पर विशेष रुप से इनकी उपासन्न सुरक्षा, शौर्य, पराक्रम, युद्ध, विवाद और प्रभाव विस्तर के संदर्भ में की जाती है। कालीजी की रुपरेखा भयानक है। देखकर सहसा रोमांच हो आता है। पर वह उनका दुष्टदलन रुप है।
भक्तों के प्रति तो वे सदैव ही परम दयालु और ममतामयी रहती है। उनकी पूजा के द्वारा व्यक्ति हर प्रकार की सुरक्षा और समृद्धि प्राप्त कर सकता है।
विधि -
लाल आसन पर कालीजी की प्रतिमा अथवा चित्र या यन्त्र स्थापित करके, लाल चन्दन, पुष्प तथा धूपदीप से पूजा करके मन्त्र जप करना चाहिए। नियमत रुप से श्रद्धापूर्वक आराधना करने वालि जनों को कालीजी(प्रायः सभी शक्ति स्वरुप) स्वप्न मे दर्शन देती है। ऐसे दर्शन से घबङाना नहीं चाहिए और उस स्वप्न की कहीं चर्चा भी नही चाहिए। कालीजी की पुजा में बली का विधान भी है। किन्त सात्विक उपासना की दृष्टि से बलि के नाम पर नारियल अथवा किसी फल का प्रयोग किया जा सकता है।
वैसै, देवी - देवता मात्र श्रद्धा से ही प्रसन्न हो जाते है, ये भौतिक उपादान उनकी दृष्टि में बहुत महत्वपूर्ण नहीं होते । कुछ भी न हो और कोई साधक केवल श्रद्धापूर्वक उनकी स्तुति ही करता रहे, तो भी वह सफल मनोरथ हो सकता है।
धयान स्तुति-
खडगं गदेषु चाप परिघां शूलम भुशुंडी शिरः
शंखं संदधतीं करैस्तिनयनां सर्वाग भूषावृताम्।
नीलाश्मद्युतिमास्य पाद द्शकां सेवै महाकालिकाम्।
यामस्तौत्स्वपितो हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम्॥
जप मन्त्र-
ॐ क्रां क्रीं क्रूं कालिकाय नमः।
प्रार्थना-
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै ससतं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै निततां प्रणतां स्मताम्॥
महाकाली मंत्र :-
ऊं ए क्लीं ह्लीं श्रीं ह्सौ: ऐं ह्सौ: श्रीं ह्लीं क्लीं ऐं जूं क्लीं सं लं श्रीं र: अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋं लं लृं एं ऐं ओं औं अं अ: ऊं कं खं गं घं डं ऊं चं छं जं झं त्रं ऊं टं ठं डं ढं णं ऊं तं थं दं धं नं ऊं पं फं बं भं मं ऊं यं रं लं वं ऊं शं षं हं क्षं स्वाहा।
विधि :-
यह महाकाली का उग्र मंत्र है। इसकी साधना विंध्याचल के अष्टभुजा पर्वत पर त्रिकोण में स्थित काली खोह में करने से शीघ्र सिद्धि होती है अथवा श्मशान में भी साधना की जा सकती है, लेकिन घर में साधना नहीं करनी चाहिए। जप संख्या 1100 है, जिन्हें 90 दिन तक अवश्य करना चाहिए। दिन में महाकाली की पंचोपचार पूजा करके यथासंभव फलाहार करते हुए निर्मलता, सावधानी, निभीर्कतापूर्वक जप करने से महाकाली सिद्धि प्रदान करती हैं। इसमें होमादि की आवश्यकता नहीं होती।
फल :-
यह मंत्र सार्वभौम है। इससे सभी प्रकार के सुमंगलों, मोहन, मारण, उच्चाटनादि तंत्रोक्त षड्कर्म की सिद्धि होती है।
बुधवार, 30 मार्च 2016
पंचांगुली साधना.
पंचांगुली साधना...
पंचांगुली साधना....यह साधना किसी भी समय से प्रारम्भ की जा सकती है, परन्तु साधकको चाहिए कि वह पूर्ण विधि विधान के साथ इस साधना को सम्पन्नकरेँ, मन्त्र जप तीर्थ भूमि, गंगा-यमुना संगम, नदी-तीर, पर्वत,गुफा, या किसी मन्दिर मे की जा सकती है, साधक चाहे तो साधना केलिए घर के एकांत कमरे का उपयोग भी कर सकते हैँ ।इस साधना मेँ यन्त्र आवश्यक है, शुभ दिन शुद्ध , समय मेसाधना स्थान को स्वच्छ पानी से धो ले, कच्चा आंगन हो तो लीप लेँ ,तत्पश्चात लकडी के एक समचौरस पट्टे पर श्वेत वस्त्र धो करबिछा देँ, और उस पर चावलोँ से यन्त्र का निर्माण करेँचावलोँ को अलग-अलग 5 रंगो मे रंग देँ , यन्त्र को सुघडता से सही रुपमेँ बनावे यन्त्र की बनावट मे जरा सी भी गलती सारे परिश्रम को व्यर्थकर देती है ।तत्पश्चात यन्त्र के मध्य ताम्र कलश स्थापित करेँ और उस पर लालवस्त्र आच्छादित कर ऊपर नारियल रखेँ और फिर उस परपंचागुली देवी की मूर्ति स्थापित करे इसके बाद पूर्ण षोडसोपचार से 9दिन तक पूजन करेँ और नित्य पंचागुली मन्त्र का जप तरेँ ।सर्व प्रथम मुख शोधन कर पंचागुली मन्त्र चैतन्य करेँ ,पंचांगुली की साधना मेँ मन्त्र चैतन्य ' ई ' है अतः मन्त्र के प्रारम्भऔर अन्त मे ' ई ' सम्पुट देने से मंत्र चैतन्य हो जाता है ।मन्त्र चैतन्य के बाद योनि-मुद्रा का अनुष्ठान किया जाय यदि योनि-मुद्रा अनुष्ठान का ज्ञान न हो तो भूत लिपि - विधान करना चाहिए ।इसके बाद यन्त्र पूजा कर पंचांगुली ध्यान करेँ ।
पंचांगुली ध्यान-पंचांगुली महादेवीँ श्री सोमन्धर शासने ।अधिष्ठात्री करस्यासौ शक्तिः श्री त्रिदशोशितुः ।।पंचांगुली देवी के सामने यह ध्यान करके पंचांगुली मन्त्र का जपकरना चाहिए -
पंचांगुली मन्त्र -
ॐ नमो पंचागुली पंचांगुली परशरी माता मयंगल वशीकरणी लोहमयदडमणिनी चौसठ काम विहंडनी रणमध्ये राउलमध्ये शत्रुमध्येदीपानमध्ये भूतमध्ये प्रेतमध्ये पिशाचमध्ये झोटिगमध्ये डाकिनिमध्येशाखिनीमध्ये यक्षिणीमध्ये दोषणिमध्ये गुणिमध्ये गारुडीमध्येविनारिमध्ये दोषमध्ये दोषशरणमध्ये दुष्टमध्ये घोर कष्ट मुझ ऊपरबुरो जो कोई करे करावे जडे जडावे चिन्ते चिन्तावे तस माथेश्री माता पंचांगुली देवी ताणो वज्र निर्घार पडे ॐ ठं ठं ठं स्वाहा
।वस्तुतः यह साधना लम्बी और श्रम साध्य है, प्रारम्भ मेगणपति पूजन, संकल्प, न्यास , यन्त्र-पूजा , प्रथम वरण पूजा ,द्वतिया, तृतिया , चतुर्थ, पंचम, षष्ठम् सप्तम, अष्टम औरनवमावरण के बाद भूतीपसंहार करके यन्त्र से प्राण-प्रतिष्ठाकरनी चाहिए ।इसके बाद पंचागुली देवी को संजीवनी बनाने के लिए ध्यान ,अन्तर्मातृका न्यास , कर न्यास, बहिर्मातृका न्यास करनी चाहिए ,यद्यपि इन सारी विधि को लिखा जाय तो लगभग 40-50 पृष्ठो मेआयेगी , यहां मेरा उद्देश्य आप सब को मात्र इस साधना से
परिचितकराना है ।
देश के श्रेष्ठ साधको का मत है कि यदि साधक ये सारे क्रियाकलाप नकरके केवल घर मे मन्त्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त पंचांगुली यन्त्रतथा चित्र स्थापित कर उसके सामने नित्य पंचांगुली मंत्र 21 बार जपकरें तो कुछ समय बाद स्वतः पंचांगुली साधना सिद्ध हो जाती है ।सामान्य साधक को लम्बे चौडे जटिल विधि विधान मे न पड कर अपनेघर मे पंचांगुली देवी का चित्र स्थापना चाहिए और प्रातः स्नान कर गुरुमंत्र जप कर पंचांगुली मन्त्र का 21 बार उच्चारण करना चाहिए ।कुछ समय बाद मन्त्र सिद्ध हो जाता है और यह साधना सिद्ध करसाधक सफल भविष्यदृष्टा बन जाता है ,
साधक मेजितनि उज्जवला और पवित्रता होती है उसी के अनुसार उसे फलमिलता है ।वर्तमान समय मे यह श्रैष्ठतम और प्रभावपूर्ण मानी जाती हैतथा प्रत्येक मन्त्र मर्मज्ञ और तांत्रिक साधक इस बात को स्वीकारकरते है कि वर्तमान समय मे यह साधना अचूक फलदायक है ।
इस साधना में कार्तिक माह के हस्त नक्षत्र का ज्यादा महत्व है क्योंकि ये हस्तरेखा और भविष्य दर्शन से जुडी है। ज्यादा उचित ये रहेगा की गुरु के सानिंध्य में साधना करें ।
पंचांगुली साधना....यह साधना किसी भी समय से प्रारम्भ की जा सकती है, परन्तु साधकको चाहिए कि वह पूर्ण विधि विधान के साथ इस साधना को सम्पन्नकरेँ, मन्त्र जप तीर्थ भूमि, गंगा-यमुना संगम, नदी-तीर, पर्वत,गुफा, या किसी मन्दिर मे की जा सकती है, साधक चाहे तो साधना केलिए घर के एकांत कमरे का उपयोग भी कर सकते हैँ ।इस साधना मेँ यन्त्र आवश्यक है, शुभ दिन शुद्ध , समय मेसाधना स्थान को स्वच्छ पानी से धो ले, कच्चा आंगन हो तो लीप लेँ ,तत्पश्चात लकडी के एक समचौरस पट्टे पर श्वेत वस्त्र धो करबिछा देँ, और उस पर चावलोँ से यन्त्र का निर्माण करेँचावलोँ को अलग-अलग 5 रंगो मे रंग देँ , यन्त्र को सुघडता से सही रुपमेँ बनावे यन्त्र की बनावट मे जरा सी भी गलती सारे परिश्रम को व्यर्थकर देती है ।तत्पश्चात यन्त्र के मध्य ताम्र कलश स्थापित करेँ और उस पर लालवस्त्र आच्छादित कर ऊपर नारियल रखेँ और फिर उस परपंचागुली देवी की मूर्ति स्थापित करे इसके बाद पूर्ण षोडसोपचार से 9दिन तक पूजन करेँ और नित्य पंचागुली मन्त्र का जप तरेँ ।सर्व प्रथम मुख शोधन कर पंचागुली मन्त्र चैतन्य करेँ ,पंचांगुली की साधना मेँ मन्त्र चैतन्य ' ई ' है अतः मन्त्र के प्रारम्भऔर अन्त मे ' ई ' सम्पुट देने से मंत्र चैतन्य हो जाता है ।मन्त्र चैतन्य के बाद योनि-मुद्रा का अनुष्ठान किया जाय यदि योनि-मुद्रा अनुष्ठान का ज्ञान न हो तो भूत लिपि - विधान करना चाहिए ।इसके बाद यन्त्र पूजा कर पंचांगुली ध्यान करेँ ।
पंचांगुली ध्यान-पंचांगुली महादेवीँ श्री सोमन्धर शासने ।अधिष्ठात्री करस्यासौ शक्तिः श्री त्रिदशोशितुः ।।पंचांगुली देवी के सामने यह ध्यान करके पंचांगुली मन्त्र का जपकरना चाहिए -
पंचांगुली मन्त्र -
ॐ नमो पंचागुली पंचांगुली परशरी माता मयंगल वशीकरणी लोहमयदडमणिनी चौसठ काम विहंडनी रणमध्ये राउलमध्ये शत्रुमध्येदीपानमध्ये भूतमध्ये प्रेतमध्ये पिशाचमध्ये झोटिगमध्ये डाकिनिमध्येशाखिनीमध्ये यक्षिणीमध्ये दोषणिमध्ये गुणिमध्ये गारुडीमध्येविनारिमध्ये दोषमध्ये दोषशरणमध्ये दुष्टमध्ये घोर कष्ट मुझ ऊपरबुरो जो कोई करे करावे जडे जडावे चिन्ते चिन्तावे तस माथेश्री माता पंचांगुली देवी ताणो वज्र निर्घार पडे ॐ ठं ठं ठं स्वाहा
।वस्तुतः यह साधना लम्बी और श्रम साध्य है, प्रारम्भ मेगणपति पूजन, संकल्प, न्यास , यन्त्र-पूजा , प्रथम वरण पूजा ,द्वतिया, तृतिया , चतुर्थ, पंचम, षष्ठम् सप्तम, अष्टम औरनवमावरण के बाद भूतीपसंहार करके यन्त्र से प्राण-प्रतिष्ठाकरनी चाहिए ।इसके बाद पंचागुली देवी को संजीवनी बनाने के लिए ध्यान ,अन्तर्मातृका न्यास , कर न्यास, बहिर्मातृका न्यास करनी चाहिए ,यद्यपि इन सारी विधि को लिखा जाय तो लगभग 40-50 पृष्ठो मेआयेगी , यहां मेरा उद्देश्य आप सब को मात्र इस साधना से
परिचितकराना है ।
देश के श्रेष्ठ साधको का मत है कि यदि साधक ये सारे क्रियाकलाप नकरके केवल घर मे मन्त्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त पंचांगुली यन्त्रतथा चित्र स्थापित कर उसके सामने नित्य पंचांगुली मंत्र 21 बार जपकरें तो कुछ समय बाद स्वतः पंचांगुली साधना सिद्ध हो जाती है ।सामान्य साधक को लम्बे चौडे जटिल विधि विधान मे न पड कर अपनेघर मे पंचांगुली देवी का चित्र स्थापना चाहिए और प्रातः स्नान कर गुरुमंत्र जप कर पंचांगुली मन्त्र का 21 बार उच्चारण करना चाहिए ।कुछ समय बाद मन्त्र सिद्ध हो जाता है और यह साधना सिद्ध करसाधक सफल भविष्यदृष्टा बन जाता है ,
साधक मेजितनि उज्जवला और पवित्रता होती है उसी के अनुसार उसे फलमिलता है ।वर्तमान समय मे यह श्रैष्ठतम और प्रभावपूर्ण मानी जाती हैतथा प्रत्येक मन्त्र मर्मज्ञ और तांत्रिक साधक इस बात को स्वीकारकरते है कि वर्तमान समय मे यह साधना अचूक फलदायक है ।
इस साधना में कार्तिक माह के हस्त नक्षत्र का ज्यादा महत्व है क्योंकि ये हस्तरेखा और भविष्य दर्शन से जुडी है। ज्यादा उचित ये रहेगा की गुरु के सानिंध्य में साधना करें ।
सोमवार, 28 मार्च 2016
चंड योगिनी साधना
चंड योगिनी साधना
योगिनी शब्द से हम में से अधिकाश भय ग्रस्त से हो जाते हैं , पर ये तो ,अनेको ने इनके बारे में जो भी सुना सुनाया लिख दिया ,, खुद का स्वानुभव कितनो का था , और जिनका स्वानुभव था , वह तो चुप साध के बैठे रहे वह जानते थे की इनके बारे में बोलना ठीक नही हैं क्योंकि एक तो लोग मानेगे नहीं दुसरे क्यों इस सर्वोच्च स्तर की साधना को क्यों सामने लाये ,
तंत्र जगत में चौसठ तंत्रों की बात होती हैं तो क्या चौसठ ही तंत्र हैं , नहीं नहीं यह तो शाक्त मार्ग का वर्गीकरण हैं अन्य सम्प्रदाय में अनेको और तंत्र हैं. डामर और यामल ग्रंथो को मिला कर साथ ही साथ यदि उप तंत्रों को भी मिला लिया जाये तो इतनी बड़ी संख्या बन जाती हैं जिसे देखकर ही हमारे मनीषियों पर गर्व होता हैं,पर इन्हें सुरक्षित रखने का प्रयत्न तो क रना ही चाहिए ही ..
पर इनको अपने जीवन में उतरना कभी ज्यादा लाभ दायक होगा , और स्वयम जान सकेंगे की इनकी वरदायक क्षमता के बारे में ,,
योगिनी इन तंत्रों की आधिस्थार्थी हैं इसका मतलब तो यह हुआ की इनके माध्यम से आप तंत्र जगत के अनबुझे रहस्य ही जान सकते हैं ,, आखिर कब तक आप मात्र वशीकरण ,और मोहन जैसी क्रियाओ में अटके रहेंगे, आखिर कभी न कभी आपको इस में आगे बढ़ना हैं ही तो क्यों नहीं अभी कदम बढ़ाएं.
पर यह चाहे प्रेमिका माता या बहिन जिस भी स्वरुप में सिद्ध की जाये या इनकी अनुकूलता प्राप्त कर ली जाये तो जीवन की कौन सी परिस्थितियां आपके लिए फिर कठिन हो सकती हैं .
प्रेमिका स्वरूप में हमेशा ध्यान रहा जाये, वासनात्मक दृष्टी से इन्हें देखना या व्यवहार करना उचित नहीं हैं , हाँ स्नेह और विशुद्ध प्रेम की बात कुछ और हैं ,
पर यहाँ यह साधना इनके भगिनी या बहिन स्वरुप में की जाने वाली हैं .
आपके जीवन की अनेको परिस्थितियां तो इनके वरदायक प्रभाव से स्वयं ही अनुकूल हो जाती हैं एक ऐसा ही प्रयोग आप सभी के लिए ,आपके समस्त कार्यों को सफलता दिलाने वाला और साथ ही साथ इनके वरदायक प्रभाव को आपके लिए संभव करने वाला आपके लिए ..
मंत्र ::
ॐ चंड योगिनी सर्वार्थ सिद्धिं देहि नमः
साधारण साधनात्मक नियम :
1. जप के लिए काली हकीक माला ले .
2. किसी भी शुक्र वार से यह साधना प्रारंभ की जा सकती हैं
3. दिशा आपकी उत्तर पूर्व रहेगी .
4. साधना के समय पहने जाए वाले वस्त्र और आसन लाल रंग के होंगे
5. रात्रि मे ११ बजे के बाद इस मंत्र का जप प्रारभ करे .
6. ११ माला मन्त्र जप १ हफ्ते ( कुल सात दिन ) किया जाता हैं .
तक करने से सभी प्रकार के कार्यों मे सफलता के लिए चंड योगिनी भगिनी स्वरुप मे अद्रश्य रहते हुए सहायता देती है.
योगिनी शब्द से हम में से अधिकाश भय ग्रस्त से हो जाते हैं , पर ये तो ,अनेको ने इनके बारे में जो भी सुना सुनाया लिख दिया ,, खुद का स्वानुभव कितनो का था , और जिनका स्वानुभव था , वह तो चुप साध के बैठे रहे वह जानते थे की इनके बारे में बोलना ठीक नही हैं क्योंकि एक तो लोग मानेगे नहीं दुसरे क्यों इस सर्वोच्च स्तर की साधना को क्यों सामने लाये ,
तंत्र जगत में चौसठ तंत्रों की बात होती हैं तो क्या चौसठ ही तंत्र हैं , नहीं नहीं यह तो शाक्त मार्ग का वर्गीकरण हैं अन्य सम्प्रदाय में अनेको और तंत्र हैं. डामर और यामल ग्रंथो को मिला कर साथ ही साथ यदि उप तंत्रों को भी मिला लिया जाये तो इतनी बड़ी संख्या बन जाती हैं जिसे देखकर ही हमारे मनीषियों पर गर्व होता हैं,पर इन्हें सुरक्षित रखने का प्रयत्न तो क रना ही चाहिए ही ..
पर इनको अपने जीवन में उतरना कभी ज्यादा लाभ दायक होगा , और स्वयम जान सकेंगे की इनकी वरदायक क्षमता के बारे में ,,
योगिनी इन तंत्रों की आधिस्थार्थी हैं इसका मतलब तो यह हुआ की इनके माध्यम से आप तंत्र जगत के अनबुझे रहस्य ही जान सकते हैं ,, आखिर कब तक आप मात्र वशीकरण ,और मोहन जैसी क्रियाओ में अटके रहेंगे, आखिर कभी न कभी आपको इस में आगे बढ़ना हैं ही तो क्यों नहीं अभी कदम बढ़ाएं.
पर यह चाहे प्रेमिका माता या बहिन जिस भी स्वरुप में सिद्ध की जाये या इनकी अनुकूलता प्राप्त कर ली जाये तो जीवन की कौन सी परिस्थितियां आपके लिए फिर कठिन हो सकती हैं .
प्रेमिका स्वरूप में हमेशा ध्यान रहा जाये, वासनात्मक दृष्टी से इन्हें देखना या व्यवहार करना उचित नहीं हैं , हाँ स्नेह और विशुद्ध प्रेम की बात कुछ और हैं ,
पर यहाँ यह साधना इनके भगिनी या बहिन स्वरुप में की जाने वाली हैं .
आपके जीवन की अनेको परिस्थितियां तो इनके वरदायक प्रभाव से स्वयं ही अनुकूल हो जाती हैं एक ऐसा ही प्रयोग आप सभी के लिए ,आपके समस्त कार्यों को सफलता दिलाने वाला और साथ ही साथ इनके वरदायक प्रभाव को आपके लिए संभव करने वाला आपके लिए ..
मंत्र ::
ॐ चंड योगिनी सर्वार्थ सिद्धिं देहि नमः
साधारण साधनात्मक नियम :
1. जप के लिए काली हकीक माला ले .
2. किसी भी शुक्र वार से यह साधना प्रारंभ की जा सकती हैं
3. दिशा आपकी उत्तर पूर्व रहेगी .
4. साधना के समय पहने जाए वाले वस्त्र और आसन लाल रंग के होंगे
5. रात्रि मे ११ बजे के बाद इस मंत्र का जप प्रारभ करे .
6. ११ माला मन्त्र जप १ हफ्ते ( कुल सात दिन ) किया जाता हैं .
तक करने से सभी प्रकार के कार्यों मे सफलता के लिए चंड योगिनी भगिनी स्वरुप मे अद्रश्य रहते हुए सहायता देती है.
जोड़ो के दर्द का इलाज
दोस्तों आज आप के साथ एक ऐसा फार्मूला शेयर करना चाहता हु जो हर एक परिवार के लिए जरुरी है। ज्यादातर इसके शिकार हमारे घर बुजुर्ग ही होते है और हम कुछ नही कर पाते। जी हा हम जोड़ो के दर्द, घुटनो के दर्द, सर्वाइकल, फ्रोज़न शोल्डर, स्लिप डिस्क, हाथ पैरो का दर्द, गठिया रोग, अर्थरिटिस, हाथ पैरो की अकड़न, कैल्सियम की कमी, संधिवात, आमवात और कमरदर्द ऐसे और भी नाम हम इस बीमारी को देते है। डॉक्टर के पास इसका इलाज भी करते है लेकिन कोई फायदा नहीं। जब तक दवाई लेते है तब फायदा होता है। दवाई बंद करते ही फिर से समस्या शुरू होती है।
निचे दिए गए औषधियां आपको पंसारी (जड़ी बुटी दुकान) में मिल जाएगी और न भी मिले तो निराश मत होना। आप हमारे पास से बानी बनायी दवाई भी आर्डर कर सकते है। हमें आप कभी भी हमारे मोबाइल नंबर 07838157738 पे कॉल कर सकते है। 4-5 महीने के निरंतर उपयोग से सभी दर्द से छुटकारा मिलेगा यह आजमाया हुवा फार्मूला है।
जड़ी बुटी के नाम : पुनर्नवा 30 ग्राम, शुद्ध गुग्गल 20 ग्राम, अश्वगंधा 30 ग्राम, सौंठ 30 ग्राम, सहजन के पत्ते सूखे 100 ग्राम, महायोगराज गुग्गल 30 ग्राम, चंद्रप्रभावती 30 ग्राम, देवदार 30 ग्राम, रास्ना 30 ग्राम, शंखभस्म 20 ग्राम, प्रवाल भस्म 20 ग्राम, गोखरू 30 ग्राम, सहजन के बीज 40 ग्राम इत्यादि।
बनाने की विधि :
सभी जड़ी बूटियों को पंसारी की दुकान से लेकर कूट पीसकर पाउडर बना लीजिये और रोज सुबह शाम भूके पेट गुनगुने पानी के साथ 1-1 चम्मच सेवन कीजिये।
परहेज: तेल में तले पदार्थ, आलू, फास्टफूड, जंकफूड, मैदे से बने पदार्थ न खाए और रोज सुबह बिना चप्पल के रोड पे चले।
नोट : तैयार की हुयी दवाई डाक से भेजने की सुविधा उपलब्ध है।
WATSaap no. 09971485458
निचे दिए गए औषधियां आपको पंसारी (जड़ी बुटी दुकान) में मिल जाएगी और न भी मिले तो निराश मत होना। आप हमारे पास से बानी बनायी दवाई भी आर्डर कर सकते है। हमें आप कभी भी हमारे मोबाइल नंबर 07838157738 पे कॉल कर सकते है। 4-5 महीने के निरंतर उपयोग से सभी दर्द से छुटकारा मिलेगा यह आजमाया हुवा फार्मूला है।
जड़ी बुटी के नाम : पुनर्नवा 30 ग्राम, शुद्ध गुग्गल 20 ग्राम, अश्वगंधा 30 ग्राम, सौंठ 30 ग्राम, सहजन के पत्ते सूखे 100 ग्राम, महायोगराज गुग्गल 30 ग्राम, चंद्रप्रभावती 30 ग्राम, देवदार 30 ग्राम, रास्ना 30 ग्राम, शंखभस्म 20 ग्राम, प्रवाल भस्म 20 ग्राम, गोखरू 30 ग्राम, सहजन के बीज 40 ग्राम इत्यादि।
बनाने की विधि :
सभी जड़ी बूटियों को पंसारी की दुकान से लेकर कूट पीसकर पाउडर बना लीजिये और रोज सुबह शाम भूके पेट गुनगुने पानी के साथ 1-1 चम्मच सेवन कीजिये।
परहेज: तेल में तले पदार्थ, आलू, फास्टफूड, जंकफूड, मैदे से बने पदार्थ न खाए और रोज सुबह बिना चप्पल के रोड पे चले।
नोट : तैयार की हुयी दवाई डाक से भेजने की सुविधा उपलब्ध है।
WATSaap no. 09971485458
शनिवार, 26 मार्च 2016
व्यापार वृद्धि प्रयोग
व्यापार वृद्धि प्रयोग
-: मंत्र :-
॥ धां धीं धूं धूर्जटे पत्नीं वां वीं वुं वागधीश्वरी
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देव्ये शां शीं शुं में शुभम कुरु ॥
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देव्ये शां शीं शुं में शुभम कुरु ॥
विधी :-
उपरोक्त मन्त्र सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में से हैं । कुछ शुद्ध गुलाब में से बनी अगरबत्ती लेकर उपरोक्त मन्त्र 108 बार जप कर अगरबत्ती अभिमंत्रित कर लीजिए । उसके बाद उन अगरबत्ती में से 5 अगरबत्ती लेकर प्रज्वलित करे । उसके बाद अपने पुरे व्यवसाय स्थल में एंटी क्लोक वाइस (घडी की उलटी दिशा में) घुमाले और एक जगह लगादे और फिर देखे आपका व्यापार कैसे नहीं चलता ।
यह प्रयोग पूर्ण प्रामाणिक एवं कई बार परिक्षीत हैं । माँ भगवती ने चाहा तो आप व्यापार को लेकर जल्द ही चिंता मुक्त हो जायेंगे ॥
गुरुवार, 24 मार्च 2016
आकस्मिक धन प्राप्ति केलिए ..(शेयर मार्केट या अन्य में लाभदायक )
आकस्मिक धन प्राप्ति केलिए ..(शेयर मार्केट या अन्य में लाभदायक )
धन प्राप्ति तो एक ऐसी क्रिया हैं जो सबके मन को भांति हैं जीवन मे धन के बिना किसी भी चीज का वैसा
अस्तित्व नही हैं जैसा की होना ही चाहिए .आधिन्काश आवश्यकताए तो केबल धन के माध्यम से कहीं
जायदा सुचारू रूप से पूरी हो जाती हैं ..
पर धन का आगमन भी तो एक अनिवार्य आवश्यकता हैं पर जो एक बंधी बंधाई धन राशि हर महीने मिलती
हैं वह तो एक निश्चित रूप से खर्च होती हैं.. पर कहीं से यदि कोई आकस्मिक धन यदि हमें मिल जाता हैं तो
वह बहुत ही प्रसन्नता दायक होता हैं .
पर यह आकस्मिक धन आये कहाँ से ..यह सबसे बड़ा प्रश्न अब हर किसी को तो गडा धन नही मिल सकता हैं
तो व्यक्ति नए नए माध्यम देखता हैं कि कैसे इसकी सम्भावनए बनायी जाए या हो पाए .
और सबसे ज्यादा हर व्यक्ति का रुझान हैं तो वह् हैं शेयर मार्केट की ओर ..रो ज जोभी सुचनाये आती हैं वह
होती हैं शेयर मार्केट की.. की उसने इतना फायदा लिया या वह पूरी तरह से बर्बाद हो गया ..फिर भी लोग
धनात्मक पक्ष कहीं जयादा देख्ते हैं .मतलब की फायदा होता ही हैं . अब जो लंबी अवधि के लिए अपना धन
लगाते हैं वह कहीं ज्यादा लाभदायक होते हैं और जो कम अवधि के लिए उनके लिए क्या कहा जाए यह बहुत
ही ज्यादा जोखिम भरा सौदा हैं .
पर एक साधना ऐसी भी हैं जिसके सफलता पूर्वक करने से व्यक्ति का जोखिम बहुत कम हो जाता हैं .. और
व्यक्ति को लाभ की सम्भावनाये कहीं अधिक होती हैं
जप संख्या –
११ हज़ार हैं दिन् निर्धारित नही हैं जब जप समाप्त हो जाये तो १०८ आहुति इस मन्त्र से कर दे. और आप
देखेंगे की स्वयं ही नए नए स्त्रोत से घनागम की अवश्यकताए पूरी होती जाएँगी.
वस्त्र पीले और आसन भी पीला रहेगा.
जप प्रातः काल कहीं जयादा उचित होगा .
दिशा पूर्व या उत्तर उचित रहेगी .
किसी भी माला से जप किया जा सकता हैं .
सदगुरुदेव पूजन , जप समर्पण और संकल्प कि क्यों कर रहे हैं यह साधना का एक हमेशा से अनिवार्य
अंग हैं ही
मंत्र :
आकाश चारिणी यक्षिणी सुंदरी आओ धन लाओ मेरी झोली भर जाओ |वर्षा करो धन की जैसे बादल वरसै
जल की |कुबेर की रानी यक्षिणी महरानी कसम तेरे पति की लाज रख जन की | सच्चे गुरु का चेला बांटू प्रसाद
मेवा करूँ तेरी जय सेवा जय यक्षिणी देवा ||
मन्त्र सिद्ध करने के बाद जो भी आप व्यापर या शेयर में अपन धन लगते हैं उसमे से जो आपको लगता हैं की
आपका अधिक प्रोफिट हैं उस धन के कुछ हिस्से को ...मतलब जो धन पाए ..उसमे अपने गुरु का और देवीके
नाम का कुछ भाग निकाल ले .... या उस धन के हिस्से को .... गुरु को दे कर यक्षिणी को मेवा आदि अर्पित
कर दे .
धन प्राप्ति तो एक ऐसी क्रिया हैं जो सबके मन को भांति हैं जीवन मे धन के बिना किसी भी चीज का वैसा
अस्तित्व नही हैं जैसा की होना ही चाहिए .आधिन्काश आवश्यकताए तो केबल धन के माध्यम से कहीं
जायदा सुचारू रूप से पूरी हो जाती हैं ..
पर धन का आगमन भी तो एक अनिवार्य आवश्यकता हैं पर जो एक बंधी बंधाई धन राशि हर महीने मिलती
हैं वह तो एक निश्चित रूप से खर्च होती हैं.. पर कहीं से यदि कोई आकस्मिक धन यदि हमें मिल जाता हैं तो
वह बहुत ही प्रसन्नता दायक होता हैं .
पर यह आकस्मिक धन आये कहाँ से ..यह सबसे बड़ा प्रश्न अब हर किसी को तो गडा धन नही मिल सकता हैं
तो व्यक्ति नए नए माध्यम देखता हैं कि कैसे इसकी सम्भावनए बनायी जाए या हो पाए .
और सबसे ज्यादा हर व्यक्ति का रुझान हैं तो वह् हैं शेयर मार्केट की ओर ..रो ज जोभी सुचनाये आती हैं वह
होती हैं शेयर मार्केट की.. की उसने इतना फायदा लिया या वह पूरी तरह से बर्बाद हो गया ..फिर भी लोग
धनात्मक पक्ष कहीं जयादा देख्ते हैं .मतलब की फायदा होता ही हैं . अब जो लंबी अवधि के लिए अपना धन
लगाते हैं वह कहीं ज्यादा लाभदायक होते हैं और जो कम अवधि के लिए उनके लिए क्या कहा जाए यह बहुत
ही ज्यादा जोखिम भरा सौदा हैं .
पर एक साधना ऐसी भी हैं जिसके सफलता पूर्वक करने से व्यक्ति का जोखिम बहुत कम हो जाता हैं .. और
व्यक्ति को लाभ की सम्भावनाये कहीं अधिक होती हैं
जप संख्या –
११ हज़ार हैं दिन् निर्धारित नही हैं जब जप समाप्त हो जाये तो १०८ आहुति इस मन्त्र से कर दे. और आप
देखेंगे की स्वयं ही नए नए स्त्रोत से घनागम की अवश्यकताए पूरी होती जाएँगी.
वस्त्र पीले और आसन भी पीला रहेगा.
जप प्रातः काल कहीं जयादा उचित होगा .
दिशा पूर्व या उत्तर उचित रहेगी .
किसी भी माला से जप किया जा सकता हैं .
सदगुरुदेव पूजन , जप समर्पण और संकल्प कि क्यों कर रहे हैं यह साधना का एक हमेशा से अनिवार्य
अंग हैं ही
मंत्र :
आकाश चारिणी यक्षिणी सुंदरी आओ धन लाओ मेरी झोली भर जाओ |वर्षा करो धन की जैसे बादल वरसै
जल की |कुबेर की रानी यक्षिणी महरानी कसम तेरे पति की लाज रख जन की | सच्चे गुरु का चेला बांटू प्रसाद
मेवा करूँ तेरी जय सेवा जय यक्षिणी देवा ||
मन्त्र सिद्ध करने के बाद जो भी आप व्यापर या शेयर में अपन धन लगते हैं उसमे से जो आपको लगता हैं की
आपका अधिक प्रोफिट हैं उस धन के कुछ हिस्से को ...मतलब जो धन पाए ..उसमे अपने गुरु का और देवीके
नाम का कुछ भाग निकाल ले .... या उस धन के हिस्से को .... गुरु को दे कर यक्षिणी को मेवा आदि अर्पित
कर दे .
दुर्गा शाबर मन्त्र
दुर्गा शाबर मन्त्र
“ॐ ह्रीं श्रीं चामुण्डा सिंह वाहिनीं बीस हस्ती भगवती, रत्न मण्डित
सोनन की माल। उत्तर पथ में आन बैठी, हाथ सिद्ध वाचा ऋद्धि-सिद्धि।
धन-धान्य देहि देहि, कुरू कुरू स्वाहा।”
उक्त मन्त्र का सवा लाख जप कर सिद्ध कर लें। फिर आवश्यकतानुसार
श्रद्धा से एक माला जप करने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं। लक्ष्मी प्राप्त
होती है। नौकरी में उन्नति और व्यवसाय में वृद्धि होती है।
रविवार, 17 जनवरी 2016
वशीकरण का सबसे आसान तरीका
यूं तो वशीकरण के कई तरीके प्रचलित हैं। जिनमें से कुछ तो सार्वजनिक हैं तथा कुछ अत्यंत गोपनीय किस्म के होते हैं। यंत्र, तंत्र और मंत्र के क्षेत्र में ही वशीकरण के कई अचूक और १०० प्रतिशत प्रमाणिक साधन या उपाय उपलब्ध हैं। किन्तु हर प्रयोग में किसी न किसी विशेष विधि एवं नियम-कायदों का पालन करना पड़ता ही है। इसीलिये, आज की इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में इंसान ऐसे तरीके या उपाय चाहता है जो कम से कम समय में सम्पन्न हो सकें। आजकल हर इंसान शार्टकट के जुगाड़ में लगा रहता है।
पारम्परिक और लम्बे रास्ते पर ना तो वह चलना चाहता है और ना ही उसके पास इतना समय होता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए ही यहां वशीकरण यानि किसी को अपने प्रभाव में लाने या अनुकूल बनाने का सरल अनुभवी एवं अचूक तरीका या उपाय दिया जा रहा है। यह अचूक और शर्तिया कारगर उपाय इस प्रकार है-- जिस भी व्यक्ति को आप अपने वश में करना चाहते हैं, उसका एक चित्र जो कि लगभग पुस्तक के आकार का तथा स्पष्ट छवि वाला हो, उपलब्ध करें। उस चित्र को इतनी ऊंचाई पर रखें कि जब आप पद्मासन में बैठे, तो उस चित्र की छवि आपकी आंखों के सामने ही रहे। ५ मिनिट तक प्राणायाम करने के पश्चात उस चित्र पर ध्यान एकाग्र करें। पूर्ण गहरे ध्यान में पंहुचकर उस चित्र वाले व्यक्तित्व से बार-बार अपने मन की बात कहें। कुछ समय के बाद अपने मन में यह गहरा विश्वास जगाएं कि आपके इस प्रयास का प्रभाव होने लगा है। यह प्रयोग सूर्योदय से पूर्व होना होता है।
यह पूरा प्रयोग असंख्यों बार अजमाने पर हर बार सफल रहता है। किन्तु इसकी सफलता पूरी तरह से व्यक्ति की एकाग्रता और अटूट विश्वास पर निर्भर रहती है। मात्र तीन से सात दिनों में इस प्रयोग के स्पष्ट प्रभाव दिखने लगते हैं।
संतान कमेश्वरी साधना मंत्र
संतान कमेश्वरी साधना मंत्र:–
********************
********************
यह अनुष्ठान वरदान स्वरूप माना गया है | इस मंत्र का प्रयोग जहां जनहिताय देना उपयुक्त समझता हु | “असन्तते: गृह शून्यम ” अर्थान्त जिस के कोई संतान नहीं उसका घर सुना है |
अतः वह लोग यह मंत्र अनुष्ठान विनियोग पूर्वक सवा लाख करे जा किसी पंडित से करवा ले सवा लाख जाप होने पर तर्पण ,मार्जन आदि विधि पूर्वक गाय घृत खीर चरु की आहुति देते हुये दशांश हवन जरूर कराए संततिलाभ सुनिहचित होगा | पाठ प्रारंभ से पूर्णता तक पति- पत्नी दोनों ब्रह्मचर्य
पूर्वक रहे |
पूर्वक रहे |
विधि –
विनियोग –
ॐ श्री सन्तानकमेश्वरी महामंत्रास्य मन्मथ ऋषि त्रिष्पुट छन्द: श्री सन्तान कामेश्वरी देवता ,क्लीं बीजं ह्रीं शक्ति: श्रीं कीलकम (अमुक्य:/ मम) सन्तान प्राप्तये वंश वृद्धये जपे विनियोग: |
नोट –
विनियोग में जहां ( अमुक्य:) लिखा है, अगर स्त्री विशेष के लिए अनुष्ठान किया जा रहा है, वहाँ उस स्त्री का नाम बोले | यदि पति –पत्नी स्वयं कर रहे है तो मम बोले |
मुख्य पूजन अगर पंडित से करवा रहे हैं तो वह स्वयं कर लेगा जिस में गुरु पूजन, गणेश पूजन, कलश पूजन, षोडश मातृका पूजन, प्रधान देवता पूजन आदि आते हैं | नहीं तो अपनी सुविदा अनुसार वेदी स्थापन कर स्वयं कर ले यह पूजन किसी भी पूजन की किताब से मिल जाते हैं |
नियम –
सफ़ेद वस्त्र पहने आसन कोई भी कंबल का चल जाएगा पूजन धूप, दीप, फल, फूल,नवेद आदि से करे |एक कलश के उपर एक नारियल लाल वस्त्र लपेट कर पाँच आम के पते पल्व आदि रख के उस उपर नारियल रख दे फिर कलश पूजन करे ,कलश हमेशा जौ आदि धन्य के उपर स्थापन करना चाहिए कलश पूजन से पहले गणेश पूजन और कलश पूजन के बाद नव ग्रह षोडश मातृका आदि का पूजन कर फिर सन्तान कामेश्वरी का पूजन करना चाहिए इस के बाद अपनी सुविदा अनुसार मंत्र जप मूँगे जा रुद्राक्ष की माला से करे जप जब पूरा हो जाए तो उसका दशांश हवन, हवन का दशांश मार्जन मंत्र के अंत में मर्ज्यामी सोआहं आत्म सिंचयमी शब्द लगा कर करना चाहिए फिर शब्द के अंत में तर्पयमी शब्द लगा के तर्पण करना चाहिए इस तरह यह प्रयोग अनुष्ठान पूर्ण हो जाता है और आपके जीवन की सन्तान की कमी दूर करने में सहायक होता है |
मंत्र –
|| ॐ क्लीं ऐं ह्रीं श्रीं नमो भगवती सन्तानकामेश्वरी –गर्भ निरोधं निरासया-निरासया सम्यक् शीघ्रं सन्तान मुत्पादयोत्पाद्य स्वाहा ||
तीव्र विद्वेषण प्रयॊग
यह प्रयॊग आप कृष्ण पक्ष शनिवार रात्रि से आरम्भ करे यह प्रयॊग ४० दिन का है किन्तु जादा समय नहीं लगता, स्नान कर
साफ़ धोती धारण कर अपने साधना कक्ष में दक्षिण- पश्चिम दिशा के मध्य मुह कर काले ऊनी आसन पर बैठ जाए बैठने का
तरीका स्वस्तिकासन में होना चाहिए ! अपने सामने गणेश -गुरु और अपने इष्ट को विराजमान कर सर्व प्रथम आचमन -
पवित्रीकरण आदि कर दाए हाथ में जल लेकर संकल्प करे - मैं अमुक नाम का साधक अमुक तिथी - गोत्र अमुक जातक का
अमुक व्यक्ति के मध्य द्वेष उत्पन्न करने के उद्देश से मैं विद्वेषण प्रयॊग कर रहा हु ! संकल्प करने के बाद गणेश -गुरु -इष्ट
का पूजन कर गुरु मंत्र कर ले .. और प्रयॊग में पूर्ण सफलता की प्रार्थना कर काली हकीक माला का संक्षिप्त पूजन कर उपांशु
विधि से मात्र ४ माला निम्न मंत्र की करे -
मंत्र :-
ॐ नमो नारदाय अमुकस्य अमुकेन सह विदवेषण कुरु कुरु स्वाहा ॥
इसमें ( अमुकस्य ) के स्थान पर एक व्यक्ति का नाम बोले और उसकी लडाई जिससे करानी हो ( अमुकेन ) के स्थान पर
उसका नाम बोले ! मंत्र का जप न तो बहुत शीघ्रता से करे और न ही बहुत धीमे -धीमे ! नित्य मंत्र जप के बाद अपने इष्ट की
आरती कर शमा याचना अवश्य करे ! ऐसा करने पर अवश्य ही उन दोनों के मध्य किसी बात को लेकर द्वेष उत्पन्न हो जाता
है और वह एक दूसरे का मुह तक देखना पसंद नहीं करते !
अंत में यही कहना चाहूगा की गलत उद्देश से किया तंत्र प्रयॊग साधक के लिए ही घातक हो जाता है अतः साधक अपने विवेक
का प्रयॊग करे !!
सदस्यता लें
संदेश (Atom)