दारिद्र नाशक प्रयोग
अमावस्या या पूर्णमासी पर राई, उडद, कोयला, लालमिर्च (खडी), सिताब
का पंचांग, लोहे का टुकडा,पीली सरसो, 2 कौडी, गोमती चक्र फूल व एक
लोटा जल लेकर आवास की चार परिक्रमा कर जल व सभी सामग्री पीपल
की जड मे छोड आवेँ । धनागमन के मार्ग खुल जावेँगेँ |
ये प्रयोग एक अघोरी द्वारा बताया परिक्षित प्रयोग है।
गुरुवार, 14 अप्रैल 2016
चमेली तेल मोहन प्रयोग
1. ॐ नमो मोहनी रानी। सिंहासन बैठी मोह रही दरबार। मेरी भक्ती,गुरु
की शक्ती। दुहाई गौरा पार्वती की। बजरंग बली की आन। नहीँ तो लोना
चमारी की आन लगे।
2. ॐ नमो मन मोहनी। मोहनी चला। गैर के मस्तक धरा। तेल का
दीपक जला। जल मोहूं , थल मोहूं। मोहूं सारा जगत।
मोहनी रानी जा शैया पै ला। न लाये तो गौरा पार्वती की दुहाई। लोना
चमारिन की दुहाई। नहीँ तो वीर हनुमान की आन।
प्रयोग विधी:-
1. चमेली के तेल पर अंगुली डुबो कर 7 बार मंत्र पढेँ। फिर तिलक की
तरह माथे पर लगा लेँ, जहाँ जाऐ सभी मोहित होँगेँ!
2. तेल को मंत्र2 से अभिमंत्रित कर साध्या पर छिडक देँ तो वह वशिभूत
हो जाएगी।
तंत्र प्रयोग करेँ,तो थोडा सोच लेँ की आप का प्रयोग सहीँ ही हो।
श्री दुर्गा सूक्त
श्री दुर्गा सूक्त
(किसी भी प्रकार की सांसारिक समस्या मे सूक्त का108बार जाप उत्तम
होता है)
ॐ जातवेदसे सुनवाम सोममरातीवतो निदहाति बेद।
स नः पर्षदति दुर्गाणी विश्व नावेद सिन्धुं दुरितात्यग्नि।
तामग्निवर्णाँ तपसा ज्वलन्तिँ वैरोचनीँ कर्मफलेषु जुष्टाम।
दुर्गा देवी शरणामहं प्रपद्ये सुतरसि रसते नमः।
अग्नेत्वं पारपा नव्यौ अस्मान्ष्तस्तिभिरितिदुर्या णि विश्वा।
पूश्चप्रथ्वी बहुला न इर्वो भवा ताकाय तनताय शंयो।
विश्वानि नो दुर्गहा जातवेदं सिन्धुं न नावादुरितातिपर्षि।
अग्ने अत्रिवन्मनसा शुभानोऽस्माकं बोध्यवितां तनूनाम्।
प्रतनाजितं सहमानमुग्रमग्निं हवेम् परमात्सधस्मात्।
(किसी भी प्रकार की सांसारिक समस्या मे सूक्त का108बार जाप उत्तम
होता है)
ॐ जातवेदसे सुनवाम सोममरातीवतो निदहाति बेद।
स नः पर्षदति दुर्गाणी विश्व नावेद सिन्धुं दुरितात्यग्नि।
तामग्निवर्णाँ तपसा ज्वलन्तिँ वैरोचनीँ कर्मफलेषु जुष्टाम।
दुर्गा देवी शरणामहं प्रपद्ये सुतरसि रसते नमः।
अग्नेत्वं पारपा नव्यौ अस्मान्ष्तस्तिभिरितिदुर्या
पूश्चप्रथ्वी बहुला न इर्वो भवा ताकाय तनताय शंयो।
विश्वानि नो दुर्गहा जातवेदं सिन्धुं न नावादुरितातिपर्षि।
अग्ने अत्रिवन्मनसा शुभानोऽस्माकं बोध्यवितां तनूनाम्।
प्रतनाजितं सहमानमुग्रमग्निं हवेम् परमात्सधस्मात्।
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