रविवार, 15 मई 2016

श्री राम दुर्गम

श्री राम दुर्गम 

सभी प्रकार की किसी भी लौकिक अलौकिक बाधा को दूर करने में श्री राम दुर्गम का अचूक प्रभाव है सभी प्रकार की कामनाओ की भी पूर्ति करता है शत्रुओ से रक्षा होती है नित्य कम  से कम २१ पाठ करे । 

विनियोगः ॐ अस्य श्री राम दुर्गस्य् विश्वामित्र ऋषिः अनुष्टुप छन्दः श्री रामो देवता श्री राम प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः । 

श्री रामो रक्षतु प्राच्यां रक्षेदयाम्यां च लक्ष्मणः । प्रतीच्यां भरतो रक्षेद उदीच्यां शत्रु मर्दनः ॥१ ॥  
ईशान्यां जानकी रक्षेद आग्नेयाम रविनन्दनः । विभीषणस्तु नैऋत्यां वायव्यां वायुनन्दनः ॥२ ॥  
ऊर्ध्वं रक्षेन्महाविष्णुर्मध्यं रक्षेन्नृकेशरी । अधस्तु वामनः पातु सर्वतः पातु केशवः ॥ ३ ॥ 
सर्वतः कपिसेनाद्यैः सदा मर्कटनायकः । चतुर्द्वारं सदा रक्षेदच्चतुर्भिः कपिपुंगवैः ॥ ४॥ 
श्री रामाख्यं महादुर्गं विश्वामित्रकृतं शुभम । यः स्मरेद भय काले तु सर्व शत्रु विनाशनम ॥ ५ ॥ 
रामदुर्गं पठेद भक्त्या सर्वोपद्रवनाशनं । सर्वसम्पदप्रदम् नृणां च गच्छेद वैष्णव पदं ॥ ६ ॥ 

इति  श्री रामदुर्गं सम्पूर्णम ॥ 


 

मंगलवार, 3 मई 2016

गुरु कौन है

आजकल अज्ञानता की लहर सी फैली हुई है जिसको देखो ज्ञान बघारने लगता है चाहे उसे कोई अनुभव हुआ हो अथवा न हुआ हो । बहुत से लोग किताबें पढ़कर ज्ञान बाँट रहे है आजकल सभी बंधू एक बहुत ही बड़े अज्ञानता में रह रहे है की गुरु केवल मार्ग दर्शक का काम करता है अर्थात वो केवल रास्ता दिखलाता है । या तो उन लोगो की गुरु से भेट नहीं हुई है अथवा वो गुरु का अर्थ नहीं जानते । गुरु शब्द से गुरुत्व का आभास होता है. अर्थात जहां गुरुत्व है वही तो गुरु है गुरुत्व का मतलब आकर्षण है गुरु अपनी ओर आकर्षित करता है क्योंकि उसमे गुरुत्व होता है । गुरु सर्व समर्थ होता है वह कर्तुं अकर्तुम और अन्यथा कर्त्तुम में समर्थ होता है वह अपनी कृपा मात्र से शिष्य के हृदय की मलिनता दूर कर देता है । जिसमे यह समर्थ्य हो वाही गुरु है अन्य कोई भी गुरु पद का अधिकारी नहीं है । गुरु सभी कुछ कर सकता है । 
ऐसे गुरु के लिए ही कहा गया है :- 


गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर:।' गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:।।

अतः पूर्ण ज्ञानी चेतन्य रूप पुरुष के लिए गुरु शब्द प्रयुक्त होता है, 

उसकी ही स्तुति की जाती है। नानक देव, त्रेलंग स्वामी, तोतापुरी, 

रामकृष्ण परमहंस, महर्षि रमण, स्वामी समर्थ, साईं बाबा, महावातर 

बाबा, लाहडी महाशय, हैडाखान बाबा, सोमबार गिरी महाराज, स्वामी 

शिवानन्द, आनंदमई माँ, स्वामी बिमलानंदजी, मेहर बाबा आदि सच्चे 

गुरु रहे हैं।

अतः यह अज्ञान की केवल रास्ता बताने वाला गुरु होता है केवल रास्ता 

बताने पर भी यदि शिष्य न चल पाए तो, नहीं   गुरु शिष्य को उस रास्ते 

पर चलने की सामर्थ्य भी देता है । गुरु सर्व समर्थ्यवान  है । अतः ईश्वर   
से प्रार्थना  करे की वो आपको ऐसा गुरु  प्रदान करे । 

मेरे गुरु ऐसे ही सामर्थ्यवान दादा जी महाराज गोसलपुर वाले (श्री श्री 

१००८  परमहंस शिवदत्त जी महाराज ) हैं  जो अब समाधिस्थ है पर 

शिष्यों के लिए प्रकट है |

नोट :- गोसलपुर मध्यप्रदेश जबलपुर के पास है जो कटनी और 

जबलपुर के बीच में पड़ता है वहां गुरु जी की समाधी है 



सोमवार, 25 अप्रैल 2016

विवाह के लिए त्रैलोक्य मोहन गणेश मंत्र का जप करें

 विवाह के लिए त्रैलोक्य मोहन गणेश मंत्र का जप करें |

साधना प्रारंभ करने का ठीक समय शुक्ल पक्ष की कोई भी चतुर्थी है। संकल्प लेकर चार लाख जप कर दशांस हवन, तर्पण, मार्जन ब्राह्मण भोजन करवाएं। 
मं‍त्र - 
वक्रतुण्डैकदंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते
वर वरद सर्वजनं में वशमानय् स्वाहा।।


विनियोग- 
ॐ अस्य श्री त्रैलोक्य मोहन गणेश मंत्रस्य, श्री गणक ऋषि:, गायत्री छन्द:, श्री त्रैलोक्य मोहन करो गणेश देवता ममाभीष्ट सिद्धयर्थे (कार्य बोलें) जपे विनियोग:।


जल छोड़ दें तथा न्यास करें निर्दिष्ट अंगों को अंगुलियों से छुएं।

करन्यास : 

ॐ वक्रतुण्डैकदंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं- अंगुष्ठाभ्यां नम:
ॐ गं गणपते तर्जनीभ्यां नम:
ॐ वरवरद मध्यमाभ्यां नम:
ॐ सर्वजनम् अनामिकाभ्यां नम:
ॐ मे वशमानय कनिष्ठिकाभ्यां नम:
ॐ स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:


अंगन्यास :

ॐ वक्रतुण्डैकदंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं हृदयाय नम:
ॐ गं गणपते शिरसे स्वाहा
ॐ वर वरद शिखायै वौषट्
ॐ सर्वजनम् कवचाय हुम्
ॐ मे वशमानय नैत्रत्रयाय वौषट्


-ध्यान-
रक्तवर्ण, त्रिनेत्र, हाथों में गदा, बीजापुर, धनुष, शूल, चक्र, कमल, उत्पल, पाश, धान तथा दंत धारण किए हुए दश भुजा वाले अंक में आभूषणों से युक्त देवी को लिए हुए, संसार को मोहित करने वाले गणेशजी का ध्यान करता हूं।

चार लाख जप, दशांस हवन, तर्पण, मार्जन ब्राह्मण भोजन करवाएं। कमल पुष्पों से हवन से राजा को, कुमुद पुष्पों से हवन से मंत्री को, पीपल से ब्राह्मण को, उदुम्बुर से क्षत्रिय को, मुनक्का से स्वर्णधन, गौदुग्ध से गौधन, दही से ऋद्धि तथा घृत अन्न-धन की वृद्धि होती है। 


इन्हें पूजने से विघ्नों का नाश होकर अभीष्ट फल प्राप्ति होती है तथा मनोवांछित वर की प्राप्ति होती है।