सोमवार, 17 सितंबर 2018

आत्म ज्ञान

आत्म ज्ञान 


---तुम्हारे पास कौन - सा प्रकाश है ?

---दिन में सूर्य का , एवं रात्रि में दीपक आदि का । 

---यदि ऐसा है तो बताओ कि सूर्य एवं दीपक को देखने के लिये तुम्हारे पास कौन - सा प्रकाश है ?

--- चक्षु ।

--- पर जब वह भी बन्द हो जाये तो ?

--- बुद्धि ।

--- और बुद्धि को देखने के लिये क्या है ?

--- वहाँ 'मैं' हूँ ।

--- अतः तुम परम प्रकाश स्वरूप हो ।

--- हे प्रभो , वही 'मैं' हूँ ।


( भगवान श्री आद्य शंकराचार्य )

गुरुवार, 13 सितंबर 2018

गणपति अथर्वशीर्ष

गणेश चतुर्थी को करे आप गणपति जी का अथर्वशीर्ष का पाठ जिससे आप की कुंडली मे अनिष्ट ग्रह बुध जो कि धन सुख समृद्धि बुद्धि वाणी जनपद में मान सम्मान, व केतु ग्रह जो मानसिक जीवन की समस्या ,द्रव्यों के नाश रोग और ग्रहस्थ में दुखी इनके प्रभाव को शुभ करना गणपति जी के इस पाठ के स्मरण से ही मानव कल्याण हो जाता हैं । बुध और केतु का शुभ फल तथा जीवन मे श्री गणेश के जैसे सभी कार्य बहुत शीघ्रता से पूर्ण होना इनकी कृपा से प्राप्त होता हैं । तो आप सभी जिन्हें धन, परिवार, संतान, शिक्षा, पैसे में अड़चन , सुखों में कमी हैं तो आप गणेश जी के इस पाठ को उनके सम्मुख करे और उन्हें लड्ड़ू का भोग लगाये बप्पा जीवन को खुशियों से भर देंगे ।। गणपति बप्पा मोरिया 

गणपति अथर्वशीर्ष

ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि
त्वमेव केवलं कर्ताऽ सि
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि
त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।।
ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।।
अव त्व मां। अव वक्तारं।
अव श्रोतारं। अव दातारं।
अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं।
अव पश्चातात। अव पुरस्तात।
अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्।
अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।।
सर्वतो माँ पाहि-पाहि समंतात्।।3।।
त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:।
त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:।
त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽषि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्माषि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽषि।।4।।
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:।
त्वं चत्वारिकाकूपदानि।।5।।
त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं
रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं
ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।।
गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।
अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं।
तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं।
गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं।
नाद: संधानं। सँ हितासंधि:
सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि:
निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता।
ॐ गं गणपतये नम:।।7।।
एकदंताय विद्‍महे।
वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।।
एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्।
रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्।
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।
रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।।
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।
आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृ‍ते पुरुषात्परम्।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।।
नमो व्रातपतये। नमो गणपतये।
नम: प्रमथपतये।
नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय।
विघ्ननाशिने शिवसुताय।
श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।।
एतदथर्वशीर्ष योऽधीते।
स ब्रह्मभूयाय कल्पते।
स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते।
स सर्वत: सुखमेधते।
स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते।।11।।
सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।
सायंप्रात: प्रयुंजानोऽपापो भवति।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।
धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति।।12।।
इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्।
यो यदि मोहाद्‍दास्यति स पापीयान् भवति।
सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्।13।।
अनेन गणपतिमभिषिंचति
स वाग्मी भवति
चतुर्थ्यामनश्र्नन जपति
स विद्यावान भवति।
इत्यथर्वणवाक्यं।
ब्रह्माद्यावरणं विद्यात्
न बिभेति कदाचनेति।।14।।
यो दूर्वांकुरैंर्यजति
स वैश्रवणोपमो भवति।
यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति
स मेधावान भवति।
यो मोदकसहस्रेण यजति
स वाञ्छित फलमवाप्रोति।
य: साज्यसमिद्भिर्यजति
स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।15।।
अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा
सूर्यवर्चस्वी भवति।
सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ
वा जप्त्वा सिद्धमंत्रों भवति।
महाविघ्नात्प्रमुच्यते।
महादोषात्प्रमुच्यते।
महापापात् प्रमुच्यते।
स सर्वविद्भवति से सर्वविद्भवति।
य एवं वेद इत्युपनिषद्‍।।16।।

शनिवार, 8 सितंबर 2018

शाबर धूमावती साधना

दस महाविद्याओं में माँधूमावती का स्थान सातवां हैऔर माँ के इस स्वरुप को बहुतही उग्र माना जाता है ! माँ कायह स्वरुप अलक्ष्मी स्वरूपाकहलाता है किन्तु माँ अलक्ष्मीहोते हुए भी लक्ष्मी है ! एकमान्यता के अनुसार जब दक्षप्रजापति ने यज्ञ किया तो उसयज्ञ में शिव जी को आमंत्रितनहीं किया ! माँ सती ने इसे शिवजी का अपमान समझा औरअपने शरीर को अग्नि में जलाकर स्वाहा कर लिया और उस अग्नि से जो धुआं उठा उसने माँ धूमावती कारूप ले लिया ! इसी प्रकार माँ धूमावती की उत्पत्ति की अनेकों कथाएँप्रचलित है जिनमे से कुछ पौराणिक है और कुछ लोक मान्यताओं परआधारित है ! नाथ सम्प्रदाय के प्रसिद्ध योगी सिद्ध चर्पटनाथ जी माँधूमावती के उपासक थे ! उन्होंने माँ धूमावती पर अनेकों ग्रन्थ रचे औरअनेकों शाबर मन्त्रों की रचना भी की ! यहाँ मैं माँ धूमावती का एक प्रचलितशाबर मंत्र दे रहा हूँ जो बहुत ही शीघ्र प्रभाव देता है  ! कोर्ट कचहरी आदि केपचड़े में फस जाने पर अथवा शत्रुओं से परेशान होने पर इस मंत्र का प्रयोगकरे ! माँ धूमावती की उपासना से व्यक्ति अजय हो जाता है और उसके शत्रुउसे मूक होकर देखते रह जाते है !

||   मंत्र  ||
 पाताल निरंजन निराकार 
आकाश मंडल धुन्धुकार 
आकाश दिशा से कौन आई 
कौन रथ कौन असवार 
थरै धरत्री थरै आकाश 
विधवा रूप लम्बे हाथ 
लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव 
डमरू बाजे भद्रकाली 
क्लेश कलह कालरात्रि 
डंका डंकिनी काल किट किटा हास्य करी 
जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते 
जाया जीया आकाश तेरा होये
धुमावंतीपुरी में वास
ना होती देवी ना देव
तहाँ ना होती पूजा ना पाती
तहाँ ना होती जात न जाती
तब आये श्री शम्भु यती गुरु गोरक्षनाथ
आप भई अतीत
ॐ धूं: धूं: धूमावती फट स्वाहा !

||  विधि  ||
41 दिन तक इस मंत्र की रोज रात को एक माला जाप करे ! तेल का दीपक जलाये और माँ को हलवा अर्पित करे ! इस मंत्र को भूल कर भी घर में ना जपे, जप केवल घर से बाहर करे ! मंत्र सिद्ध हो जायेगा !

||  प्रयोग विधि १ ||
जब कोई शत्रु परेशान करे तो इस मंत्र का उजाड़ स्थान में 11 दिन इसी विधि से जप करे और प्रतिदिन जप के अंत में माता से प्रार्थना करे – “ हे माँ ! मेरे अमुक शत्रु के घर में निवास करो ! “

ऐसा करने से शत्रु के घर में बात बात पर कलह होना शुरू हो जाएगी और वह शत्रु उस कलह से परेशान होकर घर छोड़कर बहुत दुर चला जायेगा !

||  प्रयोग विधि २ ||
शमशान में उगे हुए किसी आक के पेड़ के साबुत हरे पत्ते पर उसी आक के दूध से शत्रु का नाम लिखे और किसी दुसरे शमशान में बबूल का पेड़ ढूंढे और उसका एक कांटा तोड़ लायें ! फिर इस मंत्र को 108 बार बोल कर शत्रु के नाम पर चुभो दे ! ऐसा 5 दिन तक करे , आपका शत्रु तेज ज्वर से पीड़ित हो जायेगा और दो महीने तक इसी प्रकार दुखी रहेगा !

नोट - इस मंत्र के और भी घातक प्रयोग है  जिनसे शत्रु के परिवार का नाश तक हो जाये ! किसी भी प्रकार के दुरूपयोग के डर से मैं यहाँ नहीं लिखना चाहता ! इस मंत्र का दुरूपयोग करने वाला स्वयं ही पाप का भागी होगा !