दस महाविद्याओं में माँधूमावती का स्थान सातवां हैऔर माँ के इस स्वरुप को बहुतही उग्र माना जाता है ! माँ कायह स्वरुप अलक्ष्मी स्वरूपाकहलाता है किन्तु माँ अलक्ष्मीहोते हुए भी लक्ष्मी है ! एकमान्यता के अनुसार जब दक्षप्रजापति ने यज्ञ किया तो उसयज्ञ में शिव जी को आमंत्रितनहीं किया ! माँ सती ने इसे शिवजी का अपमान समझा औरअपने शरीर को अग्नि में जलाकर स्वाहा कर लिया और उस अग्नि से जो धुआं उठा उसने माँ धूमावती कारूप ले लिया ! इसी प्रकार माँ धूमावती की उत्पत्ति की अनेकों कथाएँप्रचलित है जिनमे से कुछ पौराणिक है और कुछ लोक मान्यताओं परआधारित है ! नाथ सम्प्रदाय के प्रसिद्ध योगी सिद्ध चर्पटनाथ जी माँधूमावती के उपासक थे ! उन्होंने माँ धूमावती पर अनेकों ग्रन्थ रचे औरअनेकों शाबर मन्त्रों की रचना भी की ! यहाँ मैं माँ धूमावती का एक प्रचलितशाबर मंत्र दे रहा हूँ जो बहुत ही शीघ्र प्रभाव देता है ! कोर्ट कचहरी आदि केपचड़े में फस जाने पर अथवा शत्रुओं से परेशान होने पर इस मंत्र का प्रयोगकरे ! माँ धूमावती की उपासना से व्यक्ति अजय हो जाता है और उसके शत्रुउसे मूक होकर देखते रह जाते है !
|| मंत्र ||
ॐ पाताल निरंजन निराकार
आकाश मंडल धुन्धुकार
आकाश दिशा से कौन आई
कौन रथ कौन असवार
थरै धरत्री थरै आकाश
विधवा रूप लम्बे हाथ
लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव
डमरू बाजे भद्रकाली
क्लेश कलह कालरात्रि
डंका डंकिनी काल किट किटा हास्य करी
जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते
जाया जीया आकाश तेरा होये
धुमावंतीपुरी में वास
ना होती देवी ना देव
तहाँ ना होती पूजा ना पाती
तहाँ ना होती जात न जाती
तब आये श्री शम्भु यती गुरु गोरक्षनाथ
आप भई अतीत
ॐ धूं: धूं: धूमावती फट स्वाहा !
|| विधि ||
41 दिन तक इस मंत्र की रोज रात को एक माला जाप करे ! तेल का दीपक जलाये और माँ को हलवा अर्पित करे ! इस मंत्र को भूल कर भी घर में ना जपे, जप केवल घर से बाहर करे ! मंत्र सिद्ध हो जायेगा !
|| प्रयोग विधि १ ||
जब कोई शत्रु परेशान करे तो इस मंत्र का उजाड़ स्थान में 11 दिन इसी विधि से जप करे और प्रतिदिन जप के अंत में माता से प्रार्थना करे – “ हे माँ ! मेरे अमुक शत्रु के घर में निवास करो ! “
ऐसा करने से शत्रु के घर में बात बात पर कलह होना शुरू हो जाएगी और वह शत्रु उस कलह से परेशान होकर घर छोड़कर बहुत दुर चला जायेगा !
|| प्रयोग विधि २ ||
शमशान में उगे हुए किसी आक के पेड़ के साबुत हरे पत्ते पर उसी आक के दूध से शत्रु का नाम लिखे और किसी दुसरे शमशान में बबूल का पेड़ ढूंढे और उसका एक कांटा तोड़ लायें ! फिर इस मंत्र को 108 बार बोल कर शत्रु के नाम पर चुभो दे ! ऐसा 5 दिन तक करे , आपका शत्रु तेज ज्वर से पीड़ित हो जायेगा और दो महीने तक इसी प्रकार दुखी रहेगा !
नोट - इस मंत्र के और भी घातक प्रयोग है जिनसे शत्रु के परिवार का नाश तक हो जाये ! किसी भी प्रकार के दुरूपयोग के डर से मैं यहाँ नहीं लिखना चाहता ! इस मंत्र का दुरूपयोग करने वाला स्वयं ही पाप का भागी होगा !
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