गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

लक्ष्मी प्राप्ति के अचूक टोटके


इन लक्ष्मी प्राप्ति के इन अचूक टोटकों को अपनाकर आप भी मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

- हर पूर्णिमा को सुबह पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं।

- तुलसी के पौधे पर गुरुवार को पानी में थोड़ा दूध डालकर चढ़ाएं।

- यदि आपको बरगद के पेड़ के नीचे कोई छोटा पौधा उगा हुआ नजर आ जाए तो उसे उखाड़कर अपने घर में लगा दें।

- गूलर की जड़ को कपड़े में बांधकर उसे ताबीज में डालकर बाजु पर बांधे ।

- पीपल के वृक्ष की छाया में खड़े होकर लोहे के पात्र में पानी लेकर उसमें दूध मिलाकर उसे पीपल की जड़ में डालने से घर में सुख- समृद्धि बनी रहती है और घर में लक्ष्मी का स्थाई निवास होता है।

बवासीर निवारक टोटका

बवासीर निवारक टोटका

|| उमति उमति चल चल स्वाहा ||

इस मंत्र को २१ बार पढ़कर लाल धागे में एक गांठ बांधे . इस प्रकार तिन गांठ बंधें. बाएं पैर के अंगूठे में बंधें बवासीर में लाभ होगा.

पति वशीकरण मंत्र

पति वशीकरण मंत्र यदि पति किसी दूसरी स्त्री के चक्कर में पड गया हो तो पत्नी स्वयं यह प्रयोग करे तो लाभ होगा .
मन्त्र :-
|| ॐ नमो महायक्षिण्ये मम पतिम में वश्यं कुरु कुरु स्वाहा ||

नवरात्रि में रोज रात्रि काल में इस मन्त्र की २१ माला जाप करें. यदि रात्रि में न कर सकें तो सुविधानुसार कभी भी कर लें.
नवमी के दिन २१ नारियल अपने पति के सर से उतारा कर के देवी मंदिर में चढ़ा दें.
यदि ऐसा संभव न हो तो उसके फोटो के ऊपर उतारा कर लें.
यदि वास्तव में ऐसा कुछ होगा तो उसका निराकरण हो जायेगा .
फिर नित्य माथे पर बिंदी लगते समय इस मंत्र का उच्चारण करते हुए बिंदी लगायें.
इससे इसका प्रभाव बना रहेगा. यह मन्त्र केवल अपने पति [ जिसके साथ आपकी शादी हुई है ] के लिए काम करेगा यदि गलत उपयोग करेंगे तो उल्टा प्रभाव दिखायेगा.

बच्चों की नजर उतारने का मंत्र

बच्चों की नजर उतारने का मंत्र
बच्चों को नजर लगने पर निम्न लिखित मंत्र पढ़कर मोरपंख या लोहे की सलाई से झाड़ दें.
यह सिद्ध मंत्र है इसे सिद्ध किये बिना भी प्रयोग कर सकते हैं.

||ॐ नमो आदेश गुरु का गिरहबाज नटनी का जाया , चलती बेर कबूतर खाया , पीवे दारू खाय जो मांस रोग दोष को लावे फांस , कहाँ कहाँ से लावेगा , गुद गुद में सु लावेगा , बोटी बोटी में से लावेगा ,चामचाम में से लावेगा, मार मार बंदी करकर लावेगा , न लावेगा तो अपनी माता की सेज पर पग रखेगा, मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र इश्वरो वाचा ||

रविवार, 8 दिसंबर 2013

विद्या-प्राप्ति-प्रयोग




विद्या-प्राप्ति-प्रयोग

 १॰ "ॐ ह्रीं क्लीं वद-वद वाग्वादिनी-भगवती-सरस्वति, मम जिह्वाग्रे वासं कुरु कुरु स्वाहा।"

२॰ "ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वाग्वादिनी-देवी सरस्वति, मम जिह्वाग्रे वासं कुरु कुरु स्वाहा।"

विधिः- प्रति-दिन प्रातःकाल उक्त मन्त्र का १०८ बार जप करे। बालकों को छोटी उम्र से इस मन्त्र का जप कराए। परिक्षा, नौकरी में तो इस मन्त्र के जप के द्वारा सफलता प्राप्त होती ही है, साथ ही नेतृत्व के गुण भी उत्पन्न होते हैं और समाज में प्रतिष्ठा एवं यश की प्राप्ति होती है। मन्त्र जप के समय श्वेत-वस्त्र, माला व आसन का प्रयोग करना चाहिए। मन्त्र के जप के साथ-साथ 'सरस्वती-चूर्ण' का भी प्रयोग करे।

 'सरस्वती-चुर्ण' के लिए आठ जड़ी-बूटियाँ- १॰ गुडची, २॰ अपामार्ग, ३॰ वायविडंग, ४॰ शंख-पुष्पी, ५॰ बच, ६॰ सोंठ, ७॰ शतावरी और ८॰ ब्राह्मी को पंसारी के यहाँ से समान भाग में लेकर चूर्ण बनाएँ। चूर्ण बनाते समय उक्त मन्त्र का स्मरण करता रहे। फिर इस अभिमन्त्रित चूर्ण का नित्य सेवन करे। चूर्ण के साथ समान मात्रा में गो-घृत एवं मिश्री भी लेवे। 'चूर्ण-सेवन' के बाद यथा-शक्ति गो-दुग्ध का पान करे। छः मास तक ऐसा करने से बालकों की बुद्धि निश्चित रुप में तीव्र होती है।

ब्रह्म ज्ञान

++++::: ब्रह्म ज्ञान :::++++

दूर निकट कुछ है नहीं, ऊँचा नीचा नाहिं ।

अन्तर बाहर एक है, 'अमृत' सबके माहिं ॥

जाग्रत स्वप्न न सुषुप्ति, तुरिया साक्षी रुप ।

'अमृत' उनमनी भाव है, अट पट भेद अनूप ॥

स्वप्न जगत् व्यवहार है, आत्म सुषुप्ति जान ।

तुरिया ब्रह्म का रुप है, 'अमृत' कर पहचान ॥

शब्द, स्पर्श अरु रुप रस, गन्ध तत्व के रुप ।

सुक्ष्म जान तन मात्रा, 'अमृत' भेद अनूप ॥

नेत्र नाक जिह्वा करण, चर्म इन्द्रि है ज्ञान ।

हस्त पाद वाणी गुदा, लिंग कर्म लो जान ॥

स्थूल सूक्ष्म कारण, महा कारण आतम गेह।

केवल ब्रह्म स्वरुप है, 'अमृत' खोजो देह ॥

सोमवार, 25 नवंबर 2013

शत्रु नाशक प्रमाणिक प्रयोग

शरभेश्वर
संक्षिप्त अनुष्ठान विधि-
 स्वस्तिवाचन करके गुरु एवं गणपति पूजन करें। संकल्प करके श्री भैरव की पूजा करें- दक्षिण दिशा में मुख रखें। काले कम्बल का आसन प्रयुक्त करें। दो दीप रखें-एक घृत का देवता के दाँये और दूसरा सरसों के तेल का अथवा करंज का देवता के बाँये रखें। आकाश भैरव शरभ का चित्र मिल जाए तो सर्वोत्तम है, अन्यथा एक रक्तवर्ण वस्त्र पर गेहूँ की ढेरी लगाएँ, उस पर जल से पूर्ण ताम्र कलश रखें। उसपर श्रीफल रखकर शरभ भैरव का आवाहन, ध्यान एवं षोडशोपचार पूजन करे। नैवेद्य लगाएं और जप पाठ शुरु करें।

इसके दो प्रकार के पाठ हैं-

१॰ स्तोत्र पाठ, १०८ बार मन्त्र जप एवं पुनः स्तोत्र पाठ।

२॰ १०८ बार मन्त्र जप, ७ बार स्तोत्र पाठ और पुनः १०८ बार मन्त्र जप। फल-श्रुति के अनुसार आदित्यवार से मंगलवार तक रात्रि में दस बार पढ़ने से शत्रु-बाधा दूर हो जाती है।

हवन, तर्पण, मार्जन एवं ब्रह्मभोज दशांश क्रम से करें, संभव न हो तो इसके स्थान पर पाठ एवं जप अधिक संख्या में करें।

निग्रह दारुण सप्तक स्तोत्र या शरभेश्वर स्तोत्र

विनियोग- ॐ अस्य दारुण-सप्तक-महामन्त्रस्य श्री सदाशिव ऋषिः वृहती छन्सः श्री शरभो देवता ममाभीष्ट-सिद्धये जपे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यास- श्रीसदाशिव ऋषये नमः शिरसि। वृहती छन्दसे नमः मुखे। श्रीशरभ-देवतायै नमः हृदि। ममाभिष्ट-सिद्धये जपे विनियोगाय नमः अञ्जलौ।

मूल स्तोत्र

कापोद्रेकाति विर्यं निखिल परिकरं तार-हार-प्रदीप्तम्।

ज्वाला-मालाग्निदश्च स्मरतनुसकलं त्वामहं शालुवेशं।।

याचे त्वत्पाद्-पद्म-प्रणिहित-मनसं द्वेष्टि मां यः क्रियाभि।

तस्य प्राणावसानं कुरु शिव नियतं शूल-भिन्नस्य तूर्णम्।।१



शम्भो त्वद्धस्त-कुन्त-क्षत-रिपु-हृदयान्निस्स्त्रवल्लोहियौघम्।

पीत्वा पीत्वाऽति-दर्पं दिशि सततं त्वद्-गणाश्चण्ड-मुख्याः।।

गर्ज्जन्ति क्षिप्र-वेगा निखिल-भय-हराः भीकराः खेल-लोलाः।

सन्त्रस्त-ब्रह्म-देवा शरभ खग-पते त्राहि नः शालु-वेश।।२



सर्वाद्यं सर्व-निष्ठं सकल-भय-हरं नानुरुप्यं शरण्यम्।

याचेऽहं त्वाममोघं परिकर-सहितं द्वेष्टि योऽत्र स्थितं माम्।।

श्रीशम्भो त्वत्-कराब्ज-स्थित-मुशल-हतास्तस्य वक्ष-स्थलस्थ-

प्राणाः प्रेतेश-दूत-ग्रहण-परिभवाऽऽक्रोश-पूर्वं प्रयान्तु।।३



द्विष्मः क्षोण्यां वयं हि तव पद-कमल-ध्यान-निर्धूत-पापाः।

कृत्याकृत्यैर्वियुक्ताः विहग-कुल-पते खेलया बद्ध-मूर्ते।।

तूर्णं त्वद्धस्त-पद्मप्रधृत-परशुना खण्ड-खण्डी-कृताङ्गः।

स द्वेष्टी यातु याम्यं पुरमति-कलुषं काल-पाशाग्र-बद्धः।।४



भीम श्रीशालुवेश प्रणत-भय-हर प्राण-हृद् दुर्मदानाम्।

याचे-पञ्चास्य-गर्वं-प्रशमन-विहित-स्वेच्छयाऽऽबद्ध-मूर्ते।।

त्वामेवाशु त्वदंघ्य्रष्टक-नख-विलसद्-ग्रीव-जिह्वोदरस्य।

प्राणोत्क्राम-प्रयास-प्रकटित-हृदयस्यायुरल्पायतेऽस्य।।५



श्रीशूलं ते कराग्र-स्थित-मुशल-गदाऽऽवर्त-वाताभिघाता-

पाताऽऽघातारि-यूथ-त्रिदश-रिपु-गणोद्भूत-रक्तच्छटार्द्रम्।।

सन्दृष्ट्वाऽऽयोधने ज्यां निखिल-सुर-गणाश्चाशु नन्दन्तु नाना-

भूता-वेताल-पुङ्गाः क्षतजमरि-गणस्याशु मत्तः पिवन्तु।।६



त्वद्दोर्दण्डाग्र-शुण्डा-घटित-विनमयच्चण्ड-कोदण्ड-युक्तै-

र्वाणैर्दिव्यैरनेकैश्शिथिलित-वपुषः क्षीण-कोलाहलस्य।।

तस्य प्राणावसानं परशिव भवतो हेति-राज-प्रभावै-

स्तूर्णं पश्यामियो मां परि-हसति सदा त्वादि-मध्यान्त-हेतो।।७



फल-श्रुति

इति निशि प्रयतस्तु निरामिषो, यम-दिशं शिव-भावमनुस्मरन्।

प्रतिदिनं दशधाऽपि दिन-त्रयं, जपति यो ग्रह-दारुण-सप्तकम्।।८

इति गुह्यं महाबीजं परमं रिपुनाशनम्।

भानुवारं समारभ्य मंगलान्तं जपेत् सुधीः।।९

इत्याकाश भैरव कल्पे प्रत्यक्ष सिद्धिप्रदे नरसिंह कृता शरभस्तुति।।



श्रीशरभेश्वर मन्त्र विधान



विनियोग- ॐ अस्य श्रीशरभेश्वर मन्त्रेश्वर कालाग्नि-रुद्रः ऋषिः जगती छंदः श्री शरभो देवता ॐ खँ बीजं, स्वाहा शक्तिः फट् कीलक मम कार्य सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।



ऋष्यादिन्यास- ॐ कालाग्नि-रुद्रः ऋषये नमः शिरसि। ॐ अति जगती छन्दसे नमः मुखे। श्री शरभो देवतायै नमः हृदये। ॐ खं बीजाय नमः गुह्ये। स्वाहा शक्तये नमः पादयो। विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे।



कर-न्यास- ॐ खें खां अं कं खं गं घं ङं आं अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ खं फट् इं चं छं जं झं ञं तर्जनीभ्यां नमः। ॐ प्राणग्रहासि प्राणग्रहासि हुं फट् उं टं ठं डं ढं णं ऊं मध्यमाभ्यां नमः। ॐ सर्वशत्रु संहारणाय एं तं थं दं धं नं ऐं अनामिकाभ्यां नमः। ॐ शरभ-शालुवाय ओं पं फं बं भं मं औं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ पक्षि-राजाय हुं फट् स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।



हृदयादिन्यास- ॐ खें खां अं कं खं गं घं ङं आं हृदयाय नमः। ॐ खं फट् इं चं छं जं झं ञं शिरसे स्वाहा। ॐ प्राणग्रहासि प्राणग्रहासि हुं फट् उं टं ठं डं ढं णं ऊं शिखायै वषट्। ॐ सर्वशत्रु संहारणाय एं तं थं दं धं नं ऐं कवचाय हुम्। ॐ शरभ-शालुवाय ओं पं फं बं भं मं औं नेत्र त्रयाय वोषट्। ॐ पक्षि-राजाय हुं फट् स्वाहा अस्त्राय फट्।



ध्यानम्-

चन्द्रार्काग्निस्त्रि-दृष्टिः कुलिश-वर-नखश्चञ्चलोत्युग्र-जिह्वः।

कालि-दुर्गा च पक्षौ हृदय जठरगो भैरवो वाडवाग्निः।।

ऊरुस्थौ व्याधि-मृत्यू शरभ-वर-खगश्चण्ड-वाताति-योगः।

संहर्त्ता सर्व-शत्रून् स जयति शरभः शालुवः पक्षिराजः।।१

मृगस्त्वर्ध-शरीरेण पक्षाभ्यां चञ्चुना द्विजः,

अधो-वक्त्रश्चतुष्पाद ऊर्ध्व-वक्त्रश्चतुर्भुजः।

कालाग्नि-दहनोपेतो नील-जीमूत-सन्निभः,

अरिस्तद्-दे्शनादेव विनष्ट-बल-विक्रमः।।२

सटा-छटोग्र-रुपाय पक्ष-विक्षिप्त-भूभृते,

अष्ट-पादाय रुद्राय नमः शरभ-मूर्तये।।३



श्री शरभेश्वर मन्त्र

१॰ "ॐ खें खां खं फट् प्राणग्रहासि प्राणग्रहासि हुं फट् सर्वशत्रु संहारणाय शरभशालुवाय पक्षिराजाय हुं फट् स्वाहा।" (द्विचत्वारिंशदक्षर-शरभ तन्त्र)

२॰ "ॐ नमोऽष्टपादाय सहस्त्रबाहवे द्विशिरसे त्रिनेत्राय द्विपक्षायाग्नि वर्णाय मृगविह्ङ्गरुपाय वीर शरभेश्वराय ॐ।"



इनमें से किसी एक मन्त्र का जप करें।



पुरश्चरण-

अनुष्ठान से पुर्व पुरश्चरण भी विहित है, इसकी दो विधियां है-

१॰ यह नौ दिन में हो सकता है। इसमें पहले दिन पूर्वाङ्ग तथा अन्तिम एक दिन उत्तराङ्ग का हो। बीच में सात दिन ७-७ बार पाठ करें।

२॰ यह आठ दिन में भी हो सकता है। स्तोत्र के आठ दिन तक आठ-आठ पाठ नित्य रात्रि में करे। आठ दिन में मन्त्र के जप ११ हजार कर लें।



शरभेश्वर के अन्य मन्त्र

१॰ एक-चत्वारिंशदक्षरः

"ॐ खं खां खं फट् शत्रून् ग्रससि ग्रससि हुं फट् सर्वास्त्र-संहारणाय शरभाय पक्षि-राजाय हुं फट् स्वाहा नमः।" (मेरु-तन्त्र)

ऋषि वासुदेव, छन्द जगती, देवता कालाग्नि-रुद्र शरभ, बीज 'खं', शक्ति 'स्वाहा'। मन्त्र के ४, ९, १०, ७, ५, ६ अक्षरों से षडङ्ग-न्यास। समस्त मन्त्र से दिग्-बन्धन कर ध्यान करें-

विद्युज्जिह्वं वज्र-नखं वडवाग्न्युदरं तथा,

व्याधि-मृत्यु-रिपुघ्नं चण्ड-वाताति-वेगिनम्।

हृद्-भैरव-स्वरुपं च वैरि-वृन्द-निषूदनं,

मृगेन्द्र-त्वक्छरीरेऽस्य पक्षाभ्यां चञ्चुना रवः।

अधो-वक्त्रश्चतुष्पाद ऊर्ध्व-दृष्टिश्चतुर्भुजः,

कालान्त-दहन-प्रख्यो नील-जीमूत-नीःस्वन्।

अरिर्यद्-दर्शनादेव विनष्ट-बल-विक्रमः,

सटा-क्षिप्त-गृहर्क्षाय पक्ष-विक्षिप्त-भूभृते।

अष्ट-पादाय रुद्राय नमः शरभ-मूर्तये।।



पुरश्चरण में एक हजार जप कर पायस से प्रतिदिन छः मास तक दशांश होम करे।



२॰ गायत्रीः

"ॐ पक्षि-शाल्वाय विद्महे वज्र-तुण्डाय धीमहि तन्नः शरभः प्रचोदयात् ॐ" (शरभ-तन्त्र)

"ॐ पक्षि-राजाय विद्महे शरभेश्वराय धीमहि तन्नो शरभः प्रचोदयात्" (शरभ-पटल)



३॰ अष्टोत्तर-शताक्षर माला-मन्त्र

"ॐ नमो भगवते शरभाय शाल्वाय सर्व-भूतोच्चाटनाय ग्रह-राक्षस-निवारणाय ज्वाला-माला-स्वरुपाय दक्ष-निष्काशनाय साक्षाद् काल-रुद्र-स्वरुपाष्ट-मूर्तये कृशानु-रेतसे महा-क्रूर-भूतोच्चाटनाय अप्रति-शयनाय शत्रून् नाशय नाशय शत्रु-पशून् गृह्ण गृह्ण खाद खाद ॐ हुं फट् स्वाहा।" (मेरु-तन्त्र)

प्रतिदिन १०८ बात छः मास तक जपने से उक्त मन्त्र सिद्ध होता है। उसके बाद पात्र में पवित्र जल रखकर सात बार उसे अभिमन्त्रित करे। इसके पीने से एक सप्ताह में सब प्रकार के ज्वर शान्त होते हैं।