++++::: ब्रह्म ज्ञान :::++++
दूर निकट कुछ है नहीं, ऊँचा नीचा नाहिं ।
अन्तर बाहर एक है, 'अमृत' सबके माहिं ॥
जाग्रत स्वप्न न सुषुप्ति, तुरिया साक्षी रुप ।
'अमृत' उनमनी भाव है, अट पट भेद अनूप ॥
स्वप्न जगत् व्यवहार है, आत्म सुषुप्ति जान ।
तुरिया ब्रह्म का रुप है, 'अमृत' कर पहचान ॥
शब्द, स्पर्श अरु रुप रस, गन्ध तत्व के रुप ।
सुक्ष्म जान तन मात्रा, 'अमृत' भेद अनूप ॥
नेत्र नाक जिह्वा करण, चर्म इन्द्रि है ज्ञान ।
हस्त पाद वाणी गुदा, लिंग कर्म लो जान ॥
स्थूल सूक्ष्म कारण, महा कारण आतम गेह।
केवल ब्रह्म स्वरुप है, 'अमृत' खोजो देह ॥
दूर निकट कुछ है नहीं, ऊँचा नीचा नाहिं ।
अन्तर बाहर एक है, 'अमृत' सबके माहिं ॥
जाग्रत स्वप्न न सुषुप्ति, तुरिया साक्षी रुप ।
'अमृत' उनमनी भाव है, अट पट भेद अनूप ॥
स्वप्न जगत् व्यवहार है, आत्म सुषुप्ति जान ।
तुरिया ब्रह्म का रुप है, 'अमृत' कर पहचान ॥
शब्द, स्पर्श अरु रुप रस, गन्ध तत्व के रुप ।
सुक्ष्म जान तन मात्रा, 'अमृत' भेद अनूप ॥
नेत्र नाक जिह्वा करण, चर्म इन्द्रि है ज्ञान ।
हस्त पाद वाणी गुदा, लिंग कर्म लो जान ॥
स्थूल सूक्ष्म कारण, महा कारण आतम गेह।
केवल ब्रह्म स्वरुप है, 'अमृत' खोजो देह ॥
1 comments:
nice line for mantra
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