जैसा की पूर्व प्रयोग में वर्णन किया था की यह महामृत्युंजय की तरह प्रयुक्त होता है अर्थात आरोग्यता प्रदान करता है / आरोग्यता के उपरांत मानव मन में इच्छाओ का विस्तार होने लगता है जिसके लिए उसे धन की आवश्यकता महसूस होने लगती है / अतः इच्छाओ की पूर्ति हेतु निम्न पयोग को समझे :-
श्रीमद देवीभागवत के ९ बार परायण करने से भक्त की हर मनोकामना हर दृष्टि से माँ भगवती जगत जननी जगदम्बा पूर्ण कर देती है ऐसा वचन स्वयं भगवती ने देवी भगवत में कहा है / देवी भगवत में माँ भगवती स्वयं विराजमान है मात्र पूर्ण श्रधा और विश्वास के साथ भक्ति-भाव से देवी भगवत के नव बार पारायण करने की आवश्यकता है / नवरात्र में तो श्रीमद देवीभागवत बिना मुहूर्त देखे भी पढ़ सकते है / लेकिन अन्य समय में देवी भगवत में बताई हुई विधि से ही देवी भगवत पढ़ी जाये तो उस पढ़ने वाले भक्त को उसमे लिखे अनुसार फल अवश्य मिलता है /
यह देवी भगवत हर कोई देवी का भक्त चाहे स्त्री हो या पुरुष या किसी भी जाति/वर्ण का हो, पढ़ सकता है /लेकिन उस समय मुहूर्त देखने की आवश्यकता है /श्रीमद देवीभागवत के पांचवे अध्याय के अनुसार बृहस्पति जिस नक्षत्र में है उससे चंद्रमा जिस नक्षत्र में है वहां तक गिनने पर क्रमशः पहले चार नक्षत्र धर्म प्राप्ति , पुनः चार लक्ष्मी प्राप्ति ,नवे नक्षत्र में सिद्धि प्राप्ति, फिर पांच नक्षत्र परम सुख की प्राप्ति , फिर दस नक्षत्र पीड़ातथा राजभय देने वाले, तत्पश्चात तीन नक्षत्र ज्ञान प्राप्ति करने वाले है /
गीताप्रेस गोरखपुर से भी श्रीमद देवीभागवत प्रकाशित की जा रही है जो की अन्य प्रकाशनों से सस्ती है
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