रविवार, 31 जनवरी 2010

अमृतसिद्ध योग में देवी अथर्व शीर्ष की सिद्धि और प्रयोग

प्रिय आत्मन,
चंडी पाठ का परायण करने वाले बंधू "देव्या अथर्व शीर्षम" से अवश्य परिचित होंगे / इसकी अथर्व वेद में बहुत ही बड़ी महिमा बतलाई गयी है / इस अथर्वशीर्ष के पाठ से देवी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है / इसमे देवी के मूल मंत्र का बड़ी ही गोपनीयता से विषद वर्णन किया गया है /संसार सागर से तरने, सभी कष्टों से मुक्ति पाने का और देवी दुर्गा के कृपा प्राप्त करने और सभी सुखो की प्राप्ति का यह अमोघ उपाय है / इसका प्रयोग कभी भी निष्फल नहीं होता /
मै आप सभी बंधुओ को इसको सिद्ध करने के प्रयोग के बारे में बताऊंगा जिसको करने के बाद यह अथर्वाशीर्ष सिद्ध हो जायेगा और प्रयोग करने के लिए उपयोगी हो जायेगा/ यह ऐसी महाविद्या है की एक बार सिद्ध होने के सभी दुखो को दूर कर देती है /
इसका प्रयोग करने वाले साधक को संस्कृत को सुस्पष्ट रूप से पढना आना चाहिए और उच्चारण भी सुस्पष्ट होना चाहिए अन्यथा गलत उच्चारण से हानि भी हो सकती है /
देव्या अथर्व शीर्ष दुर्गा सप्तशती में दिया हुआ है इसलिए यहाँ नहीं दे रहा हूँ / यहाँ केवल सिदधी विधान और प्रयोग ही दिए दे रहा हूँ
श्री देव्या अथर्व शीर्ष सिद्धि विधान और प्रयोग
अमृतसिद्धि योग ( अश्विनी नक्षत्र युक्त मंगलवार ) के योग में देव्या अथर्व शीर्ष का पाठ करना है /
इस दिन और इस योग काल में साधक स्नान करके मुहूर्त के समय देवी की प्रतिमा के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाकर , जल का लोटा रखकर आसन पर बैठ जाये / अष्टोत्तरशत गायत्री मंत्र का जाप करे / तदुपरांत देव्यथार्वशीर्ष के १०८ पाठ का संकल्प ले और पाठ शुरू करे / १०८ पाठ से यह स्तोत्र सिद्ध हो जाता है /
सिद्धि के बाद महामृत्युंजय जाप की तरह इसका भी प्रयोग विभिन्न प्रकार से किया जाता है
दीक्षित साधक ही इस साधना के अधिकारी हैं

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