शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2014

कर्म का कर्ता

 भाई 

पहले यह जान ले की " मै  कर्म का कर्ता हूँ " इस भाव को केंद्र में रखकर कर्म करने से सुख दुःख रूपी फल की प्राप्ति होगी ही । इसे कोई रोक नहीं सकता । और साथ ही साथ यश अपयश, हानि-लाभ, जन्म-मृत्यु, भी प्राप्त होते हैं । 

इससे बचने का एक रास्ता यह भी है की हम अनंत परमात्मा की शरण ग्रहण करें । और यह माने की "जो कर्म हम कर रहे है उसको करने की प्रेरणा वह परमात्मा ही हमें दे रहा है और उसी के अनुरूप सभी साधन उपलब्ध करवा दे रहा है " यश-अपयश भी उसी परमात्मा की प्रेरणा से मिल रहा है " तो आपको ऐसा महसूस होने लगेगा की जब सब कुछ परमात्मा बलात अपनी माया प्रकृति के द्वारा हमारे माध्यम से करवा रहा है तो हम कही भी न तो दोषी है न ही कर्म फल के अधिकारी है अतः यश अपयश भी उसी की प्रेरणा से मिल रहा है तो सब कुछ उसका प्रशाद मानकर प्रेम से ग्रहण करे । 

तभी सुख प्रपात होगा अन्यथा ब्रह्मा भी किसी का दुःख दूर करने में समर्थ नहीं है 

ओम तत सत 

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