शनिवार, 26 नवंबर 2016

॥ श्रीराजराजेश्वर्यष्टकम् ॥

           ॥  श्रीराजराजेश्वर्यष्टकम् ॥

अम्बा शाम्भवि चन्द्रमौलिरबलाऽपर्णा उमा पार्वती
        काली हैमवती शिवा त्रिनयनी कात्यायनी भैरवी ।
सावित्री नवयौवना शुभकरी साम्राज्यलक्ष्मीप्रदा
        चिद्रूपी परदेवता भगवती श्रीराजराजेश्वरी ॥ १॥

अम्बा मोहिनि देवता त्रिभुवनी आनन्दसंदायिनी
        वाणी पल्लवपाणिवेणुमुरलीगानप्रिया लोलिनी ।
कल्याणी उडुराजबिम्ब वदना धूम्राक्षसंहारिणी
        चिद्रूपी परदेवता भगवती श्रीराजराजेश्वरी ॥ २॥

अम्बा नूपुररत्नकङ्कणधरी केयूरहारावली
        जातीचम्पकवैजयंतिलहरी ग्रैवेयकैराजिता ।
वीणावेणु विनोदमण्डितकरा वीरासने संस्थिता
        चिद्रूपी परदेवता भगवती श्रीराजराजेश्वरी ॥ ३॥

अम्बा रौद्रिणि भद्रकालि बगला ज्वालामुखी वैष्णवी
        ब्रह्माणी त्रिपुरान्तकी सुरनुता देदीप्यमानोज्वला ।
चामुण्डा श्रितरक्षपोषजननी दाक्षायणी वल्लवी
        चिद्रूपी परदेवता भगवती श्रीराजराजेश्वरी ॥ ४॥

अम्बा शूलधनुः कशाङ्कुशधरी अर्धेन्दुबिम्बाधरी
        वाराहीमधुकैटभप्रशमनी वाणी रमासेविता ।
मल्लद्यासुरमूकदैत्यमथनी माहेश्वरी चाम्बिका
        चिद्रूपी परदेवता भगवती श्रीराजराजेश्वरी ॥ ५॥

अम्बा सृष्टविनाशपालनकरी आर्या विसंशोभिता
        गायत्री प्रणवाक्षरामृतरसः पूर्णानुसंधी कृता ।
ओङ्कारी विनतासुतार्चितपदा उद्दण्ड दैत्यापहा
        चिद्रूपी परदेवता भगवती श्रीराजराजेश्वरी ॥ ६॥

अम्बा शाश्वत आगमादिविनुता आर्या महादेवता
        या ब्रह्मादिपिपीलिकान्तजननी या वै जगन्मोहिनी ।
या पञ्चप्रणवादिरेफजननी या चित्कला मालिनी
        चिद्रूपी परदेवता भगवती श्रीराजराजेश्वरी ॥ ७॥

अम्बापालितभक्तराजदनिशं अम्बाष्टकं यः पठेत्
        अम्बालोलकटाक्षवीक्ष ललितं चैश्वर्यमव्याहतम् ।
अम्बा पावनमन्त्रराजपठनादन्ते च मोक्षप्रदा
        चिद्रूपी परदेवता भगवती श्रीराजराजेश्वरी ॥ ८॥

         ॥  इति श्रीराजराजेश्वर्यष्टकं सम्पूर्णम् ॥

सोमवार, 14 नवंबर 2016

गणेश साधना

मंत्र :- वक्रतुण्डाय हुम्  । 

विनियोग :- ॐ अस्य श्री ग़णेश मंत्रस्य भार्गव ऋषि : अनुष्टुप छन्दः विघ्नेशो देवता वं बीजं यं शक्तिः मम अभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । 


ऋष्यादिन्यासः 

ॐ भार्गव ऋषये नमः शिरसि । 
ॐ अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे । 
ॐ विघ्नेश देवताये नमः हृदि ।
ॐ वं बीजाय नमः गुह्ये । 
ॐ यं शक्तये नमः पादयो ।
ॐ विनियोगाय नमः सर्वांगे । 

करन्यासः 

ॐ वं नमः अंगुष्ठाभ्यां नमः । 
ॐ क्रं नमः तर्जनीभ्यां नमः । 
ॐ तुं नमः मध्यमाभ्यां नमः । 
ॐ डां नमः अनामिकाभ्यां नमः । 
ॐ यं नमः कनिष्ठकाभ्यां नमः । 
ॐ हुं नमः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । 

हृदयन्यास : 

ॐ वं नमः हृदयाय नमः । 
ॐ क्रं नमः शिरसे स्वाहा । 
ॐ तुं नमः शिखायै वषट । 
ॐ डां नमः कवचाय हुम् । 
ॐ यं नमः नेत्रत्रयाय वौषट ।  
ॐ हुं नमः अस्त्राय फ़ट । 

सर्वाङ्गन्यासः 

 ॐ वं नमः भ्रूमध्ये । 
ॐ क्रं नमः कण्ठे । 
ॐ तुं नमः हृदये । 
ॐ डां नमः नाभौ  । 
ॐ यं नमः लिंगे ।  
ॐ हुं नमः पादयो । 
ॐ वक्रतुण्डाय हुम् सर्वांगे । 

ध्यानः 

उद्यद्दिनेश्वररुचिं निजहस्तपद्मै: पाशांकुशभयवरांदधतं गजास्यम । 
रक्ताम्बरं सकलदुःखहरं गणेशं ध्यायेत्प्रसन्नमखिलाभरणाभिरामं । 

इस मंत्र का 6 लाख जप और तद दशांश हवन, तर्पण, अभिषेक और ब्राह्मण भोजन कराने से मंत्र सिद्धि होती है । ये संक्षिप्त विधान है विस्तृत विधान केवल विशेष साधको के लिए है । 
यह विधान केवल मंत्र साधको के लिए लिखा गया है  मंत्र गुरु मुख से ग्रहण करके गुरु द्वारा अन्य क्रियायो को जाने और सिद्धि लाभ प्राप्त करके लाभ उठाये । 



मंगलवार, 11 अक्तूबर 2016

ब्राह्मणों को ही गायत्री संध्या अनिवार्य है | क्यों ?

ब्राह्मणों को ही गायत्री संध्या अनिवार्य क्यों है ?

इसलिए क्योंकि ब्रह्म गायत्री की संध्या त्रिकाल करने से ब्राह्मणों के सभी कष्ट निवारण होते है । उनकी सभी मनोकामनाये भी गायत्री मंत्र के प्रभाव से पूर्ण हो जाती हैं । गायत्री मंत्र ब्राह्मण को आसानी से अपना प्रभाव देने लगता है और सिद्ध हो जाता है । अतः सभी ब्राह्मण बंधू इस कामधेनु रूपी ब्रह्म गायत्री की त्रिकाल संध्या अवश्य करे । अगर त्रिकाल न कर सके तो द्विकाल अर्थात दो समय तो अवश्य करे और चमत्कार देखे । 

विशेष :- गायत्री मंत्र को पद विभाजन करके ही जपना चाहिए जो पद विभाजन नहीं करते उन्हें दोष लगता है । शापविमोचन,  विनियोग, पूर्ण न्यास, प्राणायाम ,ध्यान, मुद्रा प्रदर्शन सहित ही गायत्री जपने से सम्पूर्ण प्रभाव पता चलने लगेगा । ये अनुभूत है । 

नोट :- ब्रह्म गायत्री अन्य वर्णो के लिए दुष्कर है अतः व्यर्थ श्रम न करके वे अन्य देवताओ के मंत्रो का प्रयोग करे । ये भी अनुभूत है ।