सभी समस्याओ के समाधान माँ बगलामुखी के मंत्र, तंत्र, अनुष्ठान, जप, हवन द्वारा किया जाता है हमारे यहाँ सभी प्रकार की समस्याओं के निवारण हेतु अनुष्ठान किये जाते है
एक बार की बात है, भक्त श्रेष्ठ प्रह्लाद जी अपने कुछ मंत्रियों के साथ प्रजा की सही स्थिति जानने के लिए, उनके दुख-दर्दों को समझने के लिए राज्य में भ्रमण कर रहे थे। घूमते-घूमते वह कावेरी नदी के तट पर पहुंचे। एकाएक उनकी दृष्टि एक ऐसे व्यक्ति पर पड़ी, जिसका सारा शरीर धूल-धूसरित तथा भोगी मनुष्यों की तरह हृष्ट-पुष्ट था।
उसे देखकर कोई सोच भी नहीं सकता था कि यह कोई ऋषि मुनि या अवधूत है। किंतु भक्तराज प्रह्लाद की दृष्टि से यह बात छिपी न रही। उन्होंने पहचान लिया कि वे मुनि दत्तोत्रय हैं। मुनि के निकट जाकर प्रह्लाद जी ने उनके बारे में जानने की इच्छा से प्रश्न किया कि भगवान! आपका शरीर विद्वान, चतुर तथा समर्थ है।
ऐसी अवस्था में आप सारे संसार को कर्म करते हुए देखकर भी समभाव से पड़े हुए हैं, इसका क्या कारण है? यदि हमारे सुनने योग्य हो तो अपने बारे में हमें अवश्य बतलाइये। मुनि दत्तात्रेय जी ने कहा- दैत्यराज! मैंने अपने अनुभव से जैसा भी, जो कुछ जाना है, उसके अनुसार मैं आपके प्रश्नों का उत्तर देता हूं। तृष्णा एक ऐसी वस्तु है, जो इच्छानुसार भोगों के प्राप्त होने पर भी पूरी नहीं होती।
उसी के कारण मनुष्य को जन्म मृत्यु के चक्कर में भटकना पड़ता है। तृष्णा ने मुझसे न जाने कितने कर्म करवाये और उनके कारण न जाने कितनी योनियों में मुझे डाला। कर्मों के कारण अनेक योनियों में भटकते हुए मुझे प्रभु कृपा से मनुष्य योनि मिली है। यह मनुष्य योनि स्वर्ग, मोक्ष, तिर्यग्योनि तथा इस मानव देह की प्राप्ति का भी द्वार है।
इस शरीर को पाकर मनुष्य पुण्य करे तो स्वर्ग, पाप करे तो पशु-पक्षी आदि की योनियों तथा पाप और पुण्य दोनों से अलग होकर निष्काम कर्म करे तो मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।परंतु मैं इस संसार में देखता हूं कि सारे लोग कर्म तो करते हैं सुख की प्राप्ति के लिए, दु:खों से छुटकारा पाने के लिए, परंतु उसका फल उल्टा ही होता है और वे दु:खों में पड़ जाते हैं। इसीलिए मैं कर्मों से उपरत हो गया हूं।
मनुष्य की आत्मा ही सुखस्वरूप है। मनुष्य का शरीर ही उसके प्रकाशित होने का स्थान है, और उसके सारे कर्मों से निवृत्त हो जाता है। छुटकारा पा जाता है और यही मोक्ष है। इसलिए संसार के सभी भोगों को मन का विलास समझ कर वह अपने प्रारब्ध को भोगता हुआ पड़ा रहता है।
मनुष्य अपने सच्चे परमार्थ, यानी वास्तविक स्वरूप को, जो कि अपना ही स्वरूप है, भूलकर इस संसार को सत्य मानता हुआ अत्यंत भयंकर और विचित्र जन्म-मरण के चक्र में भटकता रहता है। जैसे अज्ञानी मनुष्य जल में उत्पन्न तिनके और सेवार से ढके हुए जल को जल न समझकर, जल के लिए मृगतृष्णा की भांति दौड़ता है, वैसे ही अपनी आत्मा से भिन्न वस्तु में सुख समझने वाला पुरुष आत्मा को छोडक़र विषयों की ओर दौड़ता है।
यह शरीर तो प्रारब्ध के अधीन है। कर्मों के द्वारा जो अपने लिए सुख पाना और दुःखों को मिटाना चाहता है। वह कभी अपने कार्य में सफल नहीं हो सकता। उसके बार-बार किये हुए सारे कर्म व्यर्थ हो जाते हैं। मनुष्य सदा शारीरिक, मानसिक आदि दुःखों से परेशान ही रहता है। यह मरणशील मनुष्य यदि बड़े श्रम और कष्टों से कुछ धन और भोग प्राप्त भी कर लिया तो उससे क्या होने वाला है।
लोभी और इंद्रियों के वश में रहने वाले धनियों का दुख तो मैं देखता ही रहता हूं। भय के मारे उन्हें नींद नहीं आती। सब पर उनका संदेह बना रहता है। इसलिए बुद्घिमान पुरुष को चाहिए कि जिसके कारण शोक, मोह, भय, क्रोध, राग आदि का शिकार होना पड़ता है, उन सबको त्याग दे, क्योंकि त्याग से ही सुख प्राप्त होता है।
मधुमक्खी जैसे मधु इकट्ठा करती है, वैसे ही लोग बड़े कष्टों से धन का संचय करते हैं, परंतु कोई उस धनराशि के स्वामी को मारकर उससे धन छीन लेता है। इससे मैंने यह शिक्षा ग्रहण की कि विषय भोगों से विरक्त ही रहना चाहिए।
सत्य की खोज करने वाले मनुष्य को चाहिए कि मन के नाना प्रकार के संकल्प-विकल्पों को आत्मानुभूति में स्वाह कर दे, आत्मा में स्वाहा कर दें और इस प्रकार आत्म-स्वरूप में स्थित होकर सांसारिक भोगों से निष्क्रिय एवं उपरत हो जाय। तब वह स्वत: ही सुख स्वरूप हो जायेगा।
प्रह्लाद जी मुनि दत्तात्रेय से धर्म के इन गूढ़ रहस्यों को समझ कर बड़े प्रेम से मुनि की पूजा की और उनसे विदा लेकर बड़ी प्रसन्नता से अपनी राजधानी के लिए प्रस्थान किया।
इस लेख को पढ़ ने से पहले कृपया ये प्रश्न स्वय से करे की क्या आपने कभी किसीको उर्दू बोलते हुए देखा है? यदी हा तो ये निश्चित है की उर्दू सुनने में हिंदी जैसी ही लगती है केवल कुछ उटपटांग शब्द उर्दू में आते है!
जैसे की: हिंदी उर्दू नेताजी का ‘देहांत’ हो गया नेताजी का ‘इंतकाल’ हो गया मै आपकी ‘प्रतीक्षा’ कर रहा था मै आपका ‘इंतजार’ कर रहा था ‘परीक्षा’ कैसी थी? ‘इम्तिहान’ कैसा था? आपके रहने का ‘प्रबंध’ हो चूका है आप के रहने का ‘इंतजाम’ हो चूका है ये मेरी ‘पत्नी’ है ये मेरी ‘बीबी’ है मै ‘प्रतिशोध’ की आग में जल रहा हु मै ‘इंतकाम’ की आग में जल रहा हु
ये उदाहरण देख कर आप समझ गए की उर्दू की रचना का कंकाल (Skeleton) हिंदी से आया है, केवल हिंदी के स्थान पर अरबी शब्दों का उपयोग किया गया है!जब आप अधिक अध्ययन करेंगे तो ये पता चलेगा की उर्दू नामक कोई भाषा ही नही है! वो तो एक बोली है,, हिंगलिश जैसी!भाषा वो होती है जिसे व्याकरण होता है अपना एक शब्दकोष होता है! भाषा लिखने का एक माध्यम हो सकती है, किन्तु कोई बोली, भाषा का स्थान नही ले सकती क्यों की उसे ना तो व्याकरण होता है ना तो शब्द कोष!ठीक वही बात उर्दू और हिंग्लिश के लिए लागु होती है! ये दोनों एक भेल पूरी जैसी बोलिय है जिन्हें अपना कोई शब्द कोष अथवा व्याकरण नही है! उर्दू में ५०% शब्द हिंदी-संस्कृत के है, २५% अरबी, १०% फारसी, ५% चीनी-मंगोल और तुर्की तथा १०% अंग्रेजी है! अब आप ही बताइए एसी खिचडी बोली कभी कोई भाषा का स्थान ले सकती है?उर्दू के विषय में आश्चर्य जनक जानकारी!
चेंगिज खान और उसका पोता हलागु खान ये इस्लाम के भारी शत्रु थे! जिन्होंने इस्लामी खिलाफत में घुसकर ५ करोड मुल्ला मुसलमानों की क़त्ल की थी! ये प्रतिशोध था क्यों की ६०० वर्षों से लगातार (९५० से १२५८) अरब मुस्लिमो द्वारा इन तुर्को और मुघलो को मुस्लिम बनाने के लिए उन पर अति भीषण आक्रमण किये जा रहे थे! इस से पीड़ित होकर प्रतिशोध भावना से ये तुर्क-मुघल टोलिया चेंगिज खान उर्फ तिमू जीनी के नेतृत्व में मुस्लिम प्रदेशो पर टूट पड़ी! आज भी इस्लामी जगत में चेंगिज खान को पाजी, लुटेरा, लफंगा इत्यादि नामो से मुस्लिम इतिहासकार विभूषित करते है!
इन तुर्क मंगोलों की भाषा में सैनिक छावनी को “ओरडू” कहा जाता था! आगे चल कर ये सारे तुर्क और मुघल अरब मुस्लिमो द्वारा छल बल से मृत्य की यातनाए देकर मुस्लिम बनाए गए! उन्हें तलवार की धार पर इस्लाम के अरब कारागार में तो लाया गया पर उनके मंगोल नाम बदल कर सब को अरबी नाम देना संभव नही था! क्योकि १ दिन में जब २ लाख या ५ लाख मुघलो को मुस्लिम बनया गया! उसका नियंत्रण रखना उन अरब मुस्लिमो को संभव नही था! इस लिए उन तुर्क-मुघलो में इस्लाम पूर्व कुछ संस्कार वैसे के वैसे रह गए! जैसे की खान उपनाम जो अमुस्लिम है! जब कोई मुस्लिम बनता है तो उसे अरब आचार अपनाने पड़ते है! जैसे की महमद, अब्दुल, इब्राहीम, अहमद इत्यादि अरब नाम (जिन्हें लोग मुस्लिम नाम समझते है वो वास्तव में अरब नाम है) अपनाने पड़ते है! दिन में ५ बार अरब मातृभूमि की ओर माथा टेकना पड़ता है (फिर चाहे आप अरब नही हो तो भी)! इस प्रकार सारे तुर्क मुघल उनके इस्लामीकरण के उपरांत अरब देशो के उपग्रह से बन गए जिन्हें अपने आप में कोई अस्तित्व नही था!
अगले २०० वर्षों में ये इन मुगलों ने जो (जो २०० वर्ष पहले तलवार की नोक पर मुस्लिम बनाए गए थे) भारत पर आक्रमण किया! आश्चर्य इस बात का है की जिस इस्लामी जिहाद का रक्त रंजित संदेश जीन मुघल और तुर्को ने भारत के हिंदुओ पर थोपा वे स्वय भी उसी रक्त रंजित जिहाद के भक्ष बन चुके थे! किन्तु इस्लाम के मायावी जेल में जाने पर वो अपना सारा अतीत भूलकर अरब देशो के एक निष्ट गुलाम बन चुके थे!
इस तुर्क-मुघल आक्रमण काल में अनेक हिंदुओ को छल-बल से गुलाम बनाकर सैनिक छावनी (जिसे मंगोल भाषा में ओरडू अर्थात उर्दू) में लाया जाता था! उनपर बलात्कार किये जाते थे! उनकी भाषा जो की बृज भाषा, अवधी हिंदी थी पर प्रतिबंध लगाया जाता था! उन्हें अरबी भाषा (जो की इस्लाम की अधिकृत भाषा है) बोलने पर विवश किया जाता था! आप सोचिए यदी आप को कोई मृत्यु का भय दिखा कर चीनी भाषा में बोलने को कल से कहेंगे, तो क्या आप कल से चीनी भाषा बोल सकोगे? नही!
ठीक यही बात उन हिंदी भाषी हिंदुओ पर लागु होती है! वो अरबी तो बोल न सके किन्तु भय के कारण उनकी अपनी मतृभाषा में अरबी शब्द फिट करने लगे ताकि अपने प्राण बचा सके! इस से एक ऐसे बोली का जन्म हुआ जो ना तो हिंदी थी ना तो अरबी! असकी वाक्य रचना तो हिंदी से थी किन्तु शब्द सारे अरबी, फारसी, तुर्की और चीनी थे! ज्यो की वो बोली उस सैनिक छावनी में भय के कारण उत्पन्न हुई इस लिए उसे ‘ओरडू” का नाम मिला! “ओरडू” का भ्रष्ट रूप है “उर्दू”!
आगे चल कर इस उर्दू नामक बोली में बहुत से अंग्रेजी शब्द भी आ गए जैसे की
मुघल और तुर्क इस भेल पूरी उर्दू नामक बोली को गुलामो की भाषा मानते थे, क्योकि वो अशुद्ध थी! मुघल दरबार की भाषा फारसी थी उर्दू नही! आप जानते है उस ओरडू में जो इन मुघलो के गुलाम थे वो कौन है?
वही जो आज अपनी भाषा उर्दू बताते है! वो हिंदु गुलाम ही आज के भारत के मुस्लिम है! गाँधी-नेहरु हमारे इतहास को गाली देते है की हिंदु इतहास १००० वर्ष गुलामी का इतिहास है! परंतु ये गुलामी का इतहास उन हिंदुओ का है जो आज १००० वर्ष इस्लाम के अरब कारागृह में सड रहे है! ये गुलाम हिंदु ही आज के भारत और पाकिस्तान के मुस्लिम है! जिन्हें अपने आप में कोई अस्तित्व नही है!
तुर्क, मुघलो को अरब मुस्लिमो ने इस्लाम में लाकर अपना गुलाम बनया! जब इन अरब के मुस्लिम गुलामो ने भारत पर आक्रमण किया तब उन्होंने हिंदुओ को अपना गुलाम बनाया, और अपने खान इत्यादि नाम उन पर थोपे, उनपर उर्दू (अर्थात सैनिक छावनी) में बलात्कार किये!
अर्थात स्पष्ट रूप से देखे तो भारत के मुस्लिम “गुलामो के गुलाम” है! वे ना तो अरब है ना तो मंगोल!
उर्दू एक भाषा है ऐसा प्रचार गाँधी ने किया! क्यों की वे “मुस्लिम एक राष्ट्र है” ऐसा मानते थे! इस लिए भारत के मुस्लिमो की एक भाषा हो यह देखकर उन्होंने उर्दू को “हिन्दुस्तानी” के नाम से प्रसिद्ध किया! महात्माजी गांधीजी अपने व्याख्यान में कहते थे, बादशाह राम, बेगम सीता तथा उस्ताद वसिष्ट (१)! इस प्रकार उन्होंने उर्दू को “हिन्दुस्तानी” के नाम से प्रसिद्ध किया! १९३५ तक तो उर्दू नामक कोई भाषा है इस तर्क से कोई परिचित भी नही था!
गाँधी-नेहरु को मानने वाली अल खान्ग्रेस भी उनके जैसी ही कट्टर है! किन्तु उनका ये सिद्धांत सम्पूर्णतहा असत्य सिद्ध हुआ की मुस्लिम एक राष्ट्र है! यदी वे एक राष्ट्र होते तो बंगलादेश पाकिस्तान से अलग नही होता!
कुछ लोग फेस बुक और अन्य स्थानों पर अपने भाषा ज्ञान में उर्दू को भी जोड़ते है! अर्थात Languages Known में आपने उर्दू को जोड़ा है, तो कृपया तुरंत हटाए, क्यों की यदी आप उसे अपने भाषा बताएँगे तो क्या आप उस ओरडू नामक गुलामो के जेल में थे?
कहते हैं कि लोकतंत्र में यथा प्रजा तथा राजा का नियम काम करता है। हमारे लुटेरे छद्म धर्मनिरपेक्ष सियासतदानों ने पहले आरक्षण के नाम पर बहुसंख्यक हिन्दुओं को आपस में लड़वाया फिर पूरे भारत को अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक में बाँट दिया। आज हम हिन्दुओं की स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि हमारे देश का प्रधानमंत्री लाल-किले से खुलेआम ऐलान करता है कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है। पारसी,इसाई,बौद्ध,जैन और सिक्खों की स्थिति तो पहले से ही हिन्दुओं से अच्छी है। तो फिर इसका तो यही मतलब हुआ कि ऐसा कहके और करके केंद्र सरकार सिर्फ मुसलमानों को खुश करना चाहती है। आज हम अपनी मातृभूमि-आदिभूमि हिन्दुस्थान में मंदिरों में लाऊडस्पीकर और घंटे-घड़ियाल तक नहीं बजा सकते (उदाहरण के लिए हैदराबाद का भाग्यलक्ष्मी मंदिर)। आज ही उत्तर प्रदेश के मेरठ में मंदिर में लाऊडस्पीकर बजाने पर मुसलमानों ने मंदिर पर हमला कर दिया जिसमें दो लोग मारे भी गए। ऐसा कब तक चलेगा? हमने तो कभी नहीं रोका उनको नमाज पढ़ने या अजान देने से फिर वो क्यों हम पर गोलियाँ चलाते हैं? इतिहास गवाह है कि दंगे चाहे भागलपुर में हुए हों या गुजरात में,शुरू हमेशा मुसलमान ही करते हैं। मित्रों, लाल किले से ऐसा कहकर और मुसलमानों के लिए अलग से विशेष योजनाएँ चलाकर हमारे ही वोटों से चुनी गई हमारी केंद्र सरकार ने हमें हमारे ही देश हिन्दुस्थान में द्वितीय श्रेणी का नागरिक बना दिया है। अंग्रेजों के जमाने से ही भारत में हिन्दुओं और मुसलमानों के लिए आपराधिक कानून या संहिता तो एक है लेकिन दीवानी कानून या नागरिक संहिता अलग-अलग हैं। यह घोर दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजादी के बाद भी जो भी संशोधन और बदलाव हमारी सरकारों ने किए सिर्फ और सिर्फ हिन्दू उत्तराधिकार कानून और विवाह कानून में किए मुगलकाल से चले आ रहे तत्संबंधी इस्लामिक कानूनों को कभी छुआ तक नहीं गया। हिन्दू पुरूष एक विवाह करे और मुसलमान पुरूष चार फिर क्यों नहीं मुसलमानों की जनसंख्या ज्यादा तेजी से बढ़ेगी? बीच में स्व. संजय गांधी ने 1974-77 में जबरन नसबंदी के प्रयास भी किए लेकिन उनको भी दूसरी बार सत्ता में आने के बाद अपने कदम पीछे खींचने पड़े। मैं सर्वधर्मसमभाव पर अमल का दावा करनेवाली केंद्र सरकार से जानना चाहता हूँ कि क्यों सारे सुधार और संशोधन हिन्दुओं के विवाह और सम्पत्ति कानून में ही किए जाते हैं,मुसलमानों के कानूनों को क्यों नहीं बदला जाता है? ٍक्यों बार-बार सारे-के-सारे प्रतिबंध हिन्दुओं पर ही लादे जाते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने भी वर्तमान और पूर्व की केंद्र सरकारों की इस प्रवृत्ति पर कई बार सवाल उठाए हैं। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कई बार सरकारों को समान नागरिक संहिता लागू करने परामर्श दिया है लेकिन सब बेकार। मित्रों,इसी तरह अंग्रेजों के जमाने से ही हिन्दू मंदिरों पर तो सरकार का कब्जा और नियंत्रण है मगर मस्जिदों,दरगाहों और कब्रगाहों पर शिया या सुन्नी वक्फ बोर्ड का। जब सरकार या दूसरों के पैसों से हज करना शरियत के अनुकूल नहीं है तो फिर क्यों केंद्र सरकार मुसलमानों को हज-सब्सिडी दे रही है और क्यों भारतीय मुसलमान इसका लाभ उठा रहे हैं? अमरनाथ या कैलाश-मानसरोवर-यात्रा पर हिन्दुओं को क्यों सब्सिडी नहीं दी जा रही है? क्यों हिन्दू मंदिरों के खजाने पर कोर्ट-कानून का डंडा चलता है और क्यों मुस्लिम दरगाहों की कमाई को सरकार के अधिकार-क्षेत्र से बाहर रखा गया है? मित्रों,हम यह भी जानना चाहते हैं कि कांग्रेस की तरफ से प्रधानमंत्री पद के अघोषित उम्मीदवार राहुल गांधी किस धर्म को मानते हैं? क्या वे हिन्दू-धर्म को मानते हैं? अगर वे किसी दूसरे धर्म को मानते हैं तो फिर क्या गारंटी है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद वे हिन्दुओं का खास ख्याल रखेंगे और अल्पसंख्यक-फर्स्ट की कुत्सित नीति पर नहीं चलेंगे? हम यह भी जानना चाहेंगे कि राहुल गांधी के गोहत्या के बारे में क्या विचार हैं? वे इसका समर्थन करते हैं या विरोध? क्या उन्होंने कभी गोमांस-भक्षण किया है या वे अब भी गोमांस खाते हैं? क्या सोनिया गांधी ने कभी गोमांस खाया है या अब भी वे उतने ही चाव से इसका सेवन करती हैं? मित्रों,हमारे गाँवों में एक कहावत बड़ी ही मकबूल है कि जो खाए गाय का गोश्त,वो हो नहीं सकता हिन्दुओं का दोस्त। अब आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि कौन हम हिन्दुओं का शुभचिंतक है और कौन नहीं? चाहे वो गोहत्या पर से कर्नाटक में पाबंदी हटानेवाला सिद्धरमैया हो या उत्तर प्रदेश में नए बूचड़खानों के लिए टेंडर मंगवानेवाला अखिलेश यादव,ये लोग कभी हिन्दुओं के दोस्त या हितचिंतक हो ही नहीं सकते। इतना ही नहीं हम प्रधानमंत्री की कुर्सी की तरफ काफी तेज कदमों से बढ़ रहे श्रीमान् नरेंद्र मोदी जी से भी स्पष्ट शब्दों में यह जानना चाहते हैं,बल्कि हम उनके मुखारविन्द से यह सुनना चाहते हैं कि वे प्रचंड बहुमत से प्रधानमंत्री बनने के बाद संसद से गोहत्या पर रोक लगाने का कानून बनवाएंगे। मित्रों,जबकि 85 प्रतिशत मुसलमान पहले से ही आरक्षण के दायरे में हैं फिर भी मात्र 15 प्रतिशत अगड़े मुसलमानों को आरक्षण देने की जी-तोड़ कोशिश की जा रही है। क्या अगड़े मुसलमानों के पिछड़ेपन के लिए पिछड़ी जाति के हिन्दू जिम्मेदार हैं? फिर क्यों उनका कोटा कम करके अगड़े मुसलमानों को संविधान की खुलेआम अनदेखी करते हुए धर्म के आधार पर आरक्षण देने की नापाक कोशिश की जा रही है? मित्रों,हमारे छद्म धर्मनिरपेक्ष नेता आज देश पर मरनेवालों पर आँसू नहीं बहाते,उत्तराखंड में उनकी लापरवाही के चलते मारे गए हजारों बेगुनाह हिन्दुओं की लाशों पर भी आँसू बर्बाद नहीं करते बल्कि वे आँसू बहाते हैं मुस्लिम आतंकियों की मौत और गिरफ्तारी पर। क्या इसको सर्वधर्मसमभाव का नाम दिया जा सकता है? क्या इस तरह की आत्मघाती रणनीति अपनाकर देश से आतंकवाद का खात्मा किया जाएगा? मित्रों,कुल मिलाकर इस सारी मगजमारी का लब्बोलुआब यह है कि देश की दुर्दशा इसलिए हो रही है क्योंकि इस देश के बहुसंख्यक अर्थात् हिन्दू एक नहीं हैं। कम-से-कम हिन्दुओं को तो इस संकट-काल में देशहित में एक हो ही जाना चाहिए और अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर वो दिन दूर नहीं जब इस देश का एक नाम हिन्दुस्थान या हिन्दुस्तान न होकर चीन या पाकिस्तान हो जाएगा। आज नेफा से लेकर राजस्थान तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पूरे हिन्दुस्थान को कांग्रेस की लुटेरी और देशबेचवा सरकार ने अपनी शत्रुतापूर्ण नीतियों के चलते खतरे में डाल दिया है। चूँकि हमारा धर्म इस देश और पृथ्वी पर सबसे पुराना धर्म है इसलिए इस देश की अस्तित्व-रक्षा के प्रति अगर किसी की पहली जिम्मेदारी बनती है तो वो हम हिन्दुओं की। वैसे अगर दूसरे धर्मवाले देशभक्त भी इस परमपुनीत कार्य में अपना महती योगदान देना चाहें तो हम तहेदिल से उनका स्वागत करेंगे। और हिन्दुओं को भी एक कुछ इस तरह से होना चाहिए कि हमारे देश की एकमात्र बहुसंख्यकवादी राष्ट्रीय पार्टी भाजपा को अकेले ही दो-तिहाई बहुमत प्राप्त हो जाए और अल्पसंख्यकवादी देशबेचवा नेताओं की दाल चुनावों के बाद किसी भी सूरत में गलने नहीं पाए। मित्रों,हम हिन्दू एक होंगे तो न केवल अपने देश में ही हमारे धर्माम्बलंबियों की स्थिति सुधरेगी बल्कि हमारे पड़ोसी देशों में भी हिन्दुओं की स्थिति में सुधार आएगा। तब पाकिस्तान में हिन्दुओं की बहु-बेटियों का दिन-दहाड़े अपहरण नहीं होगा और उनको अपनी मातृभूमि छोड़कर प्राण-प्रतिष्ठा बचाकर भारत नहीं भागना पड़ेगा। हमें हमेशा यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि दुनिया में भारत के अलावा ऐसा कोई दूसरा देश नहीं है जहाँ कि बहुसंख्यकों को द्वितीय श्रेणी का नागरिक बनकर रहना पड़ता हो।
ज्योतिष और समस्या समाधान के किसी भी प्रकार के प्रश्नोत्तर की दक्षिणा रु 5001/- है और निफ्टी व बैंक निफ्टी की ट्रेडिंग कॉल्स की फी 10000/- महीना है जिसे निम्न बैंक खाते में जमा कराएं । संपर्क सूत्र # 07838157738, 09971485458. एवं लिखे subhas801@gmail.com पर ।
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शाखा --- शालीमार बाग़ दिल्ली -110088 ,
NAME:- SUBHAS CHAND MISHRA,
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IFSC :-ICIC0000369,
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