रविवार, 20 जून 2010

श्री सुदर्शन कवच

जन्म कुंडली में चर, स्थिर और द्विस्वभाव लग्न में उत्पन्न लोगो के लिए क्रमशः ११,९ और ७वा स्थान और उनके स्वामी बाधक होते है और ये अपनी दशा काल में बहुत ही प्रबल होते है ये अचानक बाधा उत्पन्न करके जीवन में परेशानी पैदा कर देते है इसके निवारण/शांति हेतु सुदर्शन कवच का प्रयोग किया जाता है
इसके अलावा ऊपरी बाधा, अला-बला, भूत, भूतिनी, यक्षिणी, प्रेतिनी या अन्य किसी भी तरह की ओपरी विपत्ति में श्री सुदर्शन कवच रक्षा करता है/ यह अद्वितीय तांत्रिक शक्ति से युक्त है यह सुदर्शन चक्र की भांति इसके धारणकर्ता/पाठक की रक्षा करता है /

ॐ अस्य श्री सुदर्शन कवच माला मंत्रस्य श्री लक्ष्मी नृसिंह: परमात्मा देवता क्षां बीजं ह्रीं शक्ति मम कार्य सिध्यर्थे जपे विनयोग:/

करण्यास हृदयादि न्यास

ॐ क्षां अन्गुष्ठाभ्याम नम: हृदयाय नम:

ॐ ह्रीं तर्जनीभ्याम नम: शिरसे स्वाहा

ॐ श्रीं मध्यमाभ्याम नम: शिखाए वषट

ॐ सहस्रार अनामिकभ्याम नम: कवचाय हुम

ॐ हुं फट कनिष्ठिकाभ्याम नम: नेत्रत्रयाय वौषट

ॐ स्वाहा करतल-कर प्र्ष्ठाभ्याम नम: अस्त्राय फट

ध्यानं :- उपसमाहे नृसिंह आख्यम ब्रह्म वेदांत गोचरम / भूयो-लालित संसाराच्चेद हेतुं जगत गुरुम //

पंचोपचार पूजनं :
लं पृथ्वी तत्वात्मकम गंधंम समर्पयामि

हं आकाश तत्वात्मकम पुष्पं समर्पयामि

यं वायु तत्वात्मकम धूपं समर्पयामि

रं अग्नि तत्वात्मकम दीपं समर्पयामि

वं जल तत्वात्मकम नैवेद्यं समर्पयामि

सं सर्व तत्वात्मकम ताम्बूलं समर्पयामि

ॐ सुदर्शने नम:/ ॐ आं ह्रीं क्रों नमो भगवते प्रलय काल महा ज्वाला घोर वीर सुदर्शन नृसिंहआय ॐ महा चक्र राजाय महा बले सहस्रकोटिसूर्यप्रकाशाय सहस्रशीर्षआय सहस्रअक्षाय सहस्रपादाय संकर्षणआत्मने सहस्रदिव्याश्र सहस्र हस्ताय सर्वतोमुख ज्वलन ज्वाला माला वृताया विस्फु लिंग स्फोट परिस्फोटित ब्रह्माण्ड भानडाय महा पराक्रमाय महोग्र विग्रहाय महावीराय महा विष्णु रुपिणे व्यतीत कालान्त काय महाभद्र रोद्रा वताराया मृत्यु स्वरूपाय किरीट-हार-केयूर-ग्रेवेयक-कटक अन्गुलयी-कटिसूत्र मजीरादी कनक मणि खचित दिव्य भूषणआय महा भीषणआय महा भिक्षया व्याहत तेजो रूप निधेय रक्त चंडआंतक मण्डितम दोरु कुंडा दूर निरिक्षणआय प्रत्यक्ष आय ब्रह्म चक्र विष्णु चक्र कल चक्र भूमि चक्र तेजोरूपाय आश्रितरक्षाय/ ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात इति स्वाहा स्वाहा ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात इति स्वाहा स्वाहा भो भो सुदर्शन नारसिंह माम रक्षय रक्षय / ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात मम शत्रून नाशय नाशय / ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल चंड चंड प्रचंड प्रचंड स्फुर प्रस्फुर घोर घोर घोरतर घोरतर चट चट प्रचटं प्रचटं प्रस्फुट दह कहर भग भिन्धि हंधी खट्ट प्रचट फट जहि जहि पय सस प्रलय वा पुरुषाय रं रं नेत्राग्नी रूपाय / ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात भो भो सुदर्शन नारसिंह माम रक्षय रक्षय / ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात एही एही आगच्छ आगच्छ भूतग्रह- प्रेतग्रह- पिशाचग्रह-दानावग्रह-कृत्रिम्ग्रह- प्रयोगग्रह-आवेशग्रह-आगतग्रह-अनागतग्रह- ब्रह्म्ग्रह-रुद्रग्रह-पतालग्रह-निराकारग्रह -आचार-अनाचार ग्रह- नन्जाती ग्रह- भूचर ग्रह- खेचर ग्रह- वृक्ष ग्रह- पिक्षी चर ग्रह- गिरी चर ग्रह- श्मशान चर ग्रह -जलचर ग्रह -कूप चर ग्रह- देगारचल ग्रह- शुन्यगार चर ग्रह- स्वप्न ग्रह- दिवामनो ग्रह- बालग्रह -मूकग्रह- मुख ग्रह -बधिर ग्रह- स्त्री ग्रह- पुरुष ग्रह- यक्ष ग्रह- राक्षस ग्रह- प्रेत ग्रह किन्नर ग्रह- साध्य चर ग्रह - सिद्ध चर ग्रह -कामिनी ग्रह- मोहनी ग्रह-पद्मिनी ग्रह- यक्षिणी ग्रह- पकषिणी ग्रह संध्या ग्रह-
उच्चाटय उच्चाटय भस्मी कुरु कुरु स्वाहा / ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ क्षरां क्षरीं क्षरूं क्षरें क्षरों क्षर : भरां भरीं भरूं भरें भरों भर: ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रें ह्रों ह्र: घरां घरीं घरूं घरें घरों घर: श्रां श्रीं श्रुं श्रें श्रों श्र: / ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात एही एही सालवं संहारय शरभं क्रन्दया विद्रावय विद्रावय भैरव भीषय भीषय प्रत्यांगिरी मर्दय मर्दय चिदंबरम बंधय बंधय विदम्बरम ग्रासय ग्रासय शांर्म्भ्वा निबंतय कालीं दह दह महिषासुरी छेदय छेदय दुष्ट शक्ति निर्मूलय निर्मूलय रूं रूं हूँ हूँ मुरु मुरु परमन्त्र - परयन्त्र - परतंत्र कटुपरं वादपर जपपर होमपर सहस्र दीप कोटि पुजां भेदय भेदय मारय मारय खंडय खंडय परकृतकं विषं निर्विष कुरु कुरु अग्नि मुख प्रकांड नानाविध कृतं मुख वनमुखं ग्राहान चुर्णय चुर्णय मारी विदारय कुष्मांड वैनायक मारीचगणान भेदय भेदय मन्त्रं परअस्माकं विमोचय विमोचय अक्षिशूल कुक्षीशूल गुल्मशूल पार्श्वशूल सर्वाबाधा निवारय निवारय पांडूरोगं संहारय संहारय विषम ज्वर त्रासय त्रासय एकाहिकं द्वाहिकं त्र्याहिकं चातुर्थिकं पंचाहिकं षष्टज्वर सप्तमज्वर अष्टमज्वर नवमज्वर प्रेतज्वर पिशाचज्वर दानवज्वर महाकालज्वरं दुर्गाज्वरं ब्रह्माविष्णुज्वरं माहेश्वरज्वरं चतु:षष्टि योगिनीज्वरं गन्धर्वज्वरं बेतालज्वरं एतान ज्वरान्न नाशय नाशय दोषं मंथय मंथय दुरित हर हर अन्नत वासुकी तक्षक कालौय पद्म कुलिक कर्कोटक शंख पलाद्य अष्ट नाग कुलानां विषं हन हन खं खं घं घं पाशुपतं नाशय नाशय शिखंडी खंडय खंडय प्रमुख दुष्ट तंत्र स्फोटय स्फोटय भ्रामय भ्रामय महानारायणअस्त्राय पंचाशधरणरूपाय लल लल शरणागत रक्षणाय हूँ हूँ गं वं गं वं शं शं अमृतमूर्तये तुभ्यं नम: / ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात भो भो सुदर्शन नारसिंह माम रक्षय रक्षय / ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात मम सर्वारिष्ट शान्तिं कुरु कुरु सर्वतो रक्ष रक्ष ॐ ह्रीं हूँ फट स्वाहा / ॐ क्ष्रोम ह्रीं श्रीं सहस्रार हूँ फट स्वाहा /

सुचना :- सिद्ध सुदर्शन कवच हेतु मुझसे संपर्क किया जा सकता है

शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

लक्ष्मी प्राप्ति के प्रयोग -- आगामी नवरात्र हेतु

जैसा की पूर्व प्रयोग में वर्णन किया था की यह महामृत्युंजय की तरह प्रयुक्त होता है अर्थात आरोग्यता प्रदान करता है / आरोग्यता के उपरांत मानव मन में इच्छाओ का विस्तार होने लगता है जिसके लिए उसे धन की आवश्यकता महसूस होने लगती है / अतः इच्छाओ की पूर्ति हेतु निम्न पयोग को समझे :-
श्रीमद देवीभागवत के ९ बार परायण करने से भक्त की हर मनोकामना हर दृष्टि से माँ भगवती जगत जननी जगदम्बा पूर्ण कर देती है ऐसा वचन स्वयं भगवती ने देवी भगवत में कहा है / देवी भगवत में माँ भगवती स्वयं विराजमान है मात्र पूर्ण श्रधा और विश्वास के साथ भक्ति-भाव से देवी भगवत के नव बार पारायण करने की आवश्यकता है / नवरात्र में तो श्रीमद देवीभागवत बिना मुहूर्त देखे भी पढ़ सकते है / लेकिन अन्य समय में देवी भगवत में बताई हुई विधि से ही देवी भगवत पढ़ी जाये तो उस पढ़ने वाले भक्त को उसमे लिखे अनुसार फल अवश्य मिलता है /
यह देवी भगवत हर कोई देवी का भक्त चाहे स्त्री हो या पुरुष या किसी भी जाति/वर्ण का हो, पढ़ सकता है /लेकिन उस समय मुहूर्त देखने की आवश्यकता है /श्रीमद देवीभागवत के पांचवे अध्याय के अनुसार बृहस्पति जिस नक्षत्र में है उससे चंद्रमा जिस नक्षत्र में है वहां तक गिनने पर क्रमशः पहले चार नक्षत्र धर्म प्राप्ति , पुनः चार लक्ष्मी प्राप्ति ,नवे नक्षत्र में सिद्धि प्राप्ति, फिर पांच नक्षत्र परम सुख की प्राप्ति , फिर दस नक्षत्र पीड़ातथा राजभय देने वाले, तत्पश्चात तीन नक्षत्र ज्ञान प्राप्ति करने वाले है /
गीताप्रेस गोरखपुर से भी श्रीमद देवीभागवत प्रकाशित की जा रही है जो की अन्य प्रकाशनों से सस्ती है

रविवार, 31 जनवरी 2010

अमृतसिद्ध योग में देवी अथर्व शीर्ष की सिद्धि और प्रयोग

प्रिय आत्मन,
चंडी पाठ का परायण करने वाले बंधू "देव्या अथर्व शीर्षम" से अवश्य परिचित होंगे / इसकी अथर्व वेद में बहुत ही बड़ी महिमा बतलाई गयी है / इस अथर्वशीर्ष के पाठ से देवी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है / इसमे देवी के मूल मंत्र का बड़ी ही गोपनीयता से विषद वर्णन किया गया है /संसार सागर से तरने, सभी कष्टों से मुक्ति पाने का और देवी दुर्गा के कृपा प्राप्त करने और सभी सुखो की प्राप्ति का यह अमोघ उपाय है / इसका प्रयोग कभी भी निष्फल नहीं होता /
मै आप सभी बंधुओ को इसको सिद्ध करने के प्रयोग के बारे में बताऊंगा जिसको करने के बाद यह अथर्वाशीर्ष सिद्ध हो जायेगा और प्रयोग करने के लिए उपयोगी हो जायेगा/ यह ऐसी महाविद्या है की एक बार सिद्ध होने के सभी दुखो को दूर कर देती है /
इसका प्रयोग करने वाले साधक को संस्कृत को सुस्पष्ट रूप से पढना आना चाहिए और उच्चारण भी सुस्पष्ट होना चाहिए अन्यथा गलत उच्चारण से हानि भी हो सकती है /
देव्या अथर्व शीर्ष दुर्गा सप्तशती में दिया हुआ है इसलिए यहाँ नहीं दे रहा हूँ / यहाँ केवल सिदधी विधान और प्रयोग ही दिए दे रहा हूँ
श्री देव्या अथर्व शीर्ष सिद्धि विधान और प्रयोग
अमृतसिद्धि योग ( अश्विनी नक्षत्र युक्त मंगलवार ) के योग में देव्या अथर्व शीर्ष का पाठ करना है /
इस दिन और इस योग काल में साधक स्नान करके मुहूर्त के समय देवी की प्रतिमा के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाकर , जल का लोटा रखकर आसन पर बैठ जाये / अष्टोत्तरशत गायत्री मंत्र का जाप करे / तदुपरांत देव्यथार्वशीर्ष के १०८ पाठ का संकल्प ले और पाठ शुरू करे / १०८ पाठ से यह स्तोत्र सिद्ध हो जाता है /
सिद्धि के बाद महामृत्युंजय जाप की तरह इसका भी प्रयोग विभिन्न प्रकार से किया जाता है
दीक्षित साधक ही इस साधना के अधिकारी हैं