शनिवार, 8 सितंबर 2018

शाबर धूमावती साधना

दस महाविद्याओं में माँधूमावती का स्थान सातवां हैऔर माँ के इस स्वरुप को बहुतही उग्र माना जाता है ! माँ कायह स्वरुप अलक्ष्मी स्वरूपाकहलाता है किन्तु माँ अलक्ष्मीहोते हुए भी लक्ष्मी है ! एकमान्यता के अनुसार जब दक्षप्रजापति ने यज्ञ किया तो उसयज्ञ में शिव जी को आमंत्रितनहीं किया ! माँ सती ने इसे शिवजी का अपमान समझा औरअपने शरीर को अग्नि में जलाकर स्वाहा कर लिया और उस अग्नि से जो धुआं उठा उसने माँ धूमावती कारूप ले लिया ! इसी प्रकार माँ धूमावती की उत्पत्ति की अनेकों कथाएँप्रचलित है जिनमे से कुछ पौराणिक है और कुछ लोक मान्यताओं परआधारित है ! नाथ सम्प्रदाय के प्रसिद्ध योगी सिद्ध चर्पटनाथ जी माँधूमावती के उपासक थे ! उन्होंने माँ धूमावती पर अनेकों ग्रन्थ रचे औरअनेकों शाबर मन्त्रों की रचना भी की ! यहाँ मैं माँ धूमावती का एक प्रचलितशाबर मंत्र दे रहा हूँ जो बहुत ही शीघ्र प्रभाव देता है  ! कोर्ट कचहरी आदि केपचड़े में फस जाने पर अथवा शत्रुओं से परेशान होने पर इस मंत्र का प्रयोगकरे ! माँ धूमावती की उपासना से व्यक्ति अजय हो जाता है और उसके शत्रुउसे मूक होकर देखते रह जाते है !

||   मंत्र  ||
 पाताल निरंजन निराकार 
आकाश मंडल धुन्धुकार 
आकाश दिशा से कौन आई 
कौन रथ कौन असवार 
थरै धरत्री थरै आकाश 
विधवा रूप लम्बे हाथ 
लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव 
डमरू बाजे भद्रकाली 
क्लेश कलह कालरात्रि 
डंका डंकिनी काल किट किटा हास्य करी 
जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते 
जाया जीया आकाश तेरा होये
धुमावंतीपुरी में वास
ना होती देवी ना देव
तहाँ ना होती पूजा ना पाती
तहाँ ना होती जात न जाती
तब आये श्री शम्भु यती गुरु गोरक्षनाथ
आप भई अतीत
ॐ धूं: धूं: धूमावती फट स्वाहा !

||  विधि  ||
41 दिन तक इस मंत्र की रोज रात को एक माला जाप करे ! तेल का दीपक जलाये और माँ को हलवा अर्पित करे ! इस मंत्र को भूल कर भी घर में ना जपे, जप केवल घर से बाहर करे ! मंत्र सिद्ध हो जायेगा !

||  प्रयोग विधि १ ||
जब कोई शत्रु परेशान करे तो इस मंत्र का उजाड़ स्थान में 11 दिन इसी विधि से जप करे और प्रतिदिन जप के अंत में माता से प्रार्थना करे – “ हे माँ ! मेरे अमुक शत्रु के घर में निवास करो ! “

ऐसा करने से शत्रु के घर में बात बात पर कलह होना शुरू हो जाएगी और वह शत्रु उस कलह से परेशान होकर घर छोड़कर बहुत दुर चला जायेगा !

||  प्रयोग विधि २ ||
शमशान में उगे हुए किसी आक के पेड़ के साबुत हरे पत्ते पर उसी आक के दूध से शत्रु का नाम लिखे और किसी दुसरे शमशान में बबूल का पेड़ ढूंढे और उसका एक कांटा तोड़ लायें ! फिर इस मंत्र को 108 बार बोल कर शत्रु के नाम पर चुभो दे ! ऐसा 5 दिन तक करे , आपका शत्रु तेज ज्वर से पीड़ित हो जायेगा और दो महीने तक इसी प्रकार दुखी रहेगा !

नोट - इस मंत्र के और भी घातक प्रयोग है  जिनसे शत्रु के परिवार का नाश तक हो जाये ! किसी भी प्रकार के दुरूपयोग के डर से मैं यहाँ नहीं लिखना चाहता ! इस मंत्र का दुरूपयोग करने वाला स्वयं ही पाप का भागी होगा !

दुर्गा-सप्तशती साधना-सूत्र

दुर्गा-सप्तशती साधना-सूत्र 
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जो व्यक्ति दुःखी, दरिद्र और अनेक प्रकार की पीड़ाओ से ग्रस्त है और साधना मार्ग में उत्तम मार्गदर्शन के अभाव में प्रवेश नहीं कर सकता हो, वह प्रातः काल या रात्रिकाल किसी विद्वान से आज्ञा प्राप्त कर श्रद्धा-पूर्वक ' श्रीदुर्गा-सप्तशती ' के पाठ का नियम बना ले और इस नियम को तब तक न तोड़े, जब तक कि इच्छित कामना की सिद्धि न हो जाय।

अगर कोई साधक निष्कामषभाव से पाठ करता है तो उसके जीवन में आकस्मिक विघ्न-बाधाएँ नहीं आएगी।

यदि संस्कृत का ज्ञान न हो, तो हिन्दी में पाठ करें। किन्तु नियम पूर्वक, निश्चित समय व स्थान पर और स्थान की पवित्रता का विशेष ध्यान रखें। इस प्रकार साधक को अभीष्ट की सिद्धि अवश्य प्राप्त होगी।


दुर्गति से बचने का सरल सरस मार्ग है भगवती दुर्गा की उपासना। दुर्गति नाशिनी होने के कारण ही इन्हें दुर्गा कहा गया है। इनकी प्रसन्नता ' दुर्गा-सप्तशती ' के परायण से प्राप्त होती है - इसमें सन्देह नहीं।
दुर्गा-सप्तशती का अनुष्ठान इस युग में सर्व-कामना पूर्ण करने वाला है। जो साधक पूर्ण पाठ करने में असमर्थ है उनके लिए कुछ सूत्र प्रस्तुत है-

1) आत्मोन्नति के लिए दुर्गा-सप्तशती के ' तन्त्रोक्त देवी -सूक्त ' का पाठ तीन वर्ष तक नियमित करना चाहिये।

2) ' आत्म-कल्याण के निमित्त दुर्गा-सप्तशती का पूरा पाठ न करके मात्र माँ का स्तवन - रात्रि-सूक्त, शक्रादय स्तुति, नारायणी स्तुति और अन्त में देवी-सूक्त का पाठ किया जाए, तो भी भगवती की प्रसन्नता प्राप्त होती है।

3) कामना सिद्धि के लिये दुर्गा-सप्तशती का शाप-मोचन, उत्कीलन व कुञ्जिका मन्त्र स्तोत्र का जप सहित पूरा पाठ करना चाहिये।

4) कामना-पूर्ति के लिए ' तन्त्रोक्त देवी-सूक्त का पाठ ' त्रुटि ' और ' पूर्ति ' श्लोक जोड़ कर करना चाहिये।

5) दुर्गा-सप्तशती में वर्णित कवच, अर्गला और कीलक का पाठ करने से साधक ज्ञात-अज्ञात परेशानियों से मुक्त रहता है। आदि।

देवी भागवत अनुसार दुर्गा सनातनी एवं भगवान् विष्णु की माया है। इन्हें नारायणी, ईशानी और सर्व-शक्ति-स्वरूपिणि कहा जाता है। ये परमात्मा श्रीकृष्ण की बुद्धिकी अधिष्ठात्री देवी है। सम्पूर्ण देवियाँ इन्हीं से प्रकट होती है। इन्हीं की कृपा से श्रीकृष्ण में भक्ति उत्पन्न होती है। वैष्णवों के लिए ये भगवती " वैष्णवी " है।

नवरात्र वर्ष में चार बार आते है-1)चैत्र, 2)आषाढ़, 3) आश्विन और 4) माघ।

देवि-भागवत में लिखा गया है -
चैत्रे आश्विने तथाषाढे, माघे कार्यो महोत्सवः।
नव-रात्रे महाराज ! पूजा कार्या विशेषतः।।

इस प्रकार चार नवरात्र में चैत्र एवं आश्विन प्रकट और आषाढ़ एवं माघ अप्रकट यानि 'गुप्त नवरात्र ' के नाम से जानी जाती है। गुप्त इसलिए की इन नवरात्र मे गुप्त गुरु-गम्य सिद्धिया प्राप्त करने के लिये साधना-उपासना की जाती हैं।

वैसे देखा जाय तो चारो नवरात्र चार ॠतुओं की सन्धि-वेला में आती है। इस काल में कितने ही लोग बीमार पड़ते हैं और अनेक प्रकार की संक्रामक बीमारियाँ भी फैल जाती है। इसलिए शक्ति अर्जित करने व व्रत-उपवास करके शारीरिक -मानसिक बल प्राप्त करने के लिए सर्व-दुःख-नाशिनी और ऐश्वर्य प्रदायिनी माँ दुर्गा या अपनी गुरु-परम्परानुसार पूजा आराधना की जाती है।

दुर्गा-सप्तशती के तन्त्रों में अनेक पाठ भेद पाएँ जाते है उनमें से नौ प्रकार के परायण मुख्य रूप से किये जाते है-

1) चण्डीपाठ- प्रथम, मध्यम और उत्तम चरित्र।
2) महातन्त्र - प्रथम, उत्तम, मध्यम चरित्र।
3) महाविद्या - मध्यम, उत्तम, प्रथम चरित्र।
4) सप्तशती- मध्यम, प्रथम, उत्तम चरित्र।
5) मृत सञ्जीवनी - उत्तम, मध्यम, प्रथम।
6) महाचण्डी - उत्तम, मध्यम, प्रथम।
7) रूपचण्डी ( कुमुदिनी )- प्रत्येक श्लोक के साथ " रूपं देहि.. .. के साथ नवार्ण मन्त्र का प्रतिश्लोक जप।
8 ) योगिनी - चौसठ योगिनी के नामोच्चारण के साथ नवार्ण मन्त्र का सम्पुट।
9) पराचण्डी - " सौः " बीज मन्त्र का सम्पुट लगाकर पाठ किया जाता है।

चण्डी, महातन्त्र, महाविद्या, सप्तशती, मृत सञ्जीवनी और महाचण्डी पाठ विधि में कामनानुसार सम्पुट लगाने की परम्परा है।


प्रयोजनानुसार दुर्गा-सप्तशती के तीन चरित्रों का क्रम परिवर्तन करने से सृष्टि, स्थिति एवं संहार क्रम बनता है।

सृष्टि क्रम
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' ऊँ ऐं मार्कण्डेय उवाच, सावर्णिः सूर्य-तनयो यो से प्रारम्भ करके " सूर्यात् जन्म समासाद्य सावर्णिर्भविता मनुः"। नव-चण्डी में इस क्रम को चण्डी-पाठ नाम से जाना जाता है।
गीताप्रेस,गोरखपुर से प्रकाशित दुर्गा-सप्तशती इसी क्रम से प्रकाशित कि गई है।
विवाहार्थी, सन्तानार्थी तथा शान्ति-पुष्टि के लिए इस क्रम से पाठ किया जाता है।
स्थिति क्रम
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'ऊँ क्लीं ' ॠषिरुवाच - पुरा शुम्भ- निशुम्भाभ्यां ( उत्तम चरित्र ) से प्रारम्भ करके प्रथम, मध्यम चरित्र पर्यन्त। नव-चण्डी पाठ में यह मृत- सञ्जीवनी नामक पाठ बताया गया है।
इस प्रकार पाठ करने से सभी सत् कामना पूर्ण होती है।
संहार क्रम
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तेरहवें अध्याय के अन्तिम श्लोक --' सूर्याज्जन्म समासाद्य ' से श्लोक वार उल्टे क्रम से पाठ करना होता है। जैसे तेरहवें अध्याय का अन्तिम श्लोक अट्ठाईसवाँ, सत्ताईसवाँ, छब्बीसवाँ। अध्याय भी उल्टे तेरहवॉं, बारहवॉं, ग्यारहवॉं आदि।
मुक्तिकामी इसी क्रम से पाठ करते है।
विलोम क्रम
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विलोम क्रम पाठ में श्लोकों भी उल्टा पढ़ा जाता है। जैसे --'नुःम ताविभर्णिः वसा ' शेष क्रम संहार क्रम की तरह ही है।
उग्र प्रयोजन के लिये यह विधि प्राप्त होती है।
क्रमशः...
कृपया कोई भी पाठ-क्रम अपनाने से पहले किसी विद्वान से परामर्श अवश्य ले। कोई साधक पाठ करें और अज्ञानवश दुष्परिणामों की प्रतीति हो तो इसके लिए हम उत्तरदायी नहीं होगें।

बुधवार, 5 सितंबर 2018

पति एवं पत्नी प्राप्ति हेतु टोटके

पति एवं पत्नी प्राप्ति हेतु टोटके 
श्रेष्ठ वर की प्राप्ति हेतु उपाय : लड़की के माता-पिता आदि कन्या के विवाह के लिये सुयोग्य वर की प्राप्ति के निमित्त प्रयासरत रहते हैं और कभी-कभी अनेक प्रयास करने पर भी वर की तलाश नहीं कर पाते। यदि किसी कन्या के विवाह में किसी भी कारण से अनावश्यक विलंब हो रहा हो, बाधायें आ रही हों तो कन्या को स्वयम् 21 दिनों तक निम्न मंत्र का प्रतिदिन 108 बार पाठ करना चाहिये और पाठ के उपरांत मंत्र के अंत में ''स्वाहा'' शब्द लगाकर 11 आहुतियां (शुद्ध घी, शक्कर मिश्रित धूप से) देना चाहिये। यह दशांश हवन कहलाता है। 108 बार पाठ का दसवां हिस्सा यानि 10.8 = 11 (ग्यारह) आहुतियां भी प्रतिदिन देना है, इक्कीस दिनों तक। सिर्फ स्थान, समय और आसन निश्चित होना चाहिये। इसका अर्थ यह है कि यदि कोई कन्या प्रथम दिन प्रातः काल 9.00 बजे पाठ करती है तो 21 दिनों तक उसे प्रतिदिन 9.00 बजे ही पाठ आरंभ करना चाहिये। यदि प्रथम दिन घर की पूजा-स्थली में बैठकर पाठ शुरू किया है तो प्रतिदिन वहीं बैठकर पाठ करना चाहिये। वैसे ही प्रथम दिन जिस आसन पर बैठकर पाठ आरंभ किया गया हो, उसी आसन पर बैठकर 21 दिनों तक पाठ करना है। सार यह है कि मंत्र पाठ का समय, स्थान और आसन बदलना नहीं है और न ही लकड़ी के पटरे पर बैठकर पाठ करना है न ही पत्थर की शिला पर बैठकर। विधि : अपने समक्ष दुर्गा जी की मूर्ति या उनकी तस्बीर रखें। कात्यायनी देवी का यंत्र मूर्ति के समक्ष लाल रेशमी कपड़े पर स्थापित करें। यंत्र और मूर्ति का सामान्य पूजन रोली, पुष्प, गंध, नैवेद्य इत्यादि से करें। 5 अगरबत्ती और धूप दीप जलायें और मंत्र का 108 बार पाठ करें। पाठ के पूर्व कुलदेवी का स्मरण करना चाहिये।
मंत्र : कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। 
नंदगोप सुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नमः॥ 
पाठ समाप्त होने पर 
कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। 
नंदगोप सुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नमः स्वाहा'
इस मंत्र का उच्चारण करते हुये ग्यारह आहुतियां दें। पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ इस विधि का पालन करने वाली कन्या को दुर्गा देवी सुयोग्य वर प्रदान करती हैं। सुयोग्य पत्नी की प्राप्ति हेतु उपाय उपाय -
दुर्गा सप्तशती की पुस्तक मे से नित्य ''अर्गला- स्तोत्र'' का एक पाठ (पूर्ण रूप में) करने से सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति संभव हो जाती है। यदि अर्गला-स्तोत्र का पूर्ण रूप में पाठ न कर सकें तो विवाहेच्छुक युवक को -
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानु सारिणीम्। 
तारिणींदुर्गसं सारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥ 
इस मंत्र का 108 बार पाठ या जप करने से पत्नी रूपी गृहलक्ष्मी की प्राप्ति संभव होती है। कोई भी उपाय का प्रयोग कृष्ण पक्ष की अष्टमी या चतुर्दशी तिथि से आरंभ कर विवाह संबंध सुनिश्चित हो जाने तक सतत करते रहना चाहिये। पाठ के समय शुद्धता रखनी चाहिए। दुर्गाजी की नित्य सामान्य पूजा जल, पुष्प, फल, मेवा, मिष्ठान्न, रोली व कुंकुम या लाल चंदन, गंध आदि से करते रहना चाहिये। सप्ताह में कम से कम एक ब्राह्मण व दो कन्याओं को भोजन करना चाहिये। प्रतिदिन पाठ के उपरांत कम से कम ग्यारह आहुतियां दुर्गाजी के नाम से देनी चाहिये। पूर्ण श्रद्धा, विश्वास और भक्ति भावना के साथ इस तरह के विधान का पालन करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं। नवदुर्गा यंत्र या दुर्गा बीसा यंत्र की स्थापना पाठ के प्रथम दिन करनी चाहिये। 
उपाय क्रमांक 2 : यदि किसी अविवाहित युवक को विवाह होने में बारंबार बाधाओं का सामना करना पड़ रहा हो तो ऐसे युवक को चाहिये कि वह नित्य प्रातः स्नान कर सात अंजली जलं ''विश्वावसु'' गंधर्व को अर्पित करे और निम्न मंत्र का 108 बार मन ही मन जप करे। इसे गुप्त रखें। अर्थात् किसी को इस बात का आभास न होने पाये कि विवाह के उद्देश्य से जपानुष्ठान किया जा रहा है। सायंकाल में भी एक माला जप मानसिक रूप में किया जाय। ऐसा करने से एक माह में सुंदर, सुशील और सुसम्पन्न कन्या से विवाह निश्चित हो सकता है। जपनीय मंत्र : 
' ' ऊँ विश्वा वसुर्नामगंधर्वो कन्यानामधिपतिः। 
सुरूपां सालंकृतां कन्या देहि में नमस्तस्मै॥ 
विश्वावसवे स्वाहा॥''
इस प्रकार से विश्वावसु नामक गंधर्व को सात अंजली जल अर्पित करके उपरोक्त मंत्र का जप करने से एक माह के अंदर अलंकारों से सुसज्जित श्रेष्ठ पत्नी की प्राप्ति होती है। कहा भी गया है। सालंङ्कारा वरां पानीयस्या अंजलीन सप्त दत्वा, विद्यामिमां जपेत्। सालंकारां वरां कन्यां, लभते मास मात्रतः॥ यदि किसी अविवाहित युवक का किसी कारणवश विवाह न हो पा रहा हो तो श्री दुर्गा जी का ध्यान करते हुये वह घी का दीपक जलाकर किसी एकांत स्थान में स्नान शुद्धि के उपरांत नित्य प्रातःकाल पंचपदी का उच्च स्वर में 108 बार पाठ करें तो, जगत्जननी माता दुर्गा जी की कृपा से सुयोग्य पत्नी की प्राप्ति शीघ्र हो जाती है।